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ताबूतों के तख्त

पीछे से सब घात लगाए बैठे हैं,
और हाथी के दांत लगाए बैठे हैं.

ढोलक और मंजीरे बेंच दिए सारे,
घुँघरू की दूकान सजाये बैठे हैं...

कागज के फूलों में इत्र की खुशबू भर,
बागीचे... गुलाब सजाये बैठे हैं.

दुल्हन संग बाराती सारे भाग गए,
दूल्हे क्यों सेहरे सजाये बैठे हैं.

अब देखो मुरदों की शामत आई है,
ताबूतों के तख्त बनाये बैठे हैं.

शील और शराफत छोड़ी संतों ने,
अपराधी आश्रम बनाये बैठे हैं.

यहाँ हारती दिखती है जनता सारी,
प्रजातंत्र की... आस लगाये बैठे हैं.

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