विज्ञान कहानी - खाद्य श्रृंखला

लेखक एवं चित्र - पेशवर यादव भाठीगढ़

एक गांव में किसान रहता था. वह खेती-बाड़ी के साथ पशुपालन एंव मुर्गीपालन भी करता था. एक दिन उसने बाड़ी में बहुत सारी सब्जियों के बीज बोये. कुछ दिन बाद बीज से नए-नए पौधे निकल आये. पौधे सूर्य के प्रकाश से भोजन बनाते, अंगडाई लेते, गति करते और खेलते-कूदते. पौधों की दिनचर्या इसी प्रकार चल रही थी. धीरे-धीरे पौधे फूलने-फलने लगे. बाड़ी में हरियाली ही हरियाली थी. पौधे की हरियाली देख किसान के दिल में भी हरियाली थी.

एक दो दिन बाद पौधों की हरियाली एवं फूलों की महक से कीड़े-मकोड़े, कीट-पतंगे, रंग-बिरंगी तितलि‍यां और भौरें बाड़ी में गुनगुनाने लगे. किसान यह सब देखकर बहुत चिंतित हुआ. उसे सब्ज़ि‍यों के भारी नुकसान होने का डर सताने लगा. उसने एक उपाय सोचा. उसने मुर्गियों को सब्ज़ी की बाड़ी में स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया. इससे मुर्गियों को भी खाना मिला और सब्जियों की फसल भी सुरक्षित हो गई.

इस तरह से कुछ दिन बाद किसान को सब्ज़ि‍यों से बहुत मुनाफा हुआ. किसान खुश होकर इस मुनाफे से और बहुत सारी मुर्गियां बाज़ार से खरीद लाया. किसान को मुर्गी से अंडे मिले, मांस मिला और बाड़ी के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद भी मिला. किसान की आय में बहुत बृध्दि हुई.

समय बीतता गया. किसान की मुर्गियों की संख्या भी बढ़ती गयी. धीरे-धीरे मुर्गियों के रहन-सहन में भी परिवर्तन होने लगा. मुर्गियों को कम दाना मिलने लगा. संख्या बढ़ने से मुर्गियों को बाड़े के अंदर विचरण करने में समस्या होने लगी. गर्मियों का मौसम आने लगा. मुर्गियां दाने की तलाश में बाड़ी से बाहर आने लगीं. वे स्वच्‍छंद विचरण करते हुए दाना चुगकर शाम होते ही बाड़ी की ओर चली जातीं. इस तरह मुर्गियों का दल बहुत खुश था. एक दिन, दोपहर में बहुत सारे सियार जंगल से किसान की बाड़ी में आ धमके. मुर्गियां बाड़ी से बाहर विचरण कर रही थीं. मुर्गियां सियार को देखकर भय से भागम-भाग करने लगीं पर सियार के सामने उनकी एक न चली. अंततः सभी मुर्गियां मारी गई, जिससे किसान को भारी नुकसान हुआ. किसान को समझ आ गया था कि‍ पर्याप्त संसाधन के बिना कोई भी कार्य को नहीं करना चाहिए.

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