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महिला सशक्तीकरण
पुरुष प्रधान समाज होने के कारण महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर नहीं मिलते हैं. आज के अधुनिक समाज में भी महिलाओं को घरेलू प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. लड़कियों के साथ भेद-भाव किया जाता है. कई राज्यों में बालिका भ्रूण हत्या की घटनाएं अभी भी होती हैं. कई परिवारों में बालिकाओं के साथ इतना भेदभाव किया जाता है कि उन्हें भरपेट भोजन तक नहीं मिलता. महिलाएं अधिकतर पुरुषों के भोजन कर लेने के बाद बचा हुआ भोजन ही करती हैं. इन सब कारणों से भारत में महिलाओं की मृत्यु दर पुरुषों की मृत्यु दर से अधिक है. विश्व आर्थिक मंच व्दारा 2017 में जारी लिंग अंतर सूचकांक के अनुसार भारत का रैंक 144 देशों में 108 वां है. पिछले वर्ष भारत का रैंक 87 वां था और एक वर्ष में भारत 21 स्थान फिसल गया है. इस सूचकांक की गणना (i) शैक्षणिक प्राप्ति, (ii) स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, (iii) आर्थिक अवसर और (iv) राजनीतिक सशक्तिकरण के आधार पर की जाती है. भारत के लिए यह सूचकांक वर्ष 2016 में 0.683 था जो 2017 में घटकर 0.669 हो गया है. इसमें पहला स्थान आइसलैंड का है जिसके लिये यह सूचकांक 0.878 है. इसमें भी स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के क्षेत्र में भारत की हालत बदतर है और उसका स्थान इस क्षेत्र में नीचे से चौथा है.
लिंग अनुपात
भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 943 महिलाओं का है. चिंता का विषय यह है कि 0 से 6 वर्ष की आयु का लिंग अनुपात (बाल लिंग अनुपात) और भी कम 1000 पुरुषों पर 919 महिलाओं का हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि हमारा समाज बालिकाओं के साथ इतना बुरा व्यवहार करता है कि जन्म के कुछ ही समय के भीतर बहुत बड़ी संख्या में बालिकाओं की मृत्यु हो जाती है. छत्तीसगढ़ में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 991 महिलाओं का है और बाल लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 969 महिलाओं का है. महिलाओं के पक्ष में सबसे अच्छा लिंग अनुपात बस्तर ज़िले में 1024, दंतेवाड़ा में 1022, महासमुंद में 1018, राजनांदगांव में 1017, धमतरी में 1012, कांकेर में 1007, जशपुर में 1004 है. वहीं सबसे खराब लिंग अनुपात कोरिया में 971, कोरबा में 971, बिलासपुर में 972, सरगुजा में 976, बीजापुर में 982 और रायपुर में 983 है.
2011 की जगणना के अनुसार छत्तीसगढ में जिलेवार लिंग अनुपात निम्नानुसार है – कोरिया 971, सरगुजा 976, जशपुर 1004, रायगढ़ 993, कोरबा 971, जांजगीर-चांपा 986, बिलासपुर 972, कबीरधाम 997, राजनांदगांव 1017, दुर्ग 988, रायपुर 983, महासमुंद 1018, धमतरी 1004, कांकेर 1007, बस्तर 1024, नारायणपुर 998, दंतेवाड़ा 1022 और बीजापुर 982 है.
महत्वपूर्ण आंकड़े
- जनगणना 2011 में अनुसार छत्तीगसढ़ में पुरुष साक्षरता दर 80.27% एवं महिला साक्षरता दर 60.24% है.
- एन.एफ.एच.एस – 4 (2015-16) के अनुसार छत्तीसगढ़ में –
- केवल 21.7% महिलाओं को पूर्ण प्रसव पूर्व सेवाएं मिली हैं.
- 66.2% महिलाओं को जननी सुरक्षा योजना में सहायता मिली है.
- केवल 70.2% प्रसव स्वासथ्य केन्द्र या अस्पताल में हुए हैं और केवल 55.9% प्रसव ही सरकारी स्वासथ्य केन्द्र् अथवा अस्पताल में हुए हैं.
- 26.7% महिलाओं का बाडी मास इंडैक्स समान्य से कम है (18.5 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर से कम).
- 15 से 49 साल की आयु की 47% महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं, जबकि इस आयुवर्ग के 22.2% पुरुषों में भी खून की कमी है.
- केवल 36.8% महिलाओं को ही पिछले 1 वर्ष में रोज़गार के लिये नकद राशि का भुगतान मिला था.
- केवल 26.4% महिलाओं के पास ही अचल संपत्ति का अकेले अथवा संयुक्त रूप से मालिकाना हक था.
- केवल 47.1% महिलाएं ही मासिक धर्म के समय कोई सेनेटरी नेपकिन का उपयोग करती हैं.
- 36.7% महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है जो एन.एफ.एच.एस. – 3 के 29.9% की तुलना में 6.8% अधिक है. घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी चिंता का विषय है.
- नीति आयोग के डेटा के अनुसार मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की मातृ मृत्यु दर 2014-16 में 173 प्रति 1000 जन्म थी जो भारत की मातृ मृत्यु दर 130 प्रति 1000 जन्म की तुलना में बहुत अधिक है.
- आक्सपफेम व्दारा नवंबर 2017 में जारी दस्तावेज़ पालिसी ब्रीफ – जेंडर डेवलपमेंट इन छत्तीसगढ़ – सम पालिसी प्रिसक्रिप्शन्स के अनुसार छत्तीसगढ़ में महिलाओं के लिये बजट प्रावधान वर्ष 2015-16 में 9564 करोड़ रुपये था जो कुल बजट का 14.7% और ग्रास स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट का 3.7% था. वर्ष 2016-17 में यह बजट प्रावधान कम होकर 8498 करोड़ रुपये रह गया जो कुल बजट का 11.2% और ग्रास स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट का 2.9% है. इसी दस्तासवेज़ के अनुसार वर्ष 2015-16 में प्रावधानित राशि में से 31.5% का उपयोग नहीं हो सका.
महिला सशक्तीकरण के अंग
सामान्य रूप से महिला सशक्तीकरण के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के सशक्तीकरण आते हैं –
- सामाजिक सशक्तीकरण – महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान स्थान मिले और विकास के समान अवसर मिलें. परिवार में महत्वपूर्ण निर्णय महिलाओं की सहमति से लिये जाएं. इसके लिए सरकार ने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने की योजनाएं – जैसे सरस्वती साइकिल योजना, बालिकाओं के लिये नि:शुल्क शिक्षा की योजना आदि चलाए हैं. परिवार के भीतर हिंसा से संरक्षण के लिये भी विशेष अधिकारी तथा विशेष नयायालय बनाए गए हैं. समाज में महिलाओं के विरुध्द अपराधों पर नियंत्रण के लिये थानों मे विशेष व्यजवस्था की गई है और महिला थाने भी बनाए गए हैं. योन अपराधों के विरुध्द कड़ी सज़ा का प्रावधान किया गया है.
- शैक्षणिक सशक्तीकरण – शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं.
- आर्थिक सशक्तीकरण – महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें इसके लिये अनेक प्रयास किए जा हैं. स्व-रोज़गार के लिए प्रशिक्षण तथा कौशल विकास की योजनाएं हैं. स्वरोज़गार के लिये ऋण तथा अनुदान दिया जाता है. महिला स्व-सहायता समूहों के माध्ययम से भी स्वरोज़गार के अवसर निर्मित किए जाते हैं. छत्तीसगढ़ में आंगनबाडि़यों में पोषण आहार तथा स्कू्लों में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था महिला स्व–सहायता समूहों व्दारा की जा रही है. भूमि पट्टा आबंटन में पति एवं पत्नी दोनो का नाम लिखने का नियम बनाया गया है. राशन कार्ड में परिवार के मुखिया के रूप में पहिला का नाम अंकित करने का नियम बनाया गया है.
- राजनीतिक सशक्तीकरण – पंचायतों एवं नगरीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण किया गया है. शासकीय सेवा में भी महिलाओं के लिये 33% आरक्षण की व्यवस्था है.
महिला सशक्तीकरण के संबंध में संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता.
- अनुच्छेद 15 (1) – राज्य लिंग के आधार पर पर किसी नागरिक से विभेद नहीं करेगा.
- अनुच्छेद 15 (3) – राज्यव राज्य महिलाओं के पक्ष में विशेष प्रवधान कर सकेगा.
- अनुच्छेद 16 (2) – राज्य की सेवाओं में के साथ लिंग के आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा.
- अनुच्छेद 23 (1) – ह्यूमन ट्रैफिकिंग एवं बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध.
- अनुच्छेद 39 (क) – राज्य आजीविका के लिये महिलाओं एवं पुरुषों के लिये एक समान अधिकार सुनिश्चित करेगा.
- अनुच्छेद 39 (ङ) राज्य महिलाओं एवं पुरुषों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन सुनिश्चित करेगा.
- अनुच्छे्द 42 – राज्य कार्य और मातृत्व राहत की मानवीय स्थितियों के लिए प्रावधान करेगा.
- अनुच्छेनद 51-क(ङ) – महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागना भारत के हर नागरिक का कर्तव्य होगा.
- अनुच्छेद 243-घ(3) – पंचायतों के एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिये आरक्षित होंगे.
- अनुच्छेद 243-घ(4) – सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्षों के एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिये आरक्षित होंगे.
- अनुच्छेद 243-म(3) – नगरीय निकायों के सीधे निर्वाचन से भरे जाने वाले एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिये आरक्षित होंगे.
- अनुच्छेद 243-म(4) – नगरीय निकायों के अध्यक्षों के पदो पर महिलाओं के आरक्षण के लिये राज्यों की विधान सभाएं प्रवधान कर सकेंगी.
महिलाओं के संरक्षण के लिये अन्य विधिक प्रावधान
- मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 –
- कोई महिला प्रसव या गर्भपात के तुरन्त बाद छ: सप्ताह तक कार्य नहीं करेगी.
- महिला का हक और नियोक्ता का दायित्व कि औसत दैनिक मजदूरी की दर से प्रसव के दिन सहित छ: सप्ताह तक के लिए उसे मातृत्व लाभ का भुगतान किया जाएगा.
- उल्लंघन करने पर नियोक्ता को कारावास या जुर्माना दोनों हो सकता है.
- अधिनियम में हाल के संशोधन –
- दो बच्चों के लिए मातृत्व लाभ की सुविधा 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह और दो से अधिक बच्चों के लिए 12 सप्ताह.
- ‘कमिशनिंग मदर’ और ‘एडोप्टिंग मदर’ के लिए 12 सप्ताह का मातृत्व लाभ.
- घर से काम करने की सुविधा.
- 50 या उसके अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच का अनिवार्य प्रावधान.
- अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956
- गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम, 1971 (एमटीपी एक्ट)
- कन्या भ्रूण हत्या से जुड़े क़ानूनी प्रावधान –
- प्री-कॉन्सेप्शन और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (सेक्स चयन का निषेध) अधिनियम 1994 – (पी.सी.पी.एन.डी.टी. अधिनियम) – इस अधिनियम में लिंग परीक्षण प्रयोगशालाओं तथा अल्ट्रा साउंड मशीनों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है. अधिनियम के तहत निम्नलिखित कार्य प्रतिबंधित हैं –
- लिंग चयन या लिंग का पूर्व-निर्धारण की सेवा देने वाले विज्ञापनों का प्रकाशन;
- गर्भाधान-पूर्व या जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों वाले क्लीनिकों का पंजीकृत नहीं होना या क्लिनिक या संस्थान के भीतर सबको दिखाई देने वाले पंजीकरण प्रमाणपत्र को प्रदर्शित नहीं करना;
- अजन्मे बच्चे के लिंग का निर्धारण करना;
- गर्भवती को लिंग निर्धारण परीक्षण के लिए मजबूर करना;
- लिंग चयन की प्रक्रिया में सहयोग या सुविधा प्रदान करना;
- चिकित्सक व्दारा गर्भवती या अन्य व्यक्ति को अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में किसी भी तरह सूचित करना;
- पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत क्लीनिकों व्दारा अभिलेखों को भली-भांति सहेज कर नहीं रखना.
- भारतीय दंड संहिता –
- धारा 312 – ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’.
- धारा 314 – महिला की सहमति के बिना गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु.
- धारा 315 – मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी.
- धारा 316 – अजन्मे बच्चे की हत्या करना.
- धारा 317 – नवजात शिशु को त्याग देना
- धारा 318 – बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना
- कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 – जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है. ये अधिनियम विशाखा केस में दिये गये लगभग सभी दिशा-निर्देशों को धारण करता है और ये बहुत से अन्य प्रावधानों को भी निहित करता है जैसे: शिकायत समितियों को सबूत जुटाने में सिविल कोर्ट वाली शक्तियाँ प्रदान की है; यदि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने में असफल होता है तो उसे 50,000 रुपये से अधिक अर्थदंड भरना पड़ेगा, ये अधिनियम अपने क्षेत्र में गैर-संगठित क्षेत्रों जैसे ठेके के व्यवसाय में दैनिक मजदूरी वाले श्रमिक या घरों में काम करने वाली नौकरानियाँ या आयाएं आदि को भी शामिल करता है. हांलाकि, इस अधिनियम में कुछ कमियां भी है जैसे कि ये यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में नहीं रखता बस केवल नागरिक दोष माना जाता है जो सबसे मुख्य कमी है, जब पीड़िता इस कृत्य को अपराध के रुप में दर्ज करने की इच्छा रखती है तब ही केवल इसे एक अपराध के रुप में शिकायत दर्ज की जाती है, इसके साथ ही पीड़िता पर अपने वरिष्ठ पुरुष कर्मचारी द्वारा शिकायत वापस लेने के लिये दबाव डालने की भी संभावनाएं अधिक रहती है.
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961.
- महिला अश्लील प्रतिनिधित्व (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
- मुस्लिम विवाह का विघटन अधिनियम, 1939 –मुस्लिम पत्नी को विवाह के विघटन का अधिकार देता है.
- मुस्लिम महिलाएं (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986
- भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम (1872)
- हिन्दू विवाह अधिनियम – पति एवं पत्नी को विवाह एवं तलाक में एक समान अधिकार. एक से अधिक विवाह पर प्रतिबंध. तलाक की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से गुज़ारा भत्ता. पति की स्वअर्जित संपत्ति में हक.
- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम – पिता की संपत्ति में बेटी का अधिकार.
- पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984- पारिवारिक विवादों के शीघ्र निराकरण के लिये परिवार न्यायालयों की स्थापना के संबंध में.
- भारतीय दंड संहिता के कुछ अपराधों में विशेष प्रावधान
- बलात्कातर – बलात्कार केस में पीड़िता का नाम छुपाने का नियम, सुनवाई महिला जज व्दारा, पीड़िता का बयान महिला पुलिस अधिकारी व्दारा एवं महिला के परिजनों की मौजुदगी में, केस की सुनवाई 2 माह में पूरा करने का प्रयास. रेप के कुछ मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान.
- दहेज हत्या
- क्रूरता और उत्पीड़न
- दंड प्रक्रिया संहिता –रात में गिरफ्तार न न होने का अधिकार, धारा 125 – पति व्दारा गुजारा भत्ताा
- नि:शुल्क कानूनी सहायता
- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 महिला एवं पुरुष को समान कार्य के लिये समान वेतन.
- अन्य अधिनियम –
- खान अधिनियम, 1952 – 7 बजे शाम से 6 बजे सुबह तक महिलाओं का खानों एवं कारखानों में कार्य का प्रतिषेध.
- बंधुआ मजदूरी उन्मूनलन अधिनियम, 1976.
- भारतीय तलाक अधिनियम, 1869.
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872.
- हिन्दू गोद लेना एवं गुजारा अधिनियम, 1956.
राष्ट्रीय महिला आयोग
महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 (भारत सरकार की 1990 की अधिनियम सं. 20) के अंतर्गत जनवरी 1992 में संवैधानिक निकाय के रूप में निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए की गई थी:
- महिलाओं के लिए संवैधानिक और कानूनी संरक्षण की समीक्षा करना;
- सुधारात्मक वैधानिक उपायों की अनुशंसा;
- शिकायतों के सुधार की सुविधा प्रदान करना और
- महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत तथ्यों पर सरकार को सलाह देना
पहले आयोग का गठन 31 जनवरी 1992 को अध्यक्ष के रूप में श्रीमती जयंती पटनाइक के नेतृत्व में हुआ. दूसरे आयोग का गठन जुलाई 1992 को अध्यक्ष के रूप में डॉ. (श्रीमती) मोहिनी गिरी के नेतृत्व में हुआ. तीसरे आयोग का गठन जनवरी 1999 को अध्यक्ष के रूप में श्रीमती विभा पार्थसारथी के देखरेख में हुआ. चौथे आयोग को जनवरी 2002 में गठित किया गया और सरकार ने डॉ. पूर्णिमा आडवानी को अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया. पांचवें आयोग को फरवरी 2005 में गठित किया गया और सरकार ने डॉ. गिरिजा व्यास को अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया.
राष्ट्रीय महिला आयोग के अभी तक के कार्यों का लेखा-जोखा –
- महिलाओं और उनके सशक्तीकरण के मूल्यांकन के लिए ‘जेंडर प्रोफाइल’ तैयार किया.
- बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त की और अपनी ओर से अनेक मामलों में शीघ्रता से न्याय के काम किए
- बाल विवाह का मुद्दा उठाया.
- वैधानिक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया.
- पारिवारिक महिला लोक अदालतों की स्थापना और कानूनों जैसे दहेज निषेध अधिनियम 1990, PNDT अधिनियम 1994, इंडियन पैनल कोड 1860 और राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 की समीक्षा की ताकि उन्हें अधिक कठोर और प्रभावी बनाया जा सके.
- लैंगिक जागरूकता के लिए वर्कशॉप/सेमिनार का आयोजन और मादा भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति हिंसा, इत्यादि के खिलाफ जन अभियान चलाए ताकि इन सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध समाज में जागरूकता बन सके.
छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग
प्रदेश में महिलाओं को सशक्त बनाने महिलाओं के हितों की देखभाल व उनका संरक्षण करने महिलाओं के प्रति भेदभाव व्यवस्था को समाप्त करने, हर क्षेत्र में उन्हें विकास के सामान अवसर दिलाने एवं महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों, अपराधों पर त्वरित कार्यवाही करने के लिए छ.ग.राज्य महिला आयोग अधिनियम 1995 की धारा 03 के प्रावधानुसार राज्य महिला आयोग का गठन किया गया.
अधिनियम के प्रावधानानुसार आयोग में 01 अध्यक्ष एवं 06 सदस्य होंगे. इसके अतिरिक्त एक शासकीय अधिकारी भी होगा जो आयोग का सचिव होगा. अध्यक्ष एवं सदस्य का कार्यकाल 03 वर्ष का होगा. वर्तमान में राज्य महिला आयोग में मान. श्रीमती हर्षिता पाण्डेय अध्यक्ष एवं श्रीमती खिलेश्वरी किरण सदस्य है.
छ.ग. राज्य महिला आयोग के प्रमुख कार्य दायित्व निम्नानुसार हैं –
- महिलाओं के लिए संविधान तथा अन्य विनियमों के अधीन प्रावधानित संरक्षणों से संबंधित मामलों का अन्वेषण एवं परीक्षण करना.
- संविधान एवं अन्य विनियमों में महिलाओं के संरक्षण हेतु किये गये उपबंधों के उल्लंघन के मामलों कों प्राधिकारियों तक ले जाना.
- महिलाओं के संरक्षणों के कार्यान्वयन पर सरकार को प्रतिवेदन देना.
- महिलाओं के आर्थिक सामाजिक विकास की योजना तैयार करने की प्रक्रिया में भाग लेना.
- महिलाओं के ऐसे मुकदमों जो महिलाओं के बड़े समूह पर प्रभाव डालते है को धन देना.
- महिलाओं की आर्थिक, शैक्षणिक तथा स्वास्थ्य संबंधी स्थिति पर गहन अध्ययन करना.
- महिलाओं की कार्य स्थलों, महिला बंदीगृहों, महिला सुधार गृहो महिला आश्रय गृहों का निरीक्षण करना एवं स्थिति में सुधार हेतु सरकार को सिफारिश करना.
- महिलाओं के विरूद्ध अपराधों की यथा विवाह दहेज, बलात्कार, अपहरण, छेड़छाड़, अनैतिक व्यापार, प्रसव एवं नसबंदी के समय चिकित्सकीय उपेक्षा आदि पर जानकारी संकलित करना.
- शिकायतें प्राप्त करना:-
- महिलाओें पर अत्याचार एवं अपराध के विरूध्द
- न्यूनतम मजदूरी, प्राथमिक स्वास्थ्य, प्रसुति सुविधा से वंचित करने के विरूध्द
- महिलाओं के संबंध में राज्य सरकार के नीतिगत विनिश्यों का पालन न करने के संबंध में
- परित्यक्त एवं निराश्रित महिलाओं के पुनर्वास संबंधी शिकायतें
- महिलाओं को उनके अधिकारों एवं कानूनों के प्रति जानकारी प्रदान करना, संगोष्ठी सेमीनार, शिविर का आयोजन करना.
- मीडिया के विभिन्न माध्यमों से प्रकाशित होने वाले महिला उत्पीड़न की घटनाओं का स्वतः संज्ञान में लेना.
छत्तीसगढ़ में महिला सशक्तीकरण की योजनाएं
- एकीक्रत बाल विकास योजना – सन 1975 में लागू की गयी. वर्तमान में केद्र सरकार इस योजना का 90% खर्च वहन करती है बाकी का राज्य करते हैं. इस योजना का क्रियांवयन आंगनबाड़ी केन्द्रों व्दारा किया जाता है. योजना के अंतर्गत निम्नलिखित सेवाएं दी जाती हैं –
- टीकाकरण
- पूरक पोषण आहार – 0 से 6 साल के बच्चों को 300 दिन की अवधि के लिए पूरक पोषण आहार दिया जाता है जिसमें प्रतिदिन 500 कैलोरी ऊर्जा और 12 से 15 ग्राम प्रोटीन होता है. स्तनपान कराने वाली और गर्भवती महिलाओं को भी पूरक पोषण आहार दिया जाता है जिसमे 600 कैलोरी ऊर्जा और 18 से 20 ग्राम प्रोटीन होता है.
- नियमित स्वास्थ्य जांच
- रेफरल सेवा
- स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा
- पोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारी
- राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण योजना (सबला) – श्रीमती इंदिरा गांधी के जन्मदिवस 19 नवंबर 2010 से प्रारंभ. इसका उद्देश्य 11 से 18 आयु वर्ष की किशोरियों को निम्नलिखित सुविधाएं प्रदान करके सशक्त बनाना है: पोषण, आयरन एवं फोलिक एसिड प्रतिपूरक, स्वास्थ्य जांच तथा रेफरल सेवाएं, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, परिवार कल्याण पर परामर्श, गृह प्रबंधन. 16 वर्ष एवं इससे अधिक आयु की लड़कियों के लिए राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत व्यावसायिक प्रशिक्षण
- सुखद सहारा योजना – गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली 18-39 वर्ष आयुवर्ग की विधवा एवं 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के परित्यक्ता महिलाओं को 350 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाती है. स्वीक्रति के अधिकार जनपद पंचायत को हैं.
- महतारी जतन योजना – 3 मई 2016 को ग्राम सलगवाकला, कोरिया ज़िले से प्रारंभ. आंगनबाड़ी केन्द्रों में सप्ताह में 6 दिन गर्भवती महिलाओं को गर्म पौष्टिक भोजन दिया जाता है.
- मुख्यमंत्री राजश्री योजना – बिटिया के जन्म पर मिलेंगे 50 हजार रुपए.
यह राशि माँ के खाते में आएगी. बालिका जन्म के समय – 2,500 रुपये, बालिका के पहले जन्मदिन पर – 2,500 रुपये, पहली कक्षा में प्रवेश लेने पर – 4,000 रुपये, छठी कक्षा में प्रवेश लेने पर – 5,000 रुपये, 10 वी कक्षा में प्रवेश लेने पर – 11,000 रुपये और 12 वी कक्षा पास करने पर – 25,000/- रुपये मिलेंगे.
- महतारी एक्सप्रेस योजना – शिशुओं और गर्भवती माताओं को समय पर अस्पताल पहुंचाने और इलाज की जरूरी सुविधा दिलाने के लिये नि:शुल्क परिवहन की योजना.
- सुचिता योजना – इस योजना के तहत सरकार छत्तीसगढ़ सरकारी स्कूलों की छात्राओं को सैनिटरी नैपकिन प्रदान करेगी.
- संगवारी योजना – इस योजना के तहत महिलाओं को घर के काम, झाड़ू-पोछा, वाशिंग मशीन व वेक्यूम क्लीनर चलाना, फ्रिज साफ करना आदि सिखाया जाएगा. चयनित महिलाओं का पुलिस वेरिफिकेशन भी करवाया जाएगा. योजना के तहत प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद, नगर निगम एक टेलीफोन नंबर भी जारी करेगा. जरूरतमंद व्यक्ति के फोन करने पर उसके मकान के आसपास रहने वाली प्रशिक्षित बाई को अगले दिन ही भेज दिया जाएगा.
- मुख्ययमंत्री शिशु शक्ति एवं महतारी शक्ति आहार – रेडी टु ईट आहार के निर्माण का काम महिला स्व-सहायता समूहों को सौंपा गया है.
- आयुष्मती योजना – गरीब महिलाओं के अस्पताल में भर्ती होने पर एक सप्ताह तक भर्ती होने पर 400 रुपये इससे अधिक भर्ती होने पर 1000 रुपये की सहायता दी जाती है.
- मुख्यीमंत्री कन्यादान योजना – निर्धन परिवारों की कन्याओं के विवाह के लिये कुल 15000 रुपये (11500 रुपये की सामग्री तथा 3500 रुपये नकद) दी जाती है. यह योजना 18 वर्ष से अधिक आयु की अधिकतम 2 कन्याओं के विवाह के लिये है.
- सखी वन स्टाप सेंटर – महिलाओं के विरुध्द अपराधों की रोकथाम के लिये 2015 से संचालित. इसमें चिकित्सा, विधिक परामर्श, मनोवैज्ञानिक परामर्श आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. टोल फ्री नंबर के माध्यम से महिला हेल्प लाइन की व्यवस्था भी है. इसमें 5 बेड होते हैं और पीड़ित महिलाओं के 5 दिन तक रहने की व्यवस्था होती है. इससे अधिक की आवश्यकता होने पर महिला को नारी निकेतन आदि भेजा जा सकता है.
- बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना –यह भारत सरकार की योजना है जिसे लिंग विभेद मिटाने के उद्देश्य से 2015 में प्रारंभ किया गया. इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ में विभिन्न योजनाएं संचालित हैं –
- छत्तीसगढ़ नोनी सुरक्षा योजना – इस योजना के तहत 1 अप्रैल, 2014 के बाद पैदा हुई गरीबी रेखा से नीचे की लड़कियों को जन्म के समय 5000 रुपये तथा आगामी 5 वर्षों तक 5000 रुपये प्रतिवर्ष (कुल 25000 रुपये) प्रीमियम के रूप में दिये जाते हैं. 18 वर्ष तक विवाह न होने पर एवं 12वी तक की शिक्षा पूर्ण करने पर परिपक्वता पर 1 लाख रुपये की राशि दी जाती है.
- सुकन्या समृध्दि योजना – 22 जनवरी 2015 से लागू. कन्या के जन्म पर न्यूनतम 1000 रुपये से किसी भी बैंक अथवा पोस्ट आफिस में खाता खोला जा सकता है. 14 वर्षों तक राशि जमा करना आवश्यक है. अधिकतम 1.50 लाख रुपये तक जमा किए जा सकते हैं. 8 से 9 प्रतिशत ब्याज मिलता है. 21 वर्ष की आयु में परिपक्वता पर राशि आहरित कर सकते हैं.
- मुख्यमंत्री अमृत योजना – आंगनबाड़ी केन्द्र में 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को अप्रेल 2016 से 100 मिलीलिटर मीठा सुगंधित दूध प्रति सोमवार को दिया जाता है.
- प्रधान मंत्री मातृवंदन योजना – राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के अंतर्गत 1 जनवरी 2017 से पूरे देश में लागू. इसका उद्देश्य महिलाओं को कुपोषण से बचाना है. शासकीय सेवा में सेवारत महिलाओं को छोड़कर अन्य सभी गर्भवती एवं नवप्रसूता महिलाओं को 5000 रुपये की आर्थिक सहायता का प्रावधान है.
- उज्जवला योजना – 13 अगस्त 2016 से लागू. एस.ई.सी.सी. के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे के हितग्राहियों को मात्र 200 रुपये के अंशदान पर नि:शुल्क गैस कनेक्शन दिया जाता है. अभी तक छत्तीसगढ़ में 22 लाख कनेक्शन दिये जा चुके है.
- छत्तीसगढ़ महिला कोष –
- महिला स्व-सहायता समूहों को आसान शर्तों पर ऋण उपलव्ध कराने के लिये 2003 से संचालित. महिला स्व–सहायता समूह को उनकी बचत राशि का 10 गुना तक एवं अधिकतम 50000 रुपये का ऋण मात्र 3 प्रतिशत ब्याज पर दिया जाता है. एक बार ऋण वापस करने पर 2 लाख रुपये तक का ऋण दिया जा सकता है.
- सक्षम योजना – 2009-10 में प्रारंभ. महिला कोष व्दारा 35 से 45 वर्ष की विधवा, परित्यक्ता महिलाओं को 1 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराया जाता है.
- स्वावलंबन योजना – 2009-10 में प्रारंभ. स्व-रोज़गार के लिये महिलाओं को प्रशिक्षण देने की योजना.