छत्तीसगढ़ी बालगीत

सावन

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

सावन के महीना म संगी,
रिमझिम पानी बरसे जी.
रंग बिरंगी फूलवारी म,
भौंरा गुन-गुन करथे जी.

गड़- गड़, गड़-गड़ बादल गरजे,
घटा घलो अंधियारे हे,
चम-चम, चम बिजली चमके,
अगास मा दीया बारे हे.
तरिया, नरवा जम्मो भरगे,
झरना झर-झर झरथे जी.

सिहावा के पर्वत ले संगी
महानदी हर निकलथे
अपावन मन ला ओहर
गंगा कस पावन करथे जी.

सबके मन हर हरिया जाथे
जब सावन हर आथे जी
टेटक मेंचका जम्मो मिलके
राग मल्हारी गाथे जी.

झींगुर मन हर राग सुनाही
मंजूर नाच देखाही जी.
संगी-संगवारी मन भैया
बादर हर ग़जब मुसकही जी.

नाम कमाओ

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

जउन मिहनत ले करथे काम.
होथे ओकरे जन मा नाम.

काम ले जउन ह जी चोराथे
जिनगी भर ओहर पछताथे.

मन लगा के काम ला करथे
मनखे ह उही आगू बढ़थे.

चेत लगा के काम ल करहू
नवा - नवा रद्दा ला गढ़हू.

सोच समझ के आगू आवौ
सुग्घर तुमन ह नाम कमावौ.

सावन बदरिया

रचनाकार- पेश्वर राम यादव

सुनो भैया सुनो संगी
सावन बदरिया ह आगे
सीटीर सीटीर झड़ी ह
भुइयां म समागे.
सूरज अउ चंदा ह
घलोक बादर म लुकागे
हरियर हरियर चारो मुड़ा
धरती ह हरियागे.
खेती खार के दिन आगे
धान बांवत बियासी होवत
सुवारिन मन भात बासी लाथे
मेड़ पार में बईठ के
बोरे बासी ह नून चटनी संग सुहाते.
बारह बजे के बेरा ले
सब्बो कोती अर्र त त् ता सुनाथे
मेचका मछरी मन ह घलोक
डबरा तरिया डोली म कुलबुलाते.
रंग बिरंग के फुटु ह
छाता अइसन छतरागे
खुमरी छितोरी घलोक
अब के बरसा में नंदागे.
अरन बिरन के कीरा मन ह
अब्बड़,भुइयां म इतराथे
गेंगरुवा तको माटी ल
खेती बर उर्वरा बनाथे.
हरियर हरियर सब्बो कोती
भुइयाँ ह सुघ्घर हरियागे
साग भाजी ह घलोक
बखरी बारी म उलाहगे.
त चलो संगी चलो भैया
अब हम्मों मन पेड़ पौधा लगाथन
हमर स्कूल,गाँव ल सुघ्घर हरियर बनाथन.

जल संरक्षण

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

सुनव सबोझन,
गुनव सबोझन.
बादर बरसे,
जिनगी हरसे..

नँदिया तरिया,
भाँठा परिया.
खेत-खार मा,
मुँही-टार मा..

पानी-पानी,
अति हलकानी.
कब ये खँगथे,
कब ये नँगते..

पानी छेंकव,
झन तो फेंकव.
नइ पछताबे,
जल ल बचाबे..

जतन करव अब,
लगन धरव सब.
सुमता सुग्घर,
रद्दा उज्जर..

जल संरक्षण,
तन-मन अर्पण.
जिनगी हाँसय,
जल जब बाँचय..

तिरंगा ला फहरावन

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

चलौ तिरंगा ला फहरावन
जय-जय गनतंत्र हम गावन.

कौनो नइ हे अपन बिरान
करन मया, पिरीत देखावन.

सबके मान करन हम भैया
ऊँच-नीच के भेद मिटावन.

चलन नियम मा हम सब बँध के
संविधान के करज चुकावन.

कौनो बैरी गर ललकारे
ओकर मुंड़ी ल हम नवावन.

राफेल

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

जग में कोरोना छोड़ा,
सीमा में नियम तोड़ा.
पापी चीन बन रोड़ा,
खेल रहा खेल है.

करता जो नित धोके,
पाक भी पागल रोके.
चीनियों का दास होके,
कर लिया मेल है.

मगर रण धीरो ने,
लक्ष्य में सधे तीरों ने.
निकाला सदा वीरों ने,
बैरियों का तेल है.

वीरता का भाल बन,
देखों अब ढाल बन.
बैरियों का काल बन,
आ गया राफेल है.

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