गुरु घासीदास बाबा

लेखक - योगेश ध्रुव भीम, चित्र मनीषा सिंह

छत्तीसगढ़ के मोर पबितर भुइयां
जनम धरे घलो तय गिरौदपुरी म
महंगू अमरौतिन के ललना कहाय
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

घोर अंधियारी कस बुराई बगरे
मनखे मनखे के भेद तय मिटाए
सत के रददा सबो ल घलो देखाय
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

छाता पहार औरा धौरा ठौर म
घोर तप तेहर करे मोरे गुरु बाबा
सत के दरसन घलो तय हर पाये
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

सपुरा संग म तय बिहा रचाये
मरे जीव ल जियाये मोरे बाबा
अमरीत कुंड के पानी पियाये
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

गाय संग म झन फांदो नागर
मांस मंदिरा के न कर तय सेवन
मँझनिया बेरा झन जोतो भुइंया
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

समाज म तय घलो एकता बनाये
आचरन ल बने सबो बनाओ संगी
सतनाम भज तय पूजा घलो करले
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

तय छुवाछुत के भेद ल घलो मिटाये
सात ठन सत तय नियम बनाये
वहू ह गुरु मोर सतनामी कहाय
गुरु घासीदास बाबा जय होवय तोर

छत्तीसगढ़ के गांधी

पण्डित सुंदरलाल शर्मा के जन्म दिन २१ दिसंबर पर विशेष

लेखक - संतोष कुमार साहू प्रकृति


तै छत्तीसगढ़ के गांधी अस, तै छत्तीसगढ़ गांधी।।
न सोना नोहस न चांदी अस, तै छत्तीसगढ़ के गांधी।।
छत्तीसगढ़ के हीरा बेटा, राजिम बर तै आंधी अस।।


छुआ-छुत के तै ह भगैया, छोटे- बडे के तै ह चिन्हैया।।
राजीव नयन के कपाट चलो ल, सबोझन बर तै ह खोलैय्या।
अंगरेज मन ल तै दुतकारे, उंखर बर तै आंधी अस।।


छत्तीसगढिया भोला-भाला, तोर दुलार ल पाये हन।
जनम के बैरी बंधना ल तेहा, सबझन ला उबारे हस।।
दलित दुखित गरीबहा मन के, हिरदय ले तै दानी अस।।


तोर कोरा म राजिम नगरी, सब के भाग संवारे हे।
चमसुर भुंईया हे बड भागी, जेनहा तोला दुलारे हे।।
अमर होगेस तै अपन कारज ले, तै महानदी के पानी अस।।


भुखहा बिमरहा मनखे ल तै, कांवरा अपन खवाये हस।
उंच-नीच के डबरा-डिपरा ल, तै ह सपाट बनाये हस।।
देवता बन गेस सब बर तै ह, सब ले बडका गियानी अस।।

छत्तीसगढ़ दर्शन

लेखक - श्रवण कुमार साहू प्रखर

छत्तीसगढ़ के धुर्रा चंदन
चल न माथ लगाबोन
अरपा, पैरी, महानदी कस
तिरंगा लहराबोन

छत्तीसगढ़ म हावय संगी
देख तो छत्तीस किला
रैपुर जेकर रजधानी ये
सत्ताईस जेकर जिला

न्यायधानी बिलासपुर के
शोर चल न गाबोन
देवभोग म हीरा चमके
कोरबा म बिजली चमके
बैलाडिला के अनगढ़ लोहा
आके भिलाई म दमके

अन्नपूर्णा के भरे भंडारे
येकर गुण ल गाबोन
छत्तीसगढ़ के भोरमदेव
कवर्धा ह कहाये
सिरपुर अउ सिरकट्टी ह
पुरा नगरी कहाये

राजिम राज प्रयाग त्रिवेणी
चल न डुबकी लगाबोन
डोंगरगढ़ बमलाई ल सुमिरों
रतनपुर महामाई
मदकूव्दीप, मल्हार ल सुमिरों
सुमिरों शबरी दाई

दंतेवाड़ा के बस्तरहिन के
चल न माथ नवाबोन
उन्हारी जिंहा भरे पूरे हे
माटी कन्हार मटासी
दुबराज अउ गुरमटिया के
घात सुहाथे बासी

धान कटोरा छत्तीसगढ़ के
चल न जस ल गाबोन
चैतू समारू मीत मितानी
सब झन मोर संगवारी
बनभैसा अउ पहाड़ी मैना
हमरो हरे चिन्हारी

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया
करमा, ददरिया गाबोन
आत्मानंद ह ज्ञान के कोठी
पवन दीवान ह आँधी
गुंडाधूर कस वीर बलिदानी
सुन्दर लाल जस गाँधी

वीर नारायण सोनाखान के
चल न करजा चुकाबोन
हिंदी हमर माथा के बिंदी
गुरतुर छत्तीसगढ़ी बोली
बड़ सुग्घर मोला लागे संगी
जईसन दाई के ओली

हल्बी,गोड़ी, संग म लरिया
गोठ ल हम गोठियाबोन
नाचा-गम्मत, लोरिक-चंदा
पंथी अउ पंडवानी
भरथरी अउ बांस गीत ह
घोरे कान म अमरित वाणी
खेती किसानी के गोठ बात ल
चल न गुड़ी म गोठियाबोन

तीजा पोरा, अउ हरेली
जुरमिल के हम मनाबोन
ठेठरी खुरमी, चीला अंगाकर
भरपेटहा हम खाबोन

घासीबबा अउ कबीरदास के
रद्दा हम अपनाबोन

जय हो छत्तीसगढ़ के धाम

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

जय हो छत्तीसगढ़ के धाम
जपय सबो जय हो सतनाम
मानव धरम के मरम बताइस
अहिंसा परम धरम बताइस
मंहगू-अमरौतिन तोर दाई ददा
जनम बलौदा बाजार गिरौदपुरी जगा
तपसी करे छाता पहाड़ औंरा धौंरा धाम
ग्यान दिए बाबा जपव सतनाम
परान तियागे भंडारपुरी धाम
जय हो गुरु घासी जय हो सतनाम
जम्मो मनखे तर गे सुनके अमरीत बानी
अंशु के भाग हे गुरु सुनावत हे तोर काहनी

जाड़ के महिना

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

फिकर मं पड़ गे डोकरी दाई
जाड़ के महिना बढ़ करलाई

हमन गरीबहा साल खतरी
पइसा वाला कंबल रजाई

किट किट किट किट दाँत बाजे
काँपे लागे ममादाई

सियान के दुख देख के
गोरसी बनाइस मोर बाई

गोरसी के आँच पाइस
लाख आशीष दिस डोकरी दाई

जेठौनी तिहार

लेखिका – शीला गुरूगोस्‍वामी

कांदा कोचई भाटा बोइर के
सजे हावय हाट बजार

देवउठनी एकादशी के आगे तिहार
तुलसी चौंरा म सजाबो कुसियार

तुलसी बिहाव होही तेकर ले
सबो देवता के करबो मनुहार

बाढ़े बेटा बर बेटी लाबो
बेटी ल भेजबो ससुरार

घर म सुख शांति बने रहय
हांसत खेलय रहय परिवार

इही मंगलकाना करत संगी
मनाबो जेठौनी एकादशी के तिहार

मोर छत्तीसगढ़ के माटी

लेखक - संतोष कुमार साहू प्रकृति


मोर छत्तीसगढ़ के भुंईयां के, सुघ्घार हाबे माटी।
मोर छत्तीसगढ़ के भुईयां के, अमरित हाबे माटी।।
लवकुश ह जिंहा जनम धरिस हे, तुरतुरिया हाबे घाटी ।।


कोरिया सुरज बलरामपुर म, रामगढ के हे माटी।
सोनाखान हे सोनहा बिहिनिया, लाली पींवरी माटी।
पैरीखंड म मैनपुर हे, दमकत
चमकत पाटी।।


मुंगेली कवर्धा म भोरमदेव, चमकत हे मसमाया।
कोरबा रायगढ बिलासपुर म, कोईला के हाबे छाया।।
सरगुजा जशपुर बादलखोल हे, कुनकुरी हाबे घाटी।।


शबुरीनारायण जांजगीरचापा, महानदी के माटी।
बलौदाबाजार बेमतरा रयपुर हे, आरंग हाबे छाती।।
दुरुग नांदगांव डोंगरगढ हे, भिलाई मितानी के माटी।।


महासमुंद खल्लारी सिरपुर, लक्ष्मण मंदिर झांकी।
बालोद धमतरी झलमला बिलाई, चारों कोती हे आंखी।।
कांकेरघाटी कोंडागांव हे, नारायणपुर पैर पाटी।।


परयाग राज हे राजिम नगरी, गरियाबंद उदंतीय घाटी।
तीनेच नदिया जिंहा मिलत हे, तीनेच जिला के माटी।
पैरी सोढु महानदी हे, संग संगवारी के साथी।।


दंतेवाडा दंतेश्वरी बैठे, डंकनी-संखनी के माटी।
सुकमा बस्तर ममहावत हे, चित्रकोट के हे घाटी।।
कांगेर म हे जीव जनावर, सुघ्घर हाबे माटी।।


बैलाडीला बोहावत हाबे, लोहा ल भर के छाती।
बीजापुर लहलहावत हाबै, सरयी के सुघ्घर पाती।।
हरियर लुगरा पहिने हे बस्तर, जिंहा इंद्रावती के घाटी।।


इही माटी म जनम धरेहन, छत्तीसगढ़ के वासी।
माटी म रहीबोन माटी म मिलबोन, काया हाबे माटी ।।
जिनगी भर हम खेलत रहिथन, बढिया भौंरा बांटी।।

मोला सरल जीवन दे दे

लेखक - श्रवण कुमार साहू - प्रखर

जेन धन माँगे, वोला धन दे- दे
जेन तन माँगे, वोला तन दे - दे
मैं तो माँगव वो दाई
मोला सरल जीवन दे दे

कर सकंव मेहा, सबके हियाव
सबके खातिर, एके हो भाव
मोला बना दे, तेहा वो पानी
सत्संगी म रंगे, जिनगानी
तै मोला, समरपन दे दे
मैं तो माँगव वो दाई
मोला सरल जीवन दे दे

नव रस म डूबे, गीत बना दे
सबके हिरदे के, मीत बना दे
मैं बन जावंव सब के आशा
जैसन तन म, चलथे वो श्वांसा
जेन यौवन माँगे,यौवन दे - दे
मैं तो माँगव, वो दाई
मोला सरल जीवन दे दे

मोह माया से, मुक्ति दिला दे
मईया तै अपन, भक्ति दिला दे
मन म गियान के, ज्योति जला दे
सत्कर्मों के मोती, दिला दे
जेन चंदन मांगे, चंदन दे - दे
मैं तो माँगव वो दाई
मोला सरल जीवन दे दे

कतको ह माँगे, सुग्घर काया
कतको ह माँगे, भर - भर माया
तोर चरण ह, मोर मन भाया
मैं माँगव तोर, अछरा के छाया
जेन कंचन माँगे, कंचन दे - दे
मैं तो माँगव वो दाई
मोला सरल जीवन दे दे

लइका मन

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला

अरे लइका मन धूम मचाय बियारा मा
खेलय-कूदय अउ चिल्लाय बियारा मा

धान के खरही के ओधा ले मस्त
रानी मनू ओमू लुकाय बियारा मा

बड़ मोट्ठा डराय धान के पेर मा
अबड़ उलान-बाँटी खाय बियारा मा

खेलय-कूदय हाँसय-गावय जी
फेर खसर-खसर खजवाय बियारा मा

हाँसय, कूलकय अउ रोवय घलोक
अरे माँड़ी-कोहनी छोलाय बियारा मा

सपना देख

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा गब्दीवाला

आगे बढ़े के सपना देख
सीढ़ी चढ़े के सपना देख

खड़े हो के धरती पर
गगन उड़े के सपना देख

खेलते-कूदते उठते-बैठते
लिखे-पढ़े के सपना देख

मात-पिता और गुरू की
सेवा करे के सपना देख

हँसते-गाते नित्य अपनी
दुनिया गढ़े के सपना देख

साग भाजी

लेखिका - प्रिया देवांगन प्रियू

ताजा ताजा सब्जी आवत, रोज सबझन खाओ जी
भाजी पाला बने मीठाथे, ताजा ताजा बनाओ जी

हरा हरा धनिया हा दिखत, महर महर ममहाथे जी
पालक मेथी रोज खावव, देंहे मा तंदरुस्ती आथे जी

भिंडी कुम्हडा रोज आवत, अम्मटहा मा बनावत हे
बबा ला धरे हे जुड़ खाँसी, डॉक्टर ल बलावत हे

भाटा मुरई के साग हा, सबला बने मिठावत हे
भौजी राँधत रोज के, लइका चाट के खावत हे

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