बालगीत

हिन्दी

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'

संस्कारो की ये भाषा,
भाल सजी है बिंदी,
माँ भारती की ये शान,
दिल की धड़कन हिन्दी..

कबीर मीरा तुलसी की,
हर पद में समाए हिन्दी,
हिन्दी पुत्र सम्राट मुंशी,
निशदिन मान बढ़ाए..

समरसता एकता की,
सभी को घूंट पिलाती,
जनगण मन सद्भावना,
ये नित सम्मान दिलाती..

रवि स है ओज तुम्हारी,
हे हिन्दी ! ये वसुंधरा में,
सौंदर्य आलंकारिक रूप,
व्याकरण मान बढ़ाती..

विश्व भ्रमण कर हर पल,
भारती गाती गौरव गाण,
मेरे रग में बसती, हिन्दी,
निज मान याद दिलाती..

टेक्नोलॉजी ने परखा है,
आज हिन्दी की गुणवत्ता,
ये गूगल की भाषा बनकर,
नित काज सुगम बनाती..

राम रहीम ईशा गुरुसाहेब,
ये हिन्दी की है चन्दन वंदन,
जनगण मन की भाषा बनकर,
नित सदमार्ग प्रशस्त कारती..

हिंदी भाषा

रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'

हिन्दी हिन्दुस्तान की, हृदय समाहित प्राण.
विश्व हितैषी भाष यह, हितकर सबकी त्राण..
हितकर सबकी त्राण, नागरी लिपि हिय भाती.
हमाहमी से दूर, भाव सम वक्ष बहाती..
कहे अमित कविराज, भारती की यह बिन्दी.
हर्षित हिन्द विशेष, हितावह हीरक हिन्दी..


भाषा भारत वर्ष की, हिन्दी इसकी भाष.
मेल कराती एक यह, भारतीय अहसास..
भारतीय अहसास, हृदय को सबकी भाती.
कहनी सुननी बात, सार झट यह समझाती..
कहे अमित अनुनीत, पूर्ण करती अभिलाषा.
संप्रेषण साकार, देशहित हिन्दी भाषा..


समता समुचित सादगी, समचर सद् समवेत.
समीकरण सम्मति सहित, संविधान समुपेत..
संविधान समुपेत, समाहित सबकी आशा.
संरक्षक संस्कार, सभोचित हिन्दी भाषा..
कहे अमित अख्यात, सबल है इसकी क्षमता.
मनोनीत यह भाष, समर्पित समुदित समता..

उड़ने की चाह

रचनाकार- उषा साहू

माँ मेरा मन करता है स्कूल,
मैं भी पढ़ने-लिखने जाऊँ.
सभी दोस्तों के संग खेलूँ,
खूब पढ़-लिखकर दिखलाऊँ.

माँ मेरा मन करता है,
कोरोनाको दूरभगाऊँ.
बस में बैठ कर मामा,
के घर मैं जाऊँ,
नानी के हाथ का खीर खाऊँ.

माँ मेरा मन करता है,
पंछी बन जाऊँ.
आसमान में उड़ते हुए,
अपने अरमानों का पंख फैलाऊँ.

राष्ट्रीय खेल दिवस

रचनाकार- अविनाश तिवारी

जीवन भी एक खेल है,
हम सब बने शतरंज.
कोई इसमें है खिलाड़ी,
कोई है अनाड़ी..

खेल भावना जीत दिलाती,
मुश्किल से न घबराएँ.
कर सहयोग एक-दूजे का,
राह आसान बनाए..

खेल रखे निरोग शरीर,
जिंदगी पाठ पढ़ाती है.
क्या हार, क्या जीत है,
सबको सबक सिखाती है..

हाकी के जादूगर तुमने,
हिंदुस्तान का मान बढ़ाया है.
ध्यानचंद को श्रद्धांजलि देने,
सही समय अब आया है..

देकर भारत रत्न मेजर को,
खेल का हम सम्मान करें,
जीत सदा सत्य की हो,
भारत की जय-जयकार करें.

वह गुरु कहलाता

रचनाकार- वीरेन्द्र कुमार साहू

शिक्षा का ज्ञान जो देता,
जीवन को प्रकाश से भरता.
अक्षरों से कराता दोस्ती,
किताबों से कराता मित्रता.
वह कोई और नहीं,
वही हमारा गुरु कहलाता.

रंग-बिरंगे चित्रों से परिचय कराता,
ज्ञान- विज्ञान की बातें बताता.
राजनीति और आविष्कारों कीबातें,
किस्से -कहानी, कविता भी सुनाता.
वह हमारा गुरु कहलाता..

गणित की बारीकी बताता,
जीवन में जोड़ना.
दुखों को घटाना,
खुशियों का गुणा.
अपनों का भाग लगाना,
हमको जो ये सब सिखाता.
वह हमारा गुरु कहलाता..

राजा

रचनाकार- डॉ.अखिलेश शर्मा, इन्दौर

जंगल का राजा है शेर,
करे मिनट में सबको ढेर,
जब- जब वह गुर्राता है,
सारा जंगल थर्राता है.

औरत

रचनाकार- रत्ना गुप्ता

सबको बाँधने वाली डोर है औरत,
छाई हुई हर ओर है औरत,
खुद में समेटे दुर्गा की शक्ति,
मत समझो कमजोर है औरत.

पूरी शक्ति लगा के भागे,
हर पल रहे सबसे आगे,
रात रात भर रहती जागे,
तब जाकर हक अपना माँगे.

जमीं से लेकर आसमाँ तक,जीत चुकी हर दौड़ है औरत.
जननी बनकर देती जनम,
पत्नी बनकर निभाती कसम.

अपने हों दुखी तो आँखें नम,
कौन कहे दायित्व ये कम.
जिम्मेदारी की रस में ही,
रहती सदा सराबोर है औरत.

सबको बाँधने वाली डोर है औरत,
मत समझो कमजोर है औरत.

नदियाँ

रचनाकार-स्व. महेन्द्र देवांगन माटी

कलकल करती नदियाँ बहतीं, झर-झर बहते झरने.
मिल जात हैं सागर तट में, लिए लक्ष्य को अपने..
सबकी प्यास बुझाती नदियाँ, मीठा पानी देतीं.
सेवा करती प्रेम भाव से, कभी नहीं कुछ लेतीं..
खेतों को ये पानी देतीं, लोग फसलें खूब उगाते.
उगती है भरपूर फसल तब, हर्षित सब हो जाते..
स्वच्छ रखे सब नदियाँ जल को, जीवन हमको देती.
विश्व टिका है इनके दम पर, करते हैं सब खेती..
गंगा यमुना सरस्वती की, निर्मल है यह धारा.
भारत माँ के चरण पखारे,यह परचम हमारा..
विश्व गगन में अपना झंडा, हरदम हैं लहराते.
माटी की सौंधी खुशबू को, सारे जग में फैलाते..
शत-शत वंदन इस माटी को, इस पर ही बलि जाऊँ.
पावन इसके रज कण को मैं, माथे तिलक लगाऊँ..

खूब पढ़ाते टीचर जी

रचनाकार- प्रमोद दीक्षित मलय, बांदा (उ. प्र.)

अच्छी बात हमें सिखाते, टीचर जी.
खूब मेहनत से हमें पढ़ाते, टीचर जी..

मोती जैसे दाँत चमकते, आँखे तेज.
पान-मसाला नहीं चबाते, टीचर जी..

होमवर्क न करके लाते बच्चे जो हम.
तब डाँटते, चपत लगाते, टीचर जी..

कोई बात समझ न आती,हम कहते.
एक नहीं दस बार बताते, टीचर जी..

पढ़ाते-लिखते मन जब लगे ऊबने.
कविता, गीत, कथा सुनाते, टीचर जी..

शेर-बकरी, लंगडी-दौड़, नेता-खोज.
बहुत सुंदर खेल खिलाते टीचर जी..

राष्ट्र भाषा की व्यथा

रचनाकार- कृति तम्बोली, कक्षा पांचवी, प्राथमिक शाला गतौरा

दुख भरी इसकी गाथा !
क्षेत्रीयता से ग्रस्त है,
जाति-पाँति से त्रस्त है !
हिंदी का होता है अपमान,
घटती है भारत की शान !
हिंदी दिवस पर्व है,
इस पर हमें गर्व है !!

सांझ सुहानी

रचनाकार- गोविन्द भारद्वाज

डूब रहा है सूरज फिर से, धरे रूप सिंदूरी.
समा रही है फिर धरती में, देखो धूप सुनहरी.

बदल गयी खेतों की काया,झूम रही हरियाली.
अम्बर ने है ओढ़ा भगवा,हवा चली मतवाली.

लौट चले पंछी घर अपने, लगा गगन में रेला.
पेड़ की सूनी शाखाओं पर,लगा सुरों का मेला.

बादल के आंचल से लिपटे,पर्वत ये मस्ताने.
सबके मन को लुभा रहे हैं,मीठे प्रेम तराने.

इंतजार क्यों ?

रचनाकार- नीरज त्यागी

जाने वाला चला गया,
अब उसका इंतजार क्यों.
उड़ गए पिंजरे से जो परिंदे,
उनसे अब भी इतना प्यार क्यों..

रोशनी की चाहत की तूने,
लेकिन घनघोर अँधेरा छा गया.
अंधकार को जीवन क्यों ना बनाता,
बता तुझे उजाले से इतना प्यार क्यों..

सूखे फूलों को किताबो में सजाता,
मुरझाए उन फूलों से इतना प्यार क्यों.
नए फूलोंका एक बाग क्यों नहीं बनाता,
पुराने मुरझाए फूलों से इतना प्यार क्यों..

हर दिन अगर नए सपने बुनने हैं,
तो कुछ टूटे सपनों से इतना प्यार क्यों.
प्रगति पथ पर अगर तुझे आगे बढ़ना है,
देगा कोई तुझे सहारा, इसका इंतजार क्यों..

इंतजार भी अब पूछ रहा है,
बता मुझसे तुझे इतना प्यार क्यों.
आने वाले कल में करूँगा काम ये अधूरा,
बता तुझे आने वाले पल का इंतजार क्यों..

समय मत खोना

रचनाकार- डॉ. त्रिलोकी सिंह, प्रयागराज

समय व्यर्थ मत खोना बच्चो,
सदा समय से सोना बच्चो,
सदा समय से जगना,
रोज सुबह तुम जग जाना
थोड़ी देर टहलकर आना.
नित्य क्रियाओं से निवृत्त हो,
अपना होमवर्क निपटाना.
समय व्यर्थ मत खोना बच्चो,
मेहनत से तुम सब पढ़ना.
सदा समय से सोना बच्चो,
सदा समय से जगना.
जो मेहनत से पढ़ते-लिखते.
जीवन में वे आगे बढ़ते.
पर जीवन भर पछताते वे,
जो पढ़ने में आलस करते..
कभी निराश न होना बच्चो,
कभी न आलस करना.
सदा समय से सोना बच्चो,
सदा समय से जगना..
जो अनमोल समय को खोता.
वक्त पढ़ाई के जो सोता.
सदा भागता जो पढ़ने से,
जीवन में वह सफल न होता.
सुंदर स्वप्न संजोना बच्चो,
सदा सुपथ पर चलना.
सदा समय से सोना बच्चो,
सदा समय से जगना..

मेरे पापा

रचनाकार-टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला '

सारा जहान हैं मेरे पापा.
और आसमान हैं मेरे पापा.
कोई महापुरुष नहीं हैं पर,
सबसे महान हैं मेरे पापा.
दादा-दादी का दुलारा - सा,
हम सबके मान हैं मेरे पापा.
अपना घरतो एक मंदिरहै.
इस घर के भगवान हैं मेरे पापा.
प्रेम-खिलौनामिल जाताहै,
खुली दुकान हैं मेरे पापा.

मुखौटे

रचनाकार- डॉ.अखिलेश शर्मा, इन्दौर

आया एक खिलौने वाला,
मुखौटे और गुब्बारे वाला,
पुंगी बाजा बुलाता सबको,
मुखौटे लगा डराता सबको.

जंगल की बात

रचनाकार- शुभम पांडेय गगन, अयोध्या, उत्तर प्रदेश

हाँफता हुआ आया बल्लू चूहा,
सबको बात बताई है.
कोई बीमारी आई शहरों में,
जिससे मानव जाति घबराई है.‌

निकल न रहा कोई घर से,
दुकानों पर कोई न आता है.
सब चूहे हैं मौज मनाते,
कोई नहीं पकड़ा जाता है.

सब जानवर सुरक्षित हैं,
कोई न जंगल आता है.
नहीं कटते हैं पेड़ कोई,
न नदियों को रोका जाता है.

इंसानों का दुख बेजुबान समझें,
सब साथ दुआ में हाथ उठाते हैं.
सबके लिए अरदास करने को,
शेर राजा मीटिंग बिठाते हैं.

हाथ धुलाई

रचनाकार- तुलस राम चंद्राकर

हाथ धुलाई के सात चरण,
सबको समझना और समझाना है.
इससे दूर हो जाएँगी बीमारियाँ,
यह बात सबको बताना है.
सबसे पहले भिगाओ,
फिर थोड़ा-सा साबुन, राख लगाओ.
उस पर थोड़ा पानी डालो,
हाथों को तुम स्वच्छ बना लो.
हाथ से हाथ क़ो रगड़ो.
ऊपर रगड़ो,नीचे रगड़ो.
अंगूठे और उँगली रगड़ो,
हथेली क़ो हथेली से रगड़ो.
सौ रोगों की एक दवाई,
साफ करो हाथों की कलाई.
हाथों की जब होगी धुलाई,
कीटाणु की होगी सफाई.
फिर से हाथ पर पानी डालो,
हाथों को तुम स्वच्छ बना लो.
भाई- बहन सब सुन लो..

प्यारी भाषा हिंदी

रचनाकार- अल्का राठौर

कितनी प्यारी भाषा हिंदी,
बेहद मीठी और सुरीली !
कभी इठलाती, कभी शरमाती,
कभी बिल्कुल मनचली बन जाती !!

प्यार का इक़रार इसमें,
सास-बहू की तकरार इसमें !
इस भाषा के शब्दकोश ने,
भर दी सब लोगों की झोली !!

अदब, आदर और सदाचार,
हर शब्द का उचित व्यवहार !
इस भाषा में है संगीत,
हिंदी में बने कितने मधुर गीत !

हर भारतीय की शान है हिंदी,
हम सबका आत्मसम्मान है हिंदी !
भारत माता के माथे की बिंदी,
कितनी प्यारी भाषा हिंदी !!

आशा का तू दीप जला

रचनाकार- प्रतिभा सिंह, सॉल्टलेक, कोलकाता

कदम न पीछे रखना राही,
आगे बढ़ता चल.
अगर निरंतर कर्म किया तो,
क्यों हारेगा कल..
ठहर नहीं पाएगी मुश्किल,
आशा का तू दीप जला.
जो आशावादी रहता हैं,
होता वही सफल..
कदम न पीछे रखना राही,
आगे बढ़ता चल.
लोहा पावक में ही तपकर,
कुंदन में जाता बदल..
हँसकर मुश्किल पार करे जो,
बन जाता वहीं मिसाल.
इसीलिए पथ की बाधा से,
होना नहीं विकल.
कदम न पीछे रखना राही,
आगे बढ़ता चल..
असफलता भी मिले अगर तो,
न करना उसका शोक तू.
कर सुधार अपनी कमियों को,
आगे बढ़ते रहना तू..
ऐसा किया अगर तो सचमुच,
स्वर्णिम होगा कल.
कदम न पीछे रखना राही,
आगे बढ़ता चल.

सौर ऊर्जा

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र, लखनऊ

सौर ऊर्जा अति उपयोगी,
बिजली की वैकल्पिक सुविधा.
कभी न आता बिजली का बिल,
बिजली संकट, रहे न दुविधा..

मिलती है विकिरण ऊर्जा से,
करती हम सबका कल्याण.
पहले ताप ऊर्जा बनती,
फिर बिजली बन करती त्राण..

फोटो वोल्ट बैटरियों से,
तापीय बिजली हो उत्पाद.
रात में अथवा घिरे हों बादल,
संचित बिजली दे आह्लाद..

घर-बाहर तक बल्ब जलाओ,
बिजली व्यय की छोड़ो बात.
कूलर-पंखे खूब चलाओ,
टीवी का सुख लो दिन-रात..

दादा जी

रचनाकार-रीना मौर्य मुस्कान, महाराष्ट्र

बहुत अच्छे हैं मेरे दादा जी,
मुझसे बहुत प्यार करते हैं.
स्कुल छोड़ने आते हैं वो,
पढ़ाई में भी मदद करते हैं.
रोज शाम को घूमाने ले जाते,
चॉकलेट,कुल्फी मुझे खिलाते.
अच्छे -अच्छे खिलौनें दिलाते,
सुन्दर कहानियाँ भी सुनाते हैं.
बहुत अच्छे है मेरे दादा जी,
मुझसे बहुत प्यार करते हैं.

राष्ट्रभाषा हिंदी दिवस

रचनाकार- तेजेश साहू

मेरा भारत महान है,
हिंदी इसकी शान है,
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा हैं,
यही हमारी पहचान है.

भारत की आधी आबादी,
हिंदी के रंग में डूबी है,
भारत मे हैं विभिन्न धर्म,
यह भारत की खूबी है.

14 सितंबर को भारत में,
हिंदी दिवस मनाया जाता,
हिंदी से है हम सबका,
एक अनोखा मन का नाता.

आओ हम सब इस दिन,
हिंदी दिवस मनाते हैं,
पूरी दुनिया को मिल,
इसके गुण बताते है.

हिंदी भाषा राष्ट्रभाषा हैं,
यह हमारी पहचान है,
हर्षोल्लास से सब बोलों,
मेरा भारत महान है.

गुरु शिष्य

रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे 'कोहिनूर'

पढ़- लिख ध्यान कर,
शिक्षकों का मान कर.
देश दुनिया के साथ,
अब खुद को जगाना हैं.

गुरु बात जान कर,
पानी पीना छानकर.
सदा ज्ञान पाना है तो,
ध्यान भी लगाना हैं.

ना किसी को बड़ा मान,
ना किसी को छोटा जान.
जग में समान सभी,
भाव ये जगाना हैं.

अशिक्षा से लड़कर,
नित आगे बढ़कर.
गुरु की सेवा में नित,
शीष भी झुकाना है.

कविता

रचनाकार- बलदाऊ राम साहू

बच्चों की मुस्कान कविता,
कथा-कहानी, ज्ञान कविता.

पूरब में सूरज की लाली,
पंछी का है गान कविता.

सहज रूप में ज्ञान सिखाती
भाषा का सम्मान कविता.

तुलसी, मीरा, सूर, कबीरा,
जायसी और रसखान कविता

हास्य, वीर, श्रृंगार और भी,
नवरस का है विधान कविता.

छंदबद्ध हो या विमुक्त हो
सुर लय का संधान कविता.

शिक्षक

रचनाकार-उषा साहू

शिक्षक वही जो जीना सीखा दे,
जिंदगी जीने के लिये राह दिखा दे.
तराश दे हीरे की तरह बच्चों को,
दुनिया की राहों पर चलना सीखा दे.
शिक्षक वही जो सच्चा मार्ग
प्रशस्त की किरण दिखा दे.
बच्चों को अच्छा इंसान बना दे,
जिंदगी को फूलों सा महका दे.
शिक्षक वही जो हर मुश्किलों
में हिम्मत से लड़ना सीखा दे,
जिंदगी की हर कांटो भरी राह में.
हरदम आगे बढ़ना सीखा दे.
शिक्षक वही जो,
राष्ट्र निर्माण कराये.
समाज मे नव ज्योति जला के दे
समाज मे नव किरण बिखरा दे.
शिक्षा की अलख जगा दे.
शिक्षक प्रकाशपुंज का आधार है,
हमारे जीवन मे संस्कार है.
हमारे जीवन की बगिया को,
अपने आशीर्वाद से सवार दे.
शिक्षक आदर्शों का मिसाल
बनकर जीवन को निखार दें.
सदाबहार फूल सा खिलकर
हमारे जीवन मे बहार दे.
शिक्षक होता सबसे महान
शिक्षक देता सबको ज्ञान
शिक्षक में सूरज सा कमान
सभी शिक्षको को मेरा प्रणाम

कहाँ गया बचपन

रचनाकार- श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'

गंगा जी के पावन जल सा,कहाँ गया बचपन,
ईश्वर की छवि जिसमें झलके,कहाँ गया दर्पण.
अपने और पराये का था,जिसमें भेद नहीं,
कोरे कागज जैसा निर्मल,कहाँ गया वह मन.

तितली बन फूलों सँग खेले,वह नटखट बचपन,
एक मिनट में करे दोस्ती, दूजे पल अनबन.
निश्छल और नि:स्वार्थ निष्कपट,द्वेष रहित रहना,
काश! मुझे फिर से मिल जाये,वह बीता जीवन.

मेरे पापा

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा ' गब्दीवाला '

सारा जहान है मेरे पापा.
समूचा आसमां है मेरे पापा.
कोई महापुरुष नहीं पर,
सबसे महान है मेरे पापा.
दादा-दादी का दुलारा सा,
मम्मी की शान है मेरे पापा.
मेरा घर एक मंदिर हैं.
जहाँ भगवान है मेरे पापा.
प्रेम-खिलौना मिलता हैं,
खुली दुकान है मेरे पापा.

हिंदी भारत की शान

रचनाकार- गिरजा शंकर अग्रवाल

हिंदी भारत की शान है.
हम सबकी पहचान है..
हिन्द देश की है यह भाषा.
संस्कृति वैभव से परिपूर्ण
देवों की भाषा..
इनसे ही हमें पहचान मिला.
वेदों, पुराणों का ज्ञान मिला..
कराती हमें यह संस्कृति से परिचय.
उच्च विचार भरे जीवन से परिचय..
इसमें सफल जीवन की आशा.
ज्ञान, विज्ञान से परिपूर्ण यह भाषा..
यह मेरा अभिमान है.
हर भारतीयों का सम्मान है..
इसे पुनः गौरव दिलाने.
हिंदी दिवस पर सभी प्रण करे.
हिंदी के लिए अपना जीवन.
आज सभी अर्पण करें..

आत्मनिर्भर बनेगा भारत

रचनाकार- कृष्ण कुमार ध्रुव 'सृजन'

आत्मनिर्भर बनेगा भारत दे हमेशा अपना साथ.
विदेशी वस्तुओं को दूर करने बढ़ा अपना हाथ.

छोटे बड़े विभिन्न किस्म के उत्पाद यहां आया,
ऊँचे से लेकर नीचे सभी किस्म मन को भाया.

बाल खिलौने से लेकर साज सज्जा उत्पाद लाया.
विदेशों ने इंडिया से ही आर्थिक मजबूती पाया.

लूटने जहर बनाया नुकसान हुआ काया.
समझा न कालाबाजारियों के माया.

देशवासियों सब ठान लो एक बात.
इनके इरादों को देना होगा मात.

शपथ ले आज से स्वदेशी समान ही लेना.
मेहनत की कमाई को विदेश जाने नहीं देना.

उत्तम गुण स्वदेशी वस्तु में ही है पाना.
प्रकृति ने दिया जीवन अनमोल इसे नहीं खोना.

विश्व बंधुत्व भाई चारे की भावना रख चलता मेरा देश.
सबको अपना बनाना दोहरी नहीं है भेष.

एकता और अखंडता जाने सारा जहान,
विदेशी त्याग स्वदेशी अपनाएं तभी बनेगा देश महान.

बढ़ता झरना

रचनाकार- सतीश चन्द्र भगत, दरभंगा, बिहार

उतर उतर कर पर्वत पर्वत
कल-कल, छल- छल गाता झरना
आगे- आगे बढ़ता झरना.

कदम कदम पर ठोकर खाता
फिर अपना वह राह बनाता
आगे- आगे बढ़ता झरना.

नई उमंगें लेकर चलता
चट्टानों से भी वह लड़ता
हिम्मत लेकर बढ़ता झरना.

बाधाओं से ना घबराता
प्रगति पथ पर कदम बढ़ता
आगे-आगे बढ़ता झरना.

समय बहुत बलवान

रचनाकार- स्व. महेन्द्र देवांगन 'माटी'

समय बहुत बलवान है, कीमत इसकी जान.
जान गया जो काल को, सच्चा मानुष मान..
मान सभी के बात को, मत बन तू नादान.
नादानी से होत है, जीवन भर अपमान..
मान बढ़े परिवार का, ऐसे कर लो काम.
काम करे जो आदमी, होय उसी का नाम..
नाम कमाओ प्रेम से, करके सेवा रोज़.
रोज़ करो कुछ दान जी, भूखे को दो भोज..
भोज कराओ खोज कर, बढ़ जायेगा मान.
मान समय का होत है, इसको भी तू जान..

मक्का की डाली

रचनाकार- नरेन्द्र सिंह नीहार

कितना प्यारा गाँव हमारा.
लगे स्वर्ग से सुंदर न्यारा.

दूर दूर तक हरे भरे वन
हरियाली से झूमे तन - मन

स्वयं प्रकृति ने रूप निखारा.

वातावरण स्वच्छ निर्मल है
शुद्ध वायु सुखप्रद शीतल है

निकट दिव्य सरिता की धारा.

खेतों में फसलें लहरातीं
चिड़ियाँ मधुरिम गान सुनाती

फूलों से महके चौबारा.

बाल-वृद्ध जन करें परिश्रम
शिक्षा ने तोड़े अनिष्ट भ्रम

नव कौशल ने भाग्य सँवारा.
कितना सुंदर गाँव हमारा.

नदियाँ

रचनाकार-कन्हैया साहू 'अमित'

कलकल बहती जाती नदियाँ.
जानें बीतीं कितनी सदियाँ..

मीठा जल भरकर ये लातीं.
जनजीवन खुशहाल बनातीं..

और बाढ़ जब-जब भी आए.
मिट्टी को उपजाऊ बनाए..

मिलता सबको निर्मल पानी.
नदियों से ही है जिनगानी..

अति उपयोगी जल की धारा.
जीव जंतु का यही सहारा..

मेरा परिवार

रचनाकार- व्यग्र पाण्डे, गंगापुर

खुशियों से भरा है मेरा प्यारा परिवार,
मिल-जुलकर करते सब सपनों को साकार.
दादा-दादी हमको किस्से हैं सुनाते,
मम्मी-पापा हमको संस्कार हैं सीखाते.
दीदी-भैय्या के साथ खेल खेलते मजेदार,
मुझे प्यारा लगता मेरा ये छोटा-सा संसार.
खुशियों से भरा है मेरा प्यारा परिवार,
मिलजुलकर करते सब सपनों को साकार.
एकता की ताकत परिवार में है पाते,
प्रेम और विश्वास से संबंधों को निभाते.
सम्मान और आदर सब रिश्तों का आधार.
खुशियों से भरा है मेरा प्यारा परिवार,
मिलजुलकर करते सब सपनों को साकार.

अपना भारत

रचनाकार-गोविन्द भारद्वाज, अजमेर राजस्थान

खुशियों-भरा ख़जाना भारत,
कुदरत का नज़राना भारत.

हरे-भरे हैं खेत-खलिहान,
लगता बड़ा सुहाना भारत.

निज वीर जवानों की खातिर,
गाता मस्त तराना भारत.

सदियों से सारी दुनियां में,
है जाना-पहचाना भारत.

कहीं घूम लें हम जग भर में,
अपना एक ठिकाना भारत.

सभ्यता कई जन्मीं हों पर,
अपना बड़ा पुराना भारत.

विश्व विजय निज हुआ तिरंगा,
इसका मान बढ़ाता भारत.

मिले ताल से ताल धरा पर,
आगे कदम बढ़ाता भारत.

सबका साथ, सभी का विकास,
वादा यही निभाता भारत.

दुश्मन जब भी ललकारे तो,
उससे आंख मिलाता भारत.

लौट आओ पापा

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'र

उंगली पकड़ के चलना, आपने मुझे सिखाया.
छोटी सी चोट लगने पर, आपने मुझे उठाया..
खेल खेल में, पढ़ना-लिखना सिखाया.
हर परेशानियों का, सामना करना सिखाया..

कहाँ खो गए पापा आप.
इतनी भी क्या जल्दी थी, दूर जाने की पापा..

बहुत कुछ बचा है, आपसे ज्ञान पाने को पापा.
मेरी हर गलती को माफ कौन करेगा?
मेरी हर ख्वाहिश पूरी कौन करेगा?
कदम से कदम मिलाकर चलना कौन सिखाएगा..

बेटी-बेटा एक समान, कभी फर्क नही कराया.
क्यों चले गए इतने दूर हमसे पापा..
कहाँ खो गए पापा आप.
जल्दी से लौट आओ न पापा..

दिन सोमवार

रचनाकार- उषा साहू

सूरज की लालिमा में जगो
करो स्नान ध्यान और प्रणाम
ताजा भोजन रखो खानपान
ये सब जतन करो तमाम
स्कूल हमारा सबसे प्यारा जहांन
दोस्तो को यही समझता हूं
हमे नही बनना है किसान
पढ़ लिख कर बनाना है महान
लड़का लड़की एक समान
मिलजुल कर करो अच्छा काम
पढ़ लिखकर बनो गांधी जी समान
घूमना फिरना नही आता काम
शिक्षा कीर्णित प्रकाश समान
जीवन मे लाये नये मुकाम
माता-पिता शिक्षक करो प्रणाम
ये देश मे होते सबसे महान
पढ़लिख कर करो माता-पिता
का पुरी दुनिया मे रोशन नाम

भिंडी की सभा

रचनाकार- सतीश उपाध्याय

हरी-भरी ताजी कोमल सी
भिंडी ने एक सभा बुलाई.

कद्दू टिंडा झटपट पहुंचे
पीछे से लौकी भी आई.

डोढका और करेला आए
आई फिर भाजी चौलाई.

शिमला वाली मिर्ची आकर
देखो फूली नहीं समाई.

मूली, खीरा, गाजर, नीबू
संग-संग पड़े दिखाई

साथ देखकर ककड़ी चीखी
रुक जा- रुक जा मेरे भाई.

और खुरदुरा कटहल आ धमका
फुलवा गोभी भी है आई.

मटर छुपा-छुपा सा आया
ले अपनी हरी रजाई.

कुदरू घुंघरू बांधे आया
अदरक नाचे छपक- छाई.

लहसुन को ले बैगन थिरका.
सेमी ने फूंकी शहनाई

बथुआ की बडी लाडली
पालक भाजी मुस्काई.

इधर सभा में ता ता थैया
और मंडी में राम दुहाई.

मेरा शहर अनोखा शहर

रचनाकार- डॉ शिप्रा बेग

मेरे शहर की बातें, कुछ खट्टी कुछ मीठी बातें,
कुछ जानी पहचानी बातें, कुछ अंजानी सी बातें.

यहाँ जीवन है एक लय में बहता,
कुछ ठहरता, सकुचाता और दौड़ता.

एक भीनी सी सुगंध मेरे शहर की है महकती,
जो पवन सी एक मन से, दूसरे मन है डोलती.

ऊँची-नीची मौजों पर हिचकोले खाता,
धीरज धरता, मंजिल को है तलाशता.

आगे बढ़ता मिसाल बना, मेरा अनोखा शहर,
अपने संकल्प से महानायक बना रायपुर शहर.

गाँव हमारा

रचनाकार- गौरीशंकर वैश्य विनम्र

कितना प्यारा गाँव हमारा.
लगे स्वर्ग से सुंदर न्यारा.

दूर दूर तक हरे भरे वन
हरियाली से झूमे तन - मन

स्वयं प्रकृति ने रूप निखारा.

वातावरण स्वच्छ निर्मल है
शुद्ध वायु सुखप्रद शीतल है

निकट दिव्य सरिता की धारा.

खेतों में फसलें लहरातीं
चिड़ियाँ मधुरिम गान सुनाती

फूलों से महके चौबारा.

बाल-वृद्ध जन करें परिश्रम
शिक्षा ने तोड़े अनिष्ट भ्रम

नव कौशल ने भाग्य सँवारा.
कितना सुंदर गाँव हमारा.

शिक्षा

रचनाकार- ज्योत्सना कुशवाहा

शिक्षा है अनमोल रतन,
तन, मन, धन से करो जतन.
शिक्षा का कभी होगा न पतन,
क्योंकि शिक्षा से ही बना है हमारा वतन..

शिक्षा ही राष्ट्र की जान है,
इससे ही हम सबकी पहचान है.
शिक्षा ही ज्ञान का स्रोत है,
इससे ही हमारी आन, बान, शान है.

शिक्षा सबसे सस्ती है,
फिर भी नही बिकती है.
शिक्षा से ही बनती महान हस्ती है,
यह ही अज्ञानियों की कश्ती हैं.

शिक्षा से ही शिक्षक की पहचान है,
शिक्षा ही बच्चों के लिय वरदान है.
अगर जीवन में शिक्षा नही तो,
यह सम्पूर्ण जीवन बेकार है..

चटपटे चने

रचनाकार- व्यग्र पाण्डे, गंगापुर

बच्चे आओ, बूढ़े आओ,
पहले आओ, पहले पाओ.
ले लो, ले लो, चने निराले,
धनिया मिर्च टमाटर डाले.
चटकारे संग जब खाओगे,
कई दिन भूूल नहीं पाओगे.
गरम -गरम हैं, स्वादिष्ट हैं,
करें ना गड़बड़ भले शिष्ट हैं.
स्वाद संग शक्ति केे दाता,
इन्हें बेच परिवार चलाता.
सस्ते हैं, रास्ते में खालों,
नमकीन का भ्रम ना पालों

हिन्दी

रचनाकार- योगेश ध्रुव 'भीम'

संस्कारो की ये भाषा,
भाल सजी है बिंदी,
माँ भारती की ये शान,
दिल की धड़कन हिन्दी..

कबीर मीरा तुलसी की,
हर पद में समाए हिन्दी,
हिन्दी पुत्र सम्राट मुंशी,
निशदिन मान बढ़ाए..

समरसता एकता की,
सभी को घूंट पिलाती,
जनगण मन सद्भावना,
ये नित सम्मान दिलाती..

रवि स है ओज तुम्हारी,
हे हिन्दी ! ये वसुंधरा में,
सौंदर्य आलंकारिक रूप,
व्याकरण मान बढ़ाती..

विश्व भ्रमण कर हर पल,
भारती गाती गौरव गाण,
मेरे रग में बसती, हिन्दी,
निज मान याद दिलाती..

टेक्नोलॉजी ने परखा है,
आज हिन्दी की गुणवत्ता,
ये गूगल की भाषा बनकर,
नित काज सुगम बनाती..

राम रहीम ईशा गुरुसाहेब,
ये हिन्दी की है चन्दन वंदन,
जनगण मन की भाषा बनकर,
नित सदमार्ग प्रशस्त कारती..

जीवन के सरगम

रचनाकार- ज्योत्सना कुशवाहा

मैंने खिलती हुई कली से पूछा- क्या गा सकती हो गाना?
या यूँ ही खिलना सीखा खिलकर मुरझा जाना?

कहा कली ने-खिलना भी क्या गीत से कम है,
खिलाना और बिखरना ही जीवन का सरगम है.


मैंने फूल से पूछा- कैसे हँसते खिलते फल बन जाते,
इसके बाद न मिलते हँसकर.

कहा फूल नें- हँस-हँस कर हम हँसी लुटाएँ,
हमने तो इतना सीखा है हँसते-हँसते फल बन जाएं.

️ ️ ️ ️ ️ ️ ️
बहती हुई हवा से पूछा-बड़ी तेज रफ्तार तुम्हारी
रात-दिन चलती रहती हो कभी न थक कर हिम्मत हारी.
️ ️ ️ ️ ️ ️ ️
बोली हवा-जीवन है चलने का नाम,
सारे जग को खुशबू देती मुझको है आराम हराम.


मैंने सागर की सीपी से पूछा- रहती हो सागर में छिपकर,
कैसे मोती पा जाती हो जरा बताओगी कुछ इसपर?

बोली शीपी-सहकर थपेडे नापी सागर की गहराई,
लहरों के संग उछली कूदी,तब जाकर यह मोती पाई.

तितली

रचनाकार- पीयूष कश्यप, कक्षा पांचवी, प्रा. शाला गतौरा

कितनी चंचल होती तितली,
छूने से उड़ जाती तितली.
रंग बिरंगी पंख लेकर,
फूलों पर मंडराती तितली..

शिक्षा गीत

रचनाकार-स्नेहलता टोप्पो

गली मोहल्ला पारा- पारा
जगमग आस का दीप जले
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले

बुल टू के बोल कहीं पर
कहीं गूंज है माइक की
कहीं वर्चुअल क्लास सुसज्जित
गूंज गुरूजी बाइक की
मिस कॉल करके यह लगता
जैसे गुरू हों पास खड़े
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले

कोरोना है भीषण संकट
विकट स्थिति आयी है
वैकल्पिक शिक्षा से भरेगी
अशिक्षा की खाई है
लक्ष्य मिलेगा शनै:शनै: चल
हृदय का विश्वास कहे
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले

संकट चाहे जैसे भी हो
हार नहीं हम मानेंगे
नव नीति की नींव बनेंगे
वक्त नहीं जाने देंगे
ज्ञान नीर से सींच बाल मन
पुलकित बाग सुवास बहे
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले

सैनेटाइज़ कर हाथों को
दूरी रखकर बैठो पढ़ो
नाक,मुँह को ढको मास्क से
प्यारे बच्चों धीर धरो
आलोकित शाला फिर होंगी
सेहत प्रथम विभास रहे
ज्ञान भास्कर चमके नभ में
शिक्षा फिर से फूले-फले

गुड़

रचनाकार- अल्का राठौर

कितना मीठा मीठा गुड़,
सेहत का खजाना गुड़.
देख के इसको मन ललचाये,
सर्दी खाँसी दूर भगाये..

हल्दी दूध का स्वाद बढ़ाये,
गले की खरास झट दूर भगाये.
खाँसी जुगाम में काढ़ा बनाओ,
अनेक बीमारियों को दूर भगाओ..

गुड़ का शिरा कितना भाता,
कई पकवान इससे बन जाता.
बच्चे- बूढ़े सब खाते गुड़,
भर भर थैला लाते गुड़..

शक्कर से अच्छा है गुड़,
शक्कर से मीठा है गुड़.
शक्कर छोड़ गुड़ तुम अपना लो,
उत्तम स्वास्थ्य का खजाना पा लो..

मेरी टीचर

रचनाकार- तमन्ना सूर्यवंशी, कक्षा पांचवी, प्रा. शाला गतौरा

टीचर मेरी अच्छी है,
जीवन का पाठ पढ़ाती है.
मुझको मां जैसी लगती है,
टीचर मेरी सच्ची है..

हमारे बापू.

रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

पूरे बदन पर केवल धोती,
हाथ में लाठी थी पहचान.
सत्य व अहिंसा के बल पर,
गांधी जी हुए बहुत महान..

दो अक्टूबर को जन्म लिए,
कस्तूरबा से विवाह किए.
दक्षिण अफ्रीका पढ़ने पहुँचे,
रंग भेद का सामना किए..

भारत की आजादी लाने को,
गांधी जी सर्वस्व त्याग किए.
दांडी तक बापू पैदल चलकर,
नमक के लिए सत्याग्रह किए..

जन जन के मन में गांधी जी,
आजादी की अलख जगाए थे.
स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे,
प्यार से बापू कहलाए थे..

चरखा से वह सूत काटकर,
स्वदेशी आंदोलन चलाए थे.
रघुपति राघव राजाराम के,
मधुर भजन को गाए थे..

दुनिया में हमारे प्यारे बापू,
विरले ही ऐसे जन्म लिए.
सत्य व अहिंसा के बल पर,
अंग्रेज को देश से भगा दिए..

कर लें मिल्ला मिल्ली

रचनाकार- महेंद्र कुमार वर्मा

चूहे से बोली बिल्ली,
तोड़ें शत्रुता पुरानी,
कर लें मिल्ला मिल्ली.

हँसकर चूहा बोला,
बात तुम्हारी अच्छी,
पर तुम हो बड़ी चिबिल्ली.

डॉगी तेरा दुश्मन,
कर ले उसी से पहले,
ओ बिल्ली मिल्ला मिल्ली.

देखी जब डॉगी बिल्ली,
तबियत उसकी थर्राई,
भागी झटपट वो दिल्ली.

रिश्तेदार

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

कई दिनों का भूखा अजगर.
पहुँचा सीधे चूहे के बिल द्वार..
कहा जोर से मौसा बाहर आना.
तुम्हारे लिए लाया चारा - दाना..
निडर होकर तुम खोलो द्वार.
मैं तो ठहरा तुम्हारा रिश्तेदार..
मौसा चूहा खतरा भाँप न पाया.
झट खोल किवाड़ बाहर आया..
झपट्टा मारकर ऐसा खाया.
मौसा चूहा कुछ बोल ना पाया..
चूहा खाकर अजगर अलसाया.
पेड़ पर लिपट जरा सुसताया..
मीठी बात सदैव संकट लाया.
जान संकट में अक्सर फसाया..

ठान लिए तो जीत है

रचनाकार- लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

ठान लिए तो जीत है,
यदि डर गए तो हार.
दो शब्दों से जिंदगी का,
बदल जाए आकार..

एक बार यदि हार गए,
तब भी न छोड़ें मैदान.
दृढ़ निश्चय कर डटे रहें,
इक दिन होगा यशगान..

जीत अगर मिल गया,
हम न करें अभिमान.
नही तो दुर्गुण आ बसे,
खत्म हो जाए सम्मान..

धन दौलत पद प्रतिष्ठा से,
जीवन में मिलता है सुख.
जीवन में हो कोशिश मेरी,
न हो किसी को दुःख..

सच्चा सुख जीवन में मिले,
जब करना सीखें हम प्रीत.
रुपया पैसा यदि चला गया,
पर प्रीत न छोड़ता मीत..

झूठ, फ़रेब और कपट से,
कुछ ही दिन रहता नाम.
जीवन में सच व प्रीत का,
सदैव मिले हमें इनाम..

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