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भारत के संविधान में मौलिक अधिकार - भाग - 2 - स्वतंत्रता का अधिकार
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 व्दारा 6 प्रकार की स्वतंत्रताएं सभी को दी गई हैं.
(1) सभी नागरिकों को अधिकार होगा-
(ए) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए (Expression);
(बी) शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होना (Assembly);
(सी) संघ या यूनियन या सहकारी समितियां बनाना (Association);
(डी) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए (Freedom of Movement);
(ई) भारत के क्षेत्र के किसी भी हिस्से में निवास करना और बसना (Freedom to Reside and Settle);
(छ) कोई पेशा अपनाना, या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करना (Practice any profession and carry out occupation, business or trade).
(2) खंड (1) में प्रदत्त अधिकारों (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये कानून का आधार -
- भारत की संप्रभुता और अखंडता,
- राज्य की सुरक्षा,
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
- सार्वजनिक व्यवस्था,
- शालीनता या नैतिकता के हित में, या
- अदालत की अवमानना, मानहानि या
- किसी अपराध के लिए उकसाने के संबंध में.
(3)खंड (1) के उप-खंड (बी) में पदत्त अधिकरों (शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होना - एसेंबली) पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये कानून का आाधार - भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में
(4) खंड (1) के उप-खंड (सी) में प्रदत्त अधिकारों (संघ या यूनियन या सहकारी समितियां बनाना) पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये कानून का आधार
- भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में
- सार्वजनिक व्यवस्था या नैतिकता
(5) खंड (1) के उप-खंड (डी) और (ई) में प्रदत्त अधिकारों (भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने) पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये कानून का आधार -
- आम जनता के हित में या
- किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा के लिए.
(6) खंड (1) के उप-खंड (जी) में प्रदत्त अधिकारों (कोई पेशा अपनाना, या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करना) पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये कानून का आधार -
- आवश्यक पेशेवर या तकनीकी योग्यताएं, या
- राज्य द्वारा, या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण वाले किसी निगम द्वारा, किसी भी व्यापार, व्यवसाय, उद्योग या सेवा को चलाने के लिये नागरिकों को पूर्ण या आंशिक रूप से बाहर रखना
अभिव्यक्ति का अधिकार - Right to Expression
अभिव्यक्ति में शामिल है, विचार व्यक्त करना, तो आप बोलकर, लिखकर, चित्र व्दारा, संकेतों से, वीडियों व्दारा या किसी अन्य माध्यम से भी कर सकते हैं. कभी कभी चुप रहना भी अभिव्यक्ति का तरीका हो सकता है. उदाहरण के लिये विरोध प्रदर्शन का एक रूप यह भी हो सकता है, कि मुंह पर पट्टी बांधकर, या काली पट्टी लगाकर एक मार्च निकाला जाये. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं -
- प्रेस की आज़ादी स्वतंत्रता - इसके महत्वपूर्ण पहलू हैं -
- प्रेस में कोई पूर्व-सेंसरशिप नहीं हो सकती;
- समाचार पत्रों में सार्वजनिक महत्व के लेखों को प्रकाशन को पहले से नहीं रोका जा सकता;
- प्रेस के संचलन की स्वतंत्रता;
- प्रेस अत्यधिक कर नहीं लगाया जा सकता;
प्रेस की स्वतंत्रता पर अतिमहत्वपूर्ण प्रकरण Romesh Thappar v. The State Of Madras(1950), में माननीय सर्वोच्च नयायालय ने कहा है कि, “freedom of speech and of the press lay at the foundation of all democratic organisations, for without free political discussion no public education, so essential for the proper functioning of the processes of popular government, is possible”. न्यायालय ने इस प्रकरण में माना कि अखबारों के प्रसार (circulation) की आज़ादी उनके प्रकाशन की आज़ादी जितनी ही महत्वूपर्ण है.
Bennett Coleman & Co v. Union of India(1972), में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी का मूलतत्व है. न्यायालय ने कहा कि - “प्रेस की स्वतंत्रता में गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों ही तत्व हैं. स्वतंत्रता प्रचलन और सामग्री दोनों में निहित है. - freedom of the press embodies the right of the people to free speech and expression. It was held that “Freedom of the press is both qualitative and quantitative. Freedom lies both in circulation and in content.
मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संभव है कि किसी अधिकार का अनुच्छेद 19(1) के किसी भी खंड में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है और फिर भी उस अधिकार को इस खंड द्वारा कवर किया जा सकता है. यह सच है कि प्रेस की स्वतंत्रता एक ऐसा महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है, जिसका स्पष्ट रूप से उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है, लेकिन यह अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित है.
सर्वोच्च न्यायालय के संरक्षण के बावजूद भारत का स्थान प्रेस की स्वतंत्रता सूचकांक में गिर रहा है. इसका कारण यह है कि प्रेस की स्वतंत्रता पर संकट केवल कानूनों व्दारा प्रेस पर सेसरशिप लगाने से ही नही है. विज्ञापनों, और अन्य तरीकों से भी प्रेस को खरीदा जा सकता है. इसी प्रकार प्रेस पर कार्पोरेट का पूरा नियंत्रण है और सरकार तथा कार्पोरेट के बीच के रिश्तों के कारण भी प्रेस की आज़ादी खतरे में है. एडीटर बिना मालिकों की अनुमति के कोई खबर नही चला सकते. इसके अलावा सरकारी एजेंसियों तथा देशद्रोह कानून आदि का डर दिखाकर भी प्रेस की स्वतंत्रता का हनन किया जा सकता है. यूट्यूब की चैनल NewsClickin पर Creative Commons Attribution License (Resuse Alloed) के अंतर्गत उपलब्ध वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुर्ता की बातचीत इस वीडियो में देखिये.
देशद्रोह कानून और उसपर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के संबंध में यूट्यूब की चैलन NewsClickin पर Creative Commons Attribution License (Resuse Alloed) के अंतर्गत उपलब्ध यह वीडियो देखिये.
- जानने का अधिकार - State of Uttar Pradesh Vs Raj Narain (1975) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि - जानने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा में शमिल है. न्यायालय ने आगे कहा कि इस देश के लोगों को उनके सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा सार्वजनिक तरीके से किए जाने वाले प्रत्येक सार्वजनिक कार्य की हर चीज को जानने का अधिकार है. यह लोकतंत्र का बुनियादी सिद्धांत है कि प्रत्येक नागरिक को यह जानने का अधिकार होना चाहिए कि सरकार क्या कर रही है. जब जनता सरकार के कृत्यों से अवगत होगी तभी शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही कायम हो सकेगी. सूचना प्राप्त करना और उसका प्रसार करने का अधिकार एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है. इस तारतम्य में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 महत्वपूर्ण विधि है जो हर नागरिक को सूचना का अधिकार प्रदान करता है.
- चुनाव में उम्मीदवारों के संबंध में जानने का अधिकार: भारत संघ बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (2002) में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मतदाताओं को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के आपराधिक अतीत आदि के संबंध में जानने का मौलिक अधिकार है.
- उत्तर देने का अधिकार: LIC v. Prof. Manubhai D. Shah(1992), में सर्वोच्च नयायालय ने निर्णय दिया है कि किसी के खिलाफ या किसी के संबंध में यदि कुछ प्रकाशित किया गया था तो उसका उत्तर देने का अधिकार, उसे अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्राप्त है, और उत्तर को उसी समाचार मीडिया में प्रकाशित कराने का अधिकार भी इसमें शामिल है.
- मौन का अधिकार: बोलने के अधिकार में न बोलने का अधिकार या चुप रहने का अधिकार शामिल है. Bijoe Emmanuel v. State of Kerala (1986), में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तीन बच्चों के चुप रहने के अधिकार को मान्यता दी, जिन्हें राष्ट्रगान न गाने के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था. न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसके धार्मिक विश्वास के आधार पर आपत्ति होने की स्थिति में राष्ट्रगान गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. बोलने और व्यक्त करने के अधिकार में व्यक्त न करने और चुप रहने का अधिकार शामिल है.
- राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार: भारत संघ बनाम नवीन जिंदल (2004) के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान और गरिमा के साथ फहराना किसी की निष्ठा और भावनाओं और गर्व की भावनाओं की अभिव्यक्ति है और यह अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित एक मौलिक अधिकार है. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पहले जिस राष्ट्रीय ध्वज की शान के लिये स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इतने बलिदान दिये उसी राष्ट्रीय ध्वज को फहराने का अधिकार भारतीय नागरिकों को नही था और अपने ही घरों पर 15 अगस्त और 26 जनवरी के राष्ट्रीय त्योहारों को छोड़कर अन्य दिनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति आम नागरिकों को नहीं थी.
शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता - Right of Peaceful Assembly -
सभा या बैठक आयोजित करने का उद्देश्य विचारों का प्रचार-प्रसार करना और जनता को जागरूक करना है. इसलिए, इकट्ठा होने का अधिकार स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार का एक आवश्यक तत्व है. अनुच्छेद 19(1)(बी) शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के इकट्ठा होने का अधिकार प्रदान करता है. इसमें सार्वजनिक बैठकें आयोजित करने, भूख हड़ताल करने और जुलूस निकालने का अधिकार शामिल है. गौरतलब है कि सरकारी परिसर या दूसरों की निजी संपत्ति पर सभा आयोजित करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. हिम्मत लाल बनाम पुलिस कमिश्नर, बॉम्बे (1972) में, सर्वोच्च ने उस नियम को रद्द कर दिया, जो पुलिस कमिश्नर को सभी सार्वजनिक बैठकों और जुलूसों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता था. न्यायालय ने माना कि राज्य केवल नागरिकों की सभा के अधिकार को विनियमित करने के लिए नियम बना सकता है, और सार्वजनिक व्यवस्था के हित में उचित प्रतिबंध लगा सकता है, लेकिन सभी बैठकों या जुलूसों को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने वाला नियम नहीं बनाया जा सकता.
यूट्यूब की चैनल UN Human Rights पर Creative Commons Attribution License (Resuse Alloed) के अंतर्गत उपलब्ध इस वीडियो में देखिये कि शांतिपूर्ण सभा का अधिकार एक मानव अधिकार भी है, और यह कितना महत्वपूर्ण है.
संघ, यूनियन या सहकारी समितियां बनाने की स्वतंत्रता - Right of Association -
अनुच्छेद 19(1)(सी) संघ, यूनियन या सहकारी समितियां बनाने का अधिकार प्रदान करता है. संघ बनाने के अधिकार को लोकतंत्र की जीवनरेखा माना जाता है, क्योंकि इस अधिकार के बिना, लोकतंत्र के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों का गठन नहीं किया जा सकता. एसोसिएशन और यूनियन बनाने के अधिकार में कंपनियां, सोसायटी, ट्रेड यूनियन, पार्टनरशिप फर्म और क्लब आदि बनाने के अधिकार शामिल हैं. यह अधिकार केवल एसोसिएशन के गठन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसकी स्थापना, प्रशासन और कामकाज भी इसमें शामिल है. संघ बनाने के अधिकार में स्वेच्छा से किसी संघ का सदस्य बनने का अधिकार भी शामिल है और एसोसिएशन का सदस्य बने रहने या न रहने का अधिकार भी शामिल है. दमयंती बनाम भारत संघ (1971) में, सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन के सदस्यों के इस अधिकार को मान्यता दी है कि वे एसोसियेशन को उस संरचना के साथ जारी रख सकते हैं जिसकी सहमति उन्होने दी थी. एसोसिएशन बनाने के अधिकार में एसोसिएशन का सदस्य न होने का अधिकार भी शामिल है. अनुच्छेद 19(1)(सी) राज्य को सहकारी समितियों और उनकी प्रबंध समितियों में कमजोर वर्गों को आरक्षण देने या नामांकित करने से नहीं रोकता है. इसी प्रकार राज्य व्दारा संघ को सरकारी मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. संघ बनाने के अधिकार में संघ के उद्देश्यों को प्राप्त करने का अधिकार शामिल नहीं है.
आवागमन और निवास की स्वतंत्रता - Freedom of Movement and Reidsence -
अनुच्छेद 19(1)(डी) और (ई) एक-दूसरे के पूरक हैं. वे नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से घूमने और निवास करने या बसने का अधिकार प्रदान करते हैं. अनुच्छेद 19(1)(डी) के तहत स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार में सड़कों और राजमार्गों के उपयोग का अधिकार भी शामिल है. चंबारा सोया बनाम भारत संघ (2007) मामले में, कुछ अराजक तत्वों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया था, जिसके कारण याचिकाकर्ता को अपने बीमार बेटे को अस्पताल ले जाने में देरी हुई और अस्पताल पहुंचते ही उसके बेटे की मृत्यु हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सड़क अवरोध के कारण अनुच्छेद 19(1)(डी) के तहत याचिकाकर्ता के स्वतंत्र रूप से घूमने के अधिकार का उल्लंघन हुआ है. न्यायालय ने इस मामले में राज्य की निष्क्रियता के कारण याचिकाकर्ता के बेटे की मृत्यु के लिए राज्य को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी माना. उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद बनाम फ्रेंड्स को-ऑप हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड (1995), में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत निवास के अधिकार में आश्रय का अधिकार और उस उद्देश्य के लिए घर बनाने का अधिकार शामिल है.
पेशे, व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय की स्वतंत्रता - Freedom of profession, occupation, trade or business -
व्यवसाय जारी रखने के अधिकार में व्यवसाय को बंद करने का अधिकार भी शामिल है. एक्सेल वियर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1978) में, सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25-ओ को असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि उसके तहत नियोक्ता को अपने औद्योगिक उपक्रम को बंद करने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता थी. किसी व्यक्ति को कोई विशेष नौकरी करते रहने का कोई अधिकार नहीं है. किसी प्रतिष्ठान के बंद होने की स्थिति में, यदि किसी व्यक्तिने नौकरी खो दी है तो इसे उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन नही माना जायेगा. खतरनाक गतिविधि, असामाजिक या आपराधिक गतिविधि को चलाने का कोई अधिकार नहीं है. सरकार के साथ व्यापार करने के अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता. व्यापार में प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा का कोई अधिकार नहीं है. प्रतिस्पर्धा के कारण हानि अनुच्छेद व्यापार के अधिकार का उल्लंघन नहीं है.
अनुच्छेद 19(2) से अनुच्छेद 19(6) के तहत मौलिक स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों को निम्नलिखित परीक्षणों को पूरा करना होगा:
- प्रतिबंध उपयुक्त विधायिका द्वारा विधिवत अधिनियमित कानून के प्राधिकार के तहत या लगाये गये हों.
- प्रतिबंध को अधिकृत करने वाला कानून उचित हो.
- लगाया गया प्रतिबंध विशिष्ट खंडों, यानी अनुच्छेद 19(2) से 19(6) में परिकल्पित विशेष उद्देश्य या वस्तु के लिए होना चाहिए.
- लगाए गए प्रतिबंध और संबंधित खंड में उल्लिखित वस्तुओं के बीच उचित संबंध हो.
- प्रतिबंध उचित होना चाहिए.
अंत में, यह उल्लेखनीय है कि पहले अनुच्छेद 19(1) में पूर्व में सात मौलिक स्वतंत्रताएं प्रदान की गई थीं. खंड (एफ) में संपत्ति रखने और अर्जित करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी, जिसे संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 द्वारा हटा दिया गया है.