बालगीत

मामा

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

मामा आए मामा आए.
मामा क्या क्या लाए.
मामा लाए बाजा.
माया छाया आजा.
बाजा बाजे ढम ढम.
मामा नाचे धम धम.
चाचा गाए गाना.
हम सब खाए खाना.
है मामा को घर जाना.
अब मामी को भी लाना.
खेल खेल में बीता दिन.
सूना सूना घर, मामा के बिन.

आम का आचार

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

जया बाजार गई.
बाजार से वह आम लाई.
आम को साफ की.
फिर आम को
काट कर सुखाई.
दादी मसाला बनाई.
जया आम का
चटपटा आचार बनाई.
राधा मटक मटक कर मत चल.
दीदी की मदद कर.
राम नमक ला.
रमा इधर आ, दादी को बुला.
आम का आचार खिला.

कम मात्रा वाले वाक्य

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

जय घर पर रह.
बाहर मत जा.
कमल इधर आ.
गपशप मत कर.
अजय अब उठ.
कलश चल जल भर.
आशा मटर ला.
आहना आम ला.
गगन फल खा.
रजत ठहर.
साफ कपड़ा पहन.
रमन गरम गरम खाना खा.
शरद सामान इधर उधर मत कर.
झटपट काम कर.
जगत लड़ मत.
रतन बरगद पर मत चढ़.
उतर , पास आ.
दशरथ अदरक ला.
ऋषभ काढ़ा बना.
मलय शहद ला.
अब खटपट मत कर.

स्वर गीत

रचनाकार- श्वेता पुष्पेंद्र तिवारी

अ से अनार आ से आम
अपना तो है पढ़ना काम

इ से इमली ई से ईख
मैडम देती अच्छी सीख

उ से उल्लू ऊ से उन
नानी मेरा स्वेटर बुन

ऋ से ऋषि होते हैं संत
वन में बैठ करते तप

ए से एडी ऐ से ऐनक
बच्चों से है घर की रौनक

ओ से ओखली औ से औरत
मां है मेरी ममता की मूरत

अं से अंगूर , अ : से खाली
सभी बजाय मिलकर ताली

बारहखड़ी

रचनाकार- क्षिप्रा अग्रवाल

अ से अनार, आ से आम,

अपना तो है पढ़ना काम .

इ से इमली, ई से ईख,

मुन्ने राजा कुछ तो सीख ..

उ से उल्लू, ऊ से ऊन,

सर्दी आ गई स्वेटर बुन .

ऋ से ऋषि ऋ से ऋषि,

बड़े होकर करो कृषि ..

ए से एड़ी, ऐ से ऐनक,

देश के बनो सच्चे सेवक .

ओ से ओखली,औ से औरत

मां में, है भगवान की मूरत ..

अं से अंगूर,अ:से अ हा,

तुम पढ़ो जोर से पहाड़ा .

स्वरगीत

रचनाकार- वंदिता शर्मा



अ से अनार खट्टा मीठा
जो रोज सबेरे खाता है,
स्कूल को पढ़ने जाता है.


आ से आम फलों का राजा
जो सबके मन को भाता है,


इ से इमली की बनी खटाई
मुंह में सबके पानी लाई.


ई से ईख
पढ़ना लिखना अच्छे से सीख


उ से उल्लू
आंखे गोल
गरदन घुमाएं चारों ओर


ऊ से ऊंट
पीठ पे ठूठ

_ऋ_
ऋ ऋषि साधु कहलाता
जंगल में वह तप को जाता.

ए एडी पंजे के पीछे
चलने में है साथ निभाते


ऐ ऐनक आंखों को भाता,
इसे लगाना सभी को आता.


ओ ओखली अंदर से खोखली
जहां काम करती है मूसली


औ‌ से औरत है घर संवारे
पढ़ लिखकर समाज सुधारे
अं
अं से अंगूर खट्टे मीठे
हम सब खाएं बैठे बैठे

अ:
अ : स्वरों का अंतिम अक्षर
पुनः शुरू करो इसको पढ़कर

गिनती

रचनाकार- वंदिता शर्मा

आओ बच्चों हम सब
गिनती सीखते हैं गिनती सीखते हैं

बोलों बच्चों एक
हम सब मिलकर खाएंगे केक
केक

बोलों बच्चों दो
ज्यादा हो गया रहने दो ,रहने दो
अब ना खाओ केक केक

बोलों बच्चों तीन तीन
मिल कर लकड़ी बीन, लकड़ी बीन


बोलो बच्चों चार,बच्चों चार
हम खाते हैं आचार , खाते हैं आचार

बोलों बच्चों पांच, पांच
सब गोले में नाच ,गोले में नाच

बोलो बच्चों छह छह
भारत माता की जय जय

बोलों बच्चों सात सात
आओ पढ़े पाठ पाठ

बोलों बच्चों आठ आठ
पढ़ने में है ठाठ ठाठ

बोलो बच्चों नौ नौ
पेपर का बनाओ नाव नाव

बोलों बच्चों दस दस
गिनती हो गई पूरी बस बस

गिनती

रचनाकार- महेंद्र देवांगन 'माटी'

एक चिड़िया आती है, चींव चींव गीत सुनाती है. दो दिल्ली की बिल्ली हैं, दोनों जाती दिल्ली हैं..

तीन चूहे राजा हैं, रोज बजाते बाजा हैं.
चार कोयल आती हैं, मीठी गीत सुनाती हैं..

पाँच बन्दर बड़े शैतान, मारे थप्पड़ खींचे कान.
छः तितली की छटा निराली, उड़ती है वह डाली डाली..

सात शेर जब मारे दहाड़, काँपे जंगल हिले पहाड़.
आठ हाथी जंगल से आये, गन्ने पत्ती खूब चबाये..

नौ मयूर जब नाच दिखाये, सब बच्चे तब ताली बजाये.
दस तोता जब मुँह को खोले, भारत माता की जय जय बोले..

माँ

रचनाकार- सविता भूदीप, आठवीं, स्वामी विवेकानंद शास.उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल जगदलपुर

ओ मेरी प्यारी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ,

हर पल साथ रहती है मेरी माँ.
दुनिया में सबसे प्यारी है माँ.
सुख दुःख में साथ देती है माँ.
ममता का सागर होती है माँ.

भगवान का दूसरा रूप है माँ.
आदर सम्मान हमें सिखाती माँ.
अच्छी-अच्छी बात हमें बताती माँ.
प्यार सदा लुटाती है माँ.

मुसीबतें पास हमारे आती हैं,
चुटकी में माँ हल कर जाती है.
ओ मेरी प्यारी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ.

बेटी बन कर आयी हूँ

रचनाकार- साक्षी पत्रवाणी, ग्यारहवी, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पंधी, बिलासपुर

बेटी बनकर आयी हूँ,
मां-बाप के जीवन में.
बसेरा होगा मेरा कल,
और किसी के आंगन में..

क्यों यह रीत,
लोगों ने बनायी होगी.
कहते हैं आज नहीं तो कल,
तू परायी होगी..

दे कर जन्म जिसने,
पाल-पोसकर बड़ा किया.
और वक्त आया तो,
उन्हीं हाथों ने विदा किया..

टूट के बिखर जाती है,
हमारी जिंदगी वहीं.
उस नये बंधन में फिर,
प्यार मिले जरूरी तो नहीं..

क्यों ये रिश्ता हमारा,
अजीब होता है?
क्या बस यही,
हम बेटियों का नसीब होता है?

माँ बाप को भूलना नहीं

रचनाकार- दीपेन्द्र पत्रवाणी, आठवीं, शासकीय पूर्व माघ्यमिक विद्यालय, पंधी, बिलासपुर

भूलो तुम सभी को मगर,
मां-बाप को भूलना नहीं.
हम पर उपकार अनेक हैं उनके,
इस बात को भूलना नहीं.

पत्थर पूजे कई,
तुम्हारे जन्म की खातिर जिनने.
तुम पत्थर बन,
उनका दिल कुचलना नहीं.

सुख का निवाला दे,
जिसने तुमको बड़ा किया.
अमृत पिलाया जिनने तुम्हें,
जहर उनके लिए उगलना नहीं.

लाखों कमाए हो तुमने पर,
मां-बाप से ज्यादा नहीं.
सेवा बिना सब राख है,
मद में कभी भुलाना नहीं.

संतान बन सेवा चाहो,
संतान बन सेवा करो.
जैसी करनी वैसी भरनी,
न्याय यह भूलना नहीं.

सोकर स्वयं गीली जगह,
सुलाया तुम्हें सूखी जगह.
मां की स्नेहिल आँखों को,
भुलाकर कभी भिगोना नहीं.

धन तो बहुत मिलेगा पर,
मां-बाप इस जीवन में ही पाओगे.
पल-पल पावन उस चरण की चाह,
कभी भूलना नहीं.

माता का गौरव,
पृथ्वी से भारी है.
पिता का गौरव,
आकाश से भी ऊंचा है.

पुनः फैला दो धरा पर हरियाली

रचनाकार- लोकेश्वरी कश्यप

त्रिविध बयार बहा करती थी,
घर-घर बसता था आनंद.
जब देने से सुख मिलता था,
सबको मिलता था परमानंद.

देने की शिक्षा पायी जिनसे,
आज उन्हें ही भुला दिया.
अपने ही हाथों से हमने,
अपनी जड़ को जला दिया.

धरती के आभूषण को,
कभी नहीं सम्मान दिया.
जिनसे जीवन चलता था,
उनका ही अपमान किया.

सिलेंडरों में बंद हवा की,
छीना-झपटी कर रहे.
श्वांस- श्वांस दुश्वार हुई,
हर पल तिल- तिल मर रहे.

वृक्ष अगर न काटे होते,
दो ही सही लगाए होते.
आज न बेबस जीवन होता,
अश्रु आँख से गिरे न होते.

नहीं हुई है देर अभी भी
सम्भलो अब तो करो सुधार.
हरी-भरी धरा को कर दो,
बच्चों का सजा दो उपहार.

बढ़ती जनसंख्या पर रोक

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

जनसंख्या में देश हमारा,
विश्व में अव्वल होगा.
हम दो हमारे दो से,
इस समस्या का हल होगा.

बेटा-बेटी दोनों समान,
शिक्षा का है सबको अधिकार.
हर परिवार का हो एक ही नारा,
हम दो हमारे दो.

बेटे की चाहत में,
अपने परिवार को ना बढ़ने दो.
शिक्षा,और संस्कार के लिए,
बच्चों को खूब पढ़ने दो.

भुखमरी बेरोजगारी से,
लोगों की जान बचाएँगे.
छोटा परिवार के नारे को,
सच कर हम दिखाएँगे.

छोटा सा परिवार हमारा,
खुशियों का आधार है.
मिल-जुल कर हम सब रहते हैं,
यही हमारा प्यार है.

शिक्षा-दिशा देकर बच्चों को,
काबिल हम बनाएँगे.
जनसंख्या पर रोक लगाकर,
शिक्षा की अलख जगाएँगे.

बेटा-बेटी दोनों अच्छे,
उसमें ना तुम भेद करो.
जिस थाली में खाते हो,
उसमें ना तुम छेद करो.

बाघ

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

जंगल का राजा है बाघ,
सबसे अलग है उसकी धाक.
दुश्मन से वह लोहा लेता,
कभी नहीं है जाता भाग.

बैठ दुबक के लगाता घात,
सदा शिकार को देता मात.
भूख लगी तो सब को खाता,
नहीं देखता जात और पात.

बाघ से हर कोई है डरता,
हरदम वह शिकार करता.
पंजे में जो उसके आता,
जिंदा वह बच के नहीं जाता.

चुस्त-दुरुस्त उसका है तन,
जंगल में करता विचरण.
लोगों से वह दूर ही रहता,
घर है उसका सुंदरवन.

साहस का परिचय कराता,
आलस कभी न वह करता
झुंड से अलग पहचान बनाता,
राष्ट्रीय पशु वह कहलाता.

ख़ुश रहने का बहाना

रचनाकार- सोमेश देवांगन

हम गरीब हैं साहब,मगर खुश रहना जानते हैं.
चप्पल से सेल्फी ले, हम अभावों को भुलाते हैं.

हर शौक़ तो गरीबी के तले, रोज कुचल जाता है.
हर पल खुश रहने का, मज़ा अलग ही आता है.

सब रंगों की रौनक यूं ही, चेहरों पर खिल जाती है.
मिल जाये जो कांच का टुकड़ा, हीरा उसे बताती है.

अभावों के भाव को छोड़कर, हम हँसते-मुस्काते हैं.
खुश रहने के लिए हम, अपने गमों को छिपाते हैं.

खुश रहना है जीवन में तो, भूल जाओ बीता कल.
गम है तो क्या हुआ, आने वाला है खुशियों का पल.

लाख समस्या हो जीवन में,हरदम मुस्काना चाहिए.
जिंदगी बहुत कीमती है, पल-पल को जीना चाहिये.

बरसात

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

रंग लुटाती मस्ती छलकाती, आई है बरसात.
काले बादल लेकर आया, ख़ुशियों की बारात.

सोंधी महक मिट्टी की, मिल गई हवा के संग.
झूम उठे तृण-तृण भी, जीवन में छाया नवरंग.

कोयल गायी गीत मनोहर, लगा थिरकने मोर.
चहक रहे थे विहग दल, मचाया पवन ने शोर.

स्नेह-सुधा से महके उपवन, भीगा मन का कोना.
मुदित हुआ नवांकुर, बारिश का रूप सलोना.

कल-कल गाती नदियाँ, झरझर झरते हैं झरने.
बच्चों की टोली निकली, लगी नाव अब चलने.

मेघ देते हैं जीवन हमको, प्रकृति की ये सौगात.
रंग लुटाती मस्ती छलकाती, आई है बरसात.

जामुन

रचनाकार- आशा उमेश पान्डेय

राह किनारे खड़ा है मुन्ना,
जामुन लेकर हाथ में,
आस लगाकर देख रहा,
कोई आएगा अब लेने.

खरी कमाई करता हूँ,
नहीं किसी से मैं डरता हूँ.
मेहनत का फल मीठा होता,
सबको ये बतलाता हूँ.

लाज नहीं मुझको है आती,
करता अपना काम हूँ.
छोटा-बड़ा नहीं होता,
काम तो बस काम है.

क्या कहता है कोई मुझे,
इसकी तनिक परवाह नहीं
अपने धुन में बस रहता हूंँ,
मन की बातें सुनता हूँ.

चोरी नहीं करता कभी,
विश्वास बनाए रखता हूँ.
घर का मान बढ़ाता हूँ,
राजा मुन्ना कहलाता हूँ.

दिल में सबके बसता हूँ,
सबके आँखों का तारा हूँ.
अपने सत कर्मों से ही,
सबका प्यार मैं पाता हूँ.

बस्ते का बोझ

रचनाकार- राजकुमार जैन राजन

तुम्ही बताओ मुझको,
कैसे विद्यालय में मैं जाऊँ.
बोझा बस्ते का है भारी,
उठा नहीं में पाऊँ.

सब मुझसे कहते रहते हैं,
अच्छे बच्चे पढ़ते रोज.
लेकिन भइया मुझसे ज्यादा,
मेरे ये बस्ते का है बोझ.

नहीं समझता कोई आखिर,
क्यों नही मेरी मजबूरी.
रट्टू तोता बन जाने से क्या,
शिक्षा होती जाती है पूरी.

थोड़ी समझ बड़ों को दे दो,
ओ मेरे प्यारे भगवान.
बस्ता हल्का करवा दो तो,
पढ़ना हो जाये आसान.

अगड़म-बगड़म चित्र बनाते

रचनाकार- डॉ. सतीश चन्द्र भगत

कुछ उजले कुछ काले बादल,
अजब- गजब मतवाले बादल.
कहाँ-कहाँ से उड़-उड़ आते,
अगड़म-बगड़म चित्र बनाते..

हिम्मत वाले सारे बादल,
जल बरसाते प्यारे बादल.
इंद्रधनुष दिखलाने वाले
खेतों में हरियाली लाते..

चित्रकार बन नभ में आते,
मनमोहक तुम चित्र बनाते.
रिमझिम सा जल बरसाकर,
पेड़ों को हरदम हर्षाते.

सूखे ताल-तलैया भरते,
प्राणी जगत को सुखी करते.
नदियों में जलभर इठलाते,
हर्षित सागर में मिल जाते..

गोल गप्पा

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

गोल गप्पा गोल गप्पा मेरा गोल गप्पा,
चुरमुरा बना है मेरा गोल गप्पा.
भर कर मटर चटपटा पानी,
सबको खिलाता हूं गोल गप्पा.

देख कर इसको सबका,
मन ललचाए गोल गप्पा.
बहुत चाव से खाते सब,
मुहं का स्वाद बढ़ाए गोल गप्पा.

हर बाजार हर शहर में,
खूब बिकता है गोल गप्पा.
ठेला वाल रोज ले कर,
बेचने आता है गोल गप्पा.


दस में चार बीस में आठ,
मिल जाता है गोल गप्पा.
कोई कहता पानी पूड़ी
कोई कहता गुपचुप और बतासा.

हर शादी हर पार्टी में खूब
शान बढाता गोल गप्पा.

चंदा मामा

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

चंदा मामा आसमान से,
उतर कर धरती पर आए.
देख कर उनको सारे बच्चे,
मामा मामा कह कर बुलाए

बोले मामा सब बच्चों से
अपना हाल चाल बताओ.
कौन चांद पर जाएगा,
अपना अपना नाम बताओ.

बच्चे चांद पर जाने को,
हो गए झटपट तैयार.
चांदा मामा ले कर पहुंचे,
सबको चांद के पार.

चंदा मामा के साथ,
बच्चों ने रात बिताई.
बच्चों को फिर मामा ने,
चांद की खूब सैर कराई.

सुबह मेरी आंख खुली तो,
मैं बिस्तर पर अपने को पाया.
सपना देख रहा था,
मम्मी ने हमें बताया.

राखी

रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान

प्यार से गले लगाती है,
देखो यह राखी.
अपना प्यार लूटाती है
देखो यह राखी.

भाई बहन का प्यार,
बतलाती है राखी.
भाई की कलाई पर,
मुस्काती है राखी.

हर बहन को भाई की,
याद दिलाती है राखी.
प्यार के धागों में,
बंध जाती है राखी.

रेशम के धागों से,
बन जाती है राखी.
बाजारों में चहल पहल,
मचाती है राखी.

बहन को उपहार खूब,
दिलवाती है राखी.
भाई की उम्र खूब,
बढाती है राखी.

सारे रिश्तो में मीठास,
घोल जाती है राखी.
भाई बहन का प्यारा,
त्यौहार यह कहती राखी.

चलो पेड़ लगाते हैं

रचनाकार- सुनीता साहू

चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं

सुखमय जीवन जीना चाहते हैं,
शुद्ध वायु जल पीना चाहते हैं,
वृक्षारोपण हेतु जागरूक बनाते हैं,
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं..


पर्यावरण से है जीवन हमारा,
इससे चलता संसार सारा,
दिलो में प्रकृति प्रेम जगाते हैं
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं.

देती है सांसें जीवन को,
प्राणवायु हमारे तन को,
प्रदूषण को हम भगाते हैं,
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं..

आसमान में बादल आते हैं,
स्वच्छ जल ये बरसाते हैं,
अकाल से हमको बचाते हैं,
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं..

रबर, कागज, लकड़ी देते हैं,
बदले में हमसे कुछ नहीं लेते हैं,
क्यों जंगल में आग लगाते हैं,
चलो मिलकर पेड़ लगाते हैं..

चलो घूमने जाएँ

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

पापा चलो घूमने जाएँ
चाट, पकोड़े खाकर आएँ.

मम्मी करती टोका-टाॅकी
उसको साथ नहीं ले जाएँ.

गए थे एक दिवस बाजार
वहाँ से लाए थे आचार.

इस बार जब हम जाएँगे
मुनिया को भी ले जाएँगे.

उसे दिलाना नए खिलौने
सुन्दर गुड़िया, मृग के छौने.

मुझको नहीं चाहिए ज्यादा
करता हूँ मैं तुमसे वादा.

बस, मुझे एक बाॅल दिलाना
या अच्छी मूवी दिखलाना.

जमीं तलाशना सीख

रचनाकार- श्रवण कुमार साहू,'प्रखर'

अपनी जमीं तलाशना सीख,
आकाश भी मिलेगा.
जरा अंधकार में चलना सीख,
प्रकाश भी मिलेगा..

दूसरों पर भरोसा ना कर,
ज़रा खुद पे करो यकीन.
तुम्हें हर मंजिल मिलेगी,
जो लगता है तुम्हें नामुमकिन.
कभी हारना भी सीख,
देखना शाबाशी भी मिलेगा..

बिना काँटों के कभी कोई,
गुलाब खिला करते नहीं.
बिना साधना के यहाँ पर,
भगवान मिला करते नहीं..
कठपुतली है तो क्या हुआ,
मुक्ताकाश भी मिलेगा..

दूसरों के पदचिन्हों पर तो,
यहाँ हर कोई चलता है.
जो भावनाओं में बहे,
उसे यहाँ हर कोई छलता है.
तू खंज़र खोजकर देख,
अपने आसपास ही मिलेगा..

कर्म

रचनाकार- सीमा यादव

अच्छे कर्म की होती है पूजा.
इसके समान नहीं कोई दूजा.

कर्मों का फल सबको भोगना पड़ता.
विधि के नियम से कोई नहीं बच पाता.

कर्म के बंधन में बंधे हुए हैं सभी.
जीवन के मर्म को भूलना नहीं कभी.

कर्म से ही सच्चाई की परख होती.
और सदा ही सत्य की जीत होती.

कर्मों का होता है पूरा हिसाब.
यही है असल जीवन की किताब.


प्रकृति कभी किसी से कोई भेद नहीं करती.
जो जैसा कर्म करता,उसको वैसा ही फल देती.

आओ मिलकर करें कुछ नेक कर्म.
तभी समझ सकेंगे जीवन का मर्म.

अच्छे कर्म की होती है पूजा.
इसके समान नहीं कोई दूजा.

माँ के आँचल में बसे सभी सुखो का सार

रचनाकार-लक्ष्मी तिवारी

माँ ममता की चांदनी,
माँ सूरज की धूप.
वक्त पड़े ज्वाला मुखी,
वक्त पड़े नल कूप..

माँ मीरा की त्याग है,
माँ बंसी की तान.
माँ बिना जीवन लगे,
जैसे रेगिस्तान..

माँ है,तो है महात्मा,
माँ है,तो हम बने आत्मा,
माँ बिना जग सूना सूना,
माँ बिना न पूर्ण परमात्मा.

शुभाशीष शुभ कामना,
ममता दया दुलार.
माँ के आँचल में बसे,
सभी सुखों का सार..

कोयल गीत सुनाती

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

रानी मनु यश बिट्टू,
मैं तुम्हें बताऊँ साथी.
कोयल बगिया में गीत,
आखिर क्यों सुनाती.

शीतल हवा के बहने पर,
सूरज के उगने पर.
पूरब में लाली छाती,
कोयल गीत सुनाती.

आम्र शाख पर बैठकर,
पका हुआ फल खाकर.
मन ही मन मुस्काती,
कोयल गीत सुनाती.

कोयल को लगता जब,
सारा बाग उसका अब.
बड़ी शान से इठलाती,
कोयल गीत सुनाती.

छाता

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा

रंग बिरंगा छाता है,
बच्चों के मन भाता है.

बरखा रानी जब आती,
मस्ती में तन जाता है.

दादाजी को कुत्तों से,
छाता सदा बचाता है.

पापा जब ऑफिस जाते,
छाता संग में जाता है.

हवा में खुले जब छाता,
अंधड़ उसे उड़ाता है.

जिसके पास नहीं होता,
छाता वह भीग जाता हैं.

सर्दी गर्मी बरखा में,
छाता साथ निभाता है.

पर्यावरण

रचनाकार-प्रतिभा त्रिपाठी

वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ
ये संदेश फैलाना हैं.
पर्यावरण को शुद्ध बना के
जीवन को स्वस्थ बनाना है

मत काटो पेड़ों को तुम,
इस पर किसी का बसेरा हैं.
इसके दम पर सांसे चलती
नित आता नया सबेरा हैं॥

नयी पीढ़ी से ये अनुरोध,
सब मिलकर वृक्ष लगाओ.
पेड़ों की रक्षा तुम करके,
पर्यावरण सुरक्षा में हाथ बढाओं॥

चारों तरफ हरियाली हों,
हर घर में खुशहाली हों.
सुन्दर सा एक दृश्य बनाऐ,
हर घर आँगन वृक्ष लगाऐ.

आओ पर्यावरण बचाने का,
मिलकर हम संकल्प उठाऐ.

पौधे का जीवन

रचनाकार-बलबीर सिंह बिष्ट

पौधे का जीवन मानव की भांति है,
समय पर इसमें परिपक्वता आती है.

जब खो देता है चमक और यौवन को,
फिर विचारता है पाकर इस जीवन को.

बीज से अवतरित होकर मिला जीवन,
हंसते खेलते बीत गया प्यारा बचपन.

बीता समय और जब यौवन ऋतु आई,
संग अपने वो जाने कितनी बहारें लाई.

फिर उस पर जब आई सुंदर कलियां,
मचल-मचल गई अनगिनत तितलियां.

अति मनमोहक इन फूलों की हंसी थी,
आकर्षक महक तब सांसों में बसी थी.

भंवरों का उन पे फिर मन गया फिसल,
उनके सफल प्रेम से फूल बन गए फल.

निज लक्ष्य के प्रति वह समान एकलव्य था,
फल को पकाना ही उसका परम कर्तव्य था.

फिर उसने अपना ना, तनिक भी ध्यान रखा,
केवल गुरु द्रोणाचार्य जी का मान रखा.

समय के काल चक्र में फंस, वह वृद्ध हो गया,
जीवन किंतु उसका, फिर भी सिद्ध हो गया.

नये फलों से जब कभी, फिर बीज निकलेंगे,
तब इस वसुंधरा पर, फिर नवजीवन खिलेंगे.

मुझको भी दाना डालो

रचनाकार-कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

नवल प्रात: की नई किरण ने,
छटा विकट फहराई.
दूर हो गया तम तुरंत ही,
नई सुबह है आई.

नन्हीं-नन्हीं चिडियाँ चहकीं,
और चहकते बच्चे.
चीं-चीं करके दाना मांगे,
सबको लगते अच्छे.

फुदक-फुदक कर प्यारी कोयल,
मीठे स्वर में गाती.
झट उठ जाओ प्यारी गुड़िया,
सही बात समझाती.

कुल्ला मंजन करके गुड़िया,
झट पट नाश्ता खा लो.
हम भी दाना मांग रहे हैं,
हमको भी तो डालो.

चल अकेला चल

रचनाकार- अनिता चन्द्राकर

खुद पर रख भरोसा मुसाफिर,चल अकेला चल.
हौसला,हिम्मत को बना साथी,मत होना विकल.
मत डरना मुश्किलों से,अपने निश्चय पर रह अटल.
बढ़ते जाना आगे ही,ज्यों नदियाँ बहती अविरल.
व्यर्थ न जाने देना समय,अनमोल है एक-एक पल.
अभी से शुरुआत कर,तभी तो सुखमय होगा कल.
चुनौतियाँ आएंगी राह में कई,ढूँढ लेना उसका हल.
रखना सिर सदा ऊँचा,मन में रखना भाव निश्छल.

किलोल

रचनाकार- सुधारानी शर्मा

जैसा नाम वैसा गुण,
ज्ञान का खजाना है

नवअंकुरों की किलकारी,
बच्चों की मोहक मुस्कान है.

बच्चे,बड़े,दादा-दादी,
ये सबकी जान है.

ज्ञान का भंडार है,ये
गुणों की अनुपम खान हैं.

जीवन के हर रंग दिखाती,
यथार्थ की पहचान है.

किलोल का कलेवर सुंदर,
संपादक मंडल भी सुजान है.

बाल पत्रिका मनभावन,
सबमें किलोल की सर्वाधिक शान है.

हर लेखक का मान बढ़ाती,
सबको देती सम्मान है.

किलोल में लेखनी देकर,
मिलता हमें,सरस्वती का वरदान है.

ज्ञान का स्रोत किलोल,
सबकी मेहनत से निरंतर गतिमान है.

मुझे जी लेने दो

रचनाकार- सीमा यादव

मेरे सुखों की परवाह करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

जीवन भर रोक-टोक करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

बात बात पर मेरा पीछा करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

बेकार की नसीहत,सलाह देने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मेरी सफलता की राह में बाधक बनने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मेरी कमजोरियों को प्रकट करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मेरे गमों से दुःखी होने का प्रपंच करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मुझे बेकार में,अकारण ही सहारा देने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मेरे लिए ओछी सोच रखने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

अपनी शक्ति का यूँ ही दम्भ भरने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

मेरे सुखों की परवाह करने वालों,
जरा मुझे मेरे दुःखों के साथ जी लेने दो.

विनती

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

विनती करती मैं सदा, जोड़ूँ दोनों हाथ.
विद्या दो माँ शारदे! चरण झुकाऊँ माथ..
विनती मेरी आपसे, मुझको दो वरदान.
मैं छोटी-सी लेखिका, मिले कलम को मान..
जय माँ वीणा वादिनी! स्वप्न करो साकार.
आयी हूँ मैं द्वार पर, कर दो बेड़ा पार..
सत्य राह पर मैं चलूँ, सिर पर रखना हाथ.
भूल चूक माफी मिले, रहना मेरे साथ..
चले कलम मेरी सदा, ऐसा दो वरदान.
ज्ञान दीप जलती रहे, पूरे हो अरमान..

विनती

रचनाकार- सीमा यादव

हे नारायण हे श्री कृष्ण हरे...
मुझमें भी वही भक्ति जगा दे...

जिस भक्ति से मीरा,शबरी,द्रौपदी अहल्या की मान बढ़ी..
जिस भक्ति से कुंती, तारा, मंदोदरी की जगत में पहचान बनी...

जिसकी भक्ति से द्रवित होके तूने नारायण रूप धरा...
भक्ति का मान बढ़ाके भक्त का रूप संवारा...

हे नारायण हे श्री कृष्ण हरे...
मुझमें भी वही भक्ति जगा दे...

सारे संसार को भक्तिमय बनाया....
पुनः सारी दुनिया में भक्ति का प्रकाश फैलाया...

मीरा सी प्रेम दीवानी बन जाऊँ...
सबरी सी ममता लाऊँ...
द्रोपदी सी सहनशीलता हो जाऊँ...
अहल्या सी धैर्य की शक्ति बन जाऊँ...

हे नारायण हे श्री कृष्ण हरे...
मुझमें भी वही भक्ति जगा दे...

भक्ति का रस पीकर सारी सृष्टि में...
भक्ति की लहर से भक्ति की खुशबू जाऊँ...

हे नारायण हे श्री कृष्ण हरे...
मुझमें भी वही भक्ति जगा दे...

सारी धरा पर भक्ति की वर्षा से...
चैतन्य जगत को सिंचित कर जाऊँ...
सुन लो भगवन, मेरी अंतस की क्रन्दन...
करती हूँ तेरे चरणों की बारम्बार वंदन...

हे नारायण हे श्री कृष्ण हरे...
मुझमें भी वही भक्ति जगा दे...

ग़ज़ल

रचनाकार- अंजु दास गीतांजलि

आप मेरी सिफारिश किया कीजिए
नाम महफ़िल में मेरा लिया कीजिए.
आप चाहे तो राहों में मिलकर मुझे
ज़ख़्म जितने है दिल को दिया कीजिए.
साथ तन्हाइयाँ जो चली आपकी
छुप के ऐसे न आँसू पिया कीजिए.
हमको रुसवाइयों ने किया दर -ब -दर
चाक दामन ये मेरा सिया कीजिए.
जिससे बदनामियाँ साथ मिलकर चले
काम ऐसा न कोई किया कीजिए.

कैसा दिन देख रहे

रचनाकार- सोमेश देवांगन

कैसा दिन देख, रहे हैं हम अब.
हवा पानी भी, खरीद रहें हैं सब..

करते रहते थे, बहुत मनमानी.
न मिलता, ताजा हवा न पानी..

पैसे से लेते, जीने के लिए हवा.
कहते बोतल, बन्द पानी है दवा..

किये हैं पेड़ की, जी भर कटाई.
हवा के लिए, अब हो रही लड़ाई..

जिंदगी में एक भी, पेड़ न लगाई.
बिन आक्सीजन के, जान गवाई..

अपनो को मरते, सब देख रहे हैं.
अब खून के आँसू, सब रो रहे हैं..

खेल डायरी

रचनाकार- प्रमोद नवरत्न

वह खेल सुहाना लगता है,
जब दोस्त साथ हो जाते हैं.
आलस्य सब दूर हो जाता है,
जब क्रिकेट मैच हो जाता है.
वह मैच आनंद आ जाता है,
जिस मैच में हम चल जाते हैं.

वह कैच लाजवाब होता है,
जो मुश्किल वक्त में हम लेते हैं.

वह खेल सुहाना लगता है,
जब दोस्त सब मिल जाते हैं.

उस ओवर में ताली बजती है,
जब चौका छक्का पड़ता है.

वह पल खराब-सा लगता है,
जब रनआउट हम हो जाते हैं.

वह खेल सुहाना लगता है,
जब अच्छा फिल्डिंग होता है.

वह मौसम सुहाना लगता है,
जब क्रिकेट का मैच हो जाता है.

क्या गर्मी और क्या ठंडी,
बरसात में भी हम खूब दौड़ लगाते हैं.

वह मैच रोमांचक लगता है,
जब आखरी बाल पर हम जीत जाते हैं.

नदियाँ

रचनाकार- सरिता माही

सुनो मेरे धरती के वासी,
मैं कल-कल करती नदियाँ हूँ.
तुम मुझसे मैं तुमसे जुडी़,
इस मिट्टी का अंग मैं भी हूँ.

मांग रही मैं तुमसे जीवन,
जो तुमको जीवन देती हूँ.
ना सताओ मुुझको तुम,
ऐसे मुझे बहने दो.

उसी धार पर मुझे जा मिलना है,
मुझ पर थोड़ा सा उपकार कर.
पहाड़़ों की चोटियों से,
मैं रास्ते खुद ही बनाती हूँ.
आकर तुम्हारे गलियों में,
मैं बांधों से बंध जाती हूँ.

कारखानों के काले रंग,
आकर मुझसे लिपट जाते हैं.
बेजुबान मासूम जानवर,
उसे पीकर मर जाते हैैं.

गलतियाँ तुम करते हो,
दोष मुझ पर लगाते हो.
इस सुन्दर धरती की,
जल धारा मैं नाम हूँ.
सुनो मेरे धरती के वासी
मैं ही गंगा-यमुना चारों धाम हूँ..

जिराफ

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

जंगल में आया एक मेहमान,
उसे देख सब हुए हैरान.
ऊँची गर्दन, लम्बी टाँगे,
देख उसे सब जानवर भागे..

नाम था उनका जी से जिराफ,
करता सब को वो है माफ.
सब लोगों का कर सम्मान.
बन गया जंगल का वो शान..

ऊँची पेड़ की डाली को खाता,
उसे देख बकरी ललचाता.
देख बकरी को करता मस्ती,
कर बैठा जिराफ है दोस्ती..

जिराफ के सर बकरी बैठता,
जंगल की वो सैर कराता.
पेड़ों की पत्ती को खाता,
उनका मन हर्षित हो जाता..

देख जिराफ-बकरी की दोस्ती,
शिकारी की पड़ी नजर.
गडढा खोदा जाल बिछाया.
फंस गए दोनों जमीं अंदर..

जल

रचनाकार- सविता भूदीप, आठवीं, स्वामी विवेकानंद शास.उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल जगदलपुर

जल न रहेगा तो,
जीवन न रहेगा.
चलो हम साथी पानी बचाएंगे,
आने वाले समय ये कष्ट न पाएंगे.
पानी की एक-एक बूँद को,
समझेंगे समझायेंगे.

पानी बचाएंगे, पानी बचाएंगे,
पानी की बर्बादी,
दूसरों से ना करवाएंगे.
सबको समझायेंगे, पानी बचाएंगे..

चलो घूमने जाएँ

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

पापा चलो घूमने जाएँ
चाट, पकोड़े खाकर आएँ.

मम्मी करती टोका-टाॅकी
उसको साथ नहीं ले जाएँ.

गए थे एक दिवस बाजार
वहाँ से लाए थे आचार.

इस बार जब हम जाएँगे
मुनिया को भी ले जाएँगे.

उसे दिलाना नए खिलौने
सुन्दर गुड़िया, मृग के छौने.

मुझको नहीं चाहिए ज्यादा
करता हूँ मैं तुमसे वादा.

बस, मुझे एक बाॅल दिलाना
या अच्छी मूवी दिखलाना.

डॉक्टर

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

तन मन को स्वस्थ बनाता
बीमारी को दूर भगाता

धरती का है भाग्य विधाता
डॉक्टर उसका नाम कहलाता

जल्दी सोना,जल्दी जागना
स्वास्थ्य है हम सब का गहना

सुबह-शाम पैदल है चलना
डॉक्टर का सबको हैं कहना

जितना खाना उतना पचाना
हरे पत्तेदार सब्जियां खाना

धूम्रपान से दूर ही रहना
बासी भोजन कभी ना करना

फल फूल से जोड़ो नाता
जंग फूड से तोड़ो नाता

नियमित जो टहलने जाता
स्वस्थ्य निरोग तन मन पाता

बरखा आई

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

धरती माँ की प्यास बुझाने
सब जीवों में आस जगाने

तेज हवा का झोंका आया
संग में अपने बरखा लाया

मेंढक करता टर्र-टर्र-टर्र
पानी बरसे झर-झर-झर

बादल गरजे गड़-गड़-गड़
बिजली चमके कड़-कड़-कड़

मोर पपीहा कोयल गाए
धरती में हरियाली छाए

फ्रिज का पानी

रचनाकार-कन्हैया साहू 'अमित'

मत करना तुम यह नादानी..
कभी न फ्रिज का पीना पानी..

बार-बार अब छींक सताये.
नाक बहुत बहती ही जाये..

दुख देता है खाँसी बलगम.
फिर बुखार रहता है हरदम..

अस्पताल पड़ जाये जाना.
खूब दवाई तो फिर खाना..

इंजेक्शन दो चार लगाये.
अक्ल ठिकाने आ ही जाये..

मम्मी कहती कहना मानों.
भला-बुरा अपना पहचानों..

वन है तो जल है, जल है तो जीवन

रचनाकार- लक्ष्मी तिवारी

आओ बच्चो सीखे हम, चिड़ियों से कुछ ज्ञान.
ज्ञान और मेहनत से ही, जग में बनते सभी महान..

रात को कभी न घूमे चिड़िया और न ही कुछ खाते हैं.
अपने बच्चों को सही समय में सही ज्ञान सिखलाते है..

कभी नहीं खाते ज्यादा न कुछ साथ ले जाते हैं.
रोज सवेरे सबसे पहले, जग में ये जाग जाते हैं..

भोजन अपनी कभी न बदले, जीवन भर दिनचर्या में.
कठिन परिश्रम कर के खाते, जीवन भर दिनचर्या में..

प्रकृति से उतना ही लेते, जितना उन्हें जरूरत है.
हमे सिखाते ये परिंदे, कुदरत की क्या कीमत है..

अपना घर पर्यावरण को सदा अनुकूल बनाते हैं.
अपनी भाषा छोड़ कर न कोई भाषा अपनाते हैं.

यही ज्ञान इन पंछियों से, सदा सर्वदा हम भी सीखें.
प्रकृति से कर के प्यार, पेड़-पौधों को सदा हम सींचे..

वन है तो जल है, जल है तो जीवन है
ये हमेशा तुम जानो.
मूल मंत्र है जीवन का तुम जल,वन संरक्षण को पहचानो..

अच्छी संगत और अच्छी शिक्षा

रचनाकार- लक्ष्मी तिवारी

आओ सुनाऊ बच्चो तुमको
दोस्ती की एक कहानी.
दो दोस्त थे एक गाँव में
एक दूध तो दूसरा पानी..

पानी सस्ता और था निर्मल
दूध महँगा और अमृत तुल्य.
पानी का कुछ कम था मोल
दूध बिकता था बहुमूल्य..

हुई दोस्ती दोनों में एक दिन,
मिल गया पानी दूध से एक दिन.
दूध ने दोस्ती का फर्ज निभाया,
संग में पानी का मोल बढ़ाया..

दोस्ती अच्छे लोगो से हो तो
कीमत बढ़जाती है,
संगत गलत लोगों से हो तो
*इज्ज़त घट जाती है..

यही सिखाती है बच्चो
कहानी दूध और पानी की.
अच्छी संगत और अच्छी शिक्षा
कीमत बढ़ाती है जिंदगानी की..

बेटियाँ

रचनाकार-टी. विजयलक्ष्मी

लहलहाती पल्लवों की,
शीतल छाँव हैं बेटियाँ.
पक्षियों के कलरव सी,
निश्छल स्वर हैं बेटियाँ.
वंशवृक्ष को विस्तार देती,
खुशनुमा कल है बेटियाँ.
शीतल, सरस कूप की,
मृदु-मृदु जल हैं बेटियाँ.
जिंदगी की खूबसूरत,
मधुर पल हैं बेटियाँ.
ईश्वर प्रदत्त अनमोल,
उपहार हैं बेटियाँ.
बेटी, बहन के रूप में,
देतीं है प्यार अपार,बेटियाँ.
पत्नी बनकर संवारती,
किसी का घर-संसार,बेटियाँ.
माँ,नानी,दादी के रूप में,
ममता का भंडार हैं,बेटियाँ.
पढ़ेंगी बेटियाँ,तभी तो,
नया भारत गढ़ेंगी बेटियाँ.

जब देना हो दान

रचनाकार- वंदिता शर्मा

जब देना है कोई दान,
तो दे दो हर इंसान
रक्तदान महादान.

जो व्यक्ति रक्तदान करते,
हृदयरोग से कम परेशान रहते.
स्वस्थ व्यक्ति करे दान
सुखद जिंदगी का है सार
रक्तदान महादान है

हर व्यक्ति कर सकता है
चाहे महिला हो या पुरुष
सब कर दो रक्तदान
बना लो जीवन अपना खुशहाल
रक्तदान महादान.

रक्तदान करने से
मिलता है जीवनदान
वह व्यक्ति बन जाता है महान
जिसने किया है रक्तदान
मिलती है दुआयें उनको
जो देते हैं जीवनदान,
रक्तदान महादान

ext-align:center;text-decoration:underline;'>रानी तितली

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

रंग बिरंगे पंखों वाली,
फूलों पर मंडराती हैं !
लेकर रस फूलों की वो
गीत खुशी की गाती हैं !!

नभ गगन पर उड़ती रहती,
बात फूलों से करती है !
पकड़ने को हाथ बढ़ाओ
फुर्र से वो उड़ जाती हैं !!
चुन-चुन रस फूलों का लेती,
मन है हर्षित और उमंग !
बागों की सौंदर्य बढ़ाती,
सुंदर,कोमल उसके अंग !!

सजधज कर वो आती है,
सुंदर पंख फैलाती है !
बैठ फूलों पर रानी तितली
मंद मंद मुस्काती है !!

वन,उपवन में विचरण करती,
आखेटन से वो है डरती !
हम बच्चों की प्यारी तितली,
लगती सुंदर रानी तितली !!

बरसात

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

रिमझिम-रिमझिम करती आई
बरखा रानी साथ है आई!!

मिट्टी की सौंधी खुशबू से,
घर आँगन उपवन महकाई!!

गड़-गड़गड़-गड़ बादल गरजे,
कड-कड़,कड़-कड़ बिजली चमके !!

पानी बिन जब धरती तरसे,
घुमड़,घुमड़ तब बादल बरसे,

बूंदों की जब पड़ी फुहार,
बागों में छा गई बहार !!

मोर पपीहा कोयल गाए,
धरती में हरियाली छाए !!

भर गए सरवर,ताल तालाब,
उपवन मे खिल गए गुलाब !!

संभल कर चलना

रचनाकार- महेंद्र देवांगन 'माटी'

काँटो से भरी है राह राही,
संभल-संभलकर चलना.
पग-पग में है सतरँगी जाल,
बिछाये बैठी छलना..

अगर पाना है लक्ष्य तो,
आगे ही बढ़ते जाना.
राह कठिन जरूर है,
इससे ना घबराना..

चाल तेरी मंद ना हो,
काली रात से ना डरना.
प्रभात जरूर होगा राही,
अँधियारो से लड़ते रहना..

उदास होकर तू अपना,
गाण्डीव ना रख देना.
कौरव के छल में आकर,
समझौता ना कर लेना..

आलस अत्याचार अहं के,
जाल में ना फँस जाना.
कर्मठता उत्साह शांति से,
ज्ञान की ज्योति जलाना..

प्यास बुझा दो जन-जन की,
बनकर निर्झर झरना.
रहम करो सभी पर राही,
दुखियों का घाव भरना..

बरसो रे बदरा

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

बदरा बरसो रे,
बरसो रे बदरा.

जलती तपती धरती प्यासी,
प्यासे प्यासे खेत.
नदी सूख कर हुई नदारद,
दिखती केवल रेत.

पंछी तड़प रहे हैं प्यासे,
बदरा बरसो रे!
बरसो रे बदरा.

सूख गईं हैं बेल लताएं,
सूख गये हैं फूल.
हरे भरे तरुवर भी सूखे,
लगते आज बबूल.

बेजुबान पशु प्यासे ब्याकुल,
अब तो हरसो रे!
बदरा बरसो रे!
बरसो रे बदरा.

उमस भरा मौसम दुखदायी,
जीना मुश्किल है.
गरमी धूप पसीना चिप-चिप,
बारिश ही हल है.

सांस रुकी दम घुटता जैसे,
बरसो गरजो रे!
बदरा बरसो रे!
बरसो रे बदरा.

दर्पण

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

मन का दर्पण साफ रख, खड़ा हुआ है आज.
सच्चाई का सामना, पूरा करते काज..
नारी का श्रृंगार है, सजती है दिन रात.
बैठ पिया के सामने, करती मीठी बात..
मन के अंदर मैल है, मुखड़ा यूँ चमकाय.
मीठी-मीठी बात से, मन को बहुत लुभाय..
दर्पण से खेले नहीं,आती गहरी चोट.
रख सच्चाई सामने, मन मे जितना खोट..
मन के अंदर झाँक कर, खुद ही देखो आप.
कर्म करो अच्छे सभी, मिट जाएगा पाप..

मैं भी कर सकती हूँ

रचनाकार- मंजू साहू

मैंने देखा है फूलों को,
हुई है परेशान वो भी,
काँटों और तितलियों से
मेरी राहों में भी है काँटे
खिलना चाहती हूँ,
हर सुबह मैं भी आगे.

मैंने देखा है चींटियों को
चढ़ जाती हैं पहाड़ पर
खूब करती हैं वो भी मेहनत
मैनें देखा है, नदियों को
बहती रहती हैं वो हर
बाधा को पार कर.

'रोको न मुझे, टोको न मुझे,
करने दो अपनी मनमानी.
मैं किसी की कैद में नहीं,
चैन की सांस लेने दो मुझे.

मैं भी सब कुछ कर सकती हूँ,
मैं भी आगे पढ़ सकती हूँ,
हर मुश्किलों का सामना,
मैं भी कर सकती हूँ.

मामा शहर घुमाएँगे

रचनाकार- राजेन्द्र श्रीवास्तव

जब गर्मी की छुट्टी आई
मम्मी ने योजना बनाई.
पिंकी से बोलीं- 'इस साल
सभी चलेंगे नैनीताल.'

मौसम वहाँ सुहाना है,
गर्मी से बच जाएँगे.
पास वहीं दादा-दादी
कुछ दिन वहाँ बिताएँगे.

पिंकी बिटिया से मिलकर
दादा खुश हो जाएँगे.
दादी गीत सुनाएगीं
चाचा शहर घुमाएँगे.

पिंकी बोली-'फिर हम सब
नाना के घर जाएँगे.
नानी के किस्से होंगे
मामा शहर घुमाएँगे.

मौसम कुछ उदास है

रचनाकार- सरिता लहरे 'माही'

आज ये मौसम कुछ उदास है,
बादलों से भी बाते नहीं कर रही
न जाने क्यों...

पंछी ने भी पूछा पर,
कुछ बोले बिन ही रह गई.

हवाएँ भी रुख मोड़ गए,
पत्ते-से-पत्ते कुछ बोल गए.

फिर भी न मानी रूठी रही,
उदास मन से बैठी रही.

आज मौसम कुछ बेईमान
सा लगता है, न जाने क्यों

नदियाँ, झरने सब चुप लगते,
तितली, भौरें छुप के बैठे.

आज मौसम उदास सा लगता है,
कुछ कहकर भी कुछ ना कहता है.
न जाने क्यों..

सूरज भैया

रचनाकार- वसुंधरा कुर्रे

बड़े सवेरे आते सूरज भैया
देते हमें नया संदेश सूरज भैया
बड़े सवेरे तोड़ अंधेरे
देते आंगन,खिड़की, छत पर लाली घोल
बड़े सवेरे आते सूरज भैया
सब को बोलते आलस छोड़ो
नींद उड़ाते सूरज भैया
सूरज भैया जैसे आते
सभी जीव-जंतु झाँकने लगते
कभी न थकता हमेशा चमकता
ऐसा पाठ हमें सिखाता
सूरज भैया
दया धर्म का पाठ नियम का
रोज पढ़ाते सूरज भैया
ना किसी को कम, ना किसी को ज्यादा
सबको बाँटते बराबर प्यार
सूरज भैया
जब मुस्काती संध्या आती
वापस जाते सूरज भैया
कल मिलूंगा नया सवेरे
ऐसा सीख हमें दे जाते
सूरज भैया

साइकिल

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

जी हाँ मैं साइकिल ही हूँ,
दो पहियों पर चलती हूँ.
छोटे-बडे सभी के स्वास्थ्य,
का मैं ख्याल रखती हूँ..

मेरे पैडल को मारकर तुम,
आगे बढाने मेहनत करोगे.
प्रतिदिन आधा घंटा भी,
जो तुम मुझे चलाओगे..

इस पर परिश्रम कर के,
तुम जो पसीना बहाओगे.
इससे तुम स्वयं को स्वस्थ,
सदा के लिए रख पाओगे..

रोज-रोज तू महंगा ईंधन,
भराने से भी बच जाओगे.
पेट्रोल डीजल को भराने,
लाईन से बच जाओगे..

मुझे चलाने से कभी भी,
झंझट कुछ ना रहता है.
करो जो मेरा उपयोग तो,
प्रदूषण भी नहीं होता है..

मेंटेनेंस भी तो कम होता,
खर्चा कम ही लगता है.
रजिस्ट्रेशन और बीमे के,
झंझट से भी बच जाते है..

मस्त होकर चलाओ मुझे,
लाइसेंस की ना जरूरत है.
चाहे जहां चला ले जाओ,
चालान का भी ना खतरा है..

सदा जेब का रखती ख्याल,
अमीर-गरीब सब की प्यारी हूँ.
मैं तो बच्चे-बुढे और जवान,
स्त्री-पुरुष सब की दुलारी हूँ..

कोरोना

रचनाकार- सविता भूदीप,कक्षा आठवी, स्वामी विवेकानंद शासकीय उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूल जगदलपुर

योग रोज करो कोरोना से ना डरो
आओ सब मिल कर कोरोना को हरायें
देश को बचायें, देश को बचायें

योग रोज करो, टीकाकरण से न डरो
आओ सब मिल कर टिका हम लगाएँ
कोरोना से बच जाएँ, कोरोना से बच जाएँ
योग रोज करो योग रोज करो

हम सब न डरेंगे, महामारी से लड़ेंगे
हाथ हमेशा धोयेंगे, मास्क हम लगाएंगे
दो गज दूरी बनाएंगे, कोरोना को भगाएंगे
योग रोज करो, योग रोज करो

सड़क

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

सीधे,लम्बे,टेढ़े,मेढ़े दिखती हूँ मैं !
गाँव,गली शहरों में रहती हूँ मैं !!

सब लोगों की भार को सहती हूँ मैं !
कहीं कच्चीकहीं पक्की रहती हूँ मैं !!

कैसे चलना है सड़कों पर बताती हूँ मैं !
संकेतों का पालन करना सिखाती हूँ मैं !!

सावधानी से चलने का गीत गाती हूँ मैं !
लोगों को मंजिल तक पहुँचाती हूँ मैं !!

लाल बत्ती रुकने को कहती हैं हमें !
संयम का पाठ पढ़ाती हैं हमें !!

हरा बत्ती जाने को कहती है हमें !
बायां तरफ चलना सिखाती है हमें !!

पीली बत्ती तैयार कराती हैं हमें !
सड़क दुर्घटना से बचाती हैं हमें !!

पापा प्यारे

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

पापा मेरे भोले-भाले.
लेकिन भारी हिम्मत वाले..
नहीं किसी को कभी सताते.
उलझ पड़े तो चपत लगाते..

हम बच्चों के सबल सहारे.
लगते पापा प्यारे-प्यारे..
घर भर के वे हैं रखवाले.
जिम्मेदारी बड़ी सँभाले..

पापा गुस्से में जब आते.
मन ही मन देखा मुस्काते..
गलती हो तो डाँटा करते.
पर बच्चों पर सच में मरते..

नहीं पढ़ा तो गाल फुलाते.
घोड़ा बनकर पास बुलाते..
कहें खेल अच्छा है खेलो.
लेकिन साथ कष्ट भी झेलो..

काम रात-दिन करते पापा.
खुशियों से घर भरते पापा..
कभी हमारा साथ न छोड़े.
विपदाओं का वो मुख मोड़े..

पापा हैं तो ठाठ हमारी.
रहें सदा इनके आभारी..
पापा हैं बच्चों की दुनिया.
हँसते रहते मुन्ना-मुनिया..

साइकिल

रचनाकार- शिवचरण चौहान

चली साइकिल टिन-टिन-टिन.
धूल, धुआं, प्रदूषण बिन..
चलती बिन डीजल पेट्रोल.
इसके पहिए गोल मटोल..
घोड़ा खाए घास चना
तब करता है हिन-हिन-हिन..
चली साइकिल टिन-टिन-टिन..
मोटर वायुयान सब फेल.
हार गई है इससे रेल..
ताक धिना-धिन-धिन-धिन.
चली साइकिल टिन-टिन- टिन..

पिल्ला पाला

रचनाकार- पुखराज सोलंकी

मैंने इक पिल्ला पाला
रंग है जिसका काला
दिखने में सबसे अलग
वो है सबसे आला

सुबह-सुबह मुझे जगाने
पूंछ हिलाता भागा आता
उछलकूद करते-करते
स्कूल बस तक पहुंचाता

रात भर चौकन्ना रहता
आहट हो तो भौं-भौं करता
जब तक स्कूल से न आऊँ
बेसब्री से राह है तकता

स्कूल से आ के घुमने जाता
पार्क में उसको टहलाता
मिलकर उधम मचाते हम
मस्ती करतें घर आते हम

वैसे कई हैं दोस्त मगर
वो है सबसे निराला
मैंने इक पिल्ला पाला
रंग है जिसका काला

वन में लॉकडाउन

रचनाकार- कल्याणमय आनंद

वन के राजा शेर को जब
हाथी ने यह बात बताई
कोरोना नामक बीमारी
शहर से वन में है आई

कैसे होगा इससे बचाव
शेर ने यह चिंता जताई
गहन वाद-विवाद के बाद
हिरन ने तरकीब सुझाई

वन को कर दें लॉकडाउन
यह युक्ति सबको खूब भाई
सभी आशियाने में ही रहें
शेर ने यह हिदायत सुनाई

बंदर मचा रहा है उत्पात
दूसरे दिन खबर ये आई
लोमड़ी ने बंदर की रपट
थाने में जाकर लिखवाई

थानेदार भालू ने उससे
सौ उठक-बैठक करवाई
बंदर की सही मायने में
तब अक्ल ठिकाने आई

विजयी

रचनाकार- डॉ. दलजीत कौर

डरपोक कह कर माँ
मुझे बुलाते सारे बच्चे
इसीलिए नहीं लगते
मुझे प्यारे और अच्छे
झूले पर चढ़ कर माँ
मैं बहुत डर जाता हूँ
ऊँचाई से माँ जाने
मैं क्यों घबराता हूँ
डरने की नहीं बात
माँ ने उसे समझाया
सीखकर पहले से
नहीं यहाँ कोई आया
साहस से बढ़ो तुम
सफलता पा जाओगे
लड़कर कमज़ोरी से
विजयी कहलाओगे.

पार्क

रचनाकार- डॉ. दलजीत कौर

सुन्दर पार्क शहर में
सरकार ने बनाए
देखो!हम सब बच्चे
खेलने यहाँ आए
पेड़ -पौधे, फूल -घास
झूले भी लगाए
मिल कर खेलें सब
चोट न कहीं लग जाए
पौधों का रखें ध्यान
नुक़सान न पहुँचाएँ
चिड़िया,गिलहरी खेलें यहाँ
उनको न सताएँ
देश की सम्पत्ति यह
हम भी इन्हें अपनाएँ

लुका-छिपी

रचनाकार- कमल चंचल

सूरज के आते नभ से
चंपत हो जाते तारे.
दस-बारह की बात नहीं
मिलकर सारे के सारे.

दूसरे गोलार्द्ध में जा
तारे झलक दिखाते हैं.
नन्हे-मुन्ने बच्चों को
टिमटिमाकर रिझाते हैं.

आ धमकता है आदित्य
देर सबेर यहाँ फिर जब.
सबके सब विवश अभागे
भाग खड़े होते हैं तब.

मिलकर दिनकर-तारे नित
लुका-छिपी खेला करते हैं.
लेकिन वे आसमान पर
कदापि न झमेला करते हैं.

मेल का खेल

रचनाकार- हर प्रसाद रोशन

बाग घूम कर बंदर आया,
काले-काले जामुन लाया.
झूमता हुआ हाथी आया,
सेब, संतरे, केले लाया.
टप-टप करता घोड़ा आया,
मीठे रसीले आम लाया.
सबके बाद में हिरन आया,
तरबूज और अनार लाया.
सभी फलों का ढेर लगाया,
मिलजुल कर फिर सब ने खाया.
मम्मी ने यह गीत सुनाया,
मेल का खेल पसंद आया.

तितली अब आज़ाद हुई

रचनाकार-कुसुम अग्रवाल

कैद पड़ा था अंडे में, कैटरपिलर आज़ाद हुआ..
डाल-डाल पर घूम रहा कैटरपिलर आजाद हुआ.

कैटरपिलर था कितना भोला, खुद ने यह प्रबंध किया
क्रिसलिस रूपी जेल बनाई खुद को उसमें बंद किया.

रहा बहुत दिन बंद जेल में उसमें प्यूपा कहलाया
तोड़ जेल का दरवाजा इक दिन वह फिर बाहर आया

कैद पड़ा था क्रिसलिस में, प्यूपा अब आजाद हुआ
तितली बनकर उड़ चला, प्यूपा अब आजाद हुआ

आजादी है सबको प्यारी कहती है तितली प्यारी
आजादी है सबसे न्यारी कहती है तितली प्यारी.

हमें छोड़कर दूर घूमने जाती अब प्यारी तितली
रुको रुको में टाटा कह दूं जाओ तब प्यारी तितली.

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