चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

एक छोटी सी लड़की

एक बार श्याम नामक एक आदमी रामचंद्र ढाबे पर खाना खाने गया. वहाँ उसने देखा कि ढाबे पर एक छोटी सी लड़की काम कर रही है. श्याम ने उस लड़की को प्यार से बुलाया. लड़की डरी सहमी सी श्याम के पास आकर बोली हाँ साहब!बताइए,श्याम ने कहा-तुम्हें पहले कभी इस ढाबे पर नहीं देखा था. तुम कहाँ रहती हो,क्या नाम है? लड़की ने बताया -मेरा नाम गीता है.पास के गाँव में रहती हूँ'. पिताजी बीमार हैं, वह काम नहीं कर सकते.हम लोग जीवन निर्वाह करने के लिए यहाँ काम करते हैं, माँ भी इसी ढाबे में बर्तन साफ करती हैं. हम दोनों को ढाबे में काम करना बिल्कुल पसंद नहीं. बच्ची की बात सुनकर श्याम सोचने लगा कि इस छोटी बच्ची में कितनी हिम्मत है. पढ़ने और खेलने कूदने की उम्र में यह अपनी माँ के साथ ढाबे पर काम कर रही है. श्याम ने खाना खाकर गीता को चुपचाप दो सौ रुपये दिए. लेकिन उसने श्याम से रुपये लेने से मना कर दिया और कहा कि साहब! मैं यह नहीं ले सकती. यदि आपको मेरी सहायता करनी ही है तो आप मेरी माँ को कहीं अच्छी जगह काम दिलवा दो क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता कि मेरी माँ और मैं ढाबे पर बर्तन माँजते हैं. मजबूरी में ही काम कर रही हूँ. इस वजह से मेरा स्कूल भी छूट गया है. मुझे पढ़ाई करने का बहुत मन करता है मगर मैं अब कभी नहीं पढ़ पाऊॅ॑गी. यह कहकर वह लड़की अपने काम पर लग गई. उसकी मजबूरी सुनकर श्याम बेचैन हो गया और वहाँ से चला गया. रात को भी श्याम बार-बार उस छोटी लड़की के बारे में सोच रहा था. अगले दिन श्याम ने अपनी कंपनी में मालिक से बात करके उस छोटी लड़की गीता की माँ के लिए एक काम ढूँढ लिया और वह ढाबे पर पहुँच गया. श्याम ने देखा कि ढाबे वाला लड़की को किसी बात पर डाँट रहा था. श्याम ने वहाँ पहुँच कर ढाबे वाले को समझाइश दी कि गीता को न डाँटे और न ही उससे मजदूरी कराए नहीं तो छोटे बच्चे से काम करवाने के जुर्म में कानून का सहारा लेना पड़ेगा. ढाबेवाला श्याम की बात सुनकर डर गया. श्याम ने गीता के सिर पर हाथ रख कर कहा कि मैंने तुम्हारी माँ के लिए एक कंपनी में अच्छा काम ढूँढ लिया है. अब तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं है. श्याम की यह बात सुनकर वह लड़की बहुत खुश गई. अपनी माँ को बुलाकर सारी बात बताई. उसकी माँ श्याम के पास आकर उनके आगे हाथ जोड़कर कहने लगी कि साहब!आपका यह एहसान हम कैसे चुकाएँगे? श्याम ने लड़की की माँ से कहा कि बहनजी आप मेरा एहसान अगर चुकाना चाहती है तो आप गीता को जरुर पढ़ाना और खूब आगे बढ़ाना. मेरी यही इच्छा है कि हर बच्चा पढ़े लिखे,आगे बढ़े और बचपन में किसी भी बच्चे को कभी काम न करना पड़े. माँ ने अपने गाँव के शिक्षक से मिलकर गीता को स्कूल में दर्ज कराया.अब गीता मन लगाकर स्कूल में पढ़ाई करने लगी.

प्रीतम कुमार साहू द्वारा भेजी गई कहानी

मास्टर जी शहर से गाँव आ रहे थे. उनकी नजर एक ढाबे पर पड़ी जहाँ कुछ लोग चाय पी रहे थे और एक छोटा बच्चा कप प्लेट साफ कर रहा था. मास्टर जी ने ढाबे के मालिक रामचन्द्र से बच्चे के बारे में जानना चाहा तो राम चन्द्र ने कहा, बच्चे का नाम अंकित हैं उम्र दस साल, इसके मम्मी-पापा नहीं हैं. अंकित यहीं रहकर काम करता है.

मास्टर जी रामचन्द्र को स्कूल में मिलने वाली सुविधाओं नि:शुल्क शिक्षा, निःशुल्क गणवेश, नि:शुल्क पुस्तकें और मध्याह्न भोजन के बारे में बता कर अंकित को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं. रामचन्द्र मास्टर जी के बातों से सहमत हो गया और अगले दिन से अंकित स्कूल जाने लगा.

अंकित पढ़ाई से दूर था उसेअक्षर ज्ञान तक नही था. पर अंकित पढ़ने लिखने का रोज अभ्यास करता और ढाबे में भी काम करता. अपने अभ्यास के बल पर अंकित लिखना पढ़ना सीख गया और धीरे-धीरे उच्च शिक्षा प्राप्त कर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगा.

एक दिन ऐसा भी समय आया कि अंकित ने जिस स्कूल में पढ़ाई की थी उसी स्कूल में शिक्षक बन कर आया. अंकित बच्चों को खूब पढाता और खूब स्नेह देता.

अंकित के शिक्षक बन जाने पर रामचन्द्र अब अंकित पर गर्व करने लगा. रामचन्द्र की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होने लगा.

रामचन्द्र ने अपने ढाबे को बन्द कर नि:शुल्क व आवासीय शिक्षा के लिए विद्यालय बनाने की घोषणा की.

अंकित ने इस विद्यालय का नाम रामचन्द्र विद्यालय रखा. अंकित अब आस-पास के बेसहारा, अनाथ व गरीब बच्चों को नि:शुल्क व आवासीय शिक्षा देने की दिशा में काम करने लगा.

अंकित का यह सराहनीय प्रयास शिक्षा से वंचित हो रहे बेसहारा, अनाथ व गरीब बच्चों के लिए एक वरदान साबित हुआ.

वाणी मसीह द्वारा भेजी गई कहानी

मैं सुबह-सुबह अपने ऑफिस के लिए निकलता था, रास्ते में रामचंद्र ढाबा मिलता, जहाँ भोजन, चाय मिलती थी. आते जाते लोग वहाँ भोजन करते,चाय पीते थे. मैं जब भी वहाँ से गुजरता तो देखता कि एक छोटा बच्चा ढाबे में बर्तन धोता रहता था, कभी लोगों को खाना परोसता रहता, कभी झाड़ू लगाता या टेबल- कुर्सी को साफ करता रहता था. एक दिन मैं रामचंद्र ढाबा गया और चाय ऑर्डर किया. चाय लेकर वही छोटा बच्चा आया.

मैंने उसका नाम पूछा. उसने अपना नाम रामू बताया.

मैंने पूछा कहाँ रहते हो? उसने इशारे से बताया. मैं समझ गया था कि बच्चा हकलाकर बोलता था. और इसलिए लोगों से बात करने से शर्माता था.

मैंने पूछा कि तुम स्कूल क्यों नहीं जाते? यहाँ क्यों काम करते हो? बच्चे ने बताया कि उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसके कारण मुझे काम करना पड़ता है और मुझे लगता है कि मैं स्कूल जाऊँगा और अटक अटक कर बोलूँगा तो सब मेरी हँसी उड़ाएँगे.

मैंने बच्चे को समझाया कि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो हकलाकर बोलते हैं, तुम तो बोल भी सकते हो, कुछ लोग तो जन्म से ही गूँगे होते हैं, कुछ भी नहीं बोल सकते हैं. कोई तुम पर नहीं हँसेगा,अपने आप पर विश्वास रखना चाहिए और स्वयं को इस लायक बनाना चाहिए कि लोग तुम्हारी बातें सुनने के लिए तुम्हारे पास आएँ. इसके लिए तुम्हें स्कूल जाना पड़ेगा, शिक्षा प्राप्त करनी होगी और अपना ज्ञान बढ़ाना होगा.

मैंने पूछा क्या तुम पढ़ना चाहते हो बच्चे ने मुस्कुराकर हाँ कहा. मैंने कहा कि पास ही मेरा घर है और तुम्हें मैं रोज शाम के समय पढ़ाया करूँगा, पुस्तकें और कॉपी पेंसिल मैं ले आऊँगा तुम सिर्फ पढ़ाई करने आना और तुम्हारा दाखिला मैं पास के ही स्कूल में करा दूँगा जहाँ तुम पढ़ाई करोगे. यह सब रामचंद्र ढाबे का मालिक सुन रहा था उसने भी मुझसे कहा कि बहुत अच्छा है सर आपने रामू के लिए बहुत अच्छा सोचा है. मैं भी आपके इस फैसले से खुश हूँ और रामू से कहा- रामू तुम रोज शाम को सर के पास पढ़ने जाना, तुम्हारा दाखिला स्कूल में हो जाएगा तो तुम रोज स्कूल जाना और अच्छे से पढ़ाई करना. स्कूल में कोई भी तुम्हें परेशान नहीं करेगा बल्कि अच्छे शिक्षक और दोस्त मिलेंगे, जो तुम्हारी पढ़ाई में सहायता करेंगे. तुम सुबह 2 घंटे ढाबे में आकर काम करना फिर स्कूल चले जाया करना क्योंकि तुम्हारा पढ़ाई करना बहुत आवश्यक है. आज के समय में शिक्षित व्यक्ति ही सभी कार्यों को सही ढँग से कर सकता है और अपना और दूसरों का जीवन सुंदर बना सकता है. रामू आज बहुत खुश था कि अब वह स्कूल जाएगा और पढ़ाई करेगा रामू के चेहरे से खुशी छलक रही थी.

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा भेजी गई कहानी

हर रोज की तरह आज भी आर्यन और अयांश सुबह–सुबह टहलते हुए रामचंद्र के ढाबे पर पहुँचे. दोनों ने चाय का आर्डर दिया तभी उन्होंने देखा कि एक लगभग चौदह वर्ष का बच्चा कप-प्लेट धो रहा था. यह देख आर्यन ने चाय वाले से पूछा `भाई ये क्या हो रहा है ढाबे में? आप नियम- कानून को दरकिनार कर बाल मजदूरी करवाकर बच्चों का शोषण कर रहे हैं इस बच्चे की पढने -लिखने की उम्र में आप इससे मजदूरी करवा रहे हो. क्या यह सही है? आप पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए. यह सुनकर ढाबेवाले ने अपनी गलती स्वीकार कर ली. और उस अनाथ पप्पू का एडमिशन पास के सरकारी बालक हॉस्टल में कराने का वादा किया. अगले दिन ही पप्पू का एडमिशन हो गया. आर्यन अयांश ने पप्पू के लिए कापी-किताब ड्रेस आदि की व्यवस्था करने मे मदद भी की. पप्पू मेहनत से अपनी पढाई -लिखाई करने लगा. उसकी लगन और आर्यन की मदद से पप्पू के जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गई.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

अब आप दिए गये चित्र को देखकर कल्पना कीजिए और कहानी लिख कर हमें यूनिकोड फॉण्ट में टंकित कर ई मेलkilolmagazine@gmail.com पर अगले माह की 15 तारीख तक भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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