अंकों का पहाड़ा

लेखिका एवं चित्र – आशा उज्‍जैनी

आवश्यक सामग्री - पुराने कार्ड बोर्ड, रंगीन पेपर, कलर पेन, फेवीकॉल, कैंची आदि‍

विधि - मैंने 2 से 10 तक संख्या की आकृति कार्ड बोर्ड में बनाकर काट लिए, उसमें कलर पेपर चिपका कर कलर पेन से संख्या में उसी संख्या का पहाड़ा लिखते हैं,

लाभ - नवाचारी गतिविधियां से बच्चे मजे से पहाड़ा याद करते हैं और सीखते हैं.

कबाड़ से जुगाड़ कर मानव अंगों का मॉडल

लेखिका एवं चित्र – अनामिका पांडे

कक्षा सातवीं मे मनुष्य के कुछ प्रमुख अंगतंत्रों की संक्षिप्त रचना एवं कार्य के बारे मे बच्चों को समझाने एक सहायक शिक्षण सामग्री तैयार किया है. रक्त परिसंचरण तंत्र मे फेफड़ों का महत्वपूर्ण कार्य कि अशुध्‍द रक्त को आक्सीजन युक्त करके पुनः शुध्‍द करता है. अतः फुफ्फुस धमनी एवं फुफ्फुस शिरा उल्टा कार्य करते हैं यह इस माडल से समझाना आसान होता है.

पाचन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र एवं श्वसन तंत्र बनाने के लिये शैम्पू बाटल बिसलेरी बाटल एवं पाइप का उपयोग किया आंख की रचना कक्षा आठवीं के बच्चों को समझाने गोल बाटल मे पावर कांच लगाया और दूसरे तरफ वस्तु का प्रतिबिम्ब दिखाया. सभी तंत्रों को खड्डे से मानव आकार बनाकर सुतली से बांध दिया. इस प्रकार एक ही सहायक शिक्षण सामग्री से सभी अंग तंत्र को समझाया जा सकता है.

कबाड़ से जुगाड़

लेखिका एवं चित्र - मनीषा सिंह

पुराने समाचार पत्रों से उपयोगी टोकरी, सजावट का समान, पुराने मटके को सजाना, पुरानी पॉलीथीन से अंगूर बना कर गृह सज्जा का सामान बनाना. उद्देश्य - बच्चों में कलात्मक, सृजनात्मक कौशलों का विकास. पुरानी वस्तुओं को फिर से उपयोगी बनाने की कला सीखना.

विधि - शासकीय पूर्व. माध्य. शाला अमसेना में हर सप्ताह के शनिवार को बच्चों को हस्तकला में कबाड़़ से जुगाड़ के तहत पुराने समाचार पत्रों से घर में उपयोग की जाने वाली टोकरियों का निर्माण एवं सजाने की वस्तुएं बनाना, पुराने मटको को सजाकर फिर से उपयोगी बनाना, पुरानी पॉलीथीन से अंगूर बना के घर या शाला को सजाना मेरे व्दारा सिखाया गया.

लाभ - बच्चे व्यावसायिक शिक्षा से वर्तमान और भविष्य में इसका लाभ ले सकते हैँ. आर्थिक समस्याओं और बेरोजगारी में लाभ. बच्चों में सामुदायिक कार्य करने की भावना जागृत करना.

धान के पौधों से झालर

लेखक एवं चित्र - कान्हा साहू

कक्षा 5 के बच्चों व्दारा अपने पालकों की मदद से रविवार अवकाश का उपयोग करते हुए धान के पौधों से सुंदर झालर बनाकर आज स्कूल में लाया गया. इनका उपयोग अभी शाला सजावट में किया जायेगा एवं गर्मियों में इन झालरों को शाला प्रांगण में स्थित पेड़ पौधों पर चिड़ियों के खाने हेतु रखा जाएगा. इस प्रकार के कार्यों से बच्चों में नवीन विधा के विकास के साथ बड़ों के मार्गदर्शन में कार्य करने अनुभव भी मिलता है. हस्तकला निर्माण का ज्ञान होता है. पालक भी अपने बच्चों के कार्यों में सहयोग करते हैं.

सपेरा बस्‍ती में विशेष कक्षाएं

लेखिका - नंदा देशमुख

आमतौर पर घुमंतू समुदाय से हर व्यक्ति वाकिफ है. अमूमन देश के कोने-कोने में नुक्कड़ पर नाच गाने का प्रदर्शन करने और तमाशा दिखाने के नाम से इन्हें जाना जाता है. समुदाय से जुड़े सदस्यों का जीवन रंग-बिरंगा होता है. यही कारण है कि पेट की आग बुझाने के लिये यह परंपरागत व्यवसाय को नहीं छोड़ते. शिक्षा को महत्व नहीं देते. इनकी परवरिश ऐसी होती है कि ये स्कूली शिक्षा से विमुख हो जाते हैं.

दुर्ग ज़‍िला मुख्यालय से महज 9 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सिरसा खुर्द में घुमंतू समुदाय की बस्ती है. यहां रहने वालों को सपेरा के नाम से जाना जाता है. ये स्वयं को छत्तीसगढ़ी पहाड़ी गोंड जाति‍ का होना बताते हैं. इसी बस्ती के बच्चों को मैंने शासन की योजना 'सब पढ़ें सब बढ़ें' के तहत 2018-19 से शिक्षा देना शुरू किया है जो अनवरत जारी है. इस वर्ष भी शासकीय प्राथमिक स्कूल सिरसा खुर्द में विशेष कक्षा लगाई जा रही है.

दरअसल शुरुआत में कुछ बच्चों को स्कूल में दाखिला अवश्य कराया गया था, लेकिन बाद में बच्चों की सुध नही ली गई. अशिक्षा, व स्‍वच्‍छंद विचारधारा के कारण अन्य सामान्य बच्चे एवं सपेरा बस्ती के बच्चे आपस में घुल-मिल नहीं पाए. यही कारण था कि बच्चे वैचारिक रूप से बहिष्कृत हुए और बच्चों ने स्कूल आना बंद कर दिया. तब मैंने बच्चों को दोबारा स्कूल लाने का संकल्प लिया. दरअसल यह मेरे लिए चुनौती से कम नहीं था, क्योंकि ये बच्चे स्वच्‍छंद विचारधारा वाले समुदाय से नाता रखते हैं. 5 घंटा एक जगह बैठने को वे सजा समझते थे. तब मैंने इस बस्ती के सभी बच्चों को एक ही कक्षा मैं उम्र के आधार पर शिक्षा देना शुरू किया. नवाचार करने के लिए और बच्चों को स्कूल लाने के लिए कई तरह के प्रयोग किये. इसके लिए मुझे कई बार एन.सी.ई.आर.टी. के श्री डॉ. एम. सुधीश सर से मार्गदर्शन मिला. विकास खंड शिक्षा अधिकारी दुर्ग व बी.आर.सी.सी. व सी.एस.सी. से विशेष सहयोग मिला.

शुरुआत में बच्चों की संख्या काफी कम थी. दर्ज संख्या को बढ़ाने मैं बस्ती पहुंची और मलिन बस्ती में रहने वाले अभिभावकों को समझाया. बस्ती में नुक्कड़ सभा करने के अलावा कक्षा भी लगाई व नवाचार के प्रयोग किये. तब कहीं जाकर बच्चे पूरे वर्ष स्कूल आए. स्कूल में मैने सपेरा बस्ती के उन अभिभावकों को बुलाया जिनके बच्चे स्कूल आते हैं. उन्हें तब खुशी हुई जब उन्हें उनके बच्चे किताब पढ़ते मिले. मैं दिखाना चाहती थी कि जो अभिभावक अपने बच्चों से भिक्षा मंगवाते थे आज वे पढ़ना सीख गए. मैंने बच्चों के साथ मिलकर मलिन सपेरा बस्ती में जयंती विशेष पर कई कार्यक्रम किए.

मेरा ऐसा सोचना है कि इस बस्ती में 100 से अधिक बच्चों को एक निर्धारित उम्र से स्कूल जाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए. इसके लिए आवश्यकता है कि सपेरा बस्ती में आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना हो. मैने छोटा सा प्रयास करते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग कार्यक्रम अधिकारी दुर्ग को आंगनबाड़ी केंद्र संचालित करने आवेदन भी सौंपा है लेकिन अब तक विभाग ने आवेदन पर गंभीरतापूर्वक विचार ही नहीं किया. खास बात यह है कि 2019-20 शैक्षणिक सत्र में 35 बच्चे विशेष कक्षा में अध्ययनरत हैं.

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