सजीवों में गति और प्रचलन

जब कोई वस्तु हिलती-डुलती है तो इसे उस वस्तु का गति करना कहते हैं. जब कोई वस्तु एक स्थान से हटकर दूसरे स्थान तक जाती है तो इसे प्रचलन कहा जाता है. सभी सजीव गति करते हैं, परंतु केवल जंतु ही प्रचलन कर सकते हैं.

पौधों में गति – पौधे हिल सकते हें, यह तो हम सभी जानते हैं. सभी ने पौधों को हवा में हिलते हुए देखा है. इस प्रकार की गति पौधों पर बाहरी बल लगने से होती है. ऐसी गति निर्जीवों में भी हो सकती है, परंतु पौधे बिना किसी बाहरी बल के स्वयं भी गति कर सकते हैं. यह गति किसी उद्दीपन के फलस्वरूप होती है और अनुवर्तन (ट्रापिज्म) कहलाती है. यह उद्दीपन स्पर्श, प्रकाश, जल, गुरुत्वाकर्षण आदि से हो सकते हैं. छूने से पौधों में होनी वाली गति छुईमुई में आसानी से देखी जा सकती है. छुईमुई को छूते ही उसकी पत्तियां बंद हो जाती हैं –

पौधों का तना और पत्तियां प्रकाश की ओर मुड़ते हैं और जड़ें प्रकाश के विपरीत दिशा में मुड़ते हैं –

पौधों का तना गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में मुड़ता है और जड़ें गुरुत्वाकर्षण की ओर मुड़ती हैं –

पौधों की जड़ों में जल की ओर अनुवर्तन भी देखा जाता है –

बेलें और उनके प्रतान किसी सहारे को छूते ही उससे लिपट जाते हैं. इसे स्पर्शानुवर्तन कहते हैं –

जंतुओं में प्रचलन – जंतु एक स्थान से दूसरे स्थान को गति कर सकते हैं, जिसे प्रचलन कहते हैं. एक कोशीय जंतु कोशिका के अंगों की सहायता से गति करते हैं. अमीबा में कोशिका एक ओर आगे बढ़कर पादाभ बनाती है, और धीरे-धीरे पूरी कोशि‍का इस पादाभ में ही समा जाती है जिससे अमीबा आगे को बढ़ता है –

पैरामीशियम और यूग्लीना में बाल जैसी पतली रचनाएं होती हैं जो हिलती रहती हैं. इन्‍हें सीलिया कहते हैं. सीलिया आस-पास के जल में तरंगें उत्पन्न करते हैं, जिससे यह जंतु प्रचलन करते हैं –

बहु कोशीय जंतु अपनी मांस पेशियों की मदद से प्रचलन करते हैं. यदि आप एक केंचुए को किसी साफ सतह पर रखकर देखें तो आपको दिखेगा कि उसका शरीर कुछ पतला होकर आगे को बढ़ता है और फिर पीछे का शरीर इसमें समा जाता है –

सांप अपनी रीढ़ की पेशियों की मदद से प्रचलन करते हैं –

मछलियां आपने मीनपंखों से तैरती हैं और चिडि़यां अपने डैनों से उड़ती हैं –

अन्य पशु अपने पैरों से चलते हैं. प्रचलन के यह सभी अंग पेशियों के बल से गति करते हैं और जंतुओं को प्रचलन करने में मदद करते हैं

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