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एतमाद

हमें किसी से गिला नहीं है हमें अकेला ही छोड़ दो तुम,
ना दूर होगी यह फिक्र उलझन, हमें परीशां ही छोड़ दो तुम.

जो टीस दी है अहले जहां ने, वो कम ना होगी खलिश हमारी,
जिन राहों पे हम चले मुसलसल, वो जानते हैं यह बात सारी...

तक़दीर को हम ताबीर समझे, इस गलत-फहमी को तोड़ दो तुम,
तन्हाई हमको है रास आती, अकेला जीने को छोड़ दो तुम.

ना मेरा माज़ी ना ही मुस्तक़बिल, तुम्हारे हाथों... बदल सकेगा.
क्यों खेलते हो मेरी अना से, क्या इससे हासिल कुछ हो सकेगा?

जिसे मेरी बेकसी समझते, वो मेरी ताकत सलाहियत है,
नही है जन्नत की मुझको ख्वाहिश, मुझे है मालूम खुदा यहीं है.

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