पंचतंत्र की कथाएँ

भारत के दक्षिण प्रान्त में एक नगर था महिलारोप्य. वहाँ का राजा था अमरशक्ति, अमरशक्ति बहुत ही योग्य, वीर और प्रजावत्सल राजाथा. राजा के तीन पुत्र थे बहुशक्ति, उग्रशक्ति, अनंतशक्ति. राजा जितना विद्वान, नीतिनिपुण एवं विनम्र था, उसके पुत्र उतने ही मुर्ख, अज्ञानी और अशिष्ट थे.

राजा अपने पुत्रों की अज्ञानता और उद्दंडता से बहुत दुखी और चिंतित रहता था. उसने अपने पुत्रों में राजोजित गुण विकसित करने के लिए अनेक प्रयत्न किये किन्तु उसके सभी प्रयत्न निष्फल हुए.

एक दिनराजसभा में अपने मंत्रियों से विचार विमर्श करते हुए राजा अमरशक्ति नेकहा कि ऐसे अज्ञानी और अयोग्य पुत्रों का पिता कहलाने से अच्छाहोता कि मैं नि:संतान ही रहता. इन पुत्रोंसे मुझे जीवन भर दुख और लज्जा ही प्राप्त होगी. क्या हमारे राज्यमें कोई ऐसा गुणवान शिक्षक नहीं है जो मेरे इन पुत्रों को उचितशिक्षा देकर सही मार्ग पर ला सके.

राजा केमंत्रियोंमें एक कुशाग्र बुद्धि नीतिवान मंत्री था सुमति. उसने राजा से कहामहाराज हमारे राज्य में ही एक विद्वान और महाज्ञानी शिक्षक निवास करते हैं उनका नाम हैपण्डितविष्णु शर्मा. वे सभी शास्त्रों के ज्ञाता और नीति विशारद हैं. अपने विद्यार्थियों में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा है. यदि वे राजकुमारों को अपना शिष्य स्वीकार कर लें तो अवश्य ही उनका कल्याण होगा. चूँकि राजपुत्र युवा हो चुके हैं अत: उन्हें प्रारंभ से शिक्षा देने में अत्यधिक समय व्यतीत हो जायेगा. अत: यह आवश्यक है कि उन्हें अल्पकाल मेंही नीतिशास्त्रऔर अर्थशास्त्रमें पारंगत किया जाये. मुझे विश्वास है की महापण्डित विष्णु शर्मा यह कार्य कर सकेंगे.

राजा अमर शक्ति ने बड़े सम्मान और श्रद्धा के साथ पंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया कि वेराजपुत्रों को अर्थशास्त्र एवं नीतिशास्त्र की शिक्षा दें. राजा ने विनम्रतापूर्वकयह भी कहा किगुरूदक्षिणा के रूप में उन्हें 5 गाँव एवं स्वर्ण मुद्राएँ भेण्ट करेंगे.

तबपण्डित विष्णु शर्मा ने राजा से कहा, राजन! मैं विद्या को बेचता नहीं. एक पिता का अनुरोध है इसलिए यह दायित्व मैं स्वीकार करता हूँ. आपको वचन देता हूँ कि छ मास में आपके तीनो पुत्रों को ज्ञान शील नीतिशास्त्रऔर अर्थशास्त्रमें निपुण करूँगा. यदि में अपने वचन को पूर्ण नहीं कर सका तो ईश्वर मेरी समस्त विद्या का हरण कर ले.

पंडित विष्णु शर्मा की इस प्रतिज्ञा को जिसने भी सुना वह अचंभित रह गया. राजा ने बड़े ही कृतज्ञ भाव सेराजकुमारों को पण्डितविष्णु शर्मा को सौंप दिया. विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को नीति शास्त्र में निपुण करने के उद्देश्य से कथाओं पर आधारित एक ऐसे अद्भुत ग्रन्थ की रचना की.

इस ग्रन्थ में पांच तंत्र थे-मित्रभेद, मित्रसंप्राप्ति (मित्रलाभ), काकोलूकीयम, लब्धप्रणाशम एवं अपरीक्षितकारकम. पांच तंत्र होने के कारण इस ग्रन्थ को पंचतंत्र के नाम से जाना गया.

इस ग्रन्थ की सहायता से पण्डित. विष्णु शर्मा तीनो राजकुमारों कोछः मास में ही नीति शास्त्र में निपुण बनाने में सफल हुए.

पंचतंत्र कीकथाएँ मूलरूपसेसंस्कृतभाषा मेंहैं ऐसा माना जाता है किपंचतंत्र की रचना ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में हुई. हम किलोल के प्रत्येक अंक में इसकी एक कथा आपके लिए लेकर आयेंगें.

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