चित्र देखकर कहानी लिखो
पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –
इस चित्र पर हमें कई मज़ेदार कहानियां मिली हैं, जिन्हें हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं –
लालच बुरी बला है
लेखक - ढ़ालेंद्र साहू
एक कुत्ता अपने मुंह में हड्डी दबाकर तालाब के किनारे से गुजर रहा था. तभी उसकी नज़र तालाब में एक और कुत्ते पर पड़ी जो उसी की तरह मुंह में हड्डी दबाकर उसके साथ चल रहा था. वास्तव में वह उसकी परछाई थी. कुत्ता लालची था. वह तालाब के और पास गया और अपनी परछाई को दूसरा कुत्ता समझकर उसके मुंह की हड्डी छीनने के लालच में तालाब में कूद गया. तालाब में कूदते ही उसने अपना मुंह खोला जिससे उसके मुंह की हड्डी भी तालाब में गिर गयी और कुत्ते के मुंह कुछ नहीं लगा.
घमंडी कुता
लेखिका - प्रतिभा त्रिपाठी
एक मुहल्ले में एक घमंडी कुता था. वह गली के अन्य कुत्तों व लोगों को परेशान करता था. उसे सबक सिखाने हेतु एक प्रतियोगिता रखी गई. तय हुआ कि जो कुत्ता उसे जीतेगा गली का राजा बना दिया जाएगा. एक गड्ढ़ा बनाकर उसमें पानी भरा गया एवं कुत्तों को वहां कुश्ती लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया. जैसे ही वह कुत्ता लड़ने के लिये गड्ढ़े में कूदा वह डूबने लगा. उसने अन्य लोगों को मदद के लिए पुकारा. जब किसी ने उसकी मदद नहीं की तब उसने सबसे माफी मांगी और कहा कि अब मैं सब के साथ मिल-जुल कर रहूंगा.
सीख - हमें किसी भी चीज का कभी घमंड नहीं करना चाहिए.
बहादुर कुत्ता
लेखक - संतोष कुमार कौशिक
श्यामू नाम का एक किसान था. उसका छोटा परिवार था. श्यामू उसकी पत्नी और उसके एक बेटा व एक बेटी थे. श्यामू दिन भर कृषि कार्य में व्यस्त रहता था. उसका साथ उसका कुत्ता मोती देता था. मोती बहुत वफादार था. वह अपने मालिक के साथ सुबह से शाम तक रहता था. जब श्यामू घर आता तो मोती भी उसके पीछे-पीछे आता. श्यामू जब भोजन करता तो मोती का भी ख्याल रखता था. उसे भी भोजन देता था. श्यामू का परिवार शुध्द शाकाहारी था और कुत्ता भी शाकाहारी भोजन करता था.
एक दिन श्यामू गांव से बाहर गया. मोती घर में ही था. मोती ने देखा बहुत सारे कुत्ते घर के सामने से गुज़र रहे हैं. उसने सोचा, मैं भी आज इन लोगों के साथ सैर कर लेता हूं. मेरे मालिक भी नहीं है और मेरे मालिक के बच्चे भी कहीं चले गए हैं. ऐसा सोच कर वह अन्य कुत्तों के साथ जंगल की ओर चला गया. घूमते-घूमते शाम होने को आई. मोती को भूख सताने लगी. बाकी कुत्ते भी भोजन की तलाश में जुट गए. अचानक किसी जानवर की हड्डियां नज़र आईं. सभी कुत्ते दौड़े. सभी ने एक-एक हड्डी खाने के लिए मुंह में रख ली और घर की ओर भागने लगे. संगति का प्रभाव तो पड़ता ही है. मोती ने भी सब कुत्तों को देखकर एक हड्डी अपने मुंह में रख ली. उसे जोर से उसे प्यास लगी थी. वह पानी पीने के लिए नदी के पास चला गया. नदी में जैसे ही वह पानी की तरह झुका, उसे पानी में उसका खुद का प्रतिबिंब दिखाई दिया. प्रतिबिंबित मुंह में हड्डी को देखकर मोती सोचने लगा- 'इस सूखी हड्डी में क्या रखा है. इसमें ना मांस है न स्वाद है. मेरा मालिक देखेगा तो मुझे मार डालेगा.' यह सोचकर उसने मुंह की हड्डी को नदी में गिरा दिया. उसी समय अचानक नदी में कोई बहता हुआ व्यक्ति आ रहा था. मोती का ध्यान उस ओर गया. उसने ध्यान से देखता कि वह व्यक्ति उसके मालिक का लड़का है. मोती अपनी जान की परवाह किए बिना मालिक के लड़के को बचाने के लिए नदी में छलांग मार देता है. दोनों नदी में बहते हुए धीरे-धीरे किनारे की ओर पहुंच जाते हैं और दोनों बच जाते हैं.
वापस घर आ कर श्यामू के लड़के ने अपनी मां एवं पिताजी को सारी घटना के बारे में जानकारी दी. घटना को सुनकर मोती के प्रति घर के सभी लोगों का प्यार और बढ़ जाता है. सब एक परिवार की तरह खुशी-खुशी जीवन बिताते हैं.
शिक्षा - जो हमारा पालन पोषण करता है, उसकी हमें भी सहायता करना चाहिए.
डॉगी फिर बना उल्लू
लेखक - इंद्रभान सिंह कंवर
एक बार एक डॉगी को कहीं से हड्डी का टुकड़ा मिलता है, जिसे पाकर वह बेहद खुश होकर इधर-उधर दौड़ने लगता है. उसे लेकर वह अपने घर की ओर चल पड़ता है. चलते-चलते उसे प्यास लगती है. पानी पीने वह नदी किनारे चल पड़ता है. हड्डी को मुंह में दबाए वह नदी किनारे पानी पीने के लिए जाता है. नदी के अंदर झांकता है, तो उसे एक और उसी के जैसे डॉगी हड्डी मुंह में दबाए नदी के अंदर दिखाई देता है. उसे देखकर उसके मन में लालच आ जाता है. काश दोनों हड्डी मुझे मिल जाएं तो मैं बड़े आराम से दोनों को खा सकूंगा.
वह ऐसा सोचता ही रहता है, कि अचानक उसे उस कुत्ते की कहानी याद आ जाती है जिसमें एक कुत्ता पानी के अंदर के डॉगी को देखकर भौंकता है, और हड्डी उसके मुंह से निकल कर पानी में गिर जाती है और उसे कुछ नहीं प्राप्त होता है. डॉगी अपने आप को चालाक समझते हुए सोचता है, कि मैं उसकी तरह बेवकूफ थोड़ी ना हूं. मैं भौंकूंगा नहीं मैं. हड्डी यहीं नदी किनारे रख देता हूं और नदी के अंदर से डॉगी से हड्डी छीन कर बाहर ले आता हूं, और दोनों हड्डी को मजे से खाऊंगा.
ऐसा सोचकर वह नदी किनारे अपने मुंह की हड्डी को छोड़कर नदी में छपाक से कूद जाता है. यह सब नजारा एक गिद्ध देखते रहता है. वह मौका पाकर हड्डी को लेकर भाग जाता है. डॉगी देखता ही रह जाता है. वह अपने आप को कोसते हुए सेचता है कि उसकी बेवकूफी से ना तो नदी के अंदर की हड्डी उसको मिल सकी और न ही वह अपनी हड्डी को बचा पाया. इस तरह से एक और डॉगी उल्लू बन गया.
सीख - हमें लालच नहीं करना चाहिए. बेवकूफ लोग हमेशा अपने आप को अधिक होशियार समझते हैं जबकि वह वास्तव में बेवकूफ होते हैं.
इस बार हमें कहानियों के साथ इस चित्र पर एक कविता भी मिली है जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं.
चित्र कविता - लालची कुत्ता
लेखक - संतोष कुमार कौशिक
टॉमी नाम का कुत्ता था।
इधर-उधर वह घूमता था।।
वह मोहल्ले में रहता अकेला।
कोई देता रोटी कोई देता केला।।
रोज उसे रोज मिलता स्वादिष्ट खाना।
फिर भी लोगों को नहीं छोड़ता डराना।।
एक दिन मोहल्ले वालों को सोचना पड़ा।
हमारा खाकर, हमसे बन रहा है बड़ा।।
कुत्ते को सबक सिखाने की पारी आई।
मोहल्ले वालों ने तुरंत बैठक बुलाई।।
बैठक में बात हुई भोजन नहीं देना है, इसको।
अब हमें देखना है, भौंकता है किसको।।
मानी नहीं हार उसने, सोची एक तरकीब।
कसाई की दुकान के, वह है करीब।।
कुत्ता पहुंचा दुकान में, मुंह में पानी आया।
कसाई ने एक हड्डी फेंकी, कुत्ते को खिलाया।।
हड्डी लेकर चले नवाब।
रास्ते में मिला बड़ा तालाब।।
कुत्ता को थी प्यास लगी, सोचा पानी पी लूं।
फिर चैन से बैठकर, हड्डी को चबा लूं।।
पीने के लिए वह पानी की तरफ झुका।
उस पानी में खुद की परछाई दिखा।।v
परछाई को वह समझ ना पाया।
लालच में वह कुत्ता आया।।
उसे लगा कुत्ता एक है, पानी में।
मजेदार हड्डी इसके अंदर, मुंह में।।
भौं-भौं लगा जो करने।
मुंह की हड्डी गिरी पानी में।।
लालच करना बुरी बला है।
हुआ न इससे कभी भला है।।
यूं लालच तुम कभी न करना।
बाद में पछताओगे वरना।।
सीख
जो चीजें पास हैं हमारे।
उनका ख्याल रखना प्यारे।।
अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें वाट्सएप व्दारा 7000727568 पर अथवा ई-मेल से dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.