चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने यह चित्र दिया था, जिसपर अनेक कहानियां हमारे पास आयी हैं. इनमें से 3 कहानियां हम यहां दे रहे हैं.

पिछले अंक का चित्र

कहानी-1

सहानुभूति

लेखक - दिलकेश मधुकर

सर्दी का सुहाना मौसम था. मीना अपने दादा जी के साथ सुबह की सैर के लिए गई. रास्ते में वह सुस्ताने के लिए एक पत्थर पर बैठ गई. उसी समय एक काला कौआ सामने आकर बैठ गया. मीना ने सोचा कि बेचारा कौआ ठंड से कितना कांप रहा होगा. मैंने तो स्वेटर पहना है, इसलिए मुझे ठंड नहीं लग रही है. पर कौए ने कुछ नहीं पहना है. कौआ की दशा देखकर मीना का मन भर आया.

उधर कौए ने सोचा कि बेचारी लड़की सर्दी से कांप रही होगी. मेरे पास तो पंख हैं जिससे मुझे ठंड नहीं लगती. बेचारी लड़की के तो पंख नहीं हैं. कौआ लड़की की दशा को देखकर चिंतिंत हो गया. दोनों ही एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति प्रकट करने लगे, और परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु कोई चमत्कार करो.

थोड़ी देर में धूप तेज हो गयी. अब गर्मी लगने लगी. दोनों परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए अपने अपने घर चले गए.

कहानी-2

चारुलता और कौए की दोस्ती

लेखक - डोमेन कुमार बढ़ई

चारुलता उदास बैठी थी. तभी उसके पास एक कौआ आया. उसने चारुलता से पूछा कि वह क्यों उदास है चारुलता कौए से निराशा भरे स्वर मे बोली – ‘‘मै बिल्कुाल अकेली हूँ. मुझे भूख भी लग रही है. मेरे मम्मी-पापा की एक कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई. मेरी सहायता करने वाला कोई नहीं है.’’

कौए ने चारुलता को दिलासा देते हुए कहा – ‘‘फिक्र मत करो. आज से तुम मेरी दोस्त हो. जो रोटी मैं अपने खाने के लिए लोगों के घरों से लाता हूँ, उसमें से आधी मैं तुम्हें दे दिया करूँगा. इस प्रकार तुम्हारी भी भूख मिट जाएगी. कौए की प्यार भरी बातें सुनकर चारुलता के चहरे पर मीठी सी मुस्कान आ गयी.

कहानी-3

पूर्वजों का प्रतीक कौआ

लेखक - राम नारायण प्रधान

छाया बि‍टि‍या चि‍ड़ि‍या, गाय, बैल , कुत्ता आदि सभी से बहुत प्यार करती है. अपने नाश्ते से रोटी, चावल आदि बचाकर हमेशा गाय बैल व कुत्ते को खि‍लाती है. चिड़ि‍यों के लिये छत पर रोज चावल और गेहूं के दाने डाल आती है. पि‍तृपक्ष चल रहा था. उसके दादा जी ने बतलाया - ‘‘बि‍टि‍या इस पक्ष मे हम तुरोइ की पत्ती में भीगा दाल और चावल लेकर तालाब जाते हैं और अपने पूर्वजों को घर आने के लि‍ए आमंत्रित करते हैं. फि‍र घर के आँगन को लीप-बुहार कर फूलों से सजाते हैं. कंडे की आग में घी और गुड़ का अर्पण कर प्रणाम करते है. बि‍ना नमक का दाल का बड़ा, चावल और दाल को तुरोइ की पत्ती में डालकर भोजन परोसते हैं, और गाय, कुत्ता, चि‍ड़ि‍या आदि‍ को भोजन देते है.’’

छाया छत पर कौए को बड़ा और चावल देने बैठी थी तभी एक बूढ़ा कौआ आकर बैठा और बोला - ‘‘बेटी तुम बहुत अच्छी लड़की हो. मै तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हूँ.’’ छाया ने पूछा - ‘‘आप कौन हैं’’ कौआ बोला - ‘‘मै तुम्हारा परदादा हूँ. तुम बहुत दयालु बच्ची हो. तुम्हारी दयालुता की बात सुन कर मै स्वयं तुम्हें देखने आया हूँ. तुम सदा सुखी रहो. परि‍वार के सब लोग सुखी रहें.’’ ऐसा आशीर्वाद देकर वह कौआ एक बड़ी सी रोटी उठा कर चला गया. जब यह बात छाया ने दादा जी को बताई तो दादा जी बहुत खुश हुए और बोले - ‘‘जीव जंतुओं पर दया करना चाहि‍ए. हम मनुष्य फसलों पर जो कीट नाशक दवाएं डाल रहे हैं, उनके दुष्प्रभाव से चि‍ड़ि‍यां अकाल मौत मर रही हैं और हम स्वयं भी बीमार हो रहे है. हमें सावधानी बरतनी होगी और कीटनाशकों का उपयोग कम करना होगा, तभी सब जीव सुरक्षित रहेंगें.’’

अगले अंक के लिये चित्र

यहां पर हम दीप्ति दीक्षित जी की बनाई हुई एक पेंटिंग प्रकाशित कर रहे हैं. इसे देखकर एक अच्छी सी कहानी लिखिये और हमें भेज दीजिये – dr.alokshukla@gmail.com पर. अच्छी कहानियां हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे.

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