अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

उस दिन बहादुर अपनी माँ के साथ घर की साफ सफाई में लगा हुआ था. दीवारों पर और छप्पर के नीचे मकड़ी ने जाले बना लिए थे.

एक लंबी छड़ी में झाड़ू बांधकर वह जाले निकालने की कोशिश कर रहा था.

अचानक उसने देखा, छप्पर और दीवार के बीच की खाली जगह में बहुत सा घास - फूस जमा हो गया है. उसने अपनी झाड़ू से घास-फूस के ढेर को दूसरी ओर आँगन में गिरा दिया. तभी अचानक उसे चिड़ियों की तेज चहचहाहट सुनाई दी. उसने खिड़की से झांक कर बाहर देखा.

घास-फूस का जो ढेर बाहर गिरा था वह दरअसल चिड़ियों का घोंसला था. चिड़ियों के दो छोटे-छोटे बच्चे भी घोंसले के साथ गिर पड़े थे. उन बच्चों के पंख तो निकल आए थे पर वे उड़ नहीं पा रहे थे. बच्चों के साथ की दोनों चिड़ियाँ बच्चों की माँ और पिताजी थे उन दोनों ने चीख - चीख कर आसमान सर पर उठा लिया था. वे दोनों मजबूर थे. अपने बच्चों को उठाकर कहीं ले जा नहीं सकते थे

यह दृश्य देखकर बहादुर का मन दुःख और पश्चाताप से भर गया.

टेकराम ध्रुव 'दिनेश' व्दारा पूरी की गई कहानी

बसेरा

बहादुर ने गिरे हुए घोंसले के पास जाकर देखा कि ऊँचाई से गिरने के कारण चिड़िया के बच्चों को थोड़ी चोट लग गई है. उनके शरीर में खरोंच के निशान दिख रहे थे. अनजाने में हुई इस घटना से बहादुर का मन दुःख और पश्चाताप से भर गया. उसने दोनों बच्चों को घोंसले सहित घर के अंदर लाकर एक टोकरी में कपड़े का बिछौना बनाकर रख दिया. चोटग्रस्त स्थान पर दवा लगाकर उन्हें छोड़ दिया. बहादुर ने टोकरी के पास थोड़े-से चावल भी रख दिए. बच्चों के माता- पिता अभी तक चीख- चीख कर आसमान सर पर उठाए हुए थे पर थोड़ी देर में वे शांत हो गए

अब बहादुर ने टोकरी को खिड़की के पास रख दिया,पास ही कटोरियो में चावल के दाने और पानी भी रख दिए.

अब चिड़ियों के बच्चों और उनके माता पिता का डर खत्म हो गया था और वे बहादुर के दोस्त बन गए.

बहादुर को खेलने के लिए चिड़ियों के रूप में नए दोस्त मिल गए. वह रोज उनके साथ खेला करता. कुछ दिनों बाद जब एक सुबह बहादुर टोकरी के पास गया तो उसने देखा कि चिड़िया और उनके बच्चे वहाँ नहीं है, वह समझ गया कि वे उड़ गए हैं. बहादुर अब भी रोज सुबह उसी खिड़की के पास चावल के दाने व पानी रखता है. रोज़ कई चिड़ियाँ आतीं हैं और दाना चुगकर उड जाती हैं. रोज सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से घर गूँज उठता है. बहादुर को बहुत सारी चिड़ियाँ अब दोस्त के रूप में मिल गई हैं.

प्रियंका सिंह व्दारा पूरी की गई कहानी

पश्चाताप

बहादुर की मां उसे देखकर समझ गईं कि वह बहुत दुखी है. उन्होंने बहादुर को अपने पास बुलाया और प्यार से कहा - बेटा तुमने जानबूझकर चिड़ियों का घोंसला नहीं तोड़ा है, अब हमें यह सोचना है कि हम कैसे इनकी मदद कर सकते हैं.

बहादुर ने कुछ देर सोचा फिर घोंसले को सावधानी से उठा कर आंगन में लगे नीबू के पेड़ पर रख दिया. पहले तो चिड़ियों ने डरकर बहुत शोर मचाया परंतु फिर उन्हें एहसास हो गया कि अब वे सुरक्षित हैं.. इन दिनों बहादुर के स्कूल की छुट्टियाँ चल रहीं थीं. अब चिड़ियों के बच्चों के साथ खेलना बहादुर का रोज का काम हो गया.

बच्चों के माँ बाप भी निश्चिंत होकर भोजन की तलाश में बाहर चले जाते. बहादुर चिडियों के उन बच्चों के साथ खेलता और उन्हें दाना भी खिलाता. अब चिड़िया के बच्चे बड़े होने लगे थे. उनके पंख थोड़े और बढ़ गए थे. अब बच्चे खुद आँगन में उड़ने की कोशिश करने लगे थे. बहादुर को आभास होने लगा था, कि अब वे ज्यादा दिन उसके साथ नहीं रहेंगे. यह सोचकर वह दुखी हो जाता. बहादुर ने उन बच्चों के साथ अपनी ढेर सारी फोटो भी लेकर अपने पास संभाल कर रख ली. एक दिन बहादुर आँगन में बैठा था तभी चिड़िया और उनके बच्चे आकर उसकी गोद में बैठ गए और चहकने लगे. बहादुर को ऐसा लगा जैसे कि वे उसे धन्यवाद दे रहे हों और जाने की अनुमति मांग रहे हों. उसने प्यार से उन्हें उठाया सहलाया और कहा, अलविदा दोस्तों.

वे सभी उड़ गए वह उन्हें देखता रहा. उनके जाने से बहादुर बहुत दुखी हो गया. तब माँ ने उसे समझाया कि तुमने तो उनकी जान बचाई है वे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे. और वे तुमसे मिलने जरूर आएँगे. तुम उनके लिए रोज खाना और पानी रखा करना. बहादुर ने वैसा ही किया फिर क्या था. तोता मैना, कबूतर, गौरैया, कोयल कौवा सभी तरह के पक्षी छत पर आने लगे, और बहादुर को बहुत सारे दोस्त मिल गए.

संतोष कुमार कौशिक व्दारा पूरी की गई कहानी

बहादुर का प्रायश्चित

यह दृश्य देखकर बहादुर का मन दुःख और पश्चाताप से भर गया. वह सोचने लगा कि अनजाने में चिडियों का घोंसला गिराकर उसने जो गलती की है उसके प्रायश्चित के लिए चिडियो की मदद करनी चाहिए. बहादुर ने यह सोचकर दोनों बच्चों को प्यार से उठाया और उन्हें घर के अंदर ले आया. उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था कर दी. बहादुर अब प्रतिदिन परिवार के सदस्यों की तरह उसका ध्यान रखने लगा. बहादुर की माँ भी उन बच्चों का ध्यान रखतीं. कुछ दिनों बाद चिड़िया के दोनों बच्चे बड़े हो गए और उनके पंख भी मजबूत हो गए, अब वे बच्चे उड़ने के लिए तैयार हो रहे थे.

बच्चों के माता पिता प्रतिदिन उन्हें उड़ने का अभ्यास करवाने लगे थे और बहादुर उन्हें उड़ता देखकर खुश होता. थोड़े दिनों में वे दोनों बच्चे उड़ना सीख गए. फिर एक दिन वह चिड़ियाँ परिवार सहित बहादुर के घर से उडकर चली गईं.

बहादुर अपने घर के आँगन में अब भी चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखता है जिससे कई अन्य चिड़ियाँ भी वहाँ दाना चुगने आने लगीं हैं. बहादुर इन चिड़ियों को देखकर बहुत खुश रहता है.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

फटी कमीज़

उस दिन खेलकूद के कालखंड में दसवीं और ग्यारहवीं कक्षा के बच्चों के बीच कबड्डी का मैच चल रहा था. दसवीं की टीम कुछ कमजोर पड़ रही थी. ऐसे में इस टीम के दीपक के पैर में अचानक मोच आ गई. दीपक बहुत अच्छा खेल रहा था.

अब सवाल था उसकी जगह किसे लिया जाए.

दसवीं के सारे बच्चे चिल्लाने लगे, 'आनंद... आनंद...'

आनंद डरकर पीछे हो गया. पर उसके साथी उसका हाथ पकड़कर उसे खींचने लगे. आनंद प्रतिरोध करता रहा. इस खींचतान में अचानक चर्रऽऽऽऽऽऽ की आवाज़ के साथ आनंद की कमीज़ बांह से फट गई.

एकाएक सभी सहम गए. उनके हाथ ढीले पड़ गए. आनंद ने गर्दन घुमाकर अपनी कमीज़ देखी. उसकी आंखें डबडबा गईं. उसे हमेशा इसी बात का डर रहता था कि खेलते हुए कहीं कपड़े न फट जाएं. और आज वही हो गया. उसने किसी से कुछ न कहा,अपना बस्ता उठा सर झुकाए मैदान से बाहर निकल गया.

घर लौटते हुए उसे लग रहा था कि ये रास्ता कभी खत्म न हो.

पिताजी के गुज़र जाने के बाद एक बरस में ही घर की दशा बहुत खराब हो चुकी थी. आय का कोई साधन न था. जरूरतों ने एक - एक कर मां के गहने बिकवा दिए थे. कुछ खरीदने की कल्पना करना भी मुश्किल था. ऐसे में आज उसकी ये कमीज़ फट गई.

उसकी आंखों में मां का उदास चेहरा घूम रहा था. उसने तय कर लिया कि मां को इसका पता न चलने देगा.

घर पहुंचते ही उसने अपनी कमीज़ उतारी और तह लगाकर बस्ते में ही रख लिया.

अब इसके बाद क्या हुआ होगा, इसकी आप कल्पना कीजिए और कहानी पूरी कर हमें ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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