शिक्षा जन जागरण गीत

रचनाकार- तुलस राम चंद्राकर

पढ़ा देवा तुमन बेटा बेटी ल, एहीम हवय भलाई.
ज्ञान के दिया जलाही, दाई ददा के नाम जगाही.
स्कूल म आंकें पढही लीखही त, शिक्षा के अलख जगाही .
गाँव गली अउ मोहल्ला म, अपन नाम ल कमाही.
ए स्कूल ल अपन जानव, झन मानव सरकारी
ज्ञान के दिया जलाही..........

शासन ह डरेस पुस्तक ल देथे,
दाईं ददा ल नई हे बोझ .
सरकार के योजना मध्यान भोजन,
खाये ल मीलथे रोज .
नवमी ल पढही नोनी,त साइकील ह घलो मीलही
ज्ञान के दिया जलाही...........

आज ले परन करौ ग भइया,
पढ़े ल स्कूल भेजबोन .
का पढ़ाथे , कैसे पढ़थे,
जुरमिल के सब देखबोन.
पढ़ही लीखही त भईया , देश म नाम कमाही
ज्ञान के दिया जलाही .........

चल पेड़ लगाबोन

रचनाकार- तुलस राम चंद्राकर

चल संगी पेड़ लगाबोन,
धरती ल सरग बनाबोन
पर्यावरण ल बचाये बर,
जुरमिल हाथ बटाबोन.
चल संगी पेड़ लगाबोन..........

किसम किसम के रुख राई,
अउ फुलवारी लगाबोन.
जेखर शीतल छांव म संगी,
बइठ के हम सूरताबोन.
धरती दाईं के कोरा ल,
हरियर हम बनाबोन.
चल संगी पेड़ लगाबोन......

पेड़ लगे ले पानी ह गिरही,
तरिया नरवा भराही.
हरियर हरियर धरती दिखही,
ताजा हवा बोहाही.
पानी गिरहि रिमझिम रिमझिम,
अब्बड़ धान उगाबोन
चल संगी पेड़ लगाबोन..........

कारखाना ले धुआं निकलथे,
पेड़ ओला फरियाही.
वातावरण ल सुध करके,
बीमारी ल दूर भगाही.
पेड़ लगाके हरियाली लाबो,
मिलके खुशी मनाबोन
चल संगी पेड़ लगाबोन..........

झन काटव पेड़ पौधा ल,
एही भुईंया के सिंगार.
ऐखर जतन करव भईया,
जिनगी के अधार.
पेड़ लगाके पुन कमाके,
म नाव कमाबोन
चल संगी पेड़ लगाबोन..........

पर्यावरण ल बचाये बर,
जुरमिल हाथ बटाबोन.
चल संगी पेड़ लगाबोन..........

जय जोहार

रचनाकार- कु.नंदनी, शासकीय विद्यालय कोसमा

जईसे मोबाईल के टावर हे, वईसे छत्तीसगढ़िया के पावर हे.
जईसे बिहाव के भाँवर हे,वईसे खेती करईया के नाँगर हे.
जईसे इडली अऊ शाँभर हे, वईसे खोकसी अऊ बाँबर हे.
जईसे घुँघरू अऊ माँदर हे,वईसे पड़की अऊ घाघर हे.
जईसे गागर मे सागर हे,वईसे गड्ढा कोड़े बर साबर हे.
जईसे दन्त मंजन डाबर हे,वईसे तरिया के सुग्घर वाटर हे.
जईसे धरती अऊ बादर हे, वईसे कथरी अऊ चादर हे.
जईसे बंगाला अऊ टमाटर हे,वईसे ददा अऊ फादर हे .
छत्तीसगढ़िया मनखे मन ल जय जोहार

लइका हँव बनिहार के

रचनाकार- भानुप्रताप कुंजाम'अंशु'

ददा मोर बड़ खरतरिया
चमकत हीरा निच्चट करिया
फेकिस माटी बनाइस तरिया
होइस हरिहर रिहिस परिया
बनइया घर-दूवार के...
लइका हँव बनिहार के..

दिन रात हकन के कमाइस
पच्छिना पोछ के मोला पढ़ाइस
पूरा करिस जम्मो फरमाइस
सुघर पहिनाइस सुघर खवाइस
दाता मोर संसार के...
लइका हँव बनिहार के..

कभू नईं खोलिस कापी- किताब
मोर बर लानिस कापी-किताब
दुख-पीरा के नईं हे हिसाब
जिनगी बिताइस हाँसत गुलाब
मोला हँसाइस आँसू ढार के...
लइका हँव बनिहार के..

कतको खुन चुसिन सेठमन
भोकवा बनाइन मेटमन
रहम नईं करिन ठेठ मन
वोकर जांगर टोरिन हमर पेट मन
बइठिस नईं तब ले हार के..
लइका हँव बनिहार के..

होली के मस्ती

रचनाकार- प्रिया देवांगन प्रियू

फूले परसा के फूल सुग्घर ,लाली लाली दिखत हे.
फागुन ह अब आगे संगी , कवि कविता लिखत हे..
रंग गुलाल उडावत सबझन ,होली ल मनावत हे.
भाँग पी के माते हावय,गरमे गरम भजिया खावत हे..
होली है भाई होली है, राग सब झन गावत हे.
घोरे हावय चिखला माटी, कोनो ह नई भावत हे..
बड़े बड़े नँगाड़ा धर के, बबा ह बजावत हे.
नाती पोता सबोझन ह, सुर-म-सुर मिलावत हे..

कोरोना वाइरस

रचनाकार- प्रिया देवांगन प्रियू

जगह जगह होवत हे कोरोना के चरचा.
वायरस फैलत हे कहिके बाँटत हे परचा.
टीवी हो चाहे मोबाइल हो,
दिनभर कोरोना वायरस ला दिखात हे.
कइसे बचना हे कहिके तरीका सिखात हे.
विदेश में फैले कोरोना ह अब, हमर देश म आवत हे.
विदेशी मन आ आ के, बीमारी फैलावत हे.
मुहूं बांध के रेंगत आदमी ह, अब नई चिन्हात हे.
विदेशी मन आ आ के, कोरोना फैलात हे.
रायपुर में आगे कोरोना कहिके, आदमी मन डर्रात हे.
कोरोना से बचे के तरीका ल, टीवी में बतात हे.
हाथ मिलाय ला छोडके, नमस्ते करे ल सीखात हे.
कोनो खाँसत आदमी त, डॉक्टर ल दिखात हे.

राम तय बनवासी हो गेस

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'

'राम घलो तोर राज तिलक बर,
होवत हावे सुघ्घर अबड़ तैयारी,
तोर परजा बड़ मगन घलो हे,
नाचत गावत अबड़ भारी हावे'

'रिकबिक-रिकबिक महल अटारी,
दिया घलो ल जलावत नर नारी,
दसरथ के दुलरवा बेटा रामा,
मन-मन तय हरसत बड़ भारी'

'एकेच दिन घलो पहली तोला,
आसीस मिलिस ददा के राम,
कइसन अलहन आगे बिधाता,
राजा बने ल तय छोड़ दे राम'

'बनवासी होय के सन्देसिया आगे,
मिले हावे चौदह बच्छर बनवासा,
तोला अजोध्या छोड़े पड़ही मयारू,
बेरा घलो अलकरहा आये हावे'

'मनखे चिन्हे न देवता अइसन बेरा,
कैकई के अइसन कोप घलो,
ये ला तो माने ला पड़ही रामा,
राजा बने तय छोड़ बन जाय पड़ही'

'बनबासी तोला बने ला पड़गे,
तेहर बात मनइया घलो राम,
लइका बड़ भारी दुलरुवा हावस,
मानेस घलो दाई ददा के तय बात'

'ददा घलो कलप रोवत भारी हे,
राम तेहर झन छोड़ ये बेरा मोला,
हरस घलो तय परान अधार रामा,
रही रही आंसू ल धरकावत हावे'

'तय बनबासी बनगेस बेटा राम,
तोर संगे संग घलो जावत हावे,
कुलबेटी सीता अउ लखन बेटा न,
करत तैयारी बन जाय बड़ भारी,
पीवरा ओनहा पहिरेव तुमन रमा'

'दाई तोर घलो कौसिल्या के न,
आँखि हर सुखवत हावे भारी,
ददा घलो पड़गे भुइय्या म मुरछा,
तेहर निकले बन जाए देराउठि राम'

'देख के तोला नगर घलो रोवत,
कुमलावत हावे बड़ भारी रामा,
लइका अउ सियान माईपिला,
ढ़हमार के रोवत नर नारी हावे'

'अगास ले आँसू घलो ढ़रकत,
बरसा होवत हावे बड़ भारी न,
ते हमर दुलरवा राम रमैय्या,
झन जा तय हमू मन ल छोड़ के'

'राजा के तय मंत्री सुमन्त न,
रथ ल घलो लानत रोवत हावे,
बैईठींन लागिन घलो सबो ओमे,
रामसिया अउ लखन तीनो संघरा'

'लेगिन तहु मन ल जंगल म रामा,
छोडे खातिर जाय वनवासे बर,
पहुचीन लागिन घलो जंगल म,
उतरीन रामसिया लखन घलो ह'

'सुमन्त कलपत रोवत भारी हावे,
आँसू ल ढ़रकावत ओहर रोवत,
घोड़वा मन घलो रोवन लॉगिन,
अतक मयारू तयह दुलरुवा राम'

'छोड़त नइहे कोन्हों तोला रामा,
समझाय घलो तय ओमन ल,
लौटन लागिन नगर वहू मन ह,
जवत हस तय हमू ल छोड़ रामा'

'तुंहर कोंवर-कोंवर चिक्कन पाँव,
पड़न लागिन घलो भुइय्या म,
जंगल के एक पाइंया रद्दा,
कांटा घलो ह गड़न लागिन'

'पथरा ल हपटत रेंगत तय,
आगू ड़हर तुमन जावत हवो,
अइसन का बिपत आये रामा,
यहु अलकरहा बेरा घलो हावे'

'बिताये ल पड़ही बिपत भारी,
भेटेस तेहर घलो संगी केंवट ले,
तोला पा के मेहर रमैय्या,
जनम-जनम के दुखपीर हरगे'

'मगन होवन लागिन केवट ह,
जनमो-जनम के अगोरा करत,
चलो मोरेच देराउठि घलो म,
टूटहा कुरिया अउ छानी हावे,
राम घलो चलिस मगन होके'

'केंवट राज संग घलो तय घर म,
राजमहल के रहवैय्या हरस,
अउ बने बने तय खावैय्या रामा,
खाय केवट घर तैहर ले राम'

'कांदा कुसी खाय घलो जंगल के,
धन-धन हावे मोर भाग परभु,
जात हरे मोर केंवट धन भाग रामा,
मोरो देराउठि ल पवितर तय करे'

'करदेस आके मोरो फुटहा करम हे,
अबड़ सेवा केवट करन लागिन,
नाचा गाना बड़ होवन लागिन,
होवन लागिन भगवान घलो खुश न'

'अइसन बेरा देखेल नइ मिले रामा,
केंवट घलो बड़ सोचन लागिन,
आघू डहर जाये बेरा घलो होवत न,
राम ह केंवट ल बिदा माँगन लागी'

'गंगा नदिया नहकादे हमला,
केंवट भैय्या राम कहन लॉगिन,
उतरौनी तय ले लेबे हमरो ले,
बिनती करत राम बोलन लॉगिन'

'बीनती तोर करत हावो संगी,
पार हमु मन ल तय नहकादे,
केवट राम के पाँव पड़न लागी,
घेरी-बेरी पड़त हावे पाँव राम के'

'तोरो पाँव के धुर्रा माटी रामा,
तय हर घलो धोवाले राम,
भगवाने हर मानान लॉगिन,
केंवट घलो धोइन राम के पाँव'

'पखारन लागिन पाँव घलो तय,
आंसू ढ़रकात घलो केंवट ह,
आँसू घलो निकरन लागिन,
धोवत पाँव तय राम रमैय्या के'

'पाँव पखारीन बैईठावट डोंगा म,
नहकवत गंगा पार केंवट तय,
धन बड़ भाग तोरो हावे केंवट,
बईठारे हस तैहर पार लगईय्या ल'

'गंगा ल तेहर पार कराय,
दुनिया के पार लगैय्या ल,
बड़ भाग तोरो हावे केंवट,
ये तो मोर राम रमैय्या न'

'उतरौनी तोला दिस परभु ह,
सोना के घलो मुंदरी ल,
झोकेस नई तेहर केंवट,
लुहु तोर ले लहुटति बेरा म'

'आगु चलदेस मोर तय बनवासी राम
बनवास चौदह बच्छर तोला मिले हे'

कोरेना वायरस ल भगाना हे

रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे“कोहिनूर'

कोरेना वायरस चीन ले आए हे,
ये ला देख जम्मो विश्व ह थर्राय हे.
कोरेना कोरेना कोहराम मचाय हे,
दिन अउ रात इहि समाचार छाय हे.

हमरो देस ह रोके ब सुरक्षा बनाय हे,
रेलवे टेशन हवई अड्डा म मशीन लगाय हे.
मोबईल म जी कोरेना के रिंगटोन बाजे हे,
कोरेना ला बाहचे के उपाय बताय हे.

इसकूल म लईका के छुट्टी कराय हे,
कोरेना बिमारी ल महमारी बताय हे.
तोप के चलव नाक ल संगी हो,
किसम किसम के उपाय बताय हे.

सुनो डाटीकूचा म नई जाना हे,
घरी घरी साबुन से हाथ ल धोना हे.
जम्मो लोग जन ल बताना हे,
संगी हो मिल के बीमारी ल भगाना हे.

हाय हाय रे बदरा

रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे“कोहिनूर'

परिसान होगे किसान,करा ह पोठ गिरथे.
तिवरा रहेर के खेती ह,पानी म सरथे.
घाम के महीना म,रदरद ले पानी गिराय.
हाय हाय रे बदरा,तय घुमड़ घुमड़ आय.

बिन मउसम के पानी,तय कइसे गिरे.
खोर दुवारी ल,अड़बड़ चिखला करे.
नान नान नोनी बाबू के,खोखी सर्दी लाय.
हाय हाय रे बदरा,तय घुमड़ घुमड़ आय.

रुखराई चिरई चुरगुन,देख कइसे नाचथे.
गोरसी जगा बईठके,बबा कइसे खासथे.
चिखला चांदो म घुमैय्या,कइसे बुले तो जाय.
हाय हाय रे बदरा,तय घुमड़ घुमड़ आय.

हमर गाँव के स्कूल

रचनाकार- पेश्वर राम यादव

जाबो रे संगी जाबो रे संगी,
कहाँ जाबो रे....
हमर गाँव के सरकारी स्कूल म,
पढ़े बर जाबो रे....

पढ़बो अउ पढ़ाबो,
हमर अकल ल बढ़ाबो.
ग्यान की गठरी म,
मन ल मढ़ाबो रे.
नवाबिहिनिया उठ के,
रोज स्कूल जाबो रे.......

खेलबो कूदबो लिखबो,
अउ साग-भाजी ल लगाबो.
जुर-मिल के संगी,
बगीया ल हरीयाबो रे.
सुघ्घर शिक्षा पा के,
ऐ जिनगी ल गढ़बो रे......

अड़बड़ पढ़बो सुघ्घर पढ़बो,
जब्बर पढ़बो रे.
गिनती गुना भाग म,
जोड़बो घटाबो रे.
पढ़ लिख के सीख के,
जिनगी म गनीत लगाबो रे....

नवा नवा बिचार ले,
सिखबो अउ सिखाबो.
ग्यान के अंजोर ल,
अँधियारा में फैलाबो रे.
छत्तीसगढ़ के नाँव ल,
दुनिया में बिगराबो रे.

हमर गाँव के सरकारी स्कूल म,
पढ़े बर जाबो रे....

मोहू पढ़े बर जाहूं गा

रचनाकार-गीता खुंटे

मोहु पढ़े बर जाहूं गा,
अब्बड़ नाम कमाहूं गा
दाई ददा ला कहे हों,
एदारी मोला भी तुमन
स्कूल में भर्ती कराहु गा
तुम्हर नाम ला आघु लिहों,
पढ़ लिख के तुम्हर पीरा हरीहों
पढ़ लिख के मोहु
एक दिन अफसर बन जाहूं गा
मोहु पढेबर जाहूं गा.......
दाई जेसने महुँ बनिहो
मैडम महुँ कहलाहुँ गा
ददा जेसने पायलट बनिहो
महुँ जहाज उड़ाहूं गा

अब तोर का होही

रचनाकार- दिलकेश मधुकर

बेटा के बिहाव करें,अऊ मांगें हीरो होंडा.
रंग रूप म ठिकाना नइय,चाल परे हे पोंडा.
जब चल देबे दुनिया लें,तब तोर पाप ल कोन धोही
वाह रे दहेज के लोभी,तहीं बता,अब तोर का होही.

दाई ददा के खेत बेचागे,अऊ बेचागे दमड़ी.
सोन चांदी देहे बर,घर बेचागे अऊ बेचागे पगड़ी.
एक दिन तोरो पारी आही,तब कोन तोर हाथ लमोही
वाह रे दहेज के लोभी,तहीं बता,अब तोर का होही.

बेटी बनाके लाय रहेय,अऊ लगाय चार डंडा.
का कसूर रहीच तेन तै, फांदें जुलुम के फंडा.
एक दिन फंदबे तै मुसुवा कस, तब कोन तोर बर रोही
वाह रे दहेज के लोभी,तहीं बता,अब तोर का होही.

मारपीट के घर ले लिकाले,अऊ लगाये फंदा.
होरा कस आगी म भुंजे,काम करें तै गंदा.
लेगही पुलिस हर एक दिन,अऊ कपड़ा कस निचोही
वाह रे दहेज के लोभी,तहीं बता,अब तोर का होही.

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