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भारत में निर्धनता और बेराज़गारी
निर्धनता
गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा (poverty line) आय के उस स्तर को कहते हैं जिससे कम आमदनी होने पे इंसान अपनी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ होता है। गरीबी रेखा अलग अलग देशों में अलग अलग होती है। उदहारण के लिये अमरीका में निर्धनता रेखा भारत में मान्य निर्धनता रेखा से काफी ऊपर है।
विश्व बैंक के अनुसार निर्धनता रेखा -विश्व बैंक के अनुसार विकसित देशों के लिये निर्धनता रेखा 2 डालर प्रति व्यक्ति प्रति दिन है जबकि अल्पविकसित एवं विकासशील देशों के लिये 1.25 डालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है.
योजना आयोग कार्यदल के अनुसार निर्धनता रेखा – योजना अयोग के कार्यदल ने पोषण के लिये प्रतिदिन की ऊर्जा आवश्यकता के आधार पर निर्धनता को परिभाषित किया था. उनके अनुसार शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रतिदिन भोजन में होना आवश्यक है. जिन परिवारों की आय इसके लिये पर्याप्त नहीं है वे निर्धन हैं.
लकड़ावाला समिति के अनुसार निर्धनता – वर्ष 1989 में योजना आयोग में डी.टी. लकड़ावाला की अध्यक्षता में पुन: एक कार्यदल का गठन किया गया. इस कार्यदल ने प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग निर्धनता रेखा बनाई और इसके लिये शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया.
1990 में पुन: कैलेरी को निर्धनता की गणना का आधार बनाया गया.
सुरेश तेंदुलकर समिति – इस समिति ने कैलोरी के स्थान पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को आधार बनाया. समिति ने शहरी क्षेत्र में 1000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (33 रुपये प्रति दिन) और ग्रामीण क्षेत्र के लिये 816 रुपये प्रति माह (27 रुपये प्रति दिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीब बताया.
डा. सी. रंगराजन समिति – 2012 में योजना आयोग व्दारा गठित इस समिति ने शहरी क्षेत्र में 1407 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (47 रुपये प्रति दिन) और ग्रामीण क्षेत्र के लिये 972 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह (32 रुपये प्रति दिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीब बताया. इस समिति के अनुसार 2011-12 में भारत में गरीबों की जनसंख्या 29.5 प्रतिशत थी. सबसे अधिक गरीबी वाले राज्य थे – छत्तीसगढ़ – 47.9 प्रतिशत, मणिपुर – 46.7 प्रतिशत और ओडिशा – 45.9 प्रतिशत.
सबसे कम गरीबों का अनुपात गोवा में हैं तथा गरीबों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और उसके बाद बिहार में है.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.) सामान्य याददाश्त अवधि (30 दिन) के भीतर सभी वस्तुओं पर खर्च तथा मिश्रित याददाश्त अवधि (365 दिन) में 5 अखाद्य वस्तुतओं – वस्त्र, जूते-चप्पल, टिकाऊ वस्तुएं, चिकित्सा और शिक्षा पर खर्च को गरीबी के सर्वेक्षण का आधार बनाया.
इसके अनुसार भारत में गरीबी के आंकड़े निम्नानुसार हैं –
सर्वेक्षण वर्ष | भारत | ग्रामीण | शहरी |
2004-2005 | 37.2% | 42% | 25.5% |
2009-2010 | 29.8% | 33.8% | 20.9% |
2011-2012 | 21.95 | 25.7% | 13.7% |
महत्वपूर्ण अवधारणाएं
गरीबी का दुष्चक्र – रेगनर नर्क्से ने कहा है गरीबी का मुख्य कारण पूंजी निर्माण का न होना है. गरीबी के कारण बचत कम हेाती है और पूंजीगत निवेश कम होता है. कम निवेश के कारण उत्पादकता कम रहती है जिससे गरीबी और बढ़ती है. इसे ही गरीबी का दुष्चक्र कहते हैं.
लोरेंज़ वक्र
यह किसी देश में असमानता को नापने का ग्राफ है. इसमें कुटुंबों का प्रतिशत एक्स अक्ष पर तथा आय में हिस्सेसदारी का प्रतिशत वाय अक्ष पर रखा जाता है.
गिनी गुणांक – गिनी गुणांक लारेंज़ वक्र पर आधारित हैं. समाज में आय एवं संपत्ति की असामनता का माप है. यदि गिनी गुणांक 0 है तो समाज में सभी व्यक्तियों की आय समान है. इसके विपरीत यदि गिनी गुणांक 1 है तो इसका तात्पर्य है कि सारी आय कुछ व्यक्तियों के पास केन्द्रित है.
निर्धनता अनुपात – जनसंख्या का वह भाग जो गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करता है
निर्धनता जाल (पावर्टी ट्रेप) जब सामाजिक सुरक्षा पेंशन, विधवा पेंशन, बेरोज़गारी भत्ता. आदि पाने वाला व्यक्ति रोज़गार की तलाश ही बंद कर देता है क्योंकि रोजगार से मिलने वाली मजदूरी सामाजिक सुरक्षा अनुदान से भी कम होती है.
फिलिप्स वक्र
फिलिप्स वक्र का इस्तेमाल बेरोजगारी की दर व मुद्रास्फीति की दर के बीच संबंध बताने के लिए ब्रितानी अर्थशास्त्री ए.डब्ल्यू. फिलिप्स ने किया. फिलिप्स वक्र की परिभाषा के अनुसार बेरोजगारी की दर व मुद्रास्फीति की दर के बीच विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है. इस विपरीत सम्बन्ध का अभिप्राय एक उन्नतक्रम विधि से होता है, जिसमें बेरोजगारी कम करने के लिए मुद्रा स्फीति की अपेक्षाकृत अधिक दर के रूप में कीमत चुकानी पड़ती है तथा मुद्रास्फीति की दर को कम करने के लिए बेरोजगारी की अपेक्षाकृत ऊंची दर के रूप में कीमत अदा करनी होती है.
भारत में निर्धनता के प्रमुख कारण – अशिक्षा, बेरोज़गारी, अधिक बीमारी, जनसंख्या का दबाव, कम विकास दर, मुद्रास्फिति की उच्च दर, अपर्याप्त पूंजी, कौशल का अभाव, उच्च प्रौद्योगिकी का अभाव, अधोसंरचानाओं का अभाव.
निर्धनता के प्रभाव – निरक्षरता, कुपोषण बीमारियां, बाल श्रम, बेरोज़गारी, सामाजिक चिंता, घर की समस्या -फुटपाथ, सड़क के किनारे, दूसरी खुली जगहें, एक कमरे में एक-साथ कई लोगों का रहना, लैंगिक असमानता, अपराधो का बढ़ना, सामाजिक एवं राजनीतिक घर्षण, आदि.
निर्धनता दूर करने के उपाय – शिक्षा का प्रसार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, जनसंख्या पर नियंत्रण के उपाय, रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना, महंगाई पर नियंत्रण रखना, कौशल का विकास, उच्च, प्रौद्योगिकी का उपयोग, कृषि क्षेत्र का विकास, गरीबों के लिये विशेष गरीबी उन्मू्लन कार्यक्रम, गरीबों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास, पिछड़ों पर विशेष ध्यान देना, आदि.
गरीबी पर विश्व बैंक की रिपोर्ट 2015 – रिपोर्ट का शीर्षक है अत्यधिक गरीबी का खात्मा, और समृध्दि में साझेदारी. गरीबी रेखा के पुराने पैमाने 1.25 डालर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आय को बदलकर 1.9 डालर (पी.पी.पी.) किया गया. विश्व में 9.6 प्रतिशत जनसंख्या (70.2 करोड़) गरीब है. भारत में 12.4 प्रतिशत लोग गरीब हैं जो दुनिया में सबसे अधिक हैं. सन् 2030 तक गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य है.
बेरोज़गारी
बेरोजगारी की समस्या विकसित और विकासशील दोनों देशों में पाई जाती है. प्रसिध्द अर्थशास्त्री कीन्स बेरोजगारी को किसी भी समस्या से बड़ी समस्या मानता था. इसी कारण वह कहता था कि यदि किसी देश के पास बेरोजगारों से करवाने के लिए कोई भी काम ना हो तो उनसे सिर्फ गड्डे खुदवाकर उन्हें भरवाना चाहिए ऐसा करवाने से बेरोजगार लोग भले ही कोई उत्पादक कार्य न करें लेकिन वे अनुत्पादक कार्यों में संलिप्त नही होंगे और देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बनी रहेगी.
बेरोजगार किसे कहते हैं –
बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है.
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है.
विकासशील देशों में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है-
- मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है. कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बोवाई, कटाई आदि कार्यों के समय तो रोजगार मिलता है लेकिन जैसे ही कृषि कार्य ख़त्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते हैं.
- प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment): प्रच्छन्न बेरोजगारी उस बेरोजगारी को कहते हैं जिसमे कुछ लोगों की उत्पादकता शून्य होती है अर्थात यदि इन लोगों को उस काम में से हटा भी लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई अंतर नही आएगा. जैसे यदि किसी फैक्ट्री में 100 जूतों का निर्माण 10 लोग कर रहे हैं और यदि इसमें से 3 लोग बाहर निकाल दिए जाएँ तो भी 100 जूतों का निर्माण हो जाये तो इन हटाये गए 3 लोगों को प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार कहा जायेगा. भारत की कृषि में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है.
- संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment): संरचनात्मक बेरोजगारी तब प्रकट होती है जब बाजार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है. उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है. इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है.
विकसित देशों में इन दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है-
- चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है. जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरुरत होती है जिसके कारण बेरोजगारी बढती है.
- प्रतिरोधात्मक या घर्षण जनित बेरोजगारी (Frictional Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर किसी दूसरे रोजगार में जाता है, तो दोनों रोजगारों के बीच की अवधि में वह बेरोजगार हो सकता है, या ऐसा हो सकता है कि नयी टेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार से निकलकर या निकाल दिए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो, तो पुरानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवधि की बेरोजगारी को घर्षणजनित बेरोजगारी कहते हैं.
बेरोजगारी के अन्य प्रकार इस प्रकार हैं-
- ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नही है अर्थात वह ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नही रही है इस कारण वह बेरोजगार है.
- खुली या अनैच्छिक बेरोजगारी (Open or Involuntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है लेकिन फिर भी उसे काम नही मिल रहा है तो उसे अनैच्छिक बेरोजगार कहा जायेगा
- अल्प रोज़गार: इसमें ऐस श्रमिक आते हैं जिन्हे थोड़ा बहुत काम मिलता है परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं मिलता.
- तकनीकी बेराज़गारी: आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने के कारण निर्मित हुई बेरोज़गारी. जब उद्योग में आधुनिक तकनीक एवं प्राद्योगिक का उपयोग किया जाता है तो मानव श्रम की आवश्यता कम हो जाती है जिससे बेरोज़गारी उत्पन्न होती है.
- शिक्षित बेरोज़गारी: शिक्षा के अनुसार काम न मिलना. ऐसा देखा जा रहा है कि चपरासी की नौकरी के लिये एम.ए. पास लोग भी आवेदन कर रहे हैं.
बेरोज़गारी का मापन - भारत में बेरोज़गारी का मापन NSSO व्दारा किया जाता है. इसकी 3 विधियां हैं –
- समान्य स्थिति (U.S.) – इसमें वर्ष को 2 भागों में बांटा जाता है – व्यरस्त भाग एवं सुस्त भाग. यदि किसी व्यक्ति को व्यस्त भाग में भी काम न मिले तो उसे बेरोज़गार माना जाता है.
- प्रचलित साप्ताहिक स्थिति (C.W.S.) – किसी संदर्भित सप्ताह में यदि किसी को एक घंटे का काम भी न मिले को उसे बेरोज़गार माना जाता है.
- प्रचलित दैनिक स्थिति (C.D.S.) – यदि किसी व्यक्ति को एक दिन में चार घंटे का रोज़गार उपलब्ध हो तो उसे आधे दिन का और इससे अधिक रोज़गार उपलब्ध होने पर उसे पूरे दिन का रोज़गार माना जाता है. यह सबसे उपयुक्त विधि है.
वर्ष 2011-12 के दौरान श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 3.8% हैं. देश के विभिन्न राज्यों में गुजरात में बेरोजगारी दर सबसे कम 1% है, जबकि दिल्ली एवं महाराष्ट्र में 4.8% एवं 2.8% है. सार्वधिक बेरोज़गारी दर वाले राज्य केरल और पश्चिम बंगाल थे. इस सर्वे के अनुसार, देश की महिलाओं की अनुमानित बेरोज़गारी दर 7% थी.
बेरोज़गारी की दर - बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या को 100 से गुणा करके कुल श्रम शक्ति से भाग देने पर बेरोज़गारी की दर प्राप्त होती है.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी नवीनतम वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक रिपोर्ट में वर्ष 2017 तथा 2018 में भारत में बेरोजगारी दर में 3.5 प्रतिशत तक की वृद्धि का अनुमान लगाया है। पहले इसके 3.4% तक रहने का अनुमान लगाया गया था।
भारतीय संदर्भ
- बेरोज़गारों की संख्या 17.8 मिलियन की बजाय 18.3 मिलियन तक रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है.
- प्रतिशत के संदर्भ में ILO ने सभी तीन वर्षों 2017, 2018 और 2019 के लिये भारत में बेरोज़गारी दर 3.5% पर स्थिर रहने का अनुमान लगाया है.
- एशिया पैसिफिक क्षेत्र में 2017 से 2019 के दौरान 23 मिलियन नई नौकरियाँ सृजित होंगी और भारत सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नए रोज़गार सृजित होंगे किंतु पूरे क्षेत्र में बेरोज़गारों की संख्या बढ़ेगी.