छत्तीसगढ़ी बालगीत

महतारी पूछय सवाल

रचनाकार-सोमेश देवांगन

मोर छत्तीसगढ़ महतारी ह पूछय फेर सवाल.
मोर हरियर अँछरा फेर होगे काबर लाल..

घर के दुश्मन घुन कस कीरा छाती छेदत हे.
दुलरुवा बेटा मन के जीव परान ल लेवत हे..

काबर अतका बाढ़त हावय घोर अत्याचार.
महतारी ला घलो आँखी देखावत हे दुराचार..

ये घुनहा बीमारी ले मोला घलो अब बचावव.
घर के बैरी दुश्मन ल खोज के मार गिरावव..

जीव हरिया जाही

रचनाकार-ललिता लहरे

ठलहा काबर बइठे हस,
तैं गरियार बइला कस.
काबर नइ आवस बाबू
पुतरा-पुतरी खेले बर.

ललचावत हे मन हर मोरो
समोसा जलेबी खाये बर
ममा घर जावन नइ देवय
उनकर मन ले मिले बर.

गाड़ी-घोड़ा चलत नइ हे
ये डहर ओ डहर जाये बर
अड़बड़ जीव छटपटावत हावै
संगवारी के संग मिले बर.

स्कूल के अड़बड़ सुरता आथे
मन हर अड़बड़ गुदगुदाथे
संगी-संगवारी के बात मोला
अपन तीर रोज बलाथे.

कलेचुप चल दिही पीरा
लहुट के सुख ह आही रे
मन फेर हाँसही-गोठियाही
जीव हर हरिया जाही रे.

गर्मी के दिन आगे

रचनाकार-कन्याकुमारी पटेल

गरमी के दिन आगे भाई, टोंटा गजब सुखावत हे.
बिन पानी के जीव-जंतु सब,रुख-राई घलो मुरझावत हे.
लकलक भोंभरा जरत हावै, सूरुज अंगरा बरसावत हे.
पों-पों करत कुल्फी वाला, लईका ला बुलावत हे.
गरमी मा तो चूर गे मुँह ह, साग-पान नइ मिठावत हे.
आमा चटनी संग बोरे बासी, अमली के लाटा सुहावत हे.
थोरकिन काम-बूता मा,पछिना गजब चूचवावत हे.
पंखा कूलर, ए सी-वे सी,अपन तीर मा बलावत हे.
करसी पानी, केकरी-कलिंदर, गजब तो सुहावत से.
पक्का आमा,खीरा, खरबूज,
सब के मन ल भावत हे.
तरिया नदिया नरवा के पानी कऊखन अब अंटावत हे.
पानी बचाओ, पानी बचाबो, कहिके सबो चिल्लावत हे.

सब झन जुरमिल के भैया, आओ पेंड लगाबोन.
पर्यावरण के रक्षा करबोन, पानी के सोत बढ़ाबोन.

नानपन के मोर गॉव

रचनाकार-संतोष कुमार तारक

ददा के मया दुलार,मोर दाई के अछरा के छांव.
याद आथे संगी मोला, नानपन के मोर गॉव..
पेंड़ तरी खेलन भोटकउला.
गउ दइहान के गिल्ली अउ डंडा..
आषाढ़ के पानी, अउ कागज के मोर नांव......

याद आथे संगी मोला नानपन के मोर गॉव..
लकड़ी के बने, राईचुली ढेलउवा.
बइला चरई अउ, डंडा कोलउवा..
होत बिहनिहा कुकरा बासय, अउ कउंआ करे कांव कांव...........

याद आथे संगी मोला नानपन के मोर गॉव..

स्कूल ले आके, तरिया म तउड़ई.
कागज के बने, पतंग उड़ई..
ओ टेड़गा रुख, अउ मोर छोटे-छोटे पांव.
याद आथे संगी मोला नानपन के मोर गॉव..

ददा के मया दुलार,मोर दाई के अछरा के छांव.
याद आथे संगी मोला नानपन के मोर गांव..

फोटु खिंचईया के गोठ

रचनाकार-सोमेश देवांगन

मय हरव सबके फोटू खिंचईया.
तुंहर सुख दुख ल संजो के रखईया..
सब मोला कहय फोटू वाले भईया.
होय कोनो घर के दाई दीदी मईया..

मोर बूता मय रोवत ल घलो हसाव.
कहव हँस के बने फोटू ल खिंचवाव..
रिसाय मनखे ल घलो मय हर मनाव.
जिहा कहेव उहाँ फोटू खिंचेल आव..

का बर का बिहाव सबो जगह जांव.
जनम धरे लइका के छट्ठी में आंव..
मरनी हरनी में तको फोटू खिंचेल जांव.
मोर बूता इही हरय फोटू खिंचे ल आंव..

दुख में रइके तुंहर सुख म घलो जांव.
बोहावत आंसू ल पोछ के मय मुस्कुराव..
अपन सुख ल छोड़ दुख म तुंहर मिल जांव.
अपन हिरदय ल बोल के मय बढ़ समझांव..

का बिहनिया मंझनिया अउ बरसात.
जेन बेरा में कहे त उही बेरा म तुंहर साथ..
भगवान तो मोर केमरा हरय नवाव मय माथ.
दिन भर मोर साथ चलय पकड़े रथे मोर हाँथ..
अपन सब ल छोड़ के मय तुंहर संग जाथव.
तुंहर सपना ल सँजो के मय हर सुख पाथव..
कविता ल मोर सोमू भाई बर समर्पित करथव.
कभू कभू परब परे म संग म ओखर रेंगथव..

जवारा विसर्जन

रचनाकार-सोमेश देवांगन

कइसे करबो माता जोत जवारा के विसर्जन
सेवा करे हावन नव दिन माता कांप जाथे मन
सेवा बजायेन तोर माता जवारा के करे जतन
कइसे करबो माता जोत जवारा के विसर्जन......


करशा चुरकी माटी जवा मिला तोला सिरजायेन
सींचेन जवारा ल अउ के घी के जोत जलायेन
नव दिन माता के आघू सेवा जस गीत गायेन
सेवा भाव म लीन रहिके अपन दिन ल पहायेन
कइसे करबो माता जोत जवारा के विसर्जन....

जोत जवारा विसर्जन म आंसू लागे बोहावन
जवारा विसर्जन ला सोच के रोवत हावे मन
बोहावत आंसू मन ले करेन जवारा विसर्जन
सोमेश करत हे माता अपन तन मन धन अर्पन
कइसे करबो माता तोर जोत जवारा के विसर्जन.........
जल्दी आबे माता रद्दा जोहत बइठे हमन
आशिष कृपा रखहु माता खुश रहें लइकामन
बोहावत आँसू ले करबो माता जोत जवारा के विसर्जन

अइसे जीनगी ल पहाना हे

रचनाकार-टेकराम ध्रुव 'दिनेश'

करोना संकट भागे नइ हे
मास्क अभी लगाना हे
मनखे मन के बीच म संगी,
दू गज दूरी बनाना हे.
घेरी-बेरी हाथ धोय के,
वायरस ल हटाना हे.
अइसे करके खुद ल अउ,
दूसरो ल बचाना हे.
मानुष जोनी पाये हन त
जुच्छा नइ गवाना हे.
धीरज,दया अउ धरमके
मन म जोत जगाना हे.
हिरदय पावन राहय सब के
मानवता लाना हे.
जुग-जुग तक सब याद करय,
जिनगी ला अइसन बनाना हे.

लहुटत हे कोरोना

रचनाकार-सोमेश देवांगन

लहुटत हावय मास्क लहुटत हे कोरोना.
करेन अपन मनमानी अब रोबो अपन रोना..

फेर लगाव मास्क ल अउ लगाव सेनेटाइजर.
कोरोना बाढ़त हे जइसे लगे स्टेपलाइजर..

गांव म हाका हे कोरोना हावय जिंदा..
काबर कोनो नई करत हो जिनगी के चिंता..

वायरस सन करत हन हमन मनमानी.
धरही कोरोना लागय नही बुढ़वा अउ जवानी..

घेरी-बेरी सेनेटाइजर अउ मास्क ल लगाव.
ये कोरोना बीमारी ल अपन ले दुरिहा भगाव..

छत्तीसगढ़ी वर्ण

रचनाकार-अनिता चंद्राकर

छत्तीसगढ़ी के स्वर

अ-अ से अथान अम्मट, नुनचुर.
आ-आ से आमा हरियर, पिंवर.
इ-इ से इड़हर अब्बड़ सुहाथे.
ई-ई से ईंटा जोरे म बड़ मजा आथे.
उ-उ से उरिद दार के बरा बनाबो.
ऊ-ऊ से ऊँटवा ल पत्ता खवाबो.
ए-ए से एक्का गाड़ी म घुमय ल जाबो.
ऐ-ऐ से ऐंठी पहिन के सबला देखाबो.
ओ-ओ से ओंगन तेल ल चक्का म लगाबो.
औ-औ से औघड़ बबा ले दूरिहा रहिबो.

छत्तीसगढ़ी के व्यंजन

क-क से करसी के पानी पीबो.
ख-ख से खटिया म बबा संग सुतबो.
ग-ग से गरुआ के सेवा करबो.
घ-घ से घर ल गोबर म लिपबो.
च-च से चउक सुग्घर पूरबो.
छ-छ से छत्ता म मदुरस भराही.
ज-ज से जँवारा हरियर हरियर.
झ-झ से झँउहा लाहुँ तोर बर.
ट-ट से टठिया म बासी खाबो.
ठ-ठ से ठगुवा से बाँच के रहिबो.
ड-ड से डबरा के पानी म खेलबो.
ढ-ढ से ढँकना म साग ल ढाँकबो.
त-त से तरिया म कुदके नहाबो.
थ-थ से थरहा दे बर जाबो.
द-द से दरमी लाली लाली खाबो.
ध-ध से धनिया के महकत बारी.
न-न से नरवा हमर चिन्हारी.
प-प से परेवा हमर संगवारी.
फ-फ से फरा चलव बनाबो.
ब-ब से बर म झुलना झुलबो.
भ-भ से भलुआ जंगल म रहिथे.
म-म से मछरी तउरत रहिथे.
य-य से यदुवंशी मन नाचत हे.
र-र से रमकेलिया काबर लजावत हे.
ल-ल से लइका मन पढ़य बर जाहि.
व-व से वकालत के गियान पाहि.
स-स से सरई जंगल के मान बढ़ाथे.
ह-ह से हरदी ह अब्बड़ ममहाथे.

महतारी के अछरा

रचनाकार-सोमेश देवांगन

जिंस टॉप पहिने हे लइका के महतारी.
फेसन के में जिंस कुर्ता हे जारी..

महतारी के अछरा बर ह लुलवावत हे.
अपन गोरस छोड़ डब्बा के दूध पियात हे..

लुगरा के अछरा म लइका ल तोपे कइसे.
दुनिया के बैरी नजर अब बचाही कइसे..

मया दुलार ल लइका ऊपर कइसे लुटाय.
महतारी के तो मोबइल म दिन ह पहाय..

महतारी तो अब मय मॉर्डन हरव कहय.
लइका ह महतारी के मया पाय बर सुसवाय..

पढ़ लिख के सभ्यता ल भुलाएन.
बढ़ भागी वो लइका जेन अछरा ल पाएन..

गाँव गवई के लइका मन बढ़ भागी हवय.
सूबे शाम महतारी के अछरा तरी म रहय..

मोर छत्तीसगढ़ के गाँव

रचनाकार-पुष्पलता साहू

बड़ सुघ्घर लागथे मोला,
मोर छत्तीसगढ़ के सब गांव.
नदिया बोहाथे जिहां कल-कल,
अउ तरिया तीर पीपर के छांव.

नई हे परदूषन हवा पानी म,
चारो मुड़ा खुला आसमान हे.
घर में डोकरी दाई कहानी कहिथे,
अउ गांव में टेटकू छेरका सियान हे.

कोन्हो कर हावे डोंगरी घाटी,
कोन्हो कर नांगर जोतत किसान हे.
सोंधी माटी के खुशबू संग मा,
हांसत खेत अउ खलिहान हे.

चिरई चिरगुन मन गावथे गाना,
अउ कौवा ह करत हे कांव-कांव.
लइका सियान मिलजुल के रहिथे,
अइसन सुघ्घर मोर छत्तीसगढ़ के गांव.

गुड़िया लाही

रचनाकार-बलदाऊ राम साहू

नाना जी जब तैं आबे
मोरो बर पुस्तक लाबे.

गीत-कविता आनी-बानी
कथा-कहानी ल सुनाबे.

मामा जी जब-जब आही
खेल-खिलौना ले आही.

आजी दाई जब आही
खुरमी ओ धर के आही.

मौसी ला तैं कहि देबे
सुघर अकन गुड़िया लाही.

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