Preparation for Public Service Commission Competitive Examination

लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी

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अन्य पिछड़ा वर्ग का विकास

संविधान का अनुच्छेद 340 – पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति (1) राष्ट्रिपति भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं के और जिन कठिनाइयों को वे झेल रहे हैं उनके अन्वेषण के लिए और उन कठिनाइयों को दूर करने और उनकी दशा को सुधारने के लिये संघ या किसी राज्य व्दारा जो उपाय किये जाने चाहिए और उनके बारे में और उस प्रयोजन के लिये संघ या किसी राज्य व्दारा जो अनुदान किये जाने चाहिये और जिन शर्तों के अधीन वे अनुदान किये जाने चाहिये उनके बारे में सिफारिश करने के लिये, आदेश व्दारा एक आयोग नियुक्त कर सकेगा जो ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनेगा जो वह ठीक समझे और ऐसे आयोग को नियुक्त करने वाले आदेश में आयोग व्दारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जायेगी.

(2) इस प्रकार नियुक्त आयोग अपने को निर्देशित विषयों का अन्वेषण करेगा और राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा जिसमें उसके व्दारा पाए गए तथ्य उपवर्णित किए जाएंगे और जिसमें ऐसी सिफारिशें की जाएंगी जिन्हें आयोग उचित समझे.

(3) राष्ट्रपति इस प्रकार दिए गए प्रतिवेदन की एक प्रति, उसपर की गई कार्रवाई को स्पएष्ट करने वाले ज्ञापन के सहित, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा.

काका कालेलकर आयोग जनवरी 1953 में सरकार ने पहला पिछड़ा वर्ग आयोग समाजसेवी काका कालेलकर की अध्यक्षता में बनाया था. इस आयोग ने आपनी रिपोर्ट मार्च 1955 में दे दी थी. इस आयोग ने 2399 पिछड़ी जातियों एवं समूहों की सूची बनाई थी और उनमें से 837 को अति पिछड़ा बताया था. इनकी रि‍पोर्ट पर कोई कार्यावाही नही हुई.

मंडल आयोग इस अनुच्छेद के अंतर्गत वर्ष 1978 में जनता पार्टी के शासन काल में तत्कालीन प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई व्दारा बिहार के पूर्व मुख्यनमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में मंडल आयोग का गठन किया गया था. मंडल आयोग को जिम्मेदारी दी गई थी कि वह पिछड़े वर्गों की पहचान करे और इन वर्गों के उत्थान के उपाय सुझाये. मंडल आयोग ने सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिये मापदंड निर्धारित किए. मंडल आयोग ने अपनी रिपार्ट 31 दिसंबर 1980 को दी. 7 अगस्त 1990 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लोक सभा में घोषणा की कि सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. इस रिपोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की गई थी. मंडल आयोग ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अतिरिक्त‍ अन्य पिछड़ा वर्गों की जनसंख्या का आंकलन कुल जनसंख्या का लगभग 54% किया था और 3743 समुदायों को पिछड़ा वर्ग निरूपित किया था. प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह व्दारा 13 अगस्त 1990 को अन्य पिछड़ा वर्गों के लिये सरकारी सेवाओं में 27% आरक्षण करने के लिये कार्यालयीन ज्ञाप जारी किया गया.

सर्वोच्च न्यायालय की बार एसोसिएशन ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये भारत सरकार व्दारा जारी आरक्षण आदेश को चुनोती देते हुए एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की. सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 1 अक्टूबर 1990 को सरकार के आदेश पर स्थगन लगा दिया. इस बीच जनता पार्टी की सरकार गिर गई.

श्री नरसिंह राव के प्रधान मंत्री बनने पर सरकार ने आरक्षण आदेश में दो महत्वपूर्ण संशोधन किए –

  1. अन्य पिछड़ा वर्ग को दिये जाने वाले 27% आरक्षण में आर्थिक मापदंड शामिल किये.
  2. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये 10% अतिरिक्त आरक्षण की व्यवस्था की. इस प्रकार इन वर्गों के लिये कुल आरक्षण बढ़कर 37% हो गया.

इस बीच सर्वोच्च न्यायालय की 5 जजों की बेंच ने मामला 9 जजों की संविधान पीठ को सौप दिया. इस केस WP(C) 930/1990 को सामान्यतय: इंदिरा सहानी केस के नाम से जाना जाता है. प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि –

  1. अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक नहीं है और ऐसा आरक्षण कार्यपालिका के आदेश व्दारा किया जा सकता है.
  2. मलाईदार परत (Creamy Layer) को अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं दिया जा सकता.
  3. कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता.
  4. पदोन्नति में आरक्षण नहीं होगा.

मलाईदार परत क्या है इन शब्दों का प्रयोग सवप्रथम 1971 में बनाई गई सत्तनाथन आयोग ने किया था. परन्तु इसे ठीक प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा सहानी प्रकरण में परिभाषित किया. मलाईदार परत की पहचान के लिये एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई जिसने अपनी रिपोर्ट 10 मार्च 1993 को दी. यह रि‍पोर्ट सरकार ने 8 सितंबर 1993 को स्वीकार कर ली. 1993 में ही एक स्थाई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई.

वर्तमान में मलाईदार परत में शामिल होने के कारण निम्नलिखित श्रेणी के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है –

  1. संवैधानिक पदों पर आसीन व्याक्ति
  2. उच्च न्यायालयीन सेवा तथा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के जज
  3. सरकार के लोक उपक्रमों ग्रुप ए एवं बी के कर्मचारी
  4. केंद्र एवं राज्य सरकारों के ग्रुप ए एवं बी के कर्मचारी
  5. कनर्ल रेंक के ऊपर के सशस्त्र सेनाओं एवं अर्धसैनिक बलों के कर्मचारी
  6. वे लोग जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक है (1993 में यह आय सीमा 1 लाख रुपये थी. 2004 में इसे बढ़ाकर 2.5 लाख, अक्टूबर 2008 में 4.5 लाख, मई 2013 में 6 लाख और सितंबर 2017 में 8 लाख किया गया)

मलाईदार परत की अवधारणा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर लागू नहीं होती है. वर्तमान में केन्द्र सरकार के सेवाओं में अनुसूचित जातियों के लिये 15%, अनुसूचित जनजातियों के लिये 7.5% तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27% इस प्रकार कुल 49.5% आरक्षण है.

विभिन्न मंत्रालयों की जानकारी के अनुसार 1 जनवरी 2014 की स्थिति में केन्द्रीय सेवाओं में अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व 17.35%, अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व 8.38% एवं अन्य पिछडा वर्ग का प्रतिनिधित्व 19.28% है. वर्तमान मे शैक्षणिक संस्थाओं में भी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण है.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन (123वां संशोधन) विधेयक, 2017 हाल ही मे संसद ने पारित कर दिया है. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होंगे. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें एवं पदावधि राष्ट्रपति तय करेंगे. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी. आयोग पिछड़े वर्गों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए भी सरकार को सलाह देगा. आयोग को संविधान के अधीन सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए उपबंधित सुरक्षा उपाय से संबंधी मामलों की जांच और निगरानी करने का अधिकार होगा. 1993 में गठित पिछड़ा वर्ग आयोग अभी तक सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल करने या पहले से शामिल जातियों को सूची से बाहर करने का काम करता था. इस विधेयक के पारित होने के बाद संवैधानिक दर्जा मिलने की वजह से संविधान में अनुच्छेद 342 (क) जोड़कर प्रस्तावित आयोग को सिविल न्यायालय के समकक्ष अधिकार दिये जा सकेंगे. इससे आयोग को पिछड़े वर्गों की शिकायतों का निवारण करने का अधिकार मिल जायेगा.

छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग

  1. 2006 के एन.एस.एस.ओ. डेटा के अनुसार छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 41.1% है.
  2. राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अनुसार छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की 67 जातियां एवं अनेक उपजातियां हैं.
  3. छत्तीसगढ़ में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन जनवरी 2007 में किया गया है. इस आयोग का कार्य अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों की सतत पहचान करना, जाति प्रमाणपत्रों की जांच करना, अन्य पिछड़ा वर्ग को शासकीय सुविधाओं का लाभ सुनिश्चित करने के लिये सुझाव देना है. इसके अध्यक्ष डा. सियाराम साहू हैं.

अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु छत्तीसगढ़ शासन की प्रमुख योजनाएं

शिक्षा की योजनाऐं

  1. राज्य छात्रवृत्ति - कक्षा 6वीं से 10वीं तक की कक्षाओं अध्ययनरत पिछडे वर्ग के विद्यार्थियों को शिक्षण वर्ष के माह जून से मार्च तक 10 माह हेतु राज्य छात्रवृत्ति दी जाती है. पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को जिनके पालक‍ आयकर दाता न हो या जिनके पास 10 एकड़ से कम कृषि भूमि हो उन्हें राज्य छात्रवृत्ति की पात्रता है.
  2. मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति - पिछडे वर्ग के ऐसे विद्यार्थी जिनके पालक की वार्षिक आय 1 लाख तक हो उन्हें इस छात्रवृत्ति की पात्रता है.

सामाजिक एवं आर्थिक सहायता की योजनाएं

  1. स्वरोज़गार मूलक वित्तीय सहायता योजना - पिछड़े वर्ग एवं अल्प संख्य्कों के लिये ऋण सुविधायें - पिछड़ा वर्ग एवं अल्प संख्यक वित्त विकास निगम द्वारा आरक्षित वर्ग के लोगों को व्यवसाय हेतु ऋण एवं अनुदान प्रदान किया जाता है. गरीबी एवं दुगुनी गरीबी रेखा के अंतर्गत आने वाले लोगों को आटो रिक्शा, रेडिमेड दुकान, कार वर्क शाप, आटो स्पेयर पार्टस आदि विभिन्न योजनाओं के लिए 80 प्रतिशत ऋण दिया जाता है.
  2. नि:शुल्क व्यावसायिक पशिक्षण - छ.ग. राज्य के अंतव्यवसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम के माध्यम से व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों पर पिछड़े वर्ग के युवक युवतियों को विभिन्न व्यावसायों में नि:शुल्क प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है.

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