अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

वह गांव वाला आदमी...

उस दिन भी आनंद सर को स्कूल से निकलने में देर हो गई. बच्चों को प्रैक्टिकल कराते - कराते प्राय: उन्हें रोज ही देर हो जाया करती थी. बाहर निकलकर उन्होंने देखा पूरे स्कूल में सन्नाटा बिखरा पड़ा था. गेट पर खड़ा चौकीदार उन्हीं की तरफ देख रहा था मानो कह रहा हो,आप जाएं तो ताला बन्द करूं. उन्होंने अपनी साइकिल उठाई और स्कूल से बाहर निकल आए.

उनका घर कुंदनपुर में था जो यहां से लगभग दस से बारह किलोमीटर दूर था. लगभग एक घंटा तो लग ही जाता था इस रास्ते को तय करने में. रास्ते में एक बड़ी नदी पड़ती थी. इसे पार करने के बाद लगभग दो - तीन किलोमीटर का रास्ता काफी चढ़ाव भरा था. चढ़ाव पर उनकी साइकिल धीरे - धीरे चल रही थी. अचानक उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति दौड़ते हुए उन्हें पार करके आगे निकला. वह लगभग हांफ रहा था लेकिन फिर भी चलने के बजाय दौड़ रहा था. शक्ल - सूरत से वह गांव का व्यक्ति लग रहा था. घुटनों तक एक मैली - सी धोती और ऊपर आधी बांह का कुर्ता उसने पहन रखा था. आनंद सर को लगा की कुछ तो बात है. उन्होंने उस व्यक्ति को पुकारा और रुकने को कहा. उसके नजदीक पहुंच कर उन्होंने पूछा, क्या बात है भाई, क्यों दौड़ रहे हो. उसने बताया कि उसे कुंदनपुर जाना है. वहां से सात बजे एक बस निकलती है. उस बस से उसे अपने गांव जाना है. गांव में उसका परिवार रहता है. उसे आज ही ये खबर मिली है कि उसकी बच्ची बीमार है. यदि बस नहीं मिलती तो वह अपने घर नहीं पहुंच पाएगा.

ओह... आनंद सर एक क्षण के लिए चुप हो गए. उन्होंने अपनी घड़ी देखी. साढ़े छह बज रहे थे. उन्होंने सोचा, यह आदमी कितना भी दौड़े, सात बजे तक कुंदनपुर नहीं पहुंच सकता. उन्होंने उस ग्रामीण से कहा, भाई. मैं भी कुंदनपुर ही जा रहा हूं. तुम साइकिल पर पीछे बैठो. मैं कोशिश करता हूं कि तुम्हें तुम्हारी बस मिल जाए. उस व्यक्ति को कुछ संकोच हुआ. उसने कहा, मैं चला जाऊंगा साहेब, आप तकलीफ मत उठाइए. आनंद ने कहा, तकलीफ की कोई बात नहीं है. तुम बैठो, हम चलते हैं. और फिर उसे अपनी साइकिल के कैरियर पर बिठाकर वे कुंदनपुर की ओर चल पड़े. उनसे जितना तेज चलाते बन रहा था वे साइकिल चला रहे थे.

कुंदनपुर पहुंचते-पहुंचते आनंद सर पसीने से नहा चुके थे. वे उस व्यक्ति को लेकर सीधे बस स्टॉप पहुंचे. संयोग से स्टॉप पर बस खड़ी थी. बस को देखते ही उस आदमी का चेहरा खिल उठा. उसकी खुशी देखकर आनंद सर भी अपनी तकलीफ भूल गए. उनके चेहरे पर थकान के बाद भी एक प्यारी सी तसल्ली से भरी मुस्कुराहट आ गई. उन्होंने उससे कहा, भाई देखो, तुम्हारी बस खड़ी है. अब तुम बस में आराम से जा सकते हो. वह व्यक्ति कुछ कह ना सका लेकिन उसके चेहरे पर कृतज्ञता के अद्भुत भाव थे. उसने अपने कुर्ते की जेब से बारह आने निकाले और उसे सर की हाथ में रखते हुए अपने हाथ जोड़ लिए.

आनंद सर उसके इस व्यवहार से गुस्से से भर उठे. उनका चेहरा तमतमा उठा. एक क्षण के लिए उन्हें लगा यह व्यक्ति क्या समझ कर उन्हें पैसे दे रहा है. क्या वे पैसे के लिए उसे बिठाकर लाए हैं. पर तुरंत ही उन्हें लगा उसके चेहरे के भाव तो ऐसे नहीं हैं. उन्हें समझ में नहीं आया कि वे कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करें.

दी गयी अधूरी कहानी को पूरा कर हमें जो कहानी प्राप्त हुई वो इस प्रकार हैं-

संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गयी कहानी

उन्हें समझ में नहीं आया कि वह कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करें.आनंद सर,उस गाँव वाले आदमी से कुछ न कहते हुए उसकी ओर देखते रह गए. तभी उनकी नजर उसके पैरों पर पड़ी, उस आदमी के पैर में छाला पड़ गया था जिससे रक्त बह रहा था. बस छूटने के पहले पहुँचने की धुन में उसने नंगे पैरों से ही दौड़ लगाई थी.आनंद सर यह सोचते हुए जल्दी से पास की दुकान से एक जोड़ी चप्पल खरीदकर,बस के पास पहुँचे और उस आदमी को चप्पलें दे दीं.वह आदमी आनंद सर के प्रेम और संवेदनशीलता देखकर भावविह्वल हो गया. है.आनंद सर मुस्कुराते हुए उसकी बच्ची के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हुए अपने घर लौट गए.

टेकराम ध्रुव' दिनेश' द्वारा पूरी की गयी कहानी

पसीने से लथपथ आनंद सर ने पसीना पोंछते हुए उस व्यक्ति को पैसे वापस करते हुए कहा- आज मुझे किसी की मदद करने का अवसर मिला और मैंने मदद की. देखो तुम्हारी बस थोड़ी देर में छूटने वाली है. आज मैं बहुत खुश हूँ कि तुम्हें समय पर बस स्टाॅप तक पहुँचा पाया. ये सब मैंने पैसों के लिए नहीं किया. तुम्हें परेशान देखकर मैंने अपना फर्ज निभाया है बस.'

उस व्यक्ति ने कहा- ' साहब मैं कैसे आपका आभार व्यक्त करूँ समझ में नहीं आ रहा.एक बार और ऐसे ही एक व्यक्ति से लिफ्ट ली थी, अपने गंतव्य तक पहुँचने के बाद मैंने उसे रुपए दिए थे, तो सोचा.. ' आनंद सर ने बीच में ही उसे रोकते हुए कहा- ' ज्यादा सोचने और बात करने का समय नहीं है. वहाँ गाँव में तुम्हारी बच्ची बीमार है, वहाँ जल्दी पहुँचकर उसका इलाज कराना ज्यादा जरुरी है. इसलिए व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट न करो.बस छूटने ही वाली है जल्दी से गाँव के लिए रवाना हो जाओ. मैं शिक्षक हूँ जहाँ से हम आ रहे हैं उसी स्कूल में. अगर किसी प्रकार की परेशानी आए तो बेझिझक मुझसे मिल सकते हो.'

आनंद सर की बात सुनकर वह गाँव वाला आदमी भावविभोर हो गया. उसकी आँखे डबडबा गईं. डबडबाई आंखों से वह बस की ओर चल पड़ा.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

मोहन की मुश्किल

आज तो यह तय था कि मोहन को हिन्दी के गुरूजी से डाँट खानी पड़ेगी. बात यह थी कि मोहन लगातार तीन दिनों से अपना होमवर्क पूरा नहीं कर रहा था. उसने अपने दोस्तों से पूछा कि क्या उन सब ने अपना -अपना होमवर्क पूरा किया है ? सभी बच्चे हिंदी का होमवर्क गुरूजी से डर के कारण हर दिन पूरा करके आते थे. मोहन हिंदी में कमज़ोर था, उससे मात्राओं में बहुत गलतियाँ होती थीं. वह इसी कारण गुरू जी से कई बार डाँट खा चुका था. पिछले दो दिनों से गुरू जी किसी कारणवश विद्यालय नहीं आ रहे थे. मोहन दो दिनों तक तो बच गया, पर आज उसे डाँट पड़ना पक्का था. कक्षा में आते ही सबसे पहले गुरू जी ने मोहन से ही होमवर्क देखने की शुरुआत की. मोहन की कॉपी देखकर गुरू जी का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था और बेचारा मोहन डरा सहमा सा सिर झुकाकर गुरूजी के सामने खड़ा था.

कहानी को इस मोड़ पर छोड़ते हुए हम आपको जिम्मेदारी देते हैं आप इसे पूरा कर हमें माह की 15 तारीख तक ई मेल kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे

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