सजीवों में नियंत्रण एवं समन्वय
ज़रा सोचिये यदि हमारे सारे अंग अलग-अलग काम करते तो क्या होताॽ जब हमारी इच्छा खाना खाने की होती तो मुंह खुलने से मना कर देताॽ जब हम चलना चाहते तो पैर उठना बंद कर देतेॽ ऐसे में जीवन जीना दूभर हो जाता. इसलिये यह आवश्यक है कि सभी अंगों पर हमारे मस्तिष्क का नियंत्रण बना रहे और सभी अंग आपस में समन्वय से काम करें. इसके लिये हमारे शरीर में 2 प्रणालियां होती हैं. पहली प्रणाली तंत्रिका तंत्र कहलाती है, और दूसरी प्रणाली अंत:स्रावी ग्रंथियों की होती है.
तंत्रिका तंत्र – तंत्रिका तंत्र के 4 अंग होते हैं – संवेदी अंग, तंत्रिकाएं, मेरुरज्जु और मस्तिष्क.
- संवेदी अंग - संवेदी अंग बाहर की दुनिया से संवेग ग्रहण कर हमें बाहर की दुनिया की जानकारी देते हैं. हमारे शरीर में 5 प्रकार के संवेदी अंग होते हैं –
हम आपने कानों से ध्वनि ग्रहण करके सुन सकते हैं, आंखों से प्रकाश ग्रहण करके देख सकते हैं, नाक से सूंघ कर गंध का अनुभव कर सकते हैं, जीभ से हमें स्वाद का पता चलता है, और त्वचा से हम छुवन और दर्द का अनुभव करते हैं.
- तंत्रिकाएं – तंत्रिकाएं बिजली के तारों की तरह होती हैं. यह संवेदी अंगों से प्रारंभ होकर, मेरुरज्जु के माध्यम से मस्तिष्क तक जाती हैं. संवेदी अंगों व्दारा ग्रहण किये गये संवेग, तंत्रिकाओं और मेरुरज्जु से होकर मस्तिष्क तक जाते हैं. इन संवेगों के आधार पर मस्तिष्क अन्य अंगों को कार्य करने के आदेश देता है. यह आदेश भी मेरुरज्जु और तंत्रिकाओं के माध्यम से अन्य अंगों तक पहुंचते हैं.
- मेरुरज्जु – यह शरीर की सबसे मोटी तंत्रिका है जो रीढ़ की हड्डी के भीतर होती है. लगभग सभी तंत्रिकाएं आकर इसी में मिलती हैं. केवल कुछ ही तंत्रिकाएं सीधे मस्तिष्क में मिलती हैं.
- मस्तिष्क – यह शरीर का वह अंग है जो पूरे शरीर पर नियंत्रण रखता है. इसी से हम सोच विचार कर सकते हैं. इसी से हम संवेदी अंगों व्दारा ग्रहण किये गये संवेगों को पहचान सकते हैं. मस्तिष्क बड़ा कोमल होता है इसलिये खोपड़ी के अंदर चारों तरफ हड्डियों से घिरा रहता है, जिससे इसे चोट न लगे. संवेग तंत्रिकाओं से बिजली की धारा के रूप में चलते हैं और मस्तिष्क तक पहुंचते हैं -
प्रतिवर्ती क्रियाएं – कभी-कभी संवेग मिलते ही शरीर की रक्षा के लिये तत्काल कुछ क्रिया करना आवश्यक होता है. यह क्रियाएं अपने आप होती हुई प्रतीत होती हैं. इनपर मस्तिष्क का नियंत्रण नहीं होता है. उदाहरण के लिये यदि हमारा हाथ किसी जलती हुई वस्तु पर पड़ जाये तो बिना सोचे ही हमारा हाथ तत्काल वहां से हट जाता है. इसी प्रकार यदि घुटने पर चोट की जाये तो हमारा पैर हिलता है. इस प्रकार की क्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं. यह शरीर की रक्षा के लिये आवश्यक हैं. इस क्रिया के लिये संवेग मस्तिष्क तक नहीं जाते बल्कि मेरुरज्जु से ही क्रिया करने वाले अंग को भेज दिये जाते हैं. संवेग के चलने के इस रास्ते को प्रतिक्रिया चाप कहते हैं. इसके उदाहरण नीचे के चित्रों में देखें –
अंत:स्रावी गंथियां – जैसे हमारे चारो तहफ की हवा, पानी आदि वस्तुओं को वातावरण कहा जाता है, उसी प्रकार शरीर की सभी कोशिकाएं जिस वातावरण में रहती हैं उसे शरीर का आंतरिक वातावरण कह सकते हैं. हमारे शरीर के अंगों के ठीक प्रकार से काम करने के लिये शरीर के इस आंतरिक वातावरण का एक समान बना रहना बड़ा आवश्यक है. इसे ही विज्ञान की भाषा में अंग्रेज़ी में होमियोस्टेसिस कहते हैं. इसे बनाये रखने के लिये शरीर की अंत:स्रावी ग्रंथियों का महत्वपूर्ण योगदान है. इन ग्रंथियों को अंत:स्रावी इसलिये कहा जाता है क्योंकि इनका स्राव किसी नलिका के व्दारा बाहर नहीं निकलता, बल्कि शरीर के अंदर ही रहता है, और शरीर के आंतरिक वातावरण को बनाये रखने का काम करता है. इन ग्रंथियों के स्राव को हार्मोन कहा जाता है. हमारे शरीर की प्रमुख अंत:स्रावी ग्रंथियां नीचे चित्र में दिखाई गई हैं –
इन ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन और उनके कार्यों के बारे में नीचे का चित्र देखें –
यह ग्रंथियां स्वतंत्र रूप से काम नहीं करतीं, बल्कि इनके हार्मोन एस दूसरे के काम पर नियंत्रण भी रखते हैं. पिट्यूटरी या पीयूष ग्रंथि शरीर की बाकी अंत:स्रावी ग्रंथियों के कार्य को नियंत्रित करती है. पिट्यूटरी के कार्य को हाइपोथेलेमस से निकलने वाले हार्मोन नियंत्रित करते हैं. इसे थायरोयड के उदाहरण से समझ सकते हैं. थायरोयड से निकलने वाले टी-3 एवं टी-4 हार्मोन शरीर में चयापचय को बढ़ाते हैं. हाइपोथेलेमस से टी.आर.एच नाम का हार्मोन निकलता है जो पिट्यूटरी से निकलने वाले टी.एस.एच. नाम के हार्मोन का स्राव बढ़ाता है. टी.एस.एच. थायरोयड से टी-3 एवं टी-4 का स्राव बढ़ाता है परंतु टी.आर.एच. का स्राव कम कर देता है. इसी प्रकार टी-3 एवं टी-4 टी.एस.एच. का स्राव कम करते हैं. इस प्रकार यह हार्मोन एवं अंत:स्रावी ग्रंथियां एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं. इसे नीचे के चित्र से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.
पौधों के हार्मोन – पोधों में तंत्रिकाएं नहीं होती हैं, परंतु हार्मोन होते हैं जो पौधे की बढ़त, फूल खिलना, फल लगना आदि को प्रभावित करते हैं. इनके कार्यों को नीचे के चित्र में अच्छी तरह से समझाया गया है-