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यादों के लिहाफ़

जो अगर लिहाफ़ यादों के बिका करते यहाँ,
बदल देती मैं उन्हे हर बार मैला होने पर.

चिलमनों की आड़ में से झाँकते चेहरे यहाँ,
बेनकाब हो ही जाते हैं उतैला होने पर.

किसको है यह इल्म कि कब कौन गुज़रा यहाँ से,
दीख पड़ते हैं निशां मन के अकेला होने पर.

यह नहीं है सत्य कि सबको समानता मिले,
छोड़ देते हैं सभी फल के कसैला होने पर.

कौन किसका साथ देता है यहाँ संसार में,
साया भी अपना नहीं दिखता अंधेरा होने पर.

प्राण और ऊर्जा भी छोड़ जाते हैं शरीर,
चल पड़े हम भी ‘अणिमा’ थैला खाली होने पर.

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