लेख

हमारे पौराणिक पात्र- आयुर्विज्ञानी वाग्भट्ट

प्राचीन आचार्यो में आचार्य आत्रेय, आचार्य सुश्रुत और आचार्य वाग्भट्ट, ये तीनो 'वृद्धत्रयी' के नाम से विख्यात है. इन आचार्यों के ग्रन्थ वर्तमान में भी आयुर्वेद का अध्ययन करने वालों द्वारा विषय की पाठ्य-पुस्तक के रूप में पढे जाते हैं. आचार्य वाग्भट्ट के जन्म काल आदि के विषय में कोई विस्तृत अथवा अधिकृत विवरण प्राप्त नहीं होता. परंतु ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म, सिन्धु नदी के तटवर्ती किसी जनपद में हुआ था.

उनके पिता सिंहगुप्त वैदिक ब्राह्मण थे, पर उनके अध्यापक अवलोकिता बौद्ध धर्म के अनुयायी थे इसलिए वाग्भट्ट के जीवन व कृतित्व पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव था. वाग्भट्ट पर बौद्ध धर्म का प्रभाव इस बात से और स्पष्ट होता है कि उन्होंने 'अष्टांग हृदय संहिता' के प्रारंभ में बौद्ध प्रार्थना लिखी.

'अष्टांग हृदय' और 'अष्टांग हृदय संहिता' वाग्भट्ट के दो प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ आज भी पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रयुक्त होते है. आज भी वैद्य समाज इन ग्रंथो को अपनी चिकित्सा का आधार बनाते हैं.

अष्टांग हृदय संहिता' ग्रन्थ के प्रथम भाग में वाग्भट ने प्राचीन औषधियाँ, अध्येताओं के लिए आवश्यक निर्देश, दैनिक एवं मौसम के अनुरूप स्वास्थ्य निरीक्षण, रोगों की उत्पति, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थो के गुणदोष, विषैले खाद्य पदार्थो की पहचान और उनसे उत्पन्न रोगों का उपचार, व्यक्तिगत शुद्धता, औषधि और उनके विभाग का नाम आदि का वर्णन किया है.

ग्रन्थ के द्वितीय भाग में उन्होंने मानव शरीर की रचना, शरीर के प्रमुख अंगो का विस्तार से वर्णन, मनुष्य के स्वभाव और उसके विभिन्न रूप और उसके आचरणों की व्याख्या की है.

ग्रन्थ के तृतीय भाग में अनेक रोगों जैसे ज्वर, मिर्गी, उल्टी, श्वास और चर्म रोग आदि रोगों के कारण और उनके उपचार की व्याख्या की है.

चतुर्थ भाग में वमन और स्वच्छता

पाँचवाँ जो कि ग्रन्थ का अंतिम भाग है, में बच्चों के रोगों, पागलपन, आँख,कान, नाक और मुख के रोगों व घावों के उपचार, विभिन्न जानवरों व कीड़ों के काटने के उपचार का वर्णन किया गया है.

वाग्भट्ट ने अपने पूर्ववर्ती चिकित्सकों के विषय में भी आदरपूर्वक वर्णन किया है.

इस ग्रन्थ को आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है. चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि उसके सौ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने ऐसी संहिता बनाई जिसमें आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हो गया है. 'अष्टांग हृदयʼ का तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था. इस ग्रंथ का जर्मन भाषा में भी अनुवाद हुआ है. इससे यह सिद्ध होता है कि उस युग में भारत का आयुर्विज्ञान अत्यंत उन्नत था और वाग्भट्ट भारत के महान आयुर्विज्ञानी थे. उनके इस ज्ञान से पूरा विश्व लाभान्वित हुआ है. हमें गर्व है कि हम ऐसे भारतीयों के वंशज हैं.

हमारे प्रेरणास्रोत- वीर अब्दुल हमीद

बच्चो!आज हम आपको 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध एक हीरो के बलिदान के बारे में बतायेंगे जिसने पाकिस्तानी फौज की एक बड़ी टुकड़ी को घुटनों पर बिठा दिया. हीरो, जिसने अपनी जान की परवाह किए बगैर केवल एक गन माउण्टेड जीप से पाकिस्तान के 7 टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे. जी हाँ, सही पढ़ा आपने. एक नहीं सात टैंक. हीरो, जिसके शौर्य और साहस ने भारतीय सेना के मनोबल में जान फूँक दी थी. ये हीरो कोई और नहीं बल्कि, परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद हैं.

अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में स्थित धरमपुर नाम के गाँव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. परिवार की आजीविका चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था.

लेकिन अब्दुल हमीद का मन सिलाई के काम में नहीं लगता था, उनका मन तो कुश्ती दंगल और दाँव पेंचों में लगता था. पहलवानी उन्हें विरासत में मिली थी. उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे. बाल अवस्था से ही लाठी चलाना, कुश्ती करना, नदी को तैर कर पार करना, सोते समय फौज और जंग के सपने देखना तथा गुलेल से पक्का निशाना लगाना उनकी खूबियों में था. हमीद इन सभी चीजों में सबसे आगे रहते थे. दूसरों की मदद करना. जरूरतमंद लोगो की सहायता करना उनकी आदत में शामिल था.

एक बार उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा कर भीषण बाढ़ में डूबती दो युवतियों की जान बचाकर अपने साहस का परिचय दिया.

बचपन से ही अब्दुल हमीद की इच्छा फौज में सिपाही बनने की थी. वह अपनी दादी से कहा करते थे कि- 'मैं फौज में भर्ती होऊँगा' दादी जब कहती-- 'पिता की सिलाई की मशीन चलाओ' तब वह कहते थे-'हम जाएब फौज में ! तोहरे रोकले ना रुकब हम, समझलू'

दादी को उनकी जिद के आगे झुकना पड़ता और कहना पड़ता-- 'अच्छा-अच्छा झाइयां फौज में'. हमीद खुश हो जाते इसी तरह अपने पिता मोहम्मद उस्मान से भी फौज में भर्ती होने की जिद किया करते थे, और कपड़ा सीने के काम से इंकार कर देते.

20 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया. हमीद को 27 दिसंबर, 1954 को अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजिमेंट में शामिल किया गया.

जम्मू कश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद पाकिस्तानी घुसपैठियों की खबर लेते हुए मजा चखाते रहते थे, ऐसे ही जब उन्होंने एक आतंकवादी इनायत अली को पकड़वाया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको पदोन्नति देकर सेना में लाँस नायक बना दिया गया. 1962 में भारत चीन युद्ध के समय अब्दुल हमीद नेफा में तैनात थे, इस युद्ध में उन्हें अपने शौर्य प्रदर्शन का विशेष अवसर नहीं मिला.

८- सितम्बर-१९६५ की रात, पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया. भारतीय सेना ने हमले का जवाब दिया. अब्दुल हमीद पंजाब के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे. पाकिस्तान ने उस समय अपराजेय माने जाने वाले 'अमेरिकन पैटन टैंकों' के के साथ, 'खेमकरण' सेक्टर के 'असल उताड़' गाँव पर हमला कर दिया.

भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और न बड़े हथियार लेकिन उनके पास था भारत माता की रक्षा के लिए लड़ने का हौसला. भारतीय सैनिक अपनी साधारण 'थ्री नॉट थ्री रायफल' और एल.एम्.जी. के साथ पैटन टैंकों का सामना करने लगे. अब्दुल हमीद के पास 'गन माउण्टेड जीप' थी जो पैटन टैंकों के सामने एक खिलौने के सामान थी.

अब्दुल हमीद की जीप 8 सितंबर 1965 को सुबह 9 बजे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों से गुजर रही थी. वह जीप में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठे थे. उन्हें दूर से टैंकों की आवाजें सुनाई दीं. कुछ देर बाद उन्हें टैंक दिख भी गए. वह टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार करने लगे और गन्नों की आड़ का फायदा उठाते हुए फायर कर दिया.

अपने सटीक निशाने से उन्होंने 4 टैंक उड़ा दिए थे. उनको ऐसा करते देख अन्य सैनिकों का भी हौसला बढ़ गया और देखते ही देखते पाकिस्तानी फ़ौज में भगदड़ मच गई. उनके द्वारा 4 टैंक उड़ाने की खबर 9 सितंबर को आर्मी हेडक्वार्टर्स में पहुँच गई. उनको परमवीर चक्र देने की सिफारिश भेज दी गई. इसके बाद अगले दिन उन्होंने 3 और टैंक नष्ट कर दिए थे.

अब्दुल हमीद को गन्ने के खेत में पोजिशन लेने का शुरुआती फायदा तो हुआ, लेकिन यह केवल कुछ समय तक के लिए ही था. इसके बाद पाकिस्तान की तरफ से अब्दुल हमीद की गाड़ी पर जबरदस्त हमला शुरू हुआ. इस हमले में उनकी जीप पर सवार ड्राइवर की शहादत हो गई. लेकिन हमीद ने हिम्मत नहीं हारी. वे लगातार पाकिस्तानी फौजियों से लड़ते रहे और अपनी पोजीशन बदलते रहे. हमले से घायल अब्दुल हमीद लगातार लड़ने के कारण थकने लगे थे. लेकिन उन्होंने लड़ाई जारी रखी. इस बीच पाकिस्तानी टैंकों ने उनकी तरफ निशाना साधा और एक हमले में वीर अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए.

वीर अब्दुल हमीद ने अपनी 'गन माउण्टेड जीप' से सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया था. भारत का 'असल उताड़' गाँव 'पाकिस्तानी पैटन टैंकों' की कब्रगाह बन गया.

अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और वीरता के लिए उन्हें 16 सितम्बर 1965 को मरणोपरांत भारतीय सेना के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

28 जनवरी 2000 को भारतीय डाक विभाग द्वारा परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के सम्मान में पाँच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया गया. इस डाक टिकट पर रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हमीद का रेखा चित्र बना हुआ है. चौथी ग्रेनेडियर्स ने अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी कब्र पर समाधि का निर्माण किया है.

ज्ञान की पाती- विश्व इमोजी दिवस

रचनाकार- चानी ऐरी

आज हम और आप अपने-अपने स्मार्टफोन में हर दिन सैकड़ों बार मैसेज में अलग अलग भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इमोजी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 17 जुलाई का दिन विश्व ईमोजी डे के तौर पर मनाया जाता है?

आइए आज हम जानते हैं इमोजी के बारे में. क्या आप जानते हैं, यूनिकोड स्टैंडर्ड लिस्ट के मुताबिक अब तक 2666 इमोजियाँ बनाई जा चुकी हैं? यूनिकोड कंसोर्टियम इमोजी के लिए रूपरेखा तैयार करता है और तय करता है कि क्या इमोजी बननी चाहिए? वर्ल्ड इमोजी डे की शुरुआत करने वाले जेरेमी बर्ग, यूनिकोड कमेटी के सदस्य हैं. उनके मुताबिक हर साल सैकड़ों की तादाद में नई इमोजी के लिए आवेदन पत्र मिलते हैं.

कब हुई इमोजी की शुरुआत?

1990 के आखिरी दौर में इमोजी का इस्तेमाल शुरू हुआ. सबसे पहले एप्पल ने आईफोन के की-बोर्ड में इसको शामिल किया. पहली बार इमोजी डे 2014 में मनाया गया.

17 जुलाई का दिन इमोजी डे के लिए चुना गया. जेरेमी बर्ग इमोजी पर आधारित सर्च इंजन इमोजिपीडिया चलाते हैं.

वक्त के साथ-साथ कंपनियाँ उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए नई इमोजी पर काम करती हैं, यही कारण है कि हाल ही में इमोजी में अलग-अलग कलर टोन को जोड़ा गया है. नेताओं, भगवान, फिल्मस्टार्स अलग अवग भाषाओ में ईमोजीस आ रही हैं. आज शालाओं में बच्चों के कामो को भी इमोजीस से जोड कर बेसिक और माध्यमिक शिक्षा में भी इसे जोडा जा रहा है. बच्चो की ग्रेडिंग व स्तर हेतु इमोजी का प्रचलन जोरों पर है.

जीवन कौशल

रचनाकार- ब्रीजभान टण्डन

जीवन कौशल का हर पाठ कुछ सिखाता है. मैं कौन हूँ ? खुद की पहचान कराते हुये स्वयं से प्यार करना सिखाता है. अपने गुस्से पर काबू करके समस्या को समझने और सुलझाने की राह दिखाता है. दूसरों की भावनाओं को समझते हुए उनकी मनोदशा जानने के तरीके भी जीवन कौशल बताता है.

तनाव से कैसे निपटना है? उसके लिए सकारात्मक सोच का विकास भी जीवन कौशल से होता है. बाधाओं को पार करते हुए नई मंजिल पाने की राह दिखाता है.

कठिनाई और अकेलेपन में नेतृत्व करने का गुण भी सीखने मिलता है.

सबके प्रति प्रेम की भावना जागृत होती है,अपनी झिझक से बाहर आने और अपनी बात दृढ़तापुर्वक कहने की हिम्मत भी विकसित होती है.

व्यस्तता से भरे जीवन में समय प्रबंधन का महत्त्व, स्वयं के लिए प्राथमिकताएँ निर्धारित करते हुए खुद के लिए जीना भी जीवन कौशल का महत्वपूर्ण भाग है.

भविष्य में अपने लिए लक्ष्य निर्धारण करना, बालशोषण/यौनशोषण के रोकथाम के तरीके, बालविवाह के दुष्परिणाम जानने का अवसर मिलता है.

सम्प्रेषण के पाठ से ध्यान से सुनना और प्रभावशाली बोलना सीखने में मदद मिलती है.

विवेचनात्मक सोच के माध्यम से बाधाओँ को पार पाना, जेंडर सम्बन्धी जानकारी, लैंगिक भेदभाव मिटाते हुए जेंडर समानता, बाल सुरक्षा एवं बाल अधिकार की जानकारी छात्राओं को जीवन कौशल के सत्रों के माध्यम से मिलती है जो उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होती है.

काम बनाम आराम

रचनाकार- सीमा यादव

काम और आराम दोनों परस्पर विरोधी शब्द हैं. ये दोनों शब्द नदी के दो किनारों की तरह एक दूसरे के विपरीत हैं. पहला शब्द हमें हमेशा चलने की प्रेरणा देता है, सक्रियता की पहचान है तो दूसरा शब्द आराम स्थिरता देता है और हमें निष्क्रिय बनाता है. जिस प्रकार एक थका हुआ मन कभी कुछ नया सृजन नहीं कर सकता उसी प्रकार सदैव कार्य में व्यस्त रहने वाला व्यक्ति कभी उदास नहीं हो सकता. यूँ तो आराम हमें संतुलन प्रदान करता है और काम का बोझ हल्का करने की औषधि की भूमिका निभाता है; किन्तु आराम से मन में उदासीनता छा जाती है, मन में नयापन नहीं आ पाता जिससे सृजनकारी कार्य नहीं हो पाते. जीवन में इन दोनों का अपना-अपना महत्वपूर्ण स्थान है. इन दोनों में से किसी एक की उपेक्षा करना या फिर किसी एक को बहुत अधिक महत्व देना हमारी बहुत बड़ी भूल होगी. यदि इनका सदुपयोग न किया जाए,तो यह बात निश्चित ही प्रकृति प्रदत्त उपहारों का उपहास करने जैसा होगा. ये दोनों शब्द हमारे जीवन को नया आयाम देते हुए हमें सफलता की मंजिल तक पहुँचाने में सहायक होते हैं.

'अति सर्वत्र वर्जयेत' अर्थात अति की सभी जगह मनाही है. अति का अंत होना स्वाभाविक है. अत्यधिक काम के कारण हम बीमारियों से ग्रसित हो सकते हैं,वहीं सीमा से अधिक आराम हमें आलसी और प्रमादी बना देता है. अब प्रश्न उठता है कि हम ऐसा क्या करें, जिससे काम और आराम के मध्य संतुलन बना रहे? इस प्रश्न का सरल उत्तर होगा कि हम कार्यों में फेरबदल करें. 'कार्यान्तर ही विश्राम है' ये योग गुरु स्वामी रामदेव की एक महत्वपूर्ण उक्ति है.

भगवान श्रीकृष्ण ने भी श्रीमदभगवद्गीता में यही संदेश दिया है कि निष्काम भाव से कर्म करते रहें अर्थात आसक्ति रहित होकर काम करते रहें.भगवान श्रीकृष्ण इसीलिए योगेश्वर कहलाते हैं. वे कर्म योग की प्रधानता को अच्छी तरह से परिभाषित करते हुए धनुर्धारी अर्जुन के माध्यम से जन-जन तक संदेश पहुँचाते हैं. ये श्लोक इस प्रकार हैं

'कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन.
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि.'

अर्थात हम सिर्फ कर्म के अधिकारी हैं, फल के नहीं.

आइये हम भी अपने महान कर्तव्यों की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लें.

अमर शहीद पण्डित राजनारायण मिश्र

रचनाकार- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

आजादी की लड़ाई के लिये मुझे केवल दस देशभक्त चाहिये जो त्यागी हों और देश के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दें. मुझे कई सौ आदमी नहीं चाहिये जो बड़बोले और अवसरवादी हों. अंग्रेजो के विरुद्ध इसी भावना से क्रांति का बिगुल श्री राजनारायण मिश्र जी ने फूँका.

महान क्रांतिकारी श्री राजनारायण मिश्र जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी के भीषमपुर गाँव में विक्रम संवत 1976 के माघ महीने की पंचमी तिथि को हुआ था. इनके पिता पंडित बलदेव प्रसाद और माता तुलसा देवी थीं.

राजनारायण मिश्र निर्भीक, चिंतनशील और बचपन से ही क्रांतिकारियों व महापुरुषों की कहानियाँ सुनने के शौकीन थे. इनका गाँव कठिना नदी के किनारे स्थित था और यहाँ के लोगों का जीवन भी नदी के नाम जैसा कठिन था.

उन्होनें बड़े होकर जाना कि यह दयनीय स्थिति सिर्फ उनके गाँव की ही नही अपितु पूरे देश की है. जिसका प्रमुख कारण अँग्रेजी साम्राज्य है. फ़िर क्या था वह भी अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में कूद पड़े.

राजनारायण मिश्र ने खुद को चौदह नियमों व तीन प्रतिज्ञाओं से बाँध रखा था. उन्होनें चालीस साथियों के साथ मिलकर अँग्रेज़ विरोधी वानर सेना बना ली, जो सशस्त्र अभियानों को अंजाम देती थी. 1942 के आन्दोलन में इन्होनें सक्रिय भाग लिया. उन्हें बन्दूकें एकत्रित करने की जिम्मेदारी मिली. इन्होनें बन्दूकों के लिये लखीमपुर रियासत की तहसील के कोठार को कब्जे में ले लिया. बन्दूकें छीनने व रिकार्ड जलाने के ऑपरेशन में चली गोली से जिलेदार की मौत हो गयी.

ब्रिटिश शासन ने राजनारायण मिश्र को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने की घोषणा कर दी. इनके गाँव में आग लगवा दी और घर को खुदवाकर नमक छिड़कवा दिया. इनकी सारी पैतृक संपत्ति और खेत जब्त कर लिये. किन्तु ये भूमिगत होकर और वेश बदलकर देश की आजादी के लिये आन्दोलनरत रहे. पश्चिम बंगाल जाकर बम बनाना सीखा.

15 अक्टूबर 1943 को मेरठ के गाँधी आश्रम से जुड़ गये. वहाँ के प्रबंधक पर विश्वास करके अपना असली नाम और काम बता दिया. उसके विश्वासघात करने पर अंग्रेजों द्वारा इन्हे पकड़ लिया गया. इन्हे जेल मे खूब यातनायें दी गयी और अन्त में फाँसी की सजा सुना दी गयी.

राजनारायण मिश्र अपना आदर्श सरदार भगत सिंह को मानते थे. फ़ाँसी की सजा सुनकर बोले कि मेरा जीवन सफल हुआ. जानकारों का कहना है कि अगर ये अंग्रेजों से क्षमायाचना कर लेते तो इनकी फाँसी टल जाती लेकिन देश का सच्चा सपूत अंग्रेजी साम्राज्य के आगे न झुका.

जब जज ने अन्तिम इच्छा पूछी तो इन्होने कहा कि मेरी अन्तिम इच्छा यह है कि मै फाँसी का फंदा खुद पहनूँगा. 9 दिसम्बर 1944 को इन्होनें हँसते हुये फाँसी का फंदा चूम लिया.

महान क्रांतिकारी राजनारायण मिश्र ने कहा था कि हर देशवासी का कर्त्तव्य है कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार देश की आज़ादी की लड़ाई में भाग ले.

गोबर की उपयोगिता

रचनाकार- सीमा यादव

गोबर शब्द सुनते ही हमारे मन मस्तिष्क में उसकी एक अजीब सी गंध प्रवेश कर जाती है. किन्तु जीवन में गोबर की जो उपयोगिता है, इससे उसके महत्व को आसानी से समझा जा सकता है. गोबर धार्मिक दृष्टि से तो उपयोगी है ही, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित हो गया है. जो व्यक्ति गोशाला के निकट रहकर कार्य करते हैं, वे बहुत सी बीमारियों से बच जाते हैं. जो व्यक्ति गोशाला की सफाई करते हैं, वे उत्तम स्वास्थ्य वाले होते हैं. गोबर के उपले ईंधन का बहुत अच्छा साधन हैं. गोबर की खाद रासायनिक खाद की तुलना में स्वास्थ्यवर्धक होती है. इसीलिए आजकल इसकी माँग में बहुत वृद्धि हुई है.

गोबर आय का एक साधन तो है ही, कृषि कार्यों में भी इसकी भरपूर माँग होती है. हाल ही में हमारी छ. ग. सरकार ने गोबर की एक निश्चित क़ीमत निर्धारित करके उसे और कीमती बना दिया है.

गाय सिर्फ एक पशु नहीं हैं. वो तो हमारी माता है जिनमें 33 प्रकार के देवी-देवता वास करते हैं इसीलिए ज्ञानियो ने गाय के लिए सुन्दर पंक्तियाँ भी कही हैं......

'गौ माता की परम कृपा से, सुख समृद्धि का बसेरा! गौ धन से दुःख दरिद्र भागें, सब ग्रंथों का सार घनेरा !!'

बूँदें यहाँ- वहाँ थीं बिखरी, किया इकट्ठा ले उलटी छतरी

रचनाकार- रजनी शर्मा

पर्यावरण बचाने का संदेश देने हेतु मायाराम सुरजन शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चौबे कॉलोनी की शिक्षिका श्रीमती रजनी शर्मा ने छात्राओं को एक सुझाव दिया कि क्यों ना हम पर्यावरण दिवस को हम अपना संदेश देने के लिए एक गुड़िया को माध्यम बनाएँ. और फिर यह नवीन प्रयोग किया गया गुड़िया की पोशाक भी पत्तों से बनाई गई. यह एक स्पष्ट संकेत है कि पर्यावरण से मिले संसाधन ही हमारा सर्वोत्तम पहनावा होना चाहिए. गुड़िया के एक हाथ में पृथ्वी का मॉडल है. जो उस संकल्प का प्रतीक है कि हमें पृथ्वी के पर्यावरण को बचाना है. प्रश्न उठता है कि कैसे? तो इसके प्रतीक रूप में छतरी का प्रयोग किया गया. वह भी उलटी की हुई छतरी. यह छतरी सभी घरों, भवनों की छत का प्रतीक है. जहां वर्षा का जल इकट्ठा होगा और पुनः पृथ्वी में संरक्षित किया जा सकता है. इस गुड़िया को ऐसे पेड़ पर रखा गया है जो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है.

ग्रीष्मकालीन अवकाश में छात्राओं की सकारात्मकता बनाए रखने के लिए यह नवीन प्रयोग किया गया जिसे कक्षा दसवीं की निशा बंजारे ने एक गुड़िया के मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया.

जनसेवा को आतुर

रचनाकार-अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

आजकल समाचार पत्रों, सोशल मीडिया व विभिन्न संचार माध्यमों से हमें देश-प्रदेश की सरकारों व अन्य पल-पल की खबरें अद्यतन प्राप्त होती रहती है. इन दिनो नेताओं के दल-बदलने की खबरें बहुत प्राप्त हो रही हैं. भारत प्रजातांत्रिक देश है, जहाँ प्रत्येक पाँच साल में सांसद व विधायक के चुनाव होते रहते है. इन चुनावों में राजनैतिक दल जीत हासिल करने के लिये जनता से बहुत सारे वादे भी करते हैं. सभी अपनी पार्टी को जिताने के लिये लोकलुभावन वादों का सहारा लेते हैं. सभी यह वादा करते है कि वह जनता के लिये रोजगार, रोटी,कपड़ा और मकान के साथ-साथ बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध करायेंगे. वह गरीबों की आवाज सदन तक ले जायेंगे और उनकी हर तकलीफ और दर्द को दूर करेंगे. आज तक मेरी समझ में यह नहीं आया कि ये नेता गरीबों की लड़ाई लड़ते-लड़ते खुद कैसे अमीर बन जाते हैं?

इनकी जनसेवा की आतुरता की तो बात ही न करिये! जब इन नेताओं को लगता है कि इनकी पार्टी इस बार चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पायेगी तो ये दल-बदलकर अपनी स्वार्थ सिद्धि में लग जाते हैं. यदि इनसे कोई प्रश्न कर ले तब जवाब में ये कहते हैं कि ऐसा मैंने अपने लोगों की सेवा करने के लिये किया. कुछ ढीठ कहते है कि राजनीति तो व्यक्तिगत होती है, मैं जिस पार्टी में चाहूँ जा सकता हूँ. कार्यकर्ताओं को ऐसे लोगों को स्वीकार ही नही करना चाहिये. जो नेता अपनी पार्टी और अपने कार्यकर्ताओं का न हुआ वह आपका सगा कैसे हो सकता है? किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता क्या इन पैराशूट टाइप नेताओं की चरण वन्दना हेतु ही हैं. ऐसे दल-बदलू नेताओं को चुनाव मे अवश्य ही उनकी वास्तविक स्थिति का सामना कराना चाहिये.

सत्ता का लालच और स्वार्थ सिद्धि ही ऐसे नेताओं का परम ध्येय होता है और जनता की सेवा का स्वाँग ही इनका अचूक अस्त्र होता है. देश और जनता की सेवा करने वाला ही सच्चा जनसेवक होता है. जनसेवा और समाजसेवा हेतु किसी भी पद की आवश्यकता नही होती. पोस्टर पर कर्मठ, ईमानदार और आपका अपना साथी छपवा देने भर से कोई सच्चा प्रतिनिधि नहीं बन जाता.

जनता को भी समझदारी दिखाने की जरुरत है. जनता को शत-प्रतिशत मतदान करना चाहिये क्योंकि ऐसा न करने से कभी -कभी अयोग्य व्यक्ति भी चुनाव मे जीत हासिल कर लेते हैं.

जनता मतदान करते समय पार्टी को प्रमुखता न दे अपितु अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों मे से शासन सत्ता उसके हाथों मे सौंपे,जो आपकी दृष्टि में और आपके पैमाने पर खरा उतरे. अच्छा प्रतिनिधि चुनने मे अपने विवेक का प्रयोग करें. जाति,बिरादरी,व्यक्ति विशेष के प्रभाव और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर और निजी स्वार्थ का त्याग करते हुये योग्य व स्वच्छ छवि के उम्मीदवार के पक्ष मे मतदान करें. जब आप अच्छे प्रतिनिधि चुनेंगे तभी देश, प्रदेश और क्षेत्र का चहुमुँखी विकास सम्भव है.

सफलता की कहानी- प्रशिक्षक बनने की मेरी यात्रा

शिक्षिका का नाम-श्रीमती सवप्निल तिवारी

विद्यालय का नाम -कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय जरेली, तखतपुर, बिलासपुर

जीवन कौशल शिक्षा से आये सकारात्मक बदलावों के बारे में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय जरेली की शिक्षिकाओं ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा की जिस प्रकार कौशल के बिना जीवन अधुरा है, उसी प्रकार बातों के बिना और रिश्ते व जीवन अधुरा है. चाहे वो रिश्ता कोई भी हो जैसे (माता-पिता, भाई-बहन, शिक्षक या छात्रों के बिच) बातचीत के जरिये हम एक विश्वसनीय रिश्ता कायम करते हैं.

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय जरेली की शिक्षिका श्रीमती सवप्निल तिवारी जी ने वर्तमान में जीवन कौशल की शिक्षा खुद में आये सकारात्मक बदलावों के बारे में बताया कि किस प्रकार जीवन कौशल का हर एक सत्र उनके व्यक्तित्व को निखारने में कारगर साबित हुआ.स्वप्निल जी कहते हैं उन्होंने बचपन से ही अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना किया हैं वो चाहे पढ़ाई को लेकर हो या फिर जीवन में अहम् फैसले खुद पर विश्वास करके उन्होंने सारी बाधाओं से पार पाया हैं.मनोबल को काफी आघात पंहुचा पर ना कभी रुकें न कभी मनोबल को कम होने दिया.पर कहते हैं ना जीवन में एक ना एक पल ऐसा आता हैं जो समुद्र कि लहरों की तरह सब अपने साथ बहाकर ले जाता हैं उनके जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसने स्वप्निल जी को पूरी तरह तोड़ दिया.वह सभी से दूर व कटी-कटी रहने लगी चुलबुल स्वप्निल अचानक से मौन हो गई.स्कूल में भी किसी से बात ना करना ना ही घर में, घरवाले उनके दुःख को समझते थे पर कुछ कर पाने में असमर्थ थे. कुछ समय बात स्कूल में 'परियोजना विजयी' के प्रशिक्षण के बारे में अधीक्षिका को जानकारी मिली अधीक्षिका के अपने साथ प्रशिक्षण के लिए स्वप्निल जी का नाम दिया शुरुआत में स्वप्निल जी ने मन कर दिया फिर किन्ही कारणों की वजह से उन्होंने हाँ कह दी.

स्वप्निल जी कहते हैं जब मैं 'परियोजना विजयी' के 4 दिवसीय प्रशिक्षण में शामिल हुई तो मैंने प्रशिक्षण के एक-एक बातों ने मुझे खुद से मिलवाने में अहम् भूमिका निभाई कई सारी महत्वपूर्ण बातों के बारे जाना व सीखा जैसा की मैं कौन हूँ? और मेरी पहचान, भावनाओं कि पहचान और स्वयं से प्यार (आत्मविश्वास) मानों जैसे कि कहीं खो गया था प्रशिक्षण के द्वारा ही मुझे मेरे समस्या का समाधान मिला जिस बारे में मैंने सोचना ही छोड़ दिया था आज में जीवन कौशल एक बहुत ही अच्छा जरिया हैं खुद को और खुद के कौशलों को समझने में मेरे लिए तो यह गेम चेंजर जैसा साबित हुआ और आज मेरा मेरे घरवालों व स्कूल कि बालिकाओं के साथ रिश्ता फिर से बेहरत हो गया हैं क्योंकि आपसी बातचीत ना हो पाने के कारण हमारा रिश्ता कभी शिक्षिका व छात्रा से ज्यादा बन ही नहीं पाया. परन्तु जैसे- जैसे मैं बालिकाओं के साथ जीवन कौशल सत्र लेना शुरू की तो धीरे-धीरे हमारे बीच बिना किसी संकोच के बात करने का अवसर मिलने लगा और मैं भी ये जान पाई की मुझे उन बालिकाओं से शिक्षिका व छात्रा के दायरे से निकल कर मैत्रीय व्यवहार भी बहुत आवश्यक है.

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