छत्तीसगढ़ी कहानी

मन की आवाज़

रचनाकार- सन्तोष कुमार तारक

एक डोकरी बड़े जान मोटरी धर के जात रहिस. रेंगत- रेंगत वो ह थक गए.तब वो हर एक झन घुड़सवार ला देख के कहिस, ' ये बेटा एकठन बात हे सुन तो.'

घुड़सवार हर रूक के पूछिस, 'का बात ये दाई.'

डोकरी ह किहिस, 'मोला वो गांव जाना हे. मैं हर थक गे हौं. ये मोटरी हर अब्बड़ गरू हे. येला न सकत हौ, तैं हर उही डाहर जावत हस, येला लेग जा, मैं हर रेंगत-रेंगत आवत हौं, मोला रेंगे बर हरू होही.'

घुड़सवार हर कहिस, 'मैं हर घोड़ा म गांव जल्दी पहुंच जाहू, त तोला देखत थोरी रहहूँ.' ये कहिके घुड़सवार हल चल दिस.

थोर आगू जाय के बाद घुड़सवार के मन म बिचार आइस, डोकरी के मोटरी मा कीमती जीनिस होही. ये सोच के ओहर डोकरी कर आ के कहिस. 'दे दाई, तोर मोटरी ल, धर लेथो.'

डोकरी ह कहिस, अब मैं मोंटरी ल नइ देंव.'

घुड़सवार हर कहिस, 'काबर अभी तो लेगे बर कहत रहेस.'

तब डोकरी हर कहिस, तोर मन म जउन बिचार आइस, ओकर उल्टा बिचार मोरो मन म आइस.' विचार आइस ? हाँ..................

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