अधूरी कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –
चित्रा का हारमोनियम
चित्रा आज बहुत खुश थी. आज उसका जन्मदिन था. वैसे तो चित्रा अपना हर जन्मदिन अपने माता-पिता और दोस्तों के साथ मनाया करती थी पर इस बार अपने जन्मदिन का चित्रा को बहुत बेसब्री से इंतज़ार था.
चित्रा कक्षा आठवीं में पढ़ती है. उसके घर में माता-पिता और छोटे भाई सहित चार लोग हैं.पढ़ाई के साथ चित्रा की रुचि चित्रकारी, बागवानी और संगीत में भी है. इसी साल चित्रा ने संगीत सीखना शुरू किया है.संगीत की कक्षा में सभी अपने साथ अपनेअपने वाद्ययंत्र लेकर आते हैं पर चित्रा के पास अपना कोई वाद्ययंत्र नहीं है वह कक्षा में संगीत शिक्षक के हारमोनियम को ही बजाकर अपनी इच्छा पूरी कर लेती है.
संगीत सीखने में चित्रा की लगन देखकर संगीत शिक्षक ने चित्रा के पिताजी को सलाह दी कि वे चित्रा के लिए उसकी पसंद का कोई वाद्ययंत्र खरीद लें.
चित्रा की माँ ने उसे बता दिया था कि आज जन्मदिन पर पिताजी उपहार में हारमोनियम देने वाले हैं. जब से चित्रा को यह बात पता चली तब से ही वह अपने जन्मदिन की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगी और आज उसका जन्मदिन आ ही गया.
जन्मदिन का आयोजन खत्म हुआ और दोस्तों के दिए उपहारों के साथ चित्रा को हारमोनियम भी मिल गया. पर अगले ही दिन से चित्रा का व्यवहार बदल गया. अब वह हर वक्त सिर्फ हारमोनियम में ही रमी रहती. चित्रकारी और बागवानी तो वह भूल ही गई.पढाई भी केवल होमवर्क तक सीमित हो गई.
यशवंत कुमार चौधरी द्वारा पूरी की गयी कहानी
चित्रा अपने हारमोनियम के साथ काफी खुश थी,उसका मन संगीत के प्रति इस कदर आकर्षित हुआ कि वह अब चित्रकारी,बागवानी और पढाई के लिए बिलकुल समय नहीं दे रही थी.
अब चित्रा संगीत में बहुत कुशल हो गई और उसे संगीत की प्रस्तुति के लिए निमंत्रण भी मिलने लगे. चित्रा अब एक अच्छी कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हो गई. उसे अनेक पुरस्कार भी मिले. पर वह अब पढ़ाई –लिखाई में कमजोर होती जा रही थी. यह देखकर शिक्षक और माता पिता ने चित्रा को पढाई पर भी ध्यान देने की सलाह दी. अब चित्रा ने संगीत के साथ-साथ पढाई पर भी ध्यान लगाना शुरू किया और उसे परीक्षा में अच्छे अंक भी मिले. अब चित्रा की समझ में आया कि लगन और नियमित अभ्यास से विभिन्न कौशलों को सीखा जा सकता है परंतु इसके लिए योजना बनाकर समय का प्रबंधन करना बहुत जरूरी है.
कन्हैया साहू 'कान्हा' व्दारा पूरी की गई कहानी
चित्रा अब रोज ही अपने हारमोनियम में अपने गाने का रियाज करने लगी, जिसके कारण अब वह पढ़ाई में अन्य बच्चों से पिछड़ने लगी, उसका ध्यान पढ़ाई, बागवानी चित्रकारी से अब बिल्कुल ही हट गया था. जैसे- तैसे करके वह आठवीं कक्षा पास हो गई. उसके संगीत शिक्षक ने चित्रा के पिताजी से मिलकर चित्रा के संगीत के प्रति लगाव को देखते हुए यह सलाह दिया कि उसे किसी संगीत विद्यायल में दाखिला करा दे, जिससे वह संगीत में निपुण हो सके. पिता जी ने शिक्षक के सुझाव व चित्रा की लगन को देखते हुये, अपने शहर के ही एक संगीत विद्यालय में चित्रा का दाखिला करवा दिया.अब वह पूरे लगन से अपने संगीत के गुरुजनों से विद्या अर्जन करने लगी.चित्रा का बचपन से ही संगीत में रुझान होने के कारण जो भी उसे सिखाया जाता बहुत लगन से उसका रियाज करती और संगीत के नए नए सुरों को सीखने लगी. चित्रा अब छोटे छोटे कार्यक्रमो में अपनी प्रस्तुती भी देने लगी थी. उसकी गाने व हारमोनियम बजाने की कला का सुनने वाले सभी लोग बहुत तारीफ करते.चित्रा भी पूरी लगन से अपनी संगीत शिक्षा में लगी रही, आगे चलकर चित्रा एक कुशल गायिका और हारमोनियम वादक के रूप में अपने शहर में प्रसिद्ध हुई.
संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी
चित्रा का बदला हुआ व्यवहार देखकर उसके माता-पिता ने संगीत शिक्षक से चित्रा को समझाने के लिए कहा. संगीत शिक्षक ने चित्रा के माता-पिता को आश्वस्त किया कि वे चित्रा के व्यवहार में परिवर्तन लाएँगे.
एक दिन जब चित्रा हारमोनियम बजा रही थी तब संगीत शिक्षक ने अच्छा हारमोनियम बजाने के लिए चित्रा की तारीफ की. फिर वे चित्रा को समझाते हुए बोले बेटा संगीत के प्रति रुचि होना बहुत अच्छी बात है लेकिन अभी तुम्हे अपनी पढाई पर भी ध्यान देना चाहिए. पढ़ाई भी होती रहे और संगीत का अभ्यास भी इसके लिए तुम एक समय सारणी बना लो तो बहुत अच्छा होगा.
चित्रा शिक्षक की बातों पर विचार करते हुए अपने घर चली आई.
दूसरे दिन ही चित्रा ने अपने लिए एक समय सारणी बना ली और उसके अनुसार कार्य करने लगी. अब पढाई और संगीत का अभ्यास दोनों ही कार्य अच्छी तरह से होने लगे.
बारहवीं कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर चित्रा ने संगीत विद्यालय में प्रवेश ले लिया. उसकी रूचि संगीत में पहले से ही थी और अपनी मेहनत से चित्रा ने संगीत में विशेष योग्यता प्राप्त कर ली. संगीत की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात वह संगीत शिक्षिका पद पर नियुक्त हो गई. चित्रा के मां-पिताजी एवं शिक्षक उसकी सफलता से बहुत प्रसन्न हुए.
अगले अंक के लिए अधूरी कहानी
इस घटना को हुए करीब 35 साल गुजर गए किंतु आज भी वे सारे दृश्य मेरी आंखों में एकदम ताज़ा हैं. उस दिन स्टेशन पर बहुत ज़्यादा भीड़ तो नहीं थी पर ट्रेन में बैठने की जगह नहीं मिली थी. मैं लंबी बेंच के किनारे खड़ा रहा. हालांकि उस बेंच पर चार लोग ही बैठे थे पर मुझे उनसे जगह मांगना अच्छा नहीं लग रहा था. थोड़ी देर के बाद एक सज्जन को शायद मुझ पर दया आई. उन्होंने खिसककर थोड़ी जगह मुझे भी दे दी.
मैं कॉलेज में अपने भाई के एडमिशन के लिए शहर आया हुआ था. बड़ी कोशिशों के बाद भी उसे किसी कॉलेज में जगह नहीं मिल पाई थी. पिछले तीन-चार दिन इतनी कठिनाई भरे थे कि क्या कहूं. ना तो दिन में खाने का ठिकाना था ना रात में सोने का. मैं इन्हीं खयालों में डूबा हुआ था, मुझे आसपास की खबर ही नहीं थी.
अचानक मेरी निगाह सामने की सीट पर गई. मैंने देखा एक महिला बहुत बेचैनी से अपने सामानों में कुछ खोज रही थी. अगल-बगल बैठे लोगों ने पूछा, क्या हुआ. लगभग रोते हुए उस महिला ने बताया कि उसका पर्स नहीं दिख रहा है. ट्रेन में चढ़ते समय शायद किसी ने उसे निकाल लिया. वह काफी देर तक सीट के नीचे और इधर-उधर अपना पर्स ढूंढ़ती रही, इस उम्मीद में कि शायद कंपार्टमेंट में ही कहीं गिरा हो और मिल जाए. पर वह उसे कहीं नहीं मिला. वह आखिर थक-हार कर अपनी सीट पर बैठ गई. उसके आंसू थम नहीं रहे थे. उसके साथ एक छोटी बच्ची भी थी, लगभग डेढ़-दो साल की. महिला कभी उसे संभालती, कभी खुद को. उसकी अब तक की बातचीत से पता चला कि उसके पर्स में उसके जेवर, पैसे, टिकट जैसी सभी चीज़ें थीं.
उसका दुख देखकर मुझे अपनी तकलीफें याद ही नहीं रहीं. आसपास के लोग उसके साथ बड़ी सहानुभूति दिखा रहे थे. जिस तरह लोग उस पर तरस खा रहे थे, पता नहीं क्यों यह बात मुझे अच्छी नहीं लग रही थी. इन खोखली सहानुभूतियों से आखिर होता भी क्या है.
अचानक वहां टीसी महोदय पहुंच गए. उन्होंने सभी से टिकट पूछना शुरू किया.
अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे