ज्ञान की पाती

विश्व पेपर बैग दिवस (12 जुलाई)

रचनाकार - चानी ऐरी

क्या आपको पता है कि प्रतिवर्ष 12 जुलाई को विश्व पेपर बैग दिवस मनाया जाता है ? आइए इस दिवस और पेपर बैग के बारे में कुछ और जानते हैं.हम सभी को यह बात पता है कि प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से हमारी पृथ्वी के पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है. प्लास्टिक के स्थान पर पेपर बैग का उपयोग करना पृथ्वी के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि पेपर बैग बायोडिग्रेडेबल और इको फ्रेंडली हैं. उपयोग के पश्चात पेपर बैग आसानी से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए विघटित हो जाते हैं जबकि प्लास्टिक सैकड़ों वर्षों तक विघटित नहीं होता और पृथ्वी को रासायनिक रूप से नुकसान पहुँचाता है. पेपर बैग का पुन: चक्रण भी आसानी से संभव है.

प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद आज सभी जगह कागज के बने बैग का चलन फिर से शुरु हुआ है. इनके उपयोग से काफी हद तक प्रदूषण को भी रोका जा सकता है.

आइए, आपको पेपर बैग के इतिहास के बारे में बताते हैं. 1852 में एक अमेरिकी आविष्कारक फ्रांसिस वोले ने पेपर बैग बनाने की पहली मशीन की स्थापना की थी. इनके बाद 1871 में, मार्गरेट ई नाइट ने एक और मशीन डिजाइन की, जो फ्लैट-बॉटम पेपर बैग का उत्पादन कर सकती थी. वह मशीन बहुत प्रसिद्ध हुई और 'किराना बैग की माँ' (The mother of grocery bag) के रूप में जानी जाने लगी. 1883 में, चार्ल्स स्टिलवेल ने एक और ऐसी मशीन का आविष्कार किया, जो वर्ग-तल वाले कागज के थैलों का उत्पादन कर सकती थी, ऐसे बैग में घिरे हुए किनारों को मोड़ना और संग्रहीत करना आसान होता है. 1912 में, वाल्टर डबनेर ने कागज के थैलों को सुदृढ़ करने और ले जाने वाले हैंडल को जोड़ने के लिए कॉर्ड का उपयोग किया. बाद के वर्षों में कई और आविष्कारकों ने पेपर बैग के उत्पादन की तकनीक में सुधार किया.

पेपर बैग का उपयोग करने से पर्यावरण को अनेक लाभ होते हैं. सबसे पहला लाभ यह है कि पेपर बैग इको फ्रेंडली हैं, ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं. यह बायोडिग्रेडेबल होते है अर्थात आसानी से नष्ट हो जाते हैं और विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन नहीं करते हैं.पेपर बैग साधारण से लेकर सुंदर रंगीन और प्रिंटेड भी हो सकते हैं..पेपर बैग अक्षय संसाधनों से बने हैं, इसलिए इनका आसानी से दोबारा उपयोग किया जा सकता है. फलों सब्जियों की खरीददारी,गिफ्ट बैग के रुप में,आर्ट एंड क्राफ

पेपर बैग को घर पर ही खाद के रुप में कंपोजर में कंपोस्ट किया जा सकता है. तो देखा आपने, पेपर बैग कितना महत्वपूर्ण और उपयोगी है. हम स्वयं प्लास्टिक बैग के स्थान पर पेपर बैग का उपयोग करने का संकल्प लेकर और अपने घर, शाला, बाजार में भी प्लास्टिक के इस्तेमाल को बंद करने का संदेश देकर पृथ्वी के पर्यावरण की रक्षा करने में अपना योगदान दे सकते है

चन्द्रमा की रोचक जानकारियाँ

लेखक - राम नारायण प्रधान

चन्द्रमा पृथ्वी का एक मात्र प्राकृतिक उपग्रह है. यह हमारे सौरमंडल का पाँचवा विशाल उपग्रह है.

चंद्रमा पर जल और वायुमंडल दोनों नही हैं.

चन्द्रमा में स्वयं का प्रकाश नहीं होता है, यह सूर्य के प्रकाश से चमकता है.

चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का 1/6 (छठा भाग) है.

समुद्र में आने वाला ज्वार-भाटा चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण ही आता है.

चंद्रमा पर दिन का तापमान लगभग 107अंश सेंटीग्रेड एवं रात का तापमान लगभग -137 अंश सेंटीग्रेड होता है.

चन्द्रमा की सतह बहुत उबड़-खाबड़ है और मोटी धूल की परत आच्छादित है.

निम्न भाग को चन्द्रमा का समुद्र (लूनर मेरिया ) कहा जाता है.

यहाँ समुद्र और ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं.

चन्द्रमा के समुद्रों का नाम इस प्रकार है – सी ऑफ़ ट्रेंक्विलिटी, सी ऑफ़ सेरीनीटी, सी ऑफ़ स्मार्मस, सी ऑफ़ टेनस,सी ऑफ़ क्लाइड्स.

पर्वतों के नाम है –आल्पस, अपेनाइन,कार्पेनाईन आदि.

सबसे ऊँची चोटी वाला पहाड़ है लिबनिट्ज जिसकी ऊँचाई 10,660 मीटर है.

चन्द्रमा पर 600 से अधिक ज्वालामुखी है सबसे बड़े ज्वालामुखी का नाम 'बेली 'है.

पृथ्वी की ओर दिखने वाले भाग में चन्द्रमा के 28 समुद्र, 19 पर्वत, और 11 पर्वत चोटियों नामकरण किया गया है.

चन्द्रमा का आकार दीर्घ वृत्ताकार है.

चंद्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान का 0.0123 गुना, और आयतन पृथ्वी के आयतन का 0.0203 गुना है.

पृथ्वी से चन्द्रमा की दुरी 3,84,365 कि.मी. है.

चंद्रमा की अक्षीय गति 2287 कि. मी. / घंटा है एवं व्यास 3476 कि.मी. है.

चन्द्रमा को पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट और 11.47 सेकेण्ड लगते है.

पृथ्वी को अपने अक्ष में एक चक्कर लगाने में 24 घंटे लगते है जबकि चंद्रमा को 27दिन 7 घंटे 43 मिनट तथा 11.47 सेकेण्ड लगते है अर्थात चंद्रमा के आधे भाग में 14 दिनों तक दिन और 14 दिनों तक रात होती है.

चन्द्रमा की कक्षीय दूरी पृथ्वी के व्यास की 30 गुना है.

हम पृथ्वी से चन्द्रमा के जिस भाग को देखते है वही भाग हमेशा दिखता है और उसी स्थिति को बनाये रखते हुए चन्द्रमा पृथ्वी का पूरा चक्कर लगता है.

चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.3 सेकेण्ड का समय लगता है.

हिंदी महीने चैत्र, वैसाख आदि चन्द्रमा के गति पर निर्धारित होते हैं. कृष्ण पक्ष से हिन्दी माह का प्रारंभ होता है.

चन्द्रमा का आकार पूर्णिमा से अमावस्या तक क्रमशः घटता जाता है. अमावस्या को एक पक्ष समाप्त होता है उस रात और शुक्ल पक्ष की प्रथम रात को चाँद दिखाई नहीं देता है.

शुक्ल पक्ष की दुसरी रात को चाँद बहुत पतला दिखाई देता है. यह शाम को पश्चिम दिशा में अंतिम छोर पर दिखाई देता है और रात को शीघ्र अस्त हो जाता है. इसे दूज का चाँद / ईद का चाँद कहते है.

इसके बाद प्रत्येक रात क्रमशः बढ़ते हुए पूर्णिमा की रात को पूरा चाँद दिखाई देता है.

चन्द्रमा की स्थिति अपने अक्ष पर गति करते हुए इस प्रकार होती है कि हम प्रति रात बदलते आकार को पृथ्वी से देख पाते है.

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है.

चन्द्रमा का अध्ययन करने वाले विज्ञान को selenology कहा जाता है.

20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 यान से नील आर्मस्ट्रांग एवं एडविन एल्ड्रिन चंद्रमा के सतह पर उतरे थे.

इन दोनों ने 90 मी. घूमकर 20 कि.ग्रा. चट्टानों का नमूना एकत्र किया और चंद्रमा पर 2 घंटे 30 मिनट का समय बिता कर वापस लौट आए.

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) के चन्द्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत 2008 में चंद्रयान 1 एवं 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान 2 का प्रक्षेपण कर इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया हैं..

कैसे बनता है इंद्रधनुष??

लेखक - शेफाली श्रीवास्तव, भुसावल (महाराष्ट्र)

इन दिनों बारिश का मौसम चल रहा है और बारिश के दिनों में अक्सर हमें इंतजार रहता है कि किसी दिन आकाश में इंद्रधनुष दिख जाए तो मजा आ जाए.

आपने भी देखा होगा कि, बारिश के बाद जब धूप निकलती है तो आसमान में इंद्रधनुष दिखने लगता है. इंद्रधनुष एक ऐसा प्राकृतिक दृश्य है जिसे कभी न कभी हर किसी ने देखा ही होगा. इंद्रधनुष बारिश के बाद दिखाई देने वाला प्रकृति का एक अनूठा नज़ारा होता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इंद्रधनूष बनता क्यों है और बनता कैसे है ? चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं.

आसमान में रेनबो यानी इंद्रधनुष का बनना बारिश की छोटी छोटी बूंदों का कमाल होता है. इंद्रधनुष कैसें बनता है यह समझने के लिए हमें पहले प्रकाश के गुण को समझना होगा.

हम रोज ही सूरज का सफेद प्रकाश देखते हैं पर क्या आपको पता है कि सूर्य का प्रकाश कई रंगो से मिलकर बना होता है. सूर्य के प्रकाश में मुख्य रुप से सात रंग मौजूद होते हैं - बैंगनी,जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल, जिसे संक्षेप में 'बैजानीहपीनाला ' कहते हैं.

आपने अपने स्कूल में प्रिज्म देखा होगा यदि आप अपने विज्ञान के शिक्षक से कहेंगे तो वो आपको प्रिज़्म जरूर दिखा सकते हैं. प्रिज्म काँच की एक त्रिकोण आकार की आकृति होती है. प्रिज्म की एक सतह पर जब सफेद प्रकाश डाला जाता है तो वह प्रकाश प्रिज्म के दूसरी ओर सात रँगों में बँट कर निकलता है. आप खुद भी प्रिज्म से यह प्रयोग कर सकते हैं.

अब वापस आते हैं इंद्रधनुष पर!

सूरज की किरणें जब बारिश के समय पानी की बूँदों से गुज़रती है तो पानी की बूँदें प्रिज्म की तरह काम करती हैं और सूरज की किरणें सात रंगों मे बिखर जाती हैं. जिसे हम इंद्रधनुष के रुप में देख पाते हैं. आपने ध्यान दिया होगा कि इंद्रधनुष हमेशा सूर्य की विपरीत दिशा में दिखाई देता है. अगर आप चाहें तो एक छोटा सा प्रयोग करके अपने घर पर ही छोटा सा इंद्रधनुष बना सकते हैं. इसके लिए आपको बस तीन चीज़ों की आवश्यकता होगी :- एक बर्तन में पानी, दर्पण और सूरज की रोशनी. आइए देखें कि प्रयोग कैसे करना है.

एक बर्तन में पानी ले लीजिए और उस बर्तन में दर्पण को रख दीजिये. दर्पण का थोड़ा हिस्सा पानी में डूबा होना चाहिए और बाकी हिस्सा पानी के बाहर होना चाहिए. अब इस बर्तन को आप ऐसी जगह रखिए जहां सूरज का प्रकाश दर्पण पर पडे और फिर दर्पण से परावर्तित होकर दीवार या किसी भी सतह पर पड़े. इसके लिए आपको दर्पण का कोण अच्छी तरह से निश्चित करना होगा. अगर आपने दर्पण सही तरह से रख लिया तो आपको खुद का बनाया इंद्रधनुष जरूर दिखेगा. इस तरह से कोई भी अपने घर में इंद्रधनुष बना सकता है यह इंद्रधनुष आप अपनी हथेली पर भी देख सकते हैं वो भी बिना बारिश के. है न मजेदार बात.

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