क्र. | केन्द्रीय अधिनियम में प्रावधान | राज्य शासन व्दारा किये गये प्रावधान |
1. | प्रत्येक पंचायत पर अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानों का आरक्षण उस पंचायत में उस समुदायों की जनसंख्या के अनुपात में होगा, जिनके लिये संविधान के भाग-9 के अधीन आरक्षण दिया जाना चाहा गया है.
परंतु अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगी,
परन्तु अनुसूचित जनजातियों के अध्यक्षों के सभी स्थान सभी स्तरों पर अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित होंगे.
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छ.ग. पंचायत राज (व्दिसतीय संशोधन) अधिनियम 1997 के अध्याय-14 क अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिये विशिष्ट उपबंध की धारा 129-ड में निम्न प्रावधान रखे गये है-
अनुसूचित क्षेत्रों में प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये स्थान का आरक्षण उस पंचायत में उनकी अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में होगा.
परन्तु अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षण स्थानों की कुल संख्या के आधे से कम नहीं होगा.
परंतु यह और भी कि अनुसूचित क्षेत्रों में सभी स्तरों पर पंचायतों के यथा स्थिति सरपंच या अध्यक्ष के समस्त स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिये आरक्षित रहेंगे.
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2. | राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित जनजातियों के व्यक्तियों का जिनका मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में प्रतिनिधित्व नहीं है, नाम निर्देशन कर सकेगी,
परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दसवें भाग से अधिक नहीं होगा. |
छ.ग. पंचायत राज (द्वितीय संशोधन) अधिनियम 1997 के अध्याय-14 क अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिये विशिष्ट उपबंध की कंडिका 129-ड (2) एवं (3) में निम्न प्रावधान रखे गये है-
1. राज्य सरकार ऐसी अनुसूचित
जनजातियों के व्यक्तियों को नाम निर्दिष्ट कर सकेगी जिनका अनुसूचित क्षेत्रों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में या अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर पंचायत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है,
परंतु ऐसा नाम निर्देशन उस पंचायत में निर्वाचित किये जाने वाले कुल सदस्यों के दशमांश से अधिक नहीं होगा.
2. अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत में अन्य पिछड़े वर्गो के व्यक्तियों के लिये ऐसी संख्या में स्थान आरक्षित किये जायेंगे जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों यदि कोई हो के लिये आरक्षित स्थानों के साथ मिलकर उस पंचायत के समस्त स्थानों के तीन चैथाई स्थानों से अधिक नहीं होंगे.
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3. | ग्राम सभा या समुचित स्तर पर पंचायतों से विकास परियोजनाओं के लिये अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन करने से पूर्व और अनुसूचित क्षेत्रों में ऐसी परियोजनाओं व्दारा प्रभावित व्यक्तियों को पुर्नव्यवस्थापित या पुनर्वास करने से पूर्व परामर्श किया जायेगा,
अनुसूचित क्षेत्रों मे परियोजनाओं की वास्तविक योजना और उनका कार्यन्वयन राज्य स्तर पर समन्वित किया जायेगा. |
इसके लिए राज्य की पुनर्वास नीति में प्रावधान किया गया है. |
4. | अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के अन्य संक्रमण के निवारण की ओर किसी अनुसूचित जनजाति की किसी विधि विरूध्द तथा अन्य संक्रामित भूमि को प्रत्यावर्तित करने के लिये उपयुक्त कार्रवाई करने की शक्ति |
उक्त प्रावधान के प्रकाश में छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 में दिनांक 05.01.98 को संहिता की धारा-170-ख में संशोधन किया गया है। संशोधन व्दारा उक्त धारा में एक नई उपधारा (2-क) जोड़ी गई है, जो निम्नानुसार हैः-
(2-क) यदि कोई ग्राम सभा संविधान के अनुच्छेद 244 के खंड (1) में विनिर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्र में यह पाती है कि आदिम जाति के सदस्य से भिन्न कोई व्यक्ति आदिम जाति के भू-स्वामी की भूमि के कब्जे में बिना किसी विधिपूर्ण प्राधिकार के है, तो वह ऐसी भूमि का कब्जा उस व्यक्ति को प्रत्यावर्तित करेगी जिसकी कि वह मूलतः थी और यदि उस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उसके विधिक वारिस को प्रत्यावर्तित करेगी.
परंतु यदि ग्राम सभा ऐसी भूमि का कब्जा प्रत्यावर्तित करने में असफल रहती है, तो वह मामला उपखंड अधिकारी की ओर निर्दिष्ट करेगी जो ऐसी भूमि का कब्जा निर्देश की प्राप्ति की तारीख से तीन मास के भीतर प्रत्यावर्तित करेगा.
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