इस पृथ्वी को चलो बचाएं

लेखिका एवं चित्र – आशा उज्जैनी

यह पृथ्वी हम जिस पर रहते
इस धरती को चलो बचाएं
हमने बस लेना ही सीखा
अन्न, फूल, फल ले लेते हैं

यह पृथ्वी इतना देती है
बदले में हम क्या देते हैं
आज स्वयं से पूछें आओ
जो सच है सबको समझाएं

यह धरती हम जिस पर रहते
इस धरती को चलो बचाएं

हमने किया है इसे विषैला
बारिश तक अब है तेजाबी
खतरनाक केमिकल डालते
कचरा डाल रहे हम इसमें
पर्यावरण प्रदूषित अपना
जल थल सब को स्वच्छ बनाएं

यह धरती हम जिस पर रहते
इस धरती को चलो बचाएं

माना अब विज्ञान ज्ञान में
बहुत बढ़ चुके हैं हम आगे
धरती नहीं बची तब हम सब
ढूढेंगे सांसों के धागे
नहीं प्रकृति से छेड़छाड़ हो
धरती मां है भूल न जाएं

यह धरती हम जिस पर रहते
इस पृथ्वी को चलो बचाएं

छोटे छोटे हाथ जोड़कर (ताटंक छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

छोटे छोटे हाथ जोड़कर, प्रभु को शीश झुकाता हूँ ।
पूजा पाठ न जानू भगवन, लड्डू भोग चढ़ाता हूँ ।।

ज्ञान बुद्धि के दाता हो तुम, संकट सब हर लेते हो ।
ध्यान मग्न हो जो भी माँगे, उसको तुम वर देते हो ।।

सूपा जैसे कान तुम्हारे, लड्डू मोदक खाते हो ।
भक्तों पर जब संकट आये, मूषक चढ़कर आते हो ।।

पहिली पूजा करते हैं सब, बच्चों के तुम प्यारे हो ।
नहीं कभी भी गुस्सा करते, सब भगवन से न्यारे हो ।।

छोटे छोटे बालक हैं हम, शरण आपके आते हैं ।
दूर करो सब संकट प्रभु जी, भजन आपके गाते हैं ।।

जय गणेश देवा

लेखक - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
रोज करो पूजा पाठ, और करो सेवा

लड्डू मोदक तुमको भाये, फूल पान मिलके चढ़ाये
धूप आरती रोज लगाये, चरणों मे हम शीश नवाये

मूसक के तुम हो सवारी, एक दन्त के तुम हो धारी
लंबोदर महाराज कहलाते, पेट तुम्हारा है सबसे भारी

अन्धे को तुम आँख देते, कोढ़िन को तुम देते काया
सबके भव बाधा को हरते, बढाते हो सबकी माया

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
रोज करो पूजा पाठ, और करो सेवा

नन्हीं कली

लेखक - संतोष कुमार साहू 'प्रकृति'

नन्हीं कली मैं नन्हीं कली,
ज्ञान गली में मैं तो खिली।।


गुलाब जूही नाम मेरे,
बाग बगीचा धाम मेरे।
महक उडाना काम मेरे,
लोगों की प्यार जान मेरी।।
प्रेम डगर को मैं तो चली,
नन्हीं कली मैं नन्हीं कली।।
ज्ञान गली में मैं तो खिली।।


बच्चों में प्यार बहाती हूँ,
मोंगरा गेंदा कहलाती हूँ।
सेवती चमेली महक मेरी,
सुरजमुखी बन जाती हूँ।।
किचड में खिलकर कमल चली।।
नन्हीं कली मैं नन्हीं कली।
ज्ञान गली में मैं तो खिली।।


रात की रानी बेला खिली,
रजनीगंधा की महक उडी।
चंपा आंगन में आकर जुडी,
पारिजात पहचान मेरी।।
गांव गली में महक चली।।
नन्हीं कली मैं नन्हीं कली,
ज्ञान गली में मैं तो खिली।।

बाल गणेश

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

मूसक ऊपर चढ़ कर आये, बाल गणेश हमारे द्वार ।
हाथ जोड़ कर भक्त खड़े हैं, विनय करें सब बारंबार ।।

फूल पान सब अर्पण करते, दीप जलाये घर पर आज।
हम क्या जानें पूजा भगवन, आप बचाओ हमरे लाज।।

लड्डू मोदक बहुत सुहाये, सभी लगाये तुमको भोग ।
पूजे जो भी सच्चे दिल से, मिट जाये जी सारे रोग।।

बच्चे बूढे खुश हो जाये, मोदक खाये बाल गणेश ।
आशीर्वाद सभी को देते, काटे पल भर में सब क्लेश।।

करें आरती दीप जलायें, माँगें सब तुमसे वरदान ।
ज्ञान बुद्धि दो हमको दाता, मिट जाये सारे अज्ञान।।

ज्ञान की दीपक जलाने आये, श्री गणपति हमारे घर।
शिव गौरी के साथ मे आये, लंबोदर जी हमारे घर।।

एक बार तीज

लेखक – जी.आर. टंडन

साल में एक बार आता है तीज
बेटी, बहनों की मायके आने की रीत
सहेलियों से बनी रहे मीत
किलकारी से आंगन में गूंजे संगीत
नारी का सम्मान कर
अब न तिरस्कार कर
विशुध्दर मन अंतस
तू भूल अहं अतीत
रंग भेद, जाति छोड़
ये जन्म है अनमोल
कविराज टंडन
तीजा की बधाई
आपका अभिनंदन
भाग्य कोसते न रहो
लगा गले से पिरीत

बेशरम की आत्मगाथा

लेखक - दिलकेश मधुकर

बेशरम हूं मैं, पर मुझमें शरम है।
कठोर कभी तो, कभी नरम है।

कभी बच्चों की तीर-धनुष बना,
ईट-पत्थर ना हो तो दीवार बना।

बनकर सूखी मैं चूल्हा जलाया।
तब लोगों को भोजन मिल पाया।

छत पर लगा तो छाया दिया।
जहां फेंका तो वही जी लिया।

मित्र

लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

मित्र भले ही एक हो
लेकिन नेक हो
मित्र भले ही एक हो
पर उनके पास विवेक हो
मित्र भले ही एक हो
पर उनमें गुण अनेक हों
मित्र कर्ण सा हो
जो वक़्त पड़ने पर जान दे दे
मित्र कृष्ण सा हो
समय आने पर सम्मान दे दे
मित्रता में लेने नहीं
देने का भाव हो
मित्र वही चुनो, जिनका
अभाव में भी प्रभाव हो
मित्रता तो वही अखण्ड रहती है
जिसमें एक दूजे के लिए
प्रेम, त्याग, समर्पण का भाव हो

मेरी मां

लेखिका – कांति नागे

मेरी सुबह की पूजा, मेरी आरती, मेरी माँ
मेरी गुरु, मेरा पथ आलोकि‍त करती माँ
मेरे मन की, हर व्यथा समझती मेरी माँ

चांद सी शीतलता, संतान की नीरवता
भविष्य गढ़ने का अहसास, चेहरे की कांति
तेरी आहट ही है मां, जो मकान को घर बनाती है
एक पल को भी तू न हो तो, घर की दीवारें भी चिल्लाती

बच्चों के मन का दर्पण माँ
वक्त आने पर पिता भी बन जाती माँ
सब तकलीफें भुलाकर, जिम्मेदारी निभाती माँ
मेरी अरदास, मेरा कीर्तन, मेरा अमृत, मेरा मोती, मेरी माँ

प्यार में नदियों सी चंचलता
हृदय में सागर सी गहराई
गलती होने पर सख्त चट्टान बन जाती है
हृदय पर पत्थ र रखकर अपनी परछाई
किसी गैर को सौंपती है मेंरी माँ

मेरे गीत, मेरी कविता, मेरा भजन, मेरी माँ
रहूं कहीं भी, अहसास तेरा हर क्षण हो मेरी माँ
अनुबुझ पहेली का हल है माँ
हर दर्द का मरहम है माँ

मेरी धरती, मेरी आसमां
मेरी जन्नत, मेरी मन्नत है माँ
लहू का हर कतरा
तेरा तलबगार है माँ

मन मंदिर की मूर्ति, धरती पर सृष्टि का प्रतीक है माँ
संयम और धैर्य की अनोखी मिसाल है माँ
मेरे जीवन का प्रकाश, सूरज की पहली किरण, फूलों की महक है माँ

मेरी कलम, मेरा ज्ञान, मेरा विज्ञान है माँ
तुझमे मेरा प्यार बसा, तू ही मेरा संसार है माँ
मेरी पूजा, मेरी इबादत मेरे जीवन नैया की नाविक मेरी माँ

मेरे मोजे-जूते

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

मेरे प्यारे मोजे-जूते
मेरे न्यारे मोजे-जूते

काले और निराले जूते
बढ़िया ढीले-ढाले जूते

मेरे मोजे नरम रंगीले
लाल सादे नीले पीले

सभी रहते साथ-साथ
सुबह शाम दिन-रात

मेरे पैर सुरक्षित रखते
मेरे लिए कष्ट सहते

मित्रवत हम में नाता
जग को संदेश जाता

ये देश है वीर जवानों का

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

घर का आँगन माँ के आँचल,
गली गाँव को सुने कर हम,
बचपन के ओ दोस्त निराले,
छोड़ आया ओ ताल तलैया,
देश भक्ति की जज्बा ओढ़े,
ये देश है वीर जवानो का ''

मेरा प्यारा भारत न्यारा,
कोई इनको न आँखे दिखा,
उनके आँखे नोच लेंगे हम,
वीरो के फौलादी बाँहो में,
चट्टानो को तोड़ देंगे हम,
ये देश है वीर जवानों का ''

तन मन सबको वारु मैं,
चाहे दिन रात कभी हो,
हम सपूत माँ भारती के,
निज सुख भी त्यागु मैं,
तेरे भाल सजाओं मैं माँ,
ये देश है वीर जवानों का ''

देश भक्ति का चोला ओढ़े,
वीर शिवा राणा स जोश लिए,
शान बना माँ चरणों का,
जनमानस की रक्षा हित,
कसमे खाता चरणों का मैं,
ये देश है वीर जवानों का ''

गिद्ध की आँखे गड़ा मै,
चौकस खड़ा द्वारों पर,
न पैर पसारे दुश्मन ओ,
याद दिलाती हर क्षण वे,
भारत माता तेरे सम्मानों की,
ये देश है वीर जवानों का ''

न आँच न आने देंगे हम,
भारत माता के चरणों को,
चाहे सर्दी हो या वर्षा,
तपते गर्मी चट्टानों में,
हिम धरा हिमालय में भी,
पहरा देते प्यारे जवान,
ये देश है वीर जवानों का ''

सीमाओं में अडिग खड़ा,
चट्टान बनकर ढाल बना,
तोपो की सलामी देकर,
दुश्मन से भी खूब लड़े हम,
माँ तिरंगे की रक्षा हित में,
ये देश वीर जवानों का ''

हुँकार भरा ललकारता हु,
दुश्मन के ओ टोली को मै,
ऊची चोंटी हिमालय से,
खदेड़ भगाऊँ दुश्मन को भी,
चाहे लड़ते शहीद हो जाऊं,
ये देश है वीर जावानों का ''

कफन तिरंगे ओढ़ लिए मैं,
गाँव गली ओ मेरे आँगन,
फिर वापस मैं भी आऊँ,
ओ दोस्त मेरे बचपन का,
लिपट गले मैं भी लगाऊँ,
ये देश है वीर जवानों का ''

सीख लूं

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

सीख सदा मैं सभी से लूं,
सदमार्ग मन गतिमान हो,
हमेशा निज ध्यान भी रहे,
पथ भ्रष्ट भी कभी न हो ''

सीख अनिल गति से लूं,
मन की तरंग न विरल हो,
उमंग सदा मन में बनी रहे,
न डिगे चंचल मन कभी ''

सीख मैं नीर प्रवाह से लूं,
आगे पथ निरन्तर ही बढ़े,
न थके रुके मन भी कभी,
निर्मल हों मेरे विचार में ''

सीख मैं पावक गति से लूं,
तेज मन उज्ववलता भी दे,
जलु और प्रकाश तेज हो,
मन भी तो मेरे कुंदन बने ''

सीख खग के समान लूं,
नील गगन के उड़ान में,
न डरुं न ही मैं थकूं कभी,
जीवन के भी ये सार हो ''

सीख भानु के प्रकाश से लूं,
उष्णता लिये तेज हो किरण,
मन मे छुपी बुराई इसमे जले,
सोच ऐसी जग में प्रकाश हो '

सीख बादल की गति से लूं,
स्वच्छता लिये मैं निर्मल बनूं,
नीर बून्द की नित‍ बौछार में,
मन भी बने मेरे विचार हों ''

सीख समुद्र के लहरो से लूं,
ज्वार भाटा के भी समान हो,
न व्देष राग में मन डूबे कभी,
शान्त भाव मे सदा टिका रहे ''

सीख प्रसुन की गंध से लूं,
मन भी प्रफुल्ल बने सदा,
सुगन्धित हो दिशा दिशा,
न मलिनता मेरे मन में हो ''

सीख सदा देशभक्तों से लूं,
दीन दुखियों की नि‍त सेवा करूं,
न झकूं न डरूं दुश्मनो से लड़ूं
लगा रहूं देश सेवा में सदा ''

हे वीणा वाली

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

वीणा वाली शारद मैया, हमको दे दो ज्ञान।
नन्हे नन्हे बच्चे हैं हम, करें आपका ध्यान।।

चरणों में हम शीश झुकाते, करते हैं सम्मान।
हाथ जोड़ कर विनती करते, करेंगे न अपमान।।

दीप ज्ञान की जल जाये माँ, करते सभी प्रणाम।
हम भी आगे बढ़ते जायें, जग में हो सब नाम।।

आशीर्वाद हमें दो माता, करें नेक हम काम।
पढ़ लिख कर विद्वान बनें हम, रौशन कर दो नाम।।

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