अधूरी कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –
गरियाबंद के जंगल में एक बहुत बड़े अधिकारी रहते थे. स्वभाव से वे बहुत अच्छे थे. सबकी सहायता करते थे. एक बार उनसे एक सन्यासी मिलने घर पर आए. घर में उनकी अच्छी सेवा की गयी. बच्चों ने भी उन्हें बहुत स्नेह दिया. सन्यासी ने उस अधिकारी से जंगल में रहकर विभिन्न बीमारियों के लिए जड़ी-बूटी खोजने हेतु अनुमति मांगी. उन्होंने जनहित को ध्यान में रखकर उस सन्यासी को जंगल में रहकर अपने काम को जारी रखने में पूरा सहयोग किया. उस अधिकारी का स्वभाव इतना बढ़िया था कि जंगल के जानवर भी बिना डरे उनके आसपास घूमते रहते थे और उनका भोजन भी खा लेते थे. एक बार लेटे लेटे उस अधिकारी ने एक जानवर का झूठा किया हुआ फल बिना देखे खा लिया. उसके बाद वह बहुत बीमार हो गए. उनकी पत्नी और बच्चे बहुत परेशान हो गए. जंगल में आसपास कोई डाक्टर भी नहीं था.
संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी
फलों से संक्रमण
इस जंगल के आसपास डॉक्टर ना होने के कारण अधिकारी की पत्नी एवं पुत्र कुछ समझ नहीं पा रहे थे. अब क्या होगा, क्या करें, कहां जाएं? यही सोचकर परेशान हो रहे थे. इधर अधिकारी के बीमार होने की सूचना पूरे जंगल में आग की तरह फैल गई. बन्दर के निर्देशन में जंगल के सभी जीव-जंतु अधिकारी के घर पहुंचकर उनके ठीक होने की कामना करते हुए घरवालों को सांत्वना दिए.
अधिकारी के पुत्र को बन्दर कहता है कि यहां दूर दराज तक कोई हॉस्पिटल नहीं है ना ही डॉक्टर लेकिन मुझे कुछ याद आ रहा है कुछ दिन पहले आपके घर में एक सन्यासी जी आए थे. जो अधिकारी जी से अनुमति लेकर जंगल से जड़ी-बूटी इकठ्ठा कर वापस घर चले गए हैं. उन्हें जरूर ही इस बीमारी के बारे में जानकारी होगी. आपकी अनुमति हो तो उन्हें बुलाने के लिए मैं चिड़िया रानी को उनका पता बता कर तुरंत भेजता हूं. अधिकारी का पुत्र राजी हो जाता है. जल्द ही चिड़िया रानी वहां पहुंचकर सन्यासी को अधिकारी के स्वास्थ्य खराब के बारे में जानकारी देती है.
सन्यासी देर न करते हुए तुरंत अधिकारी के घर पहुंचकर उनका इलाज प्रारंभ कर देते हैं. उनके इलाज से अधिकारी की बेहोशी ठीक होने लगती है, हाथ पैर हिलने लगते है, आंख खुल जाती है और धीमी आवाज में बात करने लगते है. अधिकारी के स्वास्थ्य ठीक होने के संकेत देखकर सभी की चिंता दूर हो जाती है. घरवाले सन्यासी को विस्तारपूर्वक बताते हैं कि अधिकारी का स्वास्थ्य खराब होने का कारण अनजाने में जानवर का झूठा फल खाना है तब सन्यासी जी को पता चल जाता है कि बेहोशी होने के कारण झूठा फल खाने का ही संक्रमण है.
वहां उपस्थित सभी लोगों को सन्यासी जी बताते हैं कि-आजकल जानवरों, चमगादड़ जैसे पक्षियों में इंफेक्शन के कारण निपाह, कोरोना जैसे वायरस फैलने से लोग डरे हुए हैं. W.H.O. ने निपाह वायरस को उभरती हुई बीमारी घोषित किया हैं. यह वायरस चमगादड़ की एक विशेष नस्ल में पाया जाता है. चमगादड़ जिस फल को खाता है उसके लार में विशेष प्रकार का वायरस पाया जाता है, जिसे वह फल में छोड़ देता है. उसके अपशिष्ट के संपर्क में आने से किसी जानवर या व्यक्ति को यह ट्रांसफर हो जाता है. वही पक्षियों के काटने से, उनके मल मूत्र से,घोंसले और पंखों से भी वायरल फैलाता है. इसके बारे में जानकारी नहीं होने की वजह से लोगों में एलर्जी और नियमोनिया होना सामान्य समस्या है. शुरुआती स्टेज में यह इन्फेक्शन भी बुखार और सिर दर्द से शुरू होता है. यह वायरस स्वाइन फ्लू, कोरोना वायरस की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है लेकिन कोरोना वायरस जैसे तेजी से नहीं फैलता है फिर भी आप लोगों को कोई भी जंगली जीव जंतु का झूठा फल, बीट किए हुए फल नहीं खाना चाहिए, हमें अपने जीवन में इसकाविशेष ध्यान रखना चाहिए.
सन्यासी जी पुनः कहते हैं कि-अधिकारी जी की स्थिति अभी ठीक है फिर भी सुविधायुक्त अस्पताल में जाकर विशेषज्ञ डॉक्टर से इलाज कराने के पश्चात ही कह सकते हैं कि पूरी तरह ठीक हो गया है.
सन्यासी जी उन लोगों को शहर ले जाने में मदद करते हैं. वहां पहुंचकर,विशेषज्ञ चिकित्सक से इलाज कराते हैं. अधिकारी जी का स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक हो जाते है. ठीक होने के पश्चात वापस अपने कर्तव्य क्षेत्र में उपस्थित हो जाते हैं. वहां पहुंचकर अधिकारी जी सभी जानवरों को धन्यवाद देते हैं. सभी जंगल के जीव जंतु उसे देखकर बहुत खुश हो जाते हैं.
शिक्षा- कोई भी जीव जंतु का झूठा फल नहीं खाना चाहिए. बाजार से फल और सब्जी लेते हैं, उसे अच्छी तरह से धोकर उपयोग करना चाहिए.
प्रियंका सिंह व्दारा पूरी की गई कहानी
वह अधिकारी इतना बीमार हो गया कि स्वयं शहर में जाकर अपना इलाज भी नहीं करा पा रहे थेl वह उठने में भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थेl जंगल के जानवरों को उनसे बहुत प्रेम था, उन्होंने उनका इलाज कराने हेतु सभी जानवरों की बैठक बुलाई जिसमें शेर हाथी, खरगोश, बाघ, भालू, हिरण और बंदर इत्यादि सभी आए. सभी ने अपना -अपना सुझाव दिया क्योंकि उस अधिकारी ने बंदर का जूठा फल खाया था. जिस वजह से अंदर ही अंदर वह बहुत शर्मिंदा है वह पश्चाताप करना चाहता है और अधिकारी को इस मुसीबत से निकालना चाहता है बंदर उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था बंदर ने कहा कि वह उस सन्यासी के घर का पता जानता है जो कुछ दिनों पहले हमारे जंगल में जड़ी-बूटी तलाशने हेतु आया था और हमारे जंगल के अधिकारी ने उस सन्यासी की बहुत सहायता की थी. मुझे उम्मीद है कि सन्यासी हमारी मदद जरूर करेंगे और उनकी जड़ी बूटी से निर्मित औषधियों का सेवन कर उनका स्वास्थ्य जल्दी ही ठीक हो जाएगा. मैं अभी जाता हूं और उन्हें बुला लाता हूं तभी वहां उपस्थित और जानवर भी कहने लगे कि बंदर भाई आप ठीक कह रहे हैं हमें उस सन्यासी की अभी बहुत जरूरत है वहीं हैं जो हमारी मदद कर सकते हैं हमारे जंगल के आसपास कोई डॉक्टर भी नहीं है तुम जाओ और तुरंत उस सन्यासी को यहां लेकर आओ ताकि हम अपने मित्र को जल्द से जल्द ठीक कर सकें और बंदर ने वैसा ही किया वह गया और सन्यासी के समीप पहुंचते ही उसने उस सन्यासी के पैर पकड़ लिए और रोने लगा सन्यासी शुरू में तो घबराए परंतु जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि वह किसी मुसीबत में है या उसका कोई साथी किसी बड़ी मुसीबत में है इसलिए वह उसके पीछे -पीछे हो लिये और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए अधिकारी के पास पहुंच गए और सन्यासी ने सबसे पहले उनके स्वास्थ्य की जांच की और अपने थैले जिसे वह हमेशा अपने साथ रखते थे उसमें से जड़ी बूटियों की पत्तियां निकालकर पत्थरों पर पीसकर उन्होंने उनके लिए औषधि तैयार की और उन्हें पिलाया औषधि का सेवन करते ही अधिकारी के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा और कुछ ही दिनों में वे बिल्कुल स्वस्थ हो गये और सभी जानवर, अधिकारी और अधिकारी के परिवार ने सन्यासी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया और उन्हें उपहार स्वरूप जंगल से ढेर सारे फल फूल तोड़कर उनको भेंट किये और सभी फिर से खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे. जंगल का अधिकारी शिकारियों से उन जानवरों की हमेशा रक्षा करता था और जानवर भी अधिकारी को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते थे इस प्रकार प्रेम से रहने की वजह से अधिकारी की जान बच गई और सभी खुशी-खुशी जंगल में फिर से एक साथ रहने लगे.
इंद्रभान सिंह कंवर व्दारा पूरी की गई कहानी
सत्कर्म
उसकी पत्नी और उसके बच्चे सभी परेशान हो गए. दूर-दूर तक जंगल में किसी का अता-पता नहीं चल रहा था. जैसे- तैसे उसके घरवाले उपचार करने में लगे हुए थे. दिन पर दिन बीतते गए पर उसकी बीमारी ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी. जिसका फायदा घुसपैठिए लोग जंगल को बर्बाद करने में उठा रहे थे.
इधर जंगल के सभी जानवर भी उसके घर का सन्नाटा देखकर चिंतित थे कि आज कल यहां इतनी शांति क्यों है? और इधर जंगल में लोगों ने उत्पात मचा रखा है. यह सब सोचकर जंगल के जानवरों ने सभा बुलाकर चालाक बब्बन बंदर को उसके घर जानकारी पता करने के लिए भेजा. बब्बन वहां जाता है और उसे पूरी स्थिति का पता चलता है. वह वापस आकर सभी को उसके घर की स्थिति बताता है. स्थिति को जानकर सभी जानवर उस भले व्यक्ति की मदद करने का विचार करते हैं और फिर सभी में मंत्रणा होती है उसकी सहायता करने की. इतने में बब्बन फिर कहता है कि मैं एक व्यक्ति को जानता हूं जो इस समय हमारी मदद कर सकता है. मैंने कुछ दिन पहले एक सन्यासी को उस अधिकारी के घर में देखा था जो दवा की खोज में यहां आया हुआ है. पेसे से वह वैद्य मालूम पड़ता है और मैंने सुना था कि वह कुछ दिन इसी जंगल में रहकर दवा की शोध करेगा. यदि हम उसे ढूंढ लें तो वह निश्चित ही हमारी मदद कर सकता है. फिर क्या था सभी ने बब्बन की बात मानी और उस सन्यासी की खोज में जुट गए.
काफी मेहनत के बाद आखिरकार उसका पता चल ही गया और फिर बब्बन ने उसके पास जाकर अधिकारी की बीमार होने का समाचार सुनाया और उसे मदद के लिए कहा. यह सुनकर सन्यासी तुरंत तैयार होकर उसके साथ घर की ओर चल पड़े. घर पहुंचकर उसका इलाज किया. सन्यासी के इलाज से कुछ दिन बाद वह अधिकारी ठीक हो जाता है और सन्यासी को धन्यवाद देता है. जिस पर सन्यासी उसे जानवरों की बात बताता है कि इन्होंने तुम्हारी मदद की है. यह तुम्हारे सत्कर्म और सद्भाव का परिणाम है जिस कारण आज तुम्हारा जीवन सुरक्षित है. तुम सदैव अपना आचरण ऐसे ही बनाए रखना.
इतना कह कर सन्यासी पुनः जंगल की ओर शोध के लिए चला जाता है. अधिकारी भी जंगल के सभी जानवरों को धन्यवाद देता है और अगले दिन से पुनः जंगल और जानवरों की सेवा में लग जाता है.
यशवंत कुमार चौधरी व्दारा पूरी की गई कहानी
गरियाबंद के उस बड़े अधिकारी के बीमार पड़ने से घरवाले काफी परेशान हो गए, उनको इस परेशानी से उबरने का कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. जंगल में ना कोई अस्पताल था ना कोई राह दिखाने वाला. परिवारजनों ने उसे सघन पेड़ों के बीच शीतल छाँव वाले स्थान पर ले जाना उचित समझा और उसके लिए पेड़ की शाखाओं पर रस्सी -डंडे एवं साडी के सहारे एक झुला बनाया जो बिस्तर की तरह था. उस अधिकारी के अच्छे स्वभाव एवं सेवाभाव से आसपास के जीव-जंतु काफी स्नेहिल थे उन्होंने भी मदद करने की खूब कोशिश की और तरह- तरह का सेवा कार्य कर अपना अमूल्य योगदान दिया. हाथी ने केले लाए, बंदरों ने आम लाए और अन्य जानवरों ने भी तरह- तरह के फल -कंदमूल लाए. बन्दर के जूठे फल खाने से हुए बीमार की वजह से बन्दर और अधिक विचलित थे. कुछ समय बीतने पर बच्चों को वह सन्यासी याद आया उन्होंने सोचा - क्यों ना हम उस सन्यासी के पास जाकर अपने पापा के उपचार हेतु मदद मांगें ? पर दिक्कत यह थी कि उस संन्यासी को आखिर इस जंगल में ढूंढे कौन और कैसे ढूंढें ? यह चिंता का सबब बना रहा. उसी समय बंदरों का एक दल वहां एकाएक आ पहुंचा और उन्होंने इस काम में मदद करने की ठानी और फिर क्या था बन्दर तो आखिर चंचल प्रवृत्ति के होते ही हैं उन्होंने आंव देखा- ना तांव झट से दौड़ पड़े और सन्यासी को तलाशने लगे. बहुत दूर जाने पर वह सन्यासी जड़ी- बूटी खोजते हुए उन्हें आखिर मिल ही गया फिर उन्होंने वापस आकर बच्चे को उस संन्यासी का पता बताया और उसे साथ लेकर गए और बच्चों ने सन्यासी को पापा की बीमार होने संबंधी पूरी जानकारी बताई और स्वास्थ्य लाभ हेतु मदद मांगी. सन्यासी भावुक हो गया उसने शीघ्र ही पास में इकट्ठा किए हुए जड़ी बूटी उठाई और उनके साथ चलने को राजी हो गया. जब वे सब गरियाबंद के उस बीमार अधिकारी के पास पहुंचे तो वह बीमारी से व्याकुल होकर बेचैन था. सन्यासी ने बिना देर किए नब्ज टटोली और जाँच पड़ताल करके झट से दवा बनाकर एक खुराक पिलाई, अधिकारी को थोड़ी राहत महसूस हुई और वह उठ खडा हुआ. अधिकारी ने संन्यासी को धन्यवाद ज्ञापित किया एवं ईलाज करने हेतु अपनी एक अंगूठी उपहार स्वरूप भेंट की. सन्यासी ने 3 खुराक दवा और दी और कहा आप इसके सेवन एवं बेहतर निगरानी के साथ उचित खानपान से जल्दी ही ठीक होकर अपने काम पर जा सकेंगे. सन्यासी ने उस दिन सबको अपना परिचय दिया कि वह कोई संन्यासी नहीं बल्कि आयुर्वेद के अच्छे जानकार होने के साथ एक प्रशिक्षित आयुर्वेद अधिकारी हैं जो इसी प्रदेश के हैं. अधिकारी का आग्रह स्वीकार कर सन्यासी कुछ दिन रुककर ईलाज किया जिससे वह अधिकारी ठीक हो गया और दोनों में मित्रता हो गई, इस मित्रता से वह जंगल का अधिकारी भी बहुत सारी जड़ी बूटियों के बारे में सीख गया और सन्यासी के सतत मार्गदर्शन से बीमारी दूर भगाने में उपयोग करने लगा.
गीता खूंटे व्दारा पूरी की गई कहानी
अधिकारी की बढ़ती बीमारी से उसके घर वाले बहुत परेशान रहने लगे, उन्होंने आसपास के बड़े बुजुर्ग लोगों से मदद लेने की सोची मगर अफसोस उन्हें निराशा ही हाथ लगी.
वह अधिकारी इतना अच्छा था कि उसकी बीमारी के बारे में सब बातें करने लगे और अफसोस जताने लगे, तभी यह बात उस सन्यासी के कानों में पहुंची, सन्यासी ने बिना देर किए कुछ जंगली जड़ी बूटियां पकड़ी और चल पड़ा उस अधिकारी के घर.
घर जाकर सन्यासी ने अधिकारी का हाल देखा वह बेहद कमजोर और बीमार हो गया था. अधिकारी की हालत देखकर सन्यासी को बहुत दुख हुआ. सन्यासी ने तुरंत जंगल में खोजी गई जड़ी बूटियों का रस निकाला और अधिकारी को पिला दिया. कुछ देर बाद अधिकारी के शरीर में हरकत हुई उसने आंखें खोली, तब सन्यासी ने जड़ी बूटियों का रस दोबारा पिलाया अब अधिकारी थोड़ा और स्वस्थ हो गया. थोड़ी देर बाद अधिकारी को ताजे फलों का जूस दिया गया. कुछ दिन में ही अधिकारी स्वस्थ हो गया और वह चलने फिरने लगा. अधिकारी के स्वस्थ होने से उसके घर वाले और जंगल के जीव जंतु भी बहुत खुश हो गए. अधिकारी के साथ सभी ने सन्यासी को बहुत-बहुत धन्यवाद दियाऔर सन्यासी को वही जंगल में रहने के लिए आग्रह करने लगे. सन्यासी के हामी भरने के बाद सभी ने सन्यासी के रहने के लिए कुटिया की व्यवस्था कर दिया. अब जंगल में कोई भी बीमार पड़ने से सभी सन्यासी के पास जाकर तुरंत ही ठीक हो जाते हैं. वह अधिकारी जंगली जानवरों के स्वास्थ्य का भी बहुत अधिक ख्याल रखता है ताकि उन्हें कुछ बीमारी ना हो और एक बार फिर उस जंगल में सभी खुशी-खुशी रहने लगे.
टेकराम ध्रुव 'दिनेश' व्दारा पूरी की गई कहानी
इलाज जंगल का
जंगल के आसपास कोई डाक्टर न होने के कारण अधिकारी का उपचार वहां पर कर पाना संभव नहीं हो रहा था. उसकी पत्नी सोच में पड़ गई कि -'इतने दिन हो गए यहां जंगल में प्रकृति के बीच, प्राकृतिक वातावरण में आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे. ये अचानक इन्हें क्या हुआ कि बीमार हो गए. उस सन्यासी का भी अता-पता नहीं जो विभिन्न बीमारियों का इलाज करने हेतु यहां जड़ी-बूटी की खोज में आया था. यहां पर होते तो इनकी बीमारी के उपचार के बारे में कुछ बताते, हमें कुछ सलाह देते. अब क्या करें? किसी तरह इन्हें शहर ले जाकर डाक्टर को दिखाना पड़ेगा. 'अगले दिन अधिकारी को शहर ले जाने की तैयारी होने लगी, तभी उस सन्यासी का आगमन होता है.
घर में छाई खामोशी के बारे में पूछने पर उसे पता चलता है कि अधिकारी विगत दिनों से बीमार हैं और उन्हें शहर ले जाने की तैयारी चल रही है ताकि अच्छे से उपचार हो सके.
सन्यासी अधिकारी के पास जाकर उनसे उनकी तबीयत के बारे में पूछताछ करने के बाद कहा- ' साहब आप चिंता न करें धीरज से काम लें. जनहित कार्य हेतु मैंने कई बीमारियों के इलाज हेतु कई प्रकार की जड़ी-बूटियां एकत्र कर लिया है, उनमें से कुछ जड़ी-बूटियों का उपयोग कर आप जल्द ही ठीक हो जायेंगे. मैं अभी से ही उपचार करना शुरू कर देता हूं.
कुछ दिनों बाद सन्यासी ने अधिकारी से कहा -' साहब, जड़ी बूटियों के असर से अब आप पूर्णतः ठीक हो गए हैं. अब मुझे जन कल्याण के कार्य हेतु यहां से जाना होगा, अनुमति दीजिए.
अधिकारी ने खुशी-खुशी सन्यासी को विदा कर दिया.
कन्हैया साहू 'कान्हा' व्दारा पूरी की गई कहानी
वन औषधी का महत्व
वन चपरासी से अधिकारी की पत्नी ने कहा कि तुम आसपास गांव में जाकर वैद्य या हकीम को ढूंढकर लाओ जो साहब का इलाज कर सके. चपरासी गांवों में जाकर वैद्य की खोजबीन करने लगा उसे एक गांव में वैद्य तो नही परन्तु एक ओझा जरूर मिल गया,जो झाड़ फूंक करके लोगो का इलाज करता था. चपरासी ने पूरी बात उस ओझा को समझाकर उसे अपने साथ चलने के लिए राजी कर लिया. ओझा अब अपने तंत्र मंत्र की शक्ति से वन अधिकारी का इलाज करने लगा. इसके लिए उसने मुर्गियों की बलि भी दिया. कई दिनों तक लगातार झाड़ फूंक करने के बाद भी जब अधिकारी की तबियत में सुधार नही हुआ तो ओझा हार मान कर अपने गांव वापस चला गया इधर अधिकारी की पत्नी बच्चे और चपरासी तबियत में सुधार न होने के बजाय बिगड़ती हालात को देखकर बहुत चिंतित हो गए इधर सन्यासी कई बीमारियों के लिए अपने अथक मेहनत व ज्ञान के बल पर जड़ीबूटी जंगलो से खोजकर दवाई तैयार कर रहा था. उसने जंगली जानवरों से होने वाले बीमारियों के लिए बहुत से जड़ीबूटी खोज लिया था अब वह अपने निवास स्थान जाने का सोचकर उस अधिकारी के घर धन्यवाद देने के लिए आया. जिसकी अनुमति मिलने पर ही वह इन गुणकारी औषधियों को खोज पाया था. उसने देखा कि अधिकारी तो बहुत अधिक बीमार और कमजोर हो गया है. उसने पूरी जानकारी लेकर अब उसका इलाज अपने ज्ञान व जंगली औषधी से करने लगा, धीरे धीरे अब अधिकारी की तबियत में सुधार आने लगा. एक माह के उपचार से उसकी तबियत में बहुत सुधार हो गया. अब अधिकारी को समझ मे आ गया कि जंगलो में बहुत से गुणकारी चीज़े उपलब्ध है जिनका उपयोग इलाज के लिए किया जा सकता है. अब उसे बहुत खुशी भी हुआ कि उसने इस सन्यासी को जंगल मे औषधी खोजने से मना नही किया था जिसके कारण ही आज वह पूरी तरह अब स्वस्थ्य हो सका. अधिकारी ने उस सन्यासी को अब वही रहकर और नए बीमारियों की औषधी जंगल मे खोजने के लिये आग्रह कर रोक लिया. सन्यासी अब उसी इलाके में रहकर अपनी औषधियों से लोगो का इलाज करने लगा. खाली समय मे वह कुछ लोगो को अपने ज्ञान सेऔषधियों के गुणों व उनकी पहचान की जानकारी देता जिससे अधिक से अधिक लोग जंगल मे उपलब्ध चीज़ो को पहचान कर उनका उपयोग कर सकें. अब उस इलाके में लोगो को इलाज सहज ही उपलब्ध हो जाता है. लोग उस सन्यासी को देवतुल्य मनाने लगे और वन को देवी के रूप में पूजने लगे. वनदेवी के सम्मान में अब प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन भी होने लगा.
सीख:-- हमारे प्राकृतिक संसाधनों को पहचान कर आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से बहुत से बीमारियों का इलाज किया जा रहा है. इसे और ब्यापक रूप में विस्तार किया जाना चाहिये और हमे अपने प्राकृतिक संपदा का संरक्षण करना चाहिए
अगले अंक के लिए अधूरी कहानी
रिश्ता
शनिवार का दिन था. कक्षा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का कालखंड चल रहा था. बच्चे एक-एक कर कविता, कहानी, गीत, चुटकुले आदि प्रस्तुत कर रहे थे. कई बच्चे अपनी पारी की प्रतीक्षा किए बिना दौड़ - दौड़ कर आगे आते जा रहे थे. उनका उत्साह और उनकी तैयारी देखकर तिवारी सर को बहुत खुशी हो रही थी.
हो भी क्यों ना? वे बच्चों के लिए बड़ा परिश्रम करते थे. बच्चों की भाषा संबंधी योग्यता हो या उनके नैतिक मूल्यों का विकास, हर बात के लिए वे नए-नए प्रयत्न करते ही रहते थे.
कक्षा में यह सब चल रहा था. जो बच्चे मुखर थे, जिनमें किसी प्रकार का संकोच न था वे अपनी पारी आने के पहले ही सामने खड़े होकर अपनी प्रस्तुति दिए जा रहे थे.
पर इन सबसे अलग एक बच्चा और भी था, विवेक. विवेक बहुत योग्य था पर शांत रहता था. वह कभी खुद को दिखाने की कोशिश नहीं करता था. आज कक्षा में वह हर प्रस्तुति के बाद अपना हाथ उठाता था, शायद सर की दृष्टि पड़ जाए और वे उसे सामने आने की अनुमति दे दें. पर पता नहीं क्यों, ऐसा नहीं हुआ और छुट्टी का समय पास आ गया.
अचानक तिवारी सर की आवाज गूंजी, 'आज बस इतना ही. और हां, जो अभी तक सामने नहीं आ पाए वह सब खड़े हो जाएं. '
देखते-देखते पंद्रह बीस बच्चे खड़े हो गए. तिवारी जी की कड़कती हुई आवाज फिर आई, “ तो तुम लोगों ने कोई तैयारी नहीं की, चलो घुटनों के बल बैठ जाओ. ”
जिन बच्चों ने कोई तैयारी नहीं की थी उन्होंने सोचा, चलो सस्ते में छूटे. पर ऐसे बच्चे जिन्हें बहुत सी कविताएं, कहानियां, गीत आदि याद थे, पर जिन्हें आगे आने का अवसर नहीं मिल पाया, वे दुखी हो गए. विवेक भी उन्हीं में से एक था. सर का आदेश होते ही अपमान और दुख से उसका चेहरा लाल हो गया. दूसरे बच्चों की तरह वह भी कक्षा में पीछे की दीवार के किनारे घुटनों पर बैठ गया.
उसका सिर झुका हुआ था. वह सोच रहा था, मेरा अपराध क्या है, मैंने दूसरों के मौके नहीं छीने या मैंने अपनी बारी की प्रतीक्षा की या फिर चिल्ला-चिल्लाकर सर का ध्यान अपनी ओर नहीं खींचा. यह सब सोचते-सोचते उसका मन पीड़ा से भर गया. उसकी आंखें छलक पड़ीं और आंसू टप-टप नीचे गिरने लगे. उसके अगल- बगल के बच्चों ने जब यह देखा तो तुरंत चिल्लाने लगे सर विवेक रो रहा है......
अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे