लक्ष्य

रचनाकार- प्रिया देवांगन *प्रियू*

एक गाँव में एक गरीब बालक रहता था .उसका नाम वैभव था. वैभव के माता -पिता बहुत गरीब थे.माँ दुसरो के घर बर्तन साफ करने का काम करती थी और पिता जी सब्जी बेचते थे.

वैभव बचपन से ही होशियार था. उसका लक्ष्य था कि वह बड़ा होकर सैनिक बने और देश की रक्षा करे. वैभव के माता पिता ने कड़ी मेहनत कर उसे पढ़ाया-लिखाया. वैभव अपने घर की गरीबी को देख कर अपने माता - पिता से अपने लक्ष्य के बारे में कुछ कह नहीं पाता था. वैभव स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कॉलेज के साथ - साथ अपने पिता जी के साथ सब्जी बेचने जाता था तथा धन इकट्ठा करता था. धन इकट्ठा करने के बाद वैभव दिल्ली गया और वहाँ से सैनिक बनकर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया.

तोता और बहेलियां

रचनाकार- वसुन्धरा कुर्रे

नदी किनारे एक पीपल का पेड़ था. उस पेड़ में तोता का एक घोंसला था उस घोसले में उसके छोटे-छोटे बच्चे थे. तोता अपने बच्चों के खाने -पीने की व्यवस्था के लिए इधर उधर जाता था. पास ही में एक खेत था.उस खेत में मक्का की फसल लगी हुइ था तोता रोज उस खेत में जाता और मक्का को आधा खाता और आधे को कुतर -कुतर कर गिरा देता और अपने बच्चों के लिए लाता, रोज तोता वैसा ही करता. एक दिन खेत का मालिक वहाँ आकर देखता है कि कौन उसके फसल को नुकसान पहुंचा रहा है..और खेत के फसल वह मालिक बहेलियां भी था जिसे शिकारी भी कहते हैं.

एक दिन वह बहेलिया खेत के पास आकर छिप जाता है और देखता है कि कौन उसके फसल को नुकसान पहुंचा रहा है तभी तोता आता है और मक्के की पेड़ पर बैठकर मक्के को कुतरना शुरू कर देता है यह सब बहेलिया देखता है

दूसरे दिन बहेलियां जंगल जाकर पेड़ के रस से बने गोंद लेकर आता है और सभी मक्के पर लगा देता है फिर वह खेत के पास में छिपकर देखता है.जैसे ही तोता आता है और मक्के पर बैठता है उसका पैर उस गोंद पर चिपक जाता है तोता बेचारा बहुत फड़फड़ता है पर निकल नहीं पाता है उसे देख कर बहेलिया आता है और तोता को पकड़ लेता है तोता बेचारा बहुत विनती करता है कि मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं. पर बहेलियां नहीं मानता. वह बोलता है कि मैं तुझे ले जाकर मार कर खाऊंगा तुमने मेरा पूरा फसल नुकसान किया है. मैं तुझे नहीं छोडूंगा. उसे पकड़ कर ले जाता है रास्ते में एक राहगीर पैदल जा रहा था उसे देखकर तोता बोलता है

ए डाहर चलईया भैया ग,

मौला बाघ धरे ले जात हे

रम चू चू, रम चू चू

नदी किनारे बसेर ग भाई

नान -नान गदेली

रम चू चू, रम चू चू

इस तरह से तोता बहुत सुंदर गाना गाता है. उसकी आवाज को सुनकर राहगीर, बहेलिया से उसे मांगता है कि इसे मुझे दे दो और इसके बदले रूपये ले लो,पर बहेलिया नहीं देता बोलता है मैं इसे घर ले जाकर मार कर खाऊगा इसने मेरी फसल को बहुत नुकसान पहुंचाया है. इस तरह वह आगे बढ़ जाता है आगे जाता है तो रास्ते पर एक साइकिल वाला देखता है तो तोता फिर से गाना गाता है.

ए साइकिल चलइया भैया ग

मौला बाघ धरे ले जात हे

रम चू चू, रम चू चू

नदी किनारे बसेर ग भाई

नान- नान गदेली

रम चू चू, रम चू चू

इस तरह से तोता की मधुर आवाज को सुनकर साइकिल वाला भी बहेलिया से उसे पाने की मांग करता है पर वह बहेलियां नहीं देता है और वही बोलता है. इस तरह वह आगे बढ़ जाता है अब गांव में तोता की मधुर आवाज की चर्चा गांव भर होने लगता है. और उस गांव में राजा रहता था राजा की 7 रानियां थी तोते वाली खबर राजा के घर तक पहुंच गई राजा की सबसे छोटी रानी उस तोते को पाने के लिए राजा से फरमाइश करती है. राजा अपनी पत्नी को मना नहीं कर पाता और अपने सैनिक को भेजकर बहेलिया को लाने के लिए आदेश देता है. सैनिक जाकर बहेलिया को पकड़ कर लाता है.

फिर आगे राजा के आदेश पर बहेलिया तोता राजा को दे देता है. राजा उस तोते को अपनी छोटी रानी को लाकर दे देता है. छोटी रानी तोते से खूब प्रेम करता अच्छा-अच्छा खिलाती और उसे घर पर पिंजरे में रखती. तोता और रानी बहुत खुश थे.राजा की अन्य 6 रानीयां छोटी रानी और तोता से जलने लगी रानी को मारने के लिए वे रानियां कुछ ना कुछ करती रहती थीं, यह सब वह तोता देखता रहता और रानी को वह बता देता इस तरह से छोटी रानी बच जाती. एक दिन वे रानियाँ दूध में जहर डाल कर छोटी रानी को देता है तो वह तोता देख लेता है और उस गिलास के दूध को गिरा देता है इस तरह रानी की जान बचा जाती है अंत में तोते ने सब बात राजा को बता दी. तब राजा ने अपनी छ: रानीयों को सजा के तौर पर राज पाठ और गांव से बाहर कर दिया. राजा ने तोते को, रानी की रक्षा करने के कारण उसे आजाद कर दिया तोता खुशी-खुशी अपने बच्चों के पास लौट गया उधर राजा रानी खुशी-खुशी रहने लगे.

स्वच्छता

रचनाकार- यशवंत कुमार चौधरी

एक दिन की बात है. शाम का वक्त था. लोग रोज की तरह घर के बाहर गलियों में टहल रहे थे. बच्चे खेलकूद में मगन थे. मैं भी अपने बेटे आर्यन के साथ खेलने में व्यस्त था.

कुछ देर बाद आर्यन ने पास दुकान की ओर नजर डाली और आशा भरी दृष्टि से मेरी और देखते हुए कहा, पापा जी, चलिए ना...

मैंने बालपन की चाहत को सहज स्वीकार करते हुए हामी भर दी. दुकान पहुंचकर मैंने आर्यन से पूछा- क्या लेना है? आर्यन ने मधुर मुस्कान के साथ अपनी हाफ पेंट की जेब से चाकलेट का एक रेपर निकाला और दिखाते हुए कहा – ऐसा वाला चाकलेट.

दुकानदार ने प्यार से पूछा –कितना लोगे?

आर्यन ने मेरी तरफ देखते हुए कहा – पापा जी, पाँच.

दुकानदार ने आर्यन की मनपसंद पाँच चाकलेट उसे दे दी. आर्यन की खुशी का ठिकाना न रहा.

उसने कहा,पापा जी, इसको अभी खाऊँगा, इसको कल सुबह और बाकी को कल शाम में खाऊँगा. मैंने उसे हर्षित देख, हाँ में हाँ मिलाता रहा.

हमने दुकानकार को पैसे दिए और घर की ओर वापस लौट चले. मैंने देखा कि आर्यन ने पहले वाले चाकलेट रैपर को अपनी जेब में फिर से रख लिया.

मैंने कहा बेटा - चाकलेट के रैपर को फेंक दो.

आर्यन ने कहा –नहीं यह हमारा है?

मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर वह चाकलेट का रैपर फेंक क्यों नहीं रहा है. हम दोनों घर आ गये. उसने घर में रखे डस्टबीन में धीरे से रैपर डाला और फिर वही वाक्य दुहराया, पापा जी, यह हमारा है ना?

मैंने कहा -हाँ.

मुझे समझ में आया कि हम जिन्हें बच्चे कहते हैं उन्हें जिम्मेदारी लेना खूब आता है. आर्यन ने यह संदेश दिया कि रैपर को सुरक्षित डस्टबीन में रखने की जिम्मेदारी हमारी अपनी होती है.

मेरे मन में विचार आ रहा था, बच्चे मन के सच्चे होते हैं. हमें उनकी अच्छी सोच का सम्मान करना चाहिए.

एक लोटा दूध

रचनाकार- शीला गुरुगोस्वामी

एक बार की बात है, एक गांव में ऐसे लोग रहते थे जो काम काज तो कुछ ना करते परंतु अधिक से अधिक पैसा और सुविधा चाहते थे. वे हमेशा भगवान से शिकायत करते कि आपने हमें कुछ नहीं दिया लेकिन दूसरों को बहुत सारी सुविधाएं दीं. भगवान उन्हें समझाते की मेहनत करो तो सारी सुविधाएं मिल जाएंगी. दूसरों को देखने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा. लेकिन वे समझने को तैयार ही नहीं होते. कोई उन्हें कुछ काम कहता तो वह दूसरों पर टाल देते. अगर कोई उन्हें कुछ उपहार देने आता तो सब सामने हो जाते.

भगवान जी बोले, चलो एक काम करते हैं. मैं एक बड़ा बरतन तुम्हें देता हूं. आज रात सभी को इसमें एक - एक लोटा दूध डालना है और जब सब लोग ऐसा कर लेंगे तब तुम सब की मनोकामना पूरी हो जाएगी.

रात हुई. धीरे-धीरे करके सारे गांव वालों ने कहे अनुसार किया. सुबह हुई. भगवान जी बोले, चलो बरतन को देखते हैं उसमें तो बहुत सारा दूध इकट्ठा हो गया होगा. सबने देखा, बरतन में तो एक बूंद भी दूध नहीं था.

भगवान मुस्करा कर बोले, तुम लोग निकम्मे तो हो ही साथ में स्वार्थी, लालची भी हो. तुमने सोचा, सभी तो दूध डाल रहे हैं, क्यों ना मैं पानी डाल दूं. किसी को पता नहीं चलेगा. पर कहते हैं कि हम जैसा सोचते हैं वैसा ही दूसरे भी सोचते हैं सबके मन में यही विचार आ गया कि क्यों ना मैं पानी डाल दूं. इस प्रकार सब ने पानी डाला.

तुम लोगों ने दूसरे के बारे में नहीं सिर्फ अपने बारे में सोचा और अपने भाग्य को ही ठुकरा दिया. जो मेहनत करेगा वही उन्नति करेगा और जो सचआचरण करेगा वही आगे तक जाएगा अन्यथा दुख भोगता रहेगा.

गांव वालों को बात समझ में आ गई सभी मेहनत करने लगे और धीरे - धीरे सभी सुखी हो गए.

घमंडी हाथी

रचनाकार- पुर्णेश डडसेना

बहुत समय पहले की बात है. किसी जंगल में एक हाथी रहता था. उसे अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था. वह जंगल में यहां - वहां घूमता और पेड़ों की डालियां तोड़ तोड़ कर गिराता. इससे पेड़ों पर रहने वाली चिड़ियों के घोंसले गिर जाते थे.

एक बार हिम्मत करके एक चिड़िया ने हाथी से बात की और उससे कहा, हाथी दादा, आप छोटी-छोटी डालियों को क्यों नहीं खाते हैं? बड़ी-बड़ी डालियों को खींचने पर हमारे घोंसले टूट जाते हैं. हमारे अंडे भी फूट जाते हैं और हमारे बच्चे घर से बेघर हो जाते हैं. इन घोंसलों को बनाने के लिए हमें दिन- रात मेहनत करनी पड़ती है और तिनका - तिनका जोड़ना पड़ता है. तब हाथी सारी डालियां तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है. चिड़िया की बातों का उस पर कोई असर नहीं पड़ता.

हाथी की ऐसी उद्दंडता से नन्हींचीटियों के घर भी दबकर टूट जाते थे. एक बार चींटियों ने उससे विनम्रता पूर्वक कहा कि आप यहां से दूर चले जाएं, हमारे घरों को नष्ट ना करें. तब हाथी ने कहा,चीटियां मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं. मुझे जो करना है मैं वही करूंगा.

सभी चींटियों ने सोचा,उसे सबक सिखाया जाए. एक दिन जब हाथी डालियां तोड़ रहा था, बहुत सी चीटियां उसके सूंड में घुस गईं. हाथी इससे तिलमिला उठा. वह इधर - उधर भागने लगा,अपनीसूंड बार - बार ज़मीन पर पटकने लगा,परचीटियां उसे काटती रहीं.

अब हाथी को अपनी गलती का एहसास हुआ. उसे समझ में आ गया कि जिन्हें वह छोटा समझ रहा था वे बहुत कुछ कर सकती हैं. हाथी ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी और जंगल में मित्रता पूर्वक सबके साथ रहने लगा.

समय की परख

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे

एक गांव में एक भोला भाला किशन नाम का लड़का रहता था. प्राथमिक शिक्षा गांव में ही पूरा की.वह होशियार था उसके पिताजी का सपना था कि उसका बेटा सरकारी अधिकारी बने. फिर उसने अपने बेटे को शहर के स्कूल दाखिल करवा दिया. किशन शहर जाने के बाद पता चला कि पैसे की मोल क्या है. एक-एक पैसे की लिए मोहताज हो जाता था. किशन अपनी चाहतो को पूरा नही कर पाता था. चाहे कपड़े खरीदने की हो चाहे पेन कॉपी हो चाहे पुस्तक के लिए हो हर चीज हर वस्तु के लिए उसे समस्या का सामना करना पड़ता था. वह नहीं चाहता था अपने पिताजी को यह समस्या को बताए उन्होंने समय की जरुरत को समझा और एक दुकान में काम करने के लिए निकल पड़ा उसे एक ज्वेलरी की दुकान में काम मिल गया पार्ट टाइम नौकरी करते-करते अपनी पढ़ाई पूरी की पढ़ाई पूरा करने के बाद वह हमेशा अपने पापा के सपनों को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत किया और खुद को साबित किया.उसे एक सरकारी ऑफिसर के रूप में नौकरी मिल गयी. उसके पिताजी बहुत खुश हुए अपने बेटे के ऊपर उनको काफी नाज था. समय के महत्व को जाना.

आलू भालू च्यों म्यो

रचनाकार- प्रिया देवांगन *प्रियू*

एक बकरी थी. उसके चार बच्चे थे- आलू, भालू, च्यों, म्यो. बकरी जब भी खाना लेने बाहर जाती वह बच्चों को कहती -

आलू दरवाजा बंद,
भालू दरवाजा बंद,
च्यों दरवाजा बंद,
म्यो दरवाजा बंद.
बच्चे दौड़ कर दरवाजा बंद कर लेते. जब बकरी लौट कर आती तब कहती -
आलू दरवाजा खोल,
भालू दरवाजा खोल,
च्यों दरवाजा खोल,
म्यो दरवाजा खोल.

बच्चे दौड़ कर दरवाजा खोल देते. पास में ही एक भेड़िया रहता था,वह बकरी के मोटे ताजे बच्चों को खाना चाहता था. पर दरवाजा खटखटाने के बाद भी बच्चे दरवाजा नहीं खोलते थे. एक दिन उसने छिपकर सुन लिया कि बकरी ऐसा क्या कहती है कि बच्चे दरवाजा खोल देते हैं. दूसरे दिन बकरी के जाने के बाद वह आया औरउसने बकरी की आवाज में कहा -
आलू दरवाजा खोल,
भालू दरवाजा खोल,
च्यों दरवाजा खोल,
म्यो दरवाजा खोल.

बच्चों ने समझा उनकी माँ आ गई है. उन्होंने दरवाजा खोल दिया. भेड़िया चारों बच्चों को गपा- गप खा लिया और जाकर नदी के किनारे सो गया. जब बकरी लौट कर आई. उसने देखा दरवाजा खुला है और बच्चे भी घर पर नहीं है. पड़ोसन ने उसे सारी बात बता दी. बकरी दुख और गुस्से में चाकू धार करने वाले के पास गई. उसने कहा-'भैया मेरी सींग में धार कर दो. फिर वहाँ से तेली के पास गई और कहा-' मेरी सींग में तेल लगा दो. फिर वह नदी के किनारे गई जहाँ भेड़िया सो रहा था. उसने दौड़ कर भेड़िए के पेट में सींग घोपदिया. भेड़िये का पेट फट गया और बकरी के चारों बच्चे बाहर आ गए. बकरी अपने बच्चों के साथ खुशी खुशी घर लौट आई.

राम का नया स्कूल

रचनाकार- नीरज त्यागी

राम नवीं कक्षा का विद्यार्थी है. वह हमेशा से पढ़ने लिखने में बहुत ही होशियार रहा है. आठवीं कक्षा तक उसकी उपस्थिति हमेशा पूरी रहती थी.

इससे उसकी टीचर भी उससे बहुत खुश रहती थी. पढ़ाई में अव्वल रहने वाला राम हमेशा बहुत अच्छे नंबरों से पास होता था. इस साल नौवीं कक्षा में उसके माता-पिता ने उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में करा दिया क्योंकि उसका पिछला स्कूल आठवीं कक्षा तक ही था.

नवीं कक्षा में एक नया स्कूल,एक नया माहौल था, पिछला कुछ बदल गया था. राम को भी अपनी नई किताबों के साथ नए स्कूल में जाना बहुत ही अच्छा लग रहा था. राम के माँ-बाप भी बहुत खुश थे. राम ने एक बार फिर अपनी पढ़ाई पूरे ध्यान से करनी शुरू कर दी.

नये स्कूल में राम नए-नए मित्र बने. टीचर भी सारे नए थे. लगभग दो महीने की कक्षा के बाद राम का स्कूल जाना कुछ कम सा हो गया. निन्यानबे प्रतिशत से ऊपर हाजिरी रखने वाला राम धीरे-धीरे स्कूल जाने से कतराने लगा. राम के माता- पिता ने शुरू-शुरू में इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि पता नहीं क्यों राम स्कूल जाने से बचने लगा है.

राम पढ़ने लिखने में तो बहुत ही उत्तम बच्चा था किंतु अपने मन की बातों को अपने माँ-बाप के साथ शेयर नहीं कर पाता था. ना जाने राम के दिमाग में क्या चल रहा था.

आखिर एक महीने बाद राम के अभिभावक-शिक्षक बैठक का समय आ गया. राम के पिता राम की क्लास टीचर से मिलने पहुँचे. तब क्लास टीचर ने राम के पिता को बताया कि राम कक्षा से बहुत ज्यादा गायब रहने लगा है. स्कूल में आता है तो खोया-खोया सा रहता है. आप उससे जानने की कोशिश करें कि वह पढ़ाई में इतना क्यों पिछड़ता जा रहा है.

राम के पिता भारी मन के साथ क्लास टीचर के पास से उठे और घर आ गए. घर जाकर बड़ी ही समझदारी से राम के पिता ने राम से पूछा- बेटा क्या हुआ,क्या तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. राम कुछ देर तो चुप रहा लेकिन उसकी आँखों में आँसू आ गए. उन्होंने पूछा- बेटा बताओ मुझे, क्या बात है. क्या किसी ने कुछ कहा है.

तब राम ने अपने पिता को बहुत डरते हुए बताया- पापा इस स्कूल में सब बड़े-बड़े घरों के बच्चे आते हैं. कुछ अपनी गाड़ियों से आते हैं और कुछ अपनी अपनीबाइक से आते हैं. लेकिन मैं अक्सर या तो पैदल जाता हूँ या आप मुझे छोड़ देते हैं.

यह सब देख कर मुझे कक्षा के सभी विद्यार्थी गरीब-गरीब कहकर चिढ़ाते हैं. राम के पिता को समझते कुछ भी देर न लगी कि राम अपनी गरीबी को लेकर परेशान है. तब राम के पिता ने उसे समझाया- बेटा, आगे बढ़ने के लिए हर व्यक्ति को कहीं ना कहीं से शुरुआत करनी पड़ती है.

तुम अपने आप को इस तरीके से तैयार करो कि इन छोटी-छोटी बातों से तुम्हें कभी परेशान ना होना पड़े. एक दिन ऐसा आए कि तुम इन सब बच्चों से आगे निकलो और अपनी कक्षा में नंबर एक पर रहकर सबसे ऊपर खड़े दिखाई दो.

राम के मन की परेशानी काफी हद तक दूर हो गई और उसने पूरी लगन से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी. अपनी कक्षा में अपनी मेहनत के साथ राम ने टॉप किया और बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आने वाले बच्चों के सामने खड़े होकर टॉपर की ट्रॉफी लेते हुए अपने लिए सभी बच्चों को अपने लिए ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया.

राम के पिता की छाती गर्व से चौड़ी हो गई और उन्होंने राम को खुशी से गले लगा लिया. राम अपने पिता के सही मार्गदर्शन से एक बार फिर कक्षा में सबसे आगे बढ़ गया. अब उसकी कक्षा के सारे साथी उसके पास आकर बातें करते थे,उससे दोस्ती चाहने लगे, उससे पढ़ाई करने के लिए पूछने लगे.

अपनी पढ़ाई की बदौलत अब राम दूसरे बच्चों के लिए एक उदाहरण बन चुका था. अब सभी बच्चों के माता पिता अपने बच्चों को राम जैसा बनने के लिए कहते है.

बंदर की चतुराई

रचनाकार- कु. नेहा खूँटे, कक्षा 4, शा प्रा विद्यालय बेलगहना

बंदरों का एक झुंड एक जंगल में रहता था. वे एक विशाल वृक्ष पर रहते थे. उनके पास ही केले का एक बाग था. छोटू बंदर की नजरें केले के एक गुच्छे पर थी. उन केलों को वह में खाने की योजना बना रहा था. छोटू केले के गुच्छे पर कूदने ही वाला था जब उसकी मां ने उसे रोक दिया. उनका सरदार बोल रहा था उम्मीद है तुम सभी को याद है हम आज उपवास कर रहे हैं. सब बंदरों ने अपने सिर हिलाया. छोटू बंदर ने भी सिर हिलाया हालांकि वह उपवास के बारे में बिल्कुल भूल चुका था. सरदार के एक इशारे पर सभी बंदरों ने अपनी आंखें बंद कर ली. “आंखें बंद करना उपवास करने में मदद करता है“ मां ने समझाया. कुछ देर बाद छोटू ने धीरे से अपनी आंख का एक कोना खोला उसकी नजर केले पर पड़ी. उस केले को पाने की उसकी इच्छा बढ़ गई. छोटू बोला “मैं सोच रहा था. ” “तुम क्या सोच रहे थे “ मां ने बेसब्री से पूछा. मैं सोच रहा था “उपवास करने का मतलब है कि हम कुछ भी नहीं खा सकते सही है ना”. “हाँ कुछ भी नहीं खाना.“ माँ ने छोटू से बोला, छोटू फिर बोला मैं सोच रहा था....” तुम क्या सोच रहे थे. “ माँ ने बेसब्री से फिर से पूछा छोटू बोला...” हम सब बैठे बैठे केले को देख तो सकते हैं. “ सरदार ने सुना और इस सवाल पर सावधानी से विचार किया सभी बंदर उनके आदेश का इंतजार करने लगे. सरदार अपनी आंखें खोलते हुए बोले “केलों की ओर देखने में कोई नुकसान नहीं है मगर केवल देखना” उन्होंने आगे का शब्द संभालते हुए बोला. बंदर केले के पेड़ों से लटकते पीले केलो को देखते हुए बैठ गए. छोटू फिर बोला, “क्या हम एक एक केला अपने हाथ में पकड़ सकते हैं. “ एक अच्छा सुझाव सरदार ने कहा. -और इस तरह हर एक बंदर ने एक एक पीला केला अपने अपने हाथों में पकड़ कर रख लिया. सरदार ने सख्ती से कहा “अब अपनी आंखें बंद करो” तभी बंदरों ने अपनी आंखें बंद कर ली. छोटू फिर से अपनी आंख का एक कोना खोला और तरसते हुए अपने हाथ में लिए केले को देखा. “मैं सोच रहा था” छोटू फिर से बोला. सरदार ने पूछा ”क्या सोच रहे थे. “ छोटू बोले “क्या केले को छीलने में कोई नुकसान है.“ “आप ध्यान दें इसे खाना नहीं सिर्फ केला छीलना और इसे देखना, मुझे इसमें कोई नुकसान नजर नहीं आता” सरदार ने कहा. कुछ ही समय में सभी ने अपने अपने केले छील लिए एक बार फिर बंदरों ने अपनी आंखें बंद कर ली और सारे बंदर बैठ गए.छोटू फिर से अपनी आंख का एक कोना खोला.माँ ने उसे धमकाया- “ छोटू इसे खा नहीं सकते.“ मैं सोच रहा था--- यह सुनकर सभी सावधान हो गए. ये जानने के लिए उत्सुक थे कि चतुर छोटू के पास अब क्या सुझाव है. “क्या हम केले को अपने मुंह में रख सकते हैं लेकिन हम इसे खाएंगे नहीं” छोटू ने आश्वासन दिया. “केले को मुंह में रखने पर तुम निश्चित रूप से उपवास नहीं तोडो़गे.“ सरदार ने कहा. बंदरों ने केले अपने अपने मुंह में रख लिए फिर से एक सवाल भरी नजर से देखा माँ मुझे लगता है..... सभी बंदर ने अपनी सांसे थाम ली “मुझे लगता है केला चला गया है वह मेरे पेट में है. “ वहां सन्नाटा छा गया. कुछ बंदरों ने छोटू को समझ भरी निगाह से देखा फिर सरदार ने कहा “हमने आज एक महान खोज की है” सभी बंदरों ने बूढ़े सरदार की ओर बड़े ध्यान से देखा. “हमने आज एक महान खोज किए है. आप एक केले को ज्यादा देर तक मुंह में नहीं रख सकते.“ सभी बंदर ने गहरी साँस ली. अब केले उनके पेट में सुरक्षित है और यह उनके उपवास का अंत था.

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