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छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासनकाल
भोंसले राज्य का ब्रिटिश राज्य में विलय एवं छ.ग. में पुनः ब्रिटिश शासन
दिनांक 11 दिसंबर 1853 को रघुजी तृतीय की मृत्यु होते ही ब्रिटिश रेसिडेंस मेन्सल ने उसी दिन राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया. गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने अपनी हड़प निति के अंतर्गत 13 मार्च 1854 को नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने की घोषणा कर दी. दिनांक 1 फरवरी 1855 को छ.ग. के अंतिम मराठा जिलेदार – गोपालराव ने, छ.ग. का शासन, ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि, प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया.
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत पूरे छत्तीसगढ़ को एक जिले का दर्जा दिया गया. जिले का प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा जाता था. उसकी सहायता के लिए सहायक कमिश्नर तथा अतिरिक्त सहायक कमिश्नर थे. अतिरिक्त सहायक कमिश्नर का पद केवल भारतीयों के लिए था. इस पद पर गोपालराव आनंद को बिलासपुर में और मोहिबुल हसन को रायपुर में नियुक्त किया गया.
छ.ग. में ब्रिटिश प्रशासन का नवीन स्वरुप
असैनिक प्रशासन का पुनर्गठन कर यहाँ पंजाब जैसी प्रशासनिक व्यावस्था लागू की गयी. इसके अंतर्गत प्रशासन को दो वर्गों – माल और दीवानी में विभक्त किया गया. डिप्टी कमिश्नर को दीवानी शाखा के प्रशासन हेतु मूल और अपील दोनो प्रकार के 5000 रुपये से अधिक के अधिकार थे. बाद में तहसीलदारों की नियुक्ति कर उन्हें भी दीवानी और फौजदारी अधिकार सौपे गए.
तहसीलदारी व्यवस्था का आरम्भ
प्रारंभ में छत्तीसगढ़ जिले में रायपुर, धमतरी, रतनपुर इन तीन तहसीलों का निर्माण किया गया. तहसीलदार डिप्टी कमिश्नर के निर्देशानुसार कार्य करते थे. यह पद भारतीयों के लिए निर्धरित था. परगनों के पुनर्गठन के बाद परगनों में कमाविश्दार के स्थान पर नायब तहसीलदार नियुक्त किये गए. तहसीलदार का वेतन 150 रुपये प्रतिमाह एवं नायब तहसीलदार का वेतन 50 रुपये प्रतिमाह था. दिनांक 1 फरवरी 1857 को तहसीलों की संख्या बढ़ाकर पांच कर दी गई. धमधा और नवागढ़ 2 नई तहसीलें बनी. इसके आठ माह बाद तहसीलों का पुनर्गठन हुआ और धमधा के स्थान पर दुर्ग को नया तहसील मुख्यालय बनाया गया.
मध्य प्रांत का गठन
प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से 2 नवंबर 1861 को नागपुर और उसके अधीनस्थ क्षेत्रो को मिलाकर एक केन्द्रीय क्षेत्र का गठन किया गया जिसे मध्य प्रांत कहा गया. इसमें निम्नलिखित क्षेत्र शामिल थे -
- नागपुर राज्य के क्षेत्र – इसमें तीन संभाग थे – नागपुर संभाग (नागपुर, वर्धा, भण्डारा और चांदा ज़िले), रायपुर संभाग (रायपुर, बिलासपुर और संबलपुर ज़िले) और गोदावरी तालुक संभाग (गोदावरी तालुक, अपर गोदावरी और बस्तर ज़िले).
- सागर नर्मदा क्षेत्र – इसमें इसमें दो संभाग – सागर संभाग (सागर, दमोह और होशंगाबाद ज़िले) एवं जबलपुर संभाग (जबलपुर, मंडला एवं सिवनी ज़िले) शामिल थे.
मध्यप्रांत का मुख्यालय नागपुर था. राज्य का शासन चीफ कमिश्नर या संभागायुक्त के हाथो में था.
छत्तीसगढ़ संभाग का गठन
1861 तक छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत के चीफ कमिश्नर के अधीन था. सन् 1862 में छ.ग. एक स्वतंत्र संभाग बना, जिसका मुख्यालय रायपुर था. संबलपुर को मध्य प्रांत में शामिल कर रायपुर संभाग का हिस्सा बना लिया गया. छत्तीसगढ़ में इस समय तीन जिले - रायपुर, बिलासपुर एवं संबलपुर बन गए थे. यह प्रशासनिक व्यवस्था बिना किसी परिवर्तन के 1905 तक बनी रही.
भौगोलिक पुनर्गठन एवं प्रशासनिक परिवर्तन
1905 में संबलपुर जिले को बंगाल प्रांत के उड़ीसा में मिला लिया गया एवं इसके बदले बंगाल प्रांत के बिहार के छोटा नागपुर क्षेत्र की पांच रियासते – चांगभखार, कोरिया, सरगुजा, उदयपुर, व जशपुर को छत्तीसगढ़ में मिला लिया गया. इस समय छत्तीसगढ़ में तीन जिले थे – रायपुर, बिलासपुर, व दुर्ग. यह प्रशासनिक व्यवस्था 1947 तक बनी रही.
छत्तीसगढ़ में राजस्व व्यवस्था
सिध्दांत रूप से सरकार सम्पूर्ण भूमि की स्वामी थी. आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था. डिप्टी कमिश्नर इलियट ने तीन वर्षीय राजस्व व्यवस्था लागू की. यह व्यवस्था 1855 – 1857 तक बनी रही. परगनों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या 12 कर दी गई. परगनों के अधीन रेवेन्यु सर्कल बनाया गया. पटवारियों की नियुक्ति की गई. तीन पुराने परगनों – राजरो, लवन, और खल्लारी के स्थान पर चार नए परगने गुलू, सिमगा, मारो, और बीजापुर का निर्माण हुआ.
राजस्व की दृष्टि से सम्पूर्ण क्षेत्र को तीन भागो में बांटा गया —
- खालसा क्षेत्र
- जमींदारी क्षेत्र
- ताहुतदारी क्षेत्र – ताहुतदारी पध्दति केप्टेन सेन्डिस के समय में प्रारंभ हुई थी. उन्होने लोरमी और तरेंगा, दो ताहुतदारियों का निर्माण किया. इसके पहले मराठा काल में सिरपुर और लवन दो तहुतदारियां बनाई थीं. डिप्टी कमिश्नर इलियट के समय में तीन और ताहुतदारियां – सिहावा, खल्लारी और संजारी बनाई गईं. यह पध्दति तहुतदारों व्दारा प्रेरित किया जाकर किसानों से पड़ती भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित कराने के उद्देश्य से प्रारंभ की गई थी, परन्तु यह पध्दति अधिक सफल नहीं हुई क्योंकि ताहुतदार न तो गोंटिया की तरह लोकप्रिय थे और न ही ज़मीन्दार की तरह सक्षम.
ज़मीन्दारी क्षेत्र मे गांव का प्रमुख मालगुज़ार होता था, जो संबंधित ज़मीन्दार को मालगुज़ारी देता था. ज़मीन्दार सम्पूर्ण ज़मीन्दारी के लिए निर्धारित भूराजस्व सरकार को देता था. खालसा क्षेत्र के किसान गोंटिया के माध्यम से सीधे सरकार को भूमि राजस्व अदा करते थे. ताहुतदारी क्षेत्र में निर्धारित भूराजस्व ताहुतदार सरकार को अदा करते थे. आय के चार प्रमुख मद थे – भूराजस्व, आबकारी (मादक दृव्यों की बिक्री पर कर), सायर (चुंगी) और पंडरी (गैर किसानों पर विशेष कर) शेष सभी कर समाप्त कर दिए गए थे. कर के रूप में अनाज नहीं लिया जाता था बल्कि नकद में ही लिया जाता था. राजस्व वर्ष 1 मई से 30 अप्रेल निर्धारित किया गया था.
सन् 1856 में नए अधिकारी नियुक्त किए गए. यह थे – सरिस्तेदार, नायब सरिस्तेदार, मुहाफिज़, दफ्तरी, बासिल बाकी नवीस, परगना नवीस, मोहर्रिर, नाज़िर आदि. इसी तरह कोषालय में खजांची, सियानवीस, मोहर्रिर, फोतदार आदि नियुक्त किए गए. राजस्व मामलों का निराकरण करने के लिये एक नियमावली भी बनाई गई थी, जिसे दस्तूर उल अमन कहा जाता था.
न्याय व्यवस्था
डिप्टी कमिश्नर दीवानी तथा फौजदारी दोनों प्रकार के मामलों में न्याय करता था. इस काम में सहायक कमिश्नर उसकी सहायता करता था. कमिश्नर के पास अपील की जाती थी और उसके आदेश के विरुध्द अंतिम अपील न्यायिक कमिश्नर को की जाती थी. अपील के लिए 2 माह का समय निर्धारित था. सन् 1856 में कमिश्नर ने तहसीलदारों के दीवानी अधिकार समाप्त कर दिये. बाद में ज़िला एवं सत्र न्यायधीश का पद निर्मित किया गया. फौजदारी मामलों में भी तहसीलदारों को कुछ सीमित अधिकार थे. डिप्टी कमिश्ननर को अधिक अधिकार थे. कमिश्नर उम्र कैद तक दे सकता था और मृत्यु दंड के प्रकरण गवर्नर जनरल तक जाते थे. बाद में कमिश्नर को ही मृत्यु दंड देने का अधिकार दे दिया गया. जनवरी 1862 में इंडियन पेलन कोड लागू कर दिया गया. बाद में न्याय व्यवस्था को प्रशासन से प्रथक कर दिया गया.
पुलिस व्यवस्था
सन् 1855 में केवल 149 पुलिस कर्मचारी थे. पुलिस प्रशासन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ को चार भागो में बांटा गया था – रायपुर सदर, रायपुर तहसीलदारी क्षेत्र, धमतरी तहसीलदारी क्षेत्र और रतनपुर तहसीलदारी क्षेत्र. प्रत्येक तहसीलदारी क्षेत्र में 15 पुलिस थाने बनाए गए. सन् 1858 में पुलिस मेन्युअल लागू हुआ. सन् 1862 में पुलिस अधीक्षक का पद बनाया गया. रायपुर का जेल 1854 से पूर्व का था. सन् 1873 में बिलासपुर जेल का निर्माण किया गया.
डाक व्यवस्था
रायपुर में हरकारे नियुक्त करके डाकघर का निर्माण किया गया. सन् 1857 में रायपुर में पहला पोस्ट मास्टर स्मिथ बना.
यातायात व्यवस्था
कैप्टन एग्न्यू ने रायपुर- नागपुर सड़क योजना की शुरुवात की थी. सन् 1862 में ग्रेट ईस्टर्न रोड बनी जो आज राष्ट्रीय राजमार्ग 6 है. सन् 1905 में बिलासपुर – अंबिकापुर सड़क बनी. 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेज़ों ने नागपुर-छत्तीसगढ़ रेल्वे के नाम से रेल लाइने बिछाने का काम प्रारंभ किया. आरंभ में यह मीटर गेज में थी परन्तु 1887 में इसे बंगाल नागपुर रेल्वे ने अधिग्रहण करके बड़ी लाइन में परिवर्तित किया. सन् 1900 तक राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर बाम्बे-कलकत्ता लाइन से जुड़ गए थे. धमतरी और राजिम से रायपुर को छोटी लाइन से जोड़ा गया.
उद्योग
सन् 1894 में CP कपड़ा मिल्स राजनंदगांव में बनी. इस मिल के निर्माता बंबई के मैकवेथ ब्रदर्स थे. सन् 1897 में में. शावलिन कंपनी कोलकता को बेची गई और उसका नाम बंगाल नागपुर कॉटन मिल BNC मिल रखा गया. सन् 1935 में मोहन जूट मिल रायगढ़ में स्थापित किया गया.
सिंचाई
धमतरी में रुद्री नहर 1912-15 में, मुरुमसिल्ली 1923-25 में और बालोद में तांदुला 1931 में बनाए गए. आदमाबाद, खुड़िया बांध और खूंटाघाट बनाए गए. इसके अतिरिक्त भी अनेक तालाब और नहरें आदि बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई.
वन
प्रथक वन विभाग बनाया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिवीज़नल फारेस्ट आफीसर था. उसका मुख्यालय रायपुर में था.
शिक्षा व्यवस्था
सन् 1864 में रायपुर ज़िले में केवल 58 स्कूल थे. सन् 1897 तक इनकी संख्या बढ़कर 98 हो गई थी. सन् 1910 में छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र शिक्षा विभाग की स्थापना की गयी. राजकुमार कॉलेज 1893 में बना. सन् 1907 में अंग्रेज़ी माध्यम की सालेम कन्याशाला बनी. सन् 1911 में सेंट पाल स्कूल, 1913 में लारी स्कूल और 1925 में काली बाड़ी संस्था स्थापित हुए. इसके बाद धमतरी और रायपुर में अमेरिकन मेनोनाईट संस्था बनी. असहयोग आन्दोलन के दौरान रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन वामनराव लाखे व्दारा किया गया. सन् 1937 में मध्यप्रांत के मुख्य मंत्री एन. बी. खरे बने और रविशंकर शुक्ल शिक्षामंत्री बने. रविशंकर शुक्ल ने विद्या मंदिर योजना प्रारंभ की. सन् 1937 में छत्तीसगढ़ शिक्षण समिति का गठन रायपुर में हुआ जिसके अध्यक्ष प्यारेलाल सिंह थे. सन् 1938 में छत्तीसगढ़ महाविद्यालय का निर्माण रायपुर में हुआ, जिसका प्राचार्य महासमुंद के अधिवक्ता जे. योगानंदन जी को बनाया गया. उस समय प्रांत में विश्वविद्यालय नागपुर तथा सागर में थे. लोग उच्च शिक्षा के लिए नागपुर, इलाहाबाद और बनारस जाते थे. बिलासपुर में सन् 1944 में महाकौशल शिक्षण समिति ने एस.बी.आर. (शिव भगवान रामेश्वर लाल) महाविद्यालय की स्थापना की. बिलासपुर में नार्मल स्कूल और बृजेश स्कूल (सन् 1885 में चिंतन गृह के नाम से) बने. बद्रीनाथ साव के मकान में राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन पं. शिवदुलारे मिश्र ने प्रारंभ किया.
छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन का प्रभाव
प्रशासनिक सुधार
मराठाकाल की प्रशासनिक दुर्व्यवस्था को ब्रिटिश शासन काल में ठीक किया गया. छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत का अंग बना. राजस्व, न्याय व पुलिस प्रशासन की अच्छी व्यवस्था की गई.
आर्थिक विकास
मराठा काल में कृषि का हृास हुआ और आर्थिक दुर्गति हुई. ब्रिटिश काल आते ही राजस्व व्यवस्था में सुधार होने के कारण एवं कृषि को मिला और आर्थिक उन्नति के व्दार खुल गए. उद्योग और व्यापार में उन्नति हुई. सड़क, रेल और संचार व्यवस्था में सुधार होने के कारण भी आर्थिक प्रगति हुई.
शिक्षा
ब्रिटिश काल में शिक्षा की व्यवस्था बहुत बेहतर हुई. स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन मिला. पाश्चात्य शिक्षा भी बढ़ी. राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव से शिक्षा में भी राष्ट्रीय विचाराधारा आई.
धार्मिक स्थिति
सबसे बड़ी संख्या हिन्दू धर्मावलंबियों की थी. हिन्दू धर्म के सुधारवादी आंदोलन का काफी असर हुआ. रामकृष्ण मिशन, आर्य समाज, ब्रह्म समाज, जैसी संस्थाओं ने कार्य किया. जाति प्रथा, शोषण और भेदभाव के विरुध्द अनेक धार्मिक आंदोलन छत्तीसगढ़ में हुए. कबीरपंथ काफी फैला. गुरू धासीदास के सतनाम पंथ का प्रभाव भी एक बड़े क्षेत्र में हुआ. उत्तरी छत्तीसगढ़ में इसाई मिशनरियों ने काफी काम किया. यहां पर बड़ी संख्या में लोगों ने, विशेषकर उरांव जनजाति के लोगों ने तथा सतनामी समाज के भी कुछ लोगों ने इसाई धर्म स्वीकार किया.
सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति
ब्रिटिश काल में नवचेतना आई. स्वतंत्रता संग्राम में काम करने वाले लोगों ने सामाजिक पुनर्रुत्थान का काम भी किया. पं. सुदरलाल शर्मा ने हरिजन उध्दार का कार्य बढ़े पैमाने पर किया. अनेक भारतीय एवं विदेशी विव्दानों ने प्रचीन भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया और भारतीयों में अपने इतिहास के प्रति सम्मान का भाव जागृत किया. पुरानी सामाजिक मान्यताएं बदलने लगीं. राष्ट्रीय भावना का विकास होने लगा. ब्रिटिश शासनकाल को छत्तीसगढ़ में आधुनिक विचारधारा के विकास का दौर भी कहा जा सकता है.