अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

बूढ़े बाबा की बाँसुरी

गाँव के बाहर नदी किनारे कुटिया बनाकर एक बूढ़ा व्यक्ति रहा करता था. उस बूढ़े को गाँव के लोगों ने हमेशा अकेला ही देखा था.

उसके परिवार के किसी और सदस्य के विषय में कोई भी कुछ नहीं जानता था. उस बूढ़े ने कुटिया के पास फलों का एक बगीचा लगा रखा था और प्रत्येक ऋतु में लगने वाले फलों को बेचकर मिलने वाले धन से ही उसकी आजीविका चलती थी.

गाँव के लोग उसे बूढ़े बाबा के नाम से संबोधित करते थे. किसी को उसका असली नाम नहीं मालूम था.

बूढ़े बाबा का बस एक ही काम था बाँसुरी बजाते हुए अपने फलों के बगीचे की रखवाली करना. वे अपना भोजन स्वयं पकाते और भोजन के बाद अपनी बाँसुरी लेकर बगीचे में किसी भी पेड़ की छाया में बैठ जाते, और फिर बाँसुरी की स्वर लहरियाँ आसपास के वातावरण में तैरने लगतीं. नदी किनारे जानवरों को चराने के लिए लाने वाले चरवाहों के साथ साथ जानवरों को भी बूढ़े बाबा की बाँसुरी की धुन सुनने की आदत सी हो गई थी.

इस कहानी को पूरी कर हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई उन्हें हम प्रदर्शित कर रहे हैं.

सुधारानी शर्मा द्वारा पूरी की गई कहानी

बूढ़े बाबा का काम,और उनका शौक दोनों ही बहुत अच्छे थे. बाँसुरी की मीठी स्वर लहरियाँ, और मीठे फल, जो बूढ़े बाबा की आजीविका के साधन होने के साथ-साथ परिश्रम करने और आत्मनिर्भर जीवन जीने की प्रेरणा देते थे. सोने पर सुहागा था बूढ़े बाबा का अच्छा और नेक स्वभाव.

एक दिन गाँव के कुछ लोगों ने बूढ़े बाबा से निवेदन किया कि बाबा आप गाँव के बाजार आकर फल बेचा करो, आप सिर्फ बाजार में बैठ कर बाँसुरी बजाना, संगीत सुनकर ग्राहक स्वयं ही आपके पास आएँगे.

बूढ़े बाबा को भी यह सुझाव अच्छा लगा वह गाँव वालों की बात मानकर बाजार आकर फल बेचने लगे.

जब शौक और लगन साथ मिल जाते हैं तब सफलता निश्चित रूप से मिलती है हमें भी अपना हर कार्य, मन लगाकर पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए जिस तरह बूढ़े बाबा ने अपने शौक और अपनी आजीविका को साथ लेकर किया

सीमा यादव पूरी की गई कहानी

एक दिन अचानक बाँसुरी बजाते हुए बूढ़े बाबा की तबीयत बिगड़ गयी और वे बेहोश होकर गिर गए.. तभी वहाँ एक लड़का आया, उसने बाबा को बेहोश देखा, तो बाबा से पूछा कि क्या हुआ बाबा? बाबा ने उसकी आवाज सुनकर धीरे से उठने की कोशिश की. बाबा ने लड़के से कहा कि कुछ पता नहीं कि क्या हुआ, मुझे अचानक चक्कर आया और मैं गिर गया. अब मैं कुछ ठीक हूँ. पर तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो? लड़के ने कहा कि पास में ही हम लोग का खेत है, मैं वहीं जा रहा था. बाबा उस लड़के के साथ-साथ चलने लगे और बात करते हुए खेत पर पहुँच गए. वहाँ उस लड़के के माता -पिता ककड़ियाँ तोड़ रहे थे. लड़के ने उन्हें पूरी बात बताई.

लड़के की माँ ने बूढ़े बाबा को पीने का पानी दिया और उन्होंने बूढ़े बाबा को ककड़ियाँ खाने को दीं. ककड़ियाँ खाकर बाबा को बहुत अच्छा लगा.बाबा को प्यास भी लगी थी, शायद इसीलिए उनको चक्कर आ गया था अब वे पहले से बहुत बेहतर महसूस कर रहे थे. बाबा ने लड़के के माता-पिता को बहुत धन्यवाद दिया और लड़के को प्रेम से गले लगा लिया. फिर बाबा अपने फलों के बगीचे की ओर चले गए.

युगांतर यादव,कक्षा पाँचवीं, सरस्वती शिशु मंदिर सेतगंगा, मुंगेली द्वारा पूरी की गई कहानी

एक दिन बूढ़े बाबा की बाँसुरी कहीं खो गयी. बाबा ने सब जगह ढूँढ़ा पर उन्हें बाँसुरी नहीं मिली. असल में बाँसुरी, एक गिलहरी ले गयी थी और पेड़ में जाकर बाँसुरी को कुतर रही थी. जब बूढ़े बाबा अपनी बाँसुरी ढूँढ़ते हुए जा रहे थे, तभी उन्हें कुछ कुतरने की आवाज सुनाई दी. बाबा ने पेड़ की ओर देखा तो गिलहरी उनकी बाँसुरी कुतर रही थी. अचानक गिलहरी के हाथ से बाँसुरी छूट कर गिर गई और बाबा ने जल्दी से अपनी बाँसुरी उठा ली. बाबा ने अपनी बाँसुरी को ठीक करवा लिया और फिर रोज की ही तरह वे फिर अपने बगीचे की रखवाली करने लगे. और बगीचे के एक पेड़ के नीचे छाया में बैठकर बाँसुरी बजाने लगे. बाँसुरी बजाने से बूढ़े बाबा को बहुत ही सुकून मिलता था, बाँसुरी उनकी बहुत अच्छी दोस्त थी.

लोकेश्वरी कश्यप द्वारा पूरी की गई कहानी

एक दिन जब चरवाहे अपने जानवरों को नदी किनारे लेकर आए तो उन्हें बूढ़े बाबा की बाँसुरी की आवाज सुनाई नहीं दी. वे चिंतित हो गए कि आखिर बात क्या है? उस दिन जानवरों और चरवाहों का मन नहीं लगा. सब बूढ़े बाबा के बारे में सोच रहे थे कि आखिर वे आज बाँसुरी क्यों नहीं बजा रहे हैं ?

शाम हुई, सब अपने-अपने घर लौट गए, पर एक बात तो थी कि किसी का भी ध्यान बाँसुरी की आवाज के बगैर काम में नहीं लगा था उस दिन.

सभी चरवाहों ने शाम को चौपाल में तय किया कि इस बारे में हमको जाकर पता करना चाहिए कि माजरा क्या है ?

लोगों ने तय किया कि वे बाबा के घर जाएंगे और देखेंगे कि क्या हुआ है? कहीं उन्हें किसी मदद की जरूरत तो नहीं है? सब ने अगले दिन सुबह वहाँ जाकर देखा कि बूढ़े बाबा बीमार थे.उनकी हालत देखकर चरवाहों ने तय किया कि वे लोग बारी-बारी से बूढ़े बाबा की देखभाल करेंगे. सब लोगों ने अपनी सहमति जताई लेकिन गिरीश ने कहा कि इस तरह बारी-बारी, यहाँ रहने की जरूरत नहीं है. मैं बाबा की पूरी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हूँ. मैं मेरी पत्नी और मेरा बच्चा हम तीन ही लोग हैं, अगर बूढ़े बाबा हमारे साथ रहे तो मेरे बच्चे को भी दादा का प्यार मिलेगा और बूढ़े बाबा को भी अच्छा लगेगा. मेरी पत्नी को भी इसमें किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है बल्कि यह उसी का सुझाव था कि बूढ़े बाबा हमारे साथ रहें या फिर हम ही बूढ़े बाबा के साथ आ कर रहें. सभी लोगों को गिरीश की बात अच्छी लगी. लेकिन गाँव वालों ने गिरीश को समझाया कि अगर बूढ़े बाबा का तुम्हारे, तुम्हारी पत्नी या तुम्हारे बच्चे के द्वारा अपमान किया गया तो यह उनके लिए ठीक नहीं होगा. गिरीश ने सब को आश्वस्त किया कि ऐसा नहीं होगा, वह सभी बूढ़े बाबा का बहुत अच्छे से ध्यान रखेंगे.

इस प्रकार बूढ़े बाबा को परिवार का साथ मिल गया और गिरीश और उसके परिवार वालों को भी बूढ़े बाबा का आशीर्वाद और साथ मिला. अब बाबा आराम से बाँसुरी बजाते और गिरीश के बच्चे को खिलाते रहते थे. सब मजे से रहने लगे.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गई कहानी

रोज की तरह आज भी जानवरों को चराने के लिए चरवाहा नदी के किनारे पहुँचा. लेकिन बूढ़े बाबा की बाँसुरी की धुन आज सुनाई नहीं दे रही थी. सभी जानवर रोज की तरह पेड़ के नीचे छाँव में बैठ गए.चरवाहा की भी आदत बन गई थी बाँसुरी की धुन सुनते ही सोने की. वह धुन का इंतजार करते हुए आज भी पेड़ नीचे गहरी नींद में सो गया.

इधर सभी जानवर बाँसुरी की आवाज न आने के कारण जंगल की ओर निकल गए.अचानक चरवाहा की नींद खुली,पास में कोई जानवर न पाकर वह परेशान हो गया. सभी तरफ ढूँढने के बाद भी जानवरों का पता नहीं चला. हारकर चरवाहे ने मालिक के घर पहुँच कर स्थिति की जानकारी दी. मालिक ने भी जानवरों को खोजने का हर संभव प्रयास किया लेकिन कुछ पता नहीं चला. अंत में मालिक और चरवाहा समस्या हल करने के लिए बूढ़े बाबा के पास पहुँच कर उनसे सहयोग माँगा, कि वह जंगल में जाकर बाँसुरी बजाएँ, संभवत: बाँसुरी की धुन सुनकर सभी जानवर आ जाएँ.

बूढ़े बाबा चरवाहे एवं मालिक की परेशानी को देखते हुए उनके साथ जंगल में जाकर बाँसुरी बजाने लगे. बाँसुरी की धुन सुनकर सभी जानवर बूढ़े बाबा के पास पहुँच गए. मालिक को उसके सभी जानवर मिल गये. बूढ़े बाबा को मालिक एवं चरवाहे ने धन्यवाद दिया और कहा कि अगर आपको कोई भी जरूरत हो तो हमें जरूर याद करें.

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा पूरी की गई कहानी

एक दिन बूढ़े बाबा की बाँसुरी की धुन सुनाई नहीं दी, गाँव वालों और चरवाहों को आश्चर्य हुआ. उन्होंने बाबा की कुटिया में जाकर देखा कि बूढ़े बाबा ज्वर से कराह रहे थे, उनका शरीर तप रहा था, उनकी सेवा करने वाला कोई नहीं था. तब एक चरवाहे ने बगीचे से फल लाकर बूढ़े बाबा को खिलाए. फल खाकर बूढ़े बाबा को कुछ आराम महसूस हुआ और ताकत आई. पर ज्वर अभी भी था जिससे चरवाहे डॉक्टर को बुला लाए. डॉक्टर ने जाँच की और कुछ दवाइयाँ देकर बाबा को आराम करने कहा.

चरवाहों के पूछने पर बूढ़े बाबा ने बताया कि वह पास के राज्य के एक बहुत धनी आदमी का पिता है पर नदी किनारे प्रकृति की गोद में रहने की इच्छा के कारण वो यहाँ रहते हैं. यहाँ पर सुकून का जीवन मिला है इसलिए अपने घर जाना नहीं चाहते हैं.

बूढ़े बाबा फिर से स्वस्थ हो गए और आज भी नदी किनारे उनकी बाँसुरी की आवाज सुनाई देती है.

मंजू साहू द्वारा पूरी की गई कहानी

बूढ़े बाबा का बगीचा और आसपास का वातावरण आनंदमय, बाँसुरी की मधुर स्वर लहरियों से भरा रहता था. नदी किनारे किशोर वय का चरवाहा राजू, जानवरों के साथ प्रतिदिन आया करता था और बाँसुरी की धुन सुनते हुए पेड़ों की छाया में सो जाता था. उसके सभी जानवर यहाँ-वहाँ बिखर जाया करते थे. राजू को भी बाँसुरी बजाने का शौक लग गया था. एक दिन राजू बूढ़े बाबा के बगीचे में हिम्मत जुटाकर गया और बाबा के पास जाकर उनसे बाँसुरी बजाना सीखने की इच्छा व्यक्त की. बूढ़े बाबा राजू की बात सुनकर मुस्कुराने लगे और राजू को बाँसुरी बजाना सिखाने को तैयार हो गये. बूढ़े बाबा ने कहा इतने वर्षों से मेरे पास कोई बाँसुरी बजाना सीखने नहीं आया. तुम्हारी इच्छा है तो मैं तुम्हें जरूर सिखाऊँगा. तुम प्रतिदिन जानवरों के साथ आते ही हो, इसी समय मैं तुम्हें बाँसुरी बजाना सिखाया करूँगा. कल से तुम्हारा सीखना शुरू.

बूढ़े बाबा ने राजू को अपने बगीचे से ढेर सारे फल दिये. राजू ने बाबा से अगले दिन आने का वादा किया और फल लेकर अपने जानवरों के साथ अपने घर चला गया.

शालिनीपंकज दुबे द्वारा पूरी की गई कहानी

बारिश का मौसम आया.एक दिन बूढ़े बाबा अपनी दिनचर्या अनुसार बाँसुरी बजा रहे थे कि तेज बारिश शुरू हो गयी. चरवाहे अपने मवेशियों को लेकर चले गए. बारिश की वजह से कोई राहगीर भी न आया. बारिश दो दिनों तक लगातार होती रही, नदी का जलस्तर बढ़ने लगा. तब गाँव के मुखिया कुछ युवकों के साथ बूढ़े बाबा के पास आये,और उनसे बोले बाबा! इस लगातार बारिश से नदी में बाढ़ आने का खतरा है. जब तक बारिश थम नही जाती तब तक के लिए आप हमारे साथ चलकर सुरक्षित स्थान पर चलिए.' बूढ़े बाबा ने मुस्कुराकर हाथ जोड़ लिए,और फिर बाँसुरी बजाने लगे. बारिश अभी भी लगातार हो रही थी. मुखिया ने बाबा से पुनः विनम्रतापूर्वक आग्रह किया पर बूढ़े बाबा ने कोई खास प्रतिक्रिया नही दी. मुखिया जी ने कहा! 'देखिए बाबा आप अगर हठी है तो मैं भी हठी हूँ.'

आखिर बाबा ने मुखिया की बात मान ली और उनके साथ चल पड़े. कुछ ही देर में वो गाँव में पहुँच गए. पर लगातार बारिश के कारण नदी का जलस्तर इतना बढ़ा कि जल्द ही गाँव खाली कर दूसरे सुरक्षित स्थान पर सभी को जाना पड़ा.

दो-तीन दिन बाद बारिश थमी नदी का जलस्तर नीचे हुआ. बारिश में नहाई हुई प्रकृति ने अंगड़ाई ली. सूरज मुस्कुराते हुए आसमान में चमकने लगा. सड़के धुली हुई. पेड़ पौधे छोटे बच्चे की तरहः नहाए खड़े हुए थे.

बुढ़े बाबा ने जब सब देखा तो गाँव के मुखिया जी का आभार व्यक्त किया. मुखिया जी ने भी कहा! ' बाबा आपके बारे में कोई नही जानता पर हम आप को कठिनाई में अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिये उस दिन हठ पूर्वक आपको मैं अपने साथ ले आया. हमारे गाँव में लोगों के साथ पशु-पक्षियों को भी आपकी बाँसुरी की तान सुनने की आदत हो गयी है. बूढ़े बाबा मन ही मन बुदबुदाए 'वसुधैव कुटुम्बकम'

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

बबलू की उलझन

आजकल बबलू बहुत अनमना था. हमेशा गुमसुम रहता, किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता. पहले हमेशा किसी न किसी काम में लगा रहता था. कभी पढ़ाई, कभी ड्राइंग, कभी गमलों में लगे पौधों की देखभाल. पर आजकल न जाने उसे क्या हो गया था. तीन चार दिनों से उसकी दिनचर्या बदल गई थी. सुबह देर से सोकर उठना, खाने-पीने में भी कोई रुचि नहीं, न खेलकूद, न पढ़ाई, न ड्राइंग, न बागवानी. दिनभर सुस्त रहना. शुरुआत के एक दो दिनों तक मम्मी पापा ने बबलू के व्यवहार में आए इस परिवर्तन को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, पर जब तीसरे और चौथे दिन भी बबलू की सुस्ती और अनमनापन खत्म नहीं हुआ तो उन्हें चिंता होने लगी. बबलू से पूछने पर भी कुछ खास समझ में नहीं आया कि आखिर इस उदासी का कारण क्या है.

अंततः चौथे दिन शाम को मम्मी पापा ने आपस में विचार-विमर्श किया और यह समझने की कोशिश की कि बबलू के व्यवहार में आए इस परिवर्तन का कारण क्या हो सकता है और इस स्थिति को कैसे ठीक किया जा सकता है?

देर तक आपस में विचार-विमर्श के बाद उन्हें यह तो समझ में आ गया कि कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण लंबे समय से बंद पड़े स्कूल और बाहर आना-जाना नहीं होने के कारण घर में रहते रहते बबलू ऊब गया है. पर इस स्थिति को कैसे संभाला जाए और कैसे बबलू को फिर से सक्रिय किया जाए इसका कोई निर्णय वे नहीं कर पा रहे थे.

आखिर में मम्मी ने एक उपाय सोच ही लिया. पर मम्मी- पापा दोनों ही असमंजस में थे कि इस उपाय का कोई लाभ होगा या नहीं? पर कुछ तो करना ही था, अतः उन्होंने यह तय किया कि इस उपाय को आजमा कर देख लिया जाए

इसके आगे क्या हुआ होगा? मम्मी पापा ने कौन सा उपाय किया होगा? क्या बबलू का व्यवहार पहले की तरह हो पाया? आप अपनी कल्पना से इस कहानी को पूरा कीजिए और हमें माह की 15 तारीख तक ई-मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा पूरी की गई कहानियों में से चुनी गयी श्रेष्ठ कहानी किलोल के अगले अंक में प्रकाशित की जाएगी.

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