आये सर्दियों के प्यारे दिन

लेखक - चेतनारायण कश्यप

आये सर्दियों के प्यारे
सुनहरे दिन
ठन्डी-गुनगुनी सुबह को जल्दी उठना
करना योग और व्यायाम
जो रखे शरीर और मन को निरोग

सर्दियों के प्यारे सुनहरे दिनों में
रंग-बिरंगे स्वेटर टोपी पहन कर
लगता है हमको अच्छा
सुबह-सुबह उठकर ठन्डे पानी में नहाना भी
लगता है हमको अच्छा

रोज़ सुबह-सुबह
हम निकलें विद्यालय जाने को
पगडंडी और खेतों के सहारे चलकर
स्कूल पहुंचना लगता है हमको अच्‍छा

सर्दियों के प्यारे सुनहरे प्यारे दिन

गणित

लेखक - भानुप्रताप कुंजाम अंशु

नहीं डरावना है गणित
बूढ़े बच्चे सबका मीत

है खेल सिर्फ जोड़-तोड़
मुश्किल नहीं माथा फोड़

हमें सिखाता जोड़ घटाना
खर्च करना और बचाना

भाग देना गुणा करना
किसी चीज को दुगना करना

सुन मेरे मुन्नू भाई
गणित हमारी है परछाई

जहाँ-जहाँ तुम जाओगे
साथ गणित को पाओगे

नहीं गणित से डरना तुम
गणित से दोस्ती करना तुम

गरीबी में जीवन

लेखिका - श्वेता पाटनवार

एक बच्ची से पूछा मैंने
क्या हैं ख्वाब तुम्हारे
बच्ची बोली ख्वाब देखन
ा बस में नहीं हमारे

हम जिस कुटिया में रहते हैं
सड़क किनारे बनी हुई है
माटी धूल और कंकड़ों से
बस यह समझो सजी हुई है

महलों में रहने का ख्वाब
झोपड़ियों में सिमट गया है
और गरीबी की चादर सा
कसकर हमसे लिपट गया है

बच्ची कहती उससे पहले
बाबा आकर उसके बोले
नही बची है हिम्‍मत अब जो
वक्त से लड़ने बाजू खोलें

इन गरीब के बच्चों को भी
पढ़ने की इच्छा होती है
देख मगर पैसों की तंगी,
बच्ची कुछ भी नहीं कहती है

अंदर ही अन्दर घुट-घुट के
जीने की आदत पड़ जाती
लाख जतन किए हैं हमने
छोड़ गरीबी है कब जाती

चिड़िया

लेखिका - प्रिया देवांगन प्रियू

छोटी सी चिडिया , फुदक फुदक कर आती है।
आंगन में बैठ कर , चीव चीव गीत सुनाती है।।

रानी सुबह उठ कर , दाना रोज खिलाती है।
चीव चीव कर के चिड़िया , दाना खाने आती है।।

रानी चिड़िया को देख कर , झट से उठ जाती है।
बच्चो के संग छोटी चिड़िया ,मीठी गीत सुनाती है।।

एक डाल से दूसरे डाल , उड़ उड़ कर जाती है।
मीठे मीठे फल खा कर , बहुत खुश हो जाती है।।

छोटे-बच्चे

लेखिका - सुनीला फ्रेंकलिन

छोटे -बच्चे, बड़े ही सच्चे
शकल के अच्छे, अकल के कच्चे।
कभी रोते, कभी गाते,
कभी हंसते, कभी खाते।
मम्मी-मम्मी,पापा-पापा,
दादी-दादी, दादा-दादा।
दीदी-भैया, दे दो रुपैय्या,
खेलेंगे हम, छंद-पकैय्या।
बच्चे ऐसे रटते जाते,
शोर करते, उधम मचाते।
हमको सब कुछ आता है,
पढ़ना हमको भाता है।

जल की प्रकृति

लेखक एवं चित्र - पेशवर यादव भाठीगढ़

आकाश में वाष्प बनकर
संवहन कर रहा हूँ
संघनन की क्रिया से
बा दल बना रहा हूँ
बादल से उतर कर
धरती में हरियाली जगा रहा हूँ
सजीव प्राणी के लिए
जीवन का आधार ला रहा हूँ
सजीव घटकों के लिए
जल ही जीवन कहला रहा हूँ
हाइड्रोजन ऑक्सीज़न से मिलकर
H2O बना रहा हूँ
खेत खलिहानो का
सूखा मिटा रहा हूँ
समुद्र सागरों झीलों में
जल मग्न कर रहा हूँ
पहाड़ों पर्वतों को चीरकर
कल -कल की ध्वनि से
प्राकृतिक सौंदर्यरुपी
झरना -झील बना रहा हूँ
ओस की बूंदों से
धरती पर चमक रहा हूँ
ध्रुवी प्रदेशो हिमालयों में
बर्फ का चादर ओढ़ा रहा हूँ
मैग्नीशियम-कैल्सियम के लवणों से
कठोर बन रहा हूँ
पदार्थ मुझसे घुले तो
सार्वत्रिक विलायक कहला रहा हूँ

जूते जी

लेखक - बलदाऊ राम साहू

जूते जी करते हैं चर-मर।
जैसे मेंढक करते टर-टर।

नहीं किसी से हैं वे डरते
चट्टानों से भिड़ते डटकर।

पैरों की रखवाली करते
कंकड़,पत्थर से भी लड़कर।

पर पानी से बचकर रहते
पैरों से वे निकल-निकल कर।

धरती पर लगा पेड़

लेखक - नेमीचंद साहू

धरती पर लगा पेड़
हरियाली हो जाये
हर घर कर उजाला
दीवाली हो जाये
हाथ बढ़ा दया का
खुशहाली हो जाये
लगा प्रेम से गला जरा
ग़म से खाली हो जाये
गा देशभक्ति का गाना
मतवाली हो जाये
डाल अपनेपन का ऱंग
चारों ओर वाली हो जाये
हाथ लगा दोनों साथ
तो ताली हो जाये

नो पेन्डिग

लेखक - विकास कुमार हरिहारनों

जिंदगी बड़ी सरल है
हर मुश्किलों का हल है
याद रख,कर ले तू ऐसा काम
नो पेन्डिग इन योर लाईफ
सुबह का सुबह ही,दिन का उस दिन ही
हर क्षण का उस क्षण ही
करता जा बस काम
नो पेन्डिग इन योर लाईफ

काँटा चुभे तुम्हें तो
तत्क्षण उसे निकालो
हर मुश्किलों का हल है
नो पेन्डिग इन योर लाईफ

जीवन अगर सरल है
खुशियाँ मिलेंगी अनहद
बस याद रखके चलना
नो पेन्डिग इन योर लाईफ

प्यारे बच्चों! आओ मेरे पास

लेखक - अभिषेक शुक्ला

प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,
दूर वहाँ क्यों बैठो हो तुम हो क्यो इतने उदास ?
आओ मिलकर पाठ पढ़ो कुछ सीखें नई बात,
मिल जुलकर सब साथ रहो और मन में हो विश्वास.

प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,
दूर वहाँ क्यों बैठो हो तुम हो क्यों इतने उदास?
सुबह उठो जल्दी से तुम और बोलो सब को 'शुभ प्रभात',
बस्ता लेकर स्कूल चलो तुम सब ले हाथों में हाथ।

प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,
दूर वहाँ क्यों बैठो हो तुम हो क्यों इतने उदास?
नित्य कर ईश्वर की प्रार्थना कर्तव्य मार्ग पर डटे रहो,
कोई भी कठिनाई आये पर तुम पीछे न कभी हटो

प्यारे बच्चों,प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,
दूर वहाँ क्यों बैठो हो तुम हो क्यों इतने उदास?
पढ़ लिखकर रोज ही सीखो अच्छी-अच्छी बात,
जीवन में खूब आगे बढ़ो तुम सच्चाई के साथ।

प्यारे बच्चों, प्यारे बच्चों आओ मेरे पास,
दूर वहाँ क्यों बैठो हो तुम हो क्यों इतने उदास?

प्रेम सदा बरसाय (कुंडलियाँ)

लेखक - डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

कहते ज्ञानी संत हैं, जो मन मे अपनाय।
एकसूत्र जो बाँधकर, प्रेम सदा बरसाय।।

प्रेम सदा बरसाय, सभी को अपना माने।
कैसा किसका ध्यान, उसे भी जग पहचाने।।

कह डिजेन्द्र करजोरि, प्रेम से हैं जो रहते।
मानवता का राज, सदा ही ज्ञानी कहते।।

बचपन

लेखिका - स्नेहलता स्नेह

जिंदगी के ब़ाग का सबसे निराला फूल हूँ
लोग कहते धूल में लिपटा हुआ सा फूल हूँ

मुस्कुराता हूँ सदा अपना सभी को मानता
मैं हूँ बच्चा प्रीत गुलशन का अनोखा फूल हूँ

देख कर अठखेलियाँ मुस्का रहे पापा मेरे
मात की आँखों का तारा हूँ दुआ का फूल हूँ

तुतली तुतली मेरी भाषा मस्तमौला फिर रहा
छल कपट से दूर हूँ रब का उगाया फूल हूँ

स्नेह रखता हूँ मैं सबसे सबसे पाता स्नेह हूँ
पाप का कीचड़ जहां बचपन कंवल सा फूल हूँ

मेरा वो प्यारा बचपन मस्ती

लेखक - गिरजा शंकर अग्रवाल

लौटा दो कोई मस्ती
मेरा वो प्यारा बचपन
वो मौज मस्ती
कोलाहल से भरा आँगन

वो अनोखे खेल
कँही चोर सिपाही तो कँही रेल
जो अपने थे
आज खो गए हैं

लौटा दो फिर कोई
वही पेड़ों की लताएँ
दादी माँ की कहानियाँ
और पंचतंत्र की कथाएँ

आज नए जमाने की चकाचौंध में
छिप गयी हैं बचपन की वो मस्ती
मोबाइल व इंटरनेट जो चल रही हैं
घर-घर बस्ती-बस्ती

लौटा दो कोई
फिर वही हँसता बचपन
दब गए हैं जो आज
बस्ते के बोझ तले
मेरा वो प्यारा बचपन

लौटा दो कोई फिर वही शैतानियाँ
जो मेरे अपने थे
खो गए हैं कहीं
मेरा वो प्यारा बचपन

मेरी दादी

लेखक – बलदाऊ राम साहू

मेरी दादी बड़ी सयानी
रोज़ सुनाती नई कहानी

कहानी में गड़बड़ झाला
भर देती हैं नया मसाला

गुट्टू, नट्टू, बिट्टू आओ
सुनो कहानी मन बहलाओ

आओ बैठें दादी के पास
कल्‍पना में उड़े आकाश

मेला चले हम

लेखक - बलदाऊ राम साहू

आओ मेला चलें हम भाई।
झूला झूलें, खाएँ मिठाई।
मम्मी-पापा का कहना मानें,
कभी करें ना कोई ढिठाई।

धमा- चौकड़ी हम कर आएँ,
आने पर किस्सा बतलाएँ।
चाबी वाला बंदर लाएँ,
उसको पाजामा पहनाएँ।

देखो हाथी कितना भारी,
उस पर बच्चे करें सवारी।
देखो ऊँट जी मचल रहे हैं,
घोड़े ने कब बाजी हारी।

कितने सुन्दर हैं खिलौने,
कुत्ते के पिल्ले, मृग के छौने।
नाच रही परियों की रानी,
करतब दिखा रहे हैं बौने।

चूँ-चूँ करती बैठी थी चिड़िया,
आँखें मटका रही थी गुड़िया।
कोई जादू दिखा रहा था,
मन बच्चों का बहला रहा था।

लाला जी

लेखक - बलदाऊ राम साहू

लाला जी ओ लाला जी
कहाँ तुम्हारी खाला जी
खाला ने काम बताया
तुमने क्यों उसे टाला जी।

लाला जी ओ लाला जी
लाना गरम मसाला जी
मसाला में धनिया मिर्च
क्या-क्या तुमने डाला जी।

लाला जी ओ लाला जी
काहे लफड़ा पाला जी
जाओ मथुरा वृंदावन
जपना तुम भी माला जी।

सृजन करें

(लावणी छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

नई सृजन की बेला आई, आओ कुछ निर्माण करें ।
आगे बढ़ते जायें हम सब, भारत माँ का नाम करें ।।

कदम रुकें मत बाधाओं में, संकट से हम नहीं डरें ।
लक्ष्य साध कर बढ़ते जाओ, मन में अपना धीर धरे ।।

करें खोज विज्ञान जगत में, छू लें चाँद सितारों को ।
सृजन करें ऐसे हम साथी, माने सब उपकारों को ।।

मिटे गरीबी गाँवों के सब, ऐसे कोई सृजन करें ।
हाथों में हो काम सभी के, भूखों से अब नहीं मरे ।।

पढ़ लिखकर सब बढ़ते जायें, जग में ऊँचा नाम करें ।
भेदभाव को छोड़ साथियों, नहीं किसी से कभी डरें ।।

हम स्कूल चलेंगे

लेखक - अभिषेक शुक्ला

हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे
सीखेंगे अच्छी बाते और पायेंगे ज्ञान
पढ़ लिखकर हम बनेंगे अच्छे और महान
हाँ, हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे
प्रार्थना सभा में मिल गाएंगे राष्ट्रीय गान
सब को बतायेंगे कि है मेरा भारत देश महान
हाँ,हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे
पढ़ेंगे हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और विज्ञान
पायेंगे गुरुजन से गणित का सारा ज्ञान
हाँ, हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे
हम प्रेम और भाईचारा से रहना सीखेंगे
भूल से भी आपस में न हम कभी लड़ेंगे
हाँ,हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे
हाँ,हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे

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