सजीवों में उत्सर्जन

सजीवों के शरीर की जैविक क्रियाओं से शरीर के लिये उपयोगी बहुत से पदार्थ बनते हैं. इसी प्रकार इन क्रियाओं से ही शरीर के लिये अनुपयोगी और हानिकारण पदार्थ भी बनते हैं. इन पदार्थों को अपशिष्ट कहते हैं, और इन्हें शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहा जाता है.

एक कोशीय जीवों में उत्सर्जन – एक कोशीय जीवों में उत्सर्जी पदार्थ कोशिका के अंदर एक गोलाकार रूप में एकत्रित हो जाते हैं. इसे कांट्रेक्टाइल वैक्‍यूओल कहा जाता है. जैसे-जैसे उत्‍सर्जी पदार्थ इसमें एकत्रित होते है इसका आकार बड़ा होता जाता है. जब यह बड़े आकार का हो जाता है, तो कोशिका के बाहरी आवरण के पास जाकर फूट जाता है, और उत्सर्जी पदार्थ कोशिका से बाहर निकल जाते हैं.

मनुष्य के शरीर से उत्सर्जन – मुनष्य के शरीर से उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकालने का काम किडनी (वृक्क ), त्वचा, लिवर (यक्रत), फेफड़े आदि अंग करते हैं. इन अंगों से विभिन्न प्रकार के उत्सर्जन के संबंध में नीचे दिये गये चित्र में विस्तार से बताया गया है –

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अमोनिया गैस से यूरिया का बनना – जीवों के शरीर में अमोनिया गैस एक प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ है. अमोनिया शरीर के लिये बहुत हानिकारक होती है, इसलिये लिवर में यह गैस कार्बन-डाई-आक्साइड से क्रिया करके यूरिया में परिवर्तित हो जाती है. यूरिया भी काफी हानिकारक है, यद्यपि अमोनिया से कम हानिकारक है. यूरिया रक्त में से किडनी व्दारा अलग कर दिया जाता है, और किडनी में बनने वाले मूत्र व्दारा शरीर के बाहर आ जाता है. यह रासायनिक क्रिया निम्नानुसार है -

लिवर में यूरिया बनने की क्रिया को नीचे दिये चित्र से समझें –

किडनी में मूत्र का बनना – किडनी में बहुत सी नलिकाएं होती हैं, जिनके प्रारंभ में एक कीप के आकार का सिरा होता है. इन कीपों में रक्त केशिकाओं (केपिलरी) का एक गुच्छा होता है.

इस गुच्छे से बाहर आने वाली रक्त केशिकाएं अंदर जाने वाली रक्त केशिकाओं की तुलना में संकरी होती हैं, इस कारण इस गुच्छे में रक्त का दाब बढ़ जाता है, और रक्त‍ से उत्सर्जी पदार्थ और पानी छन कर नलिकाओं के कीप जैसे मुंह में आ जाते हैं. इन नालिकाओं के चारों ओर भी रक्त‍ केशिकाओं का एक जाल सा बना होता है. जब छना हुआ पानी और उत्सर्जी पदार्थ इन नलिकाओं में बाहर की ओर बहते हैं, तो अधिकांश पानी, और उपयोगी पदार्थ वापस रक्त, में अवशोषित हो जाते हैं, और केवल उत्सर्जी पदार्थ और कुछ पानी मूत्र के रूप में बाहर आते हैं.

मानव शरीर के उत्सर्जन तंत्र के संबंध में हम कक्षा-6 में पढ़ चुके हैं. इसे एक बार दोहरा लेते हैं. शरीर में दो वृक्क या किडनी होती हैं. इनमें से मूत्र वाहिनियां निकलती हैं, और नीचे जाकर मूत्राशय में जुड़ जाती हैं. मूत्राशय से मूत्रमार्ग निकलता है, जो शरीर के बाहर से मूत्र छिद्र के रूप में जुड़ा होता है.

पक्षियों और छिपकलियों में उत्सर्जन – पक्षियों एवं छिपकलियों में पानी बचाने के लिये अमोनिया ठोस यूरिक अम्ल में बदल जाती है. यह यूरिक अम्ल मल के साथ ही शरीर से बाहर आ जाता है. यूरिक अम्ल सफेद रंग का होता है और मल के ऊपर अलग से दिखाई देता है.

पौधों में उत्सर्जन – पेड़-पौधों में गैसीय उत्सर्जी पदार्थ, पत्तियों के स्टोमेटा से बाहर आ जाते हैं. कुछ अन्य उत्सर्जी पदार्थ, जैसे रेजिन, गोंद, आदि पौधों के शरीर से समय-समय पर बाहर निकलते रहते हैं. कुछ उत्सर्जी पदार्थ हमेशा के लिये पौधे की छाल आदि में पड़े रह जाते हैं. पौधों के कुछ उत्सर्जी पदार्थ मानव के लिये बड़े उपयोगी होते हैं. इस संबंध में एक वीडियों देखिये –

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