अजादी
लेखक - नेमीचंद साहू
झंडा हमर तिरंगा आय
तीन रंग ले बने हवय ।
एखर मान सममान बर
कतको जतन करे हवय ''
कतेक बछर ले परके
करेन हमन गुलामी ग '
अइसन अवसर आय हे
करबो एखर सलामी ग ''
नइ राहय काकरो मन म
इरसा दवेष भावना ह '
मिलजुर के मनाबो परब आगे आजादी पावना ह ''
पुरखा मन कतेक लडिस
दुख ल अडबड सहिके '
बात ओखर रखबो सुरता
सुख-दुख म घलो रहिके ''
देस ल आज सजाबो सुघ्घर
ओनहा नवा पहिनाबो '
जय बोलाबो भुइंया के
हिन्दुस्तानी कहलाबो ''
अब्बड़ मज़ा आवय
लेखक - शशिभूषण स्नेही
कहूँ खोजत हे त लुकाय म
जाड़ के बेरा पानी छिटकाय म
अउ रद्दा के पूछइया ल
आने रद्दा म भटकाय म
अब्बड़ मज़ा आवय
काकरो चोरा के बीही खाये म
काकरो फइरका बजाय म
अउ डोकरा-डोकरी मन ल
कोंचक-कोंचक के तमकाय म
अब्बड़ मज़ा आवय
आमा ल कोइहाय म
होरी के रंग सनाय म
अउ बबा के संगे-संग
हाट-बजार जाय म
अब्बड़ मज़ा आवय
घेरी-बेरी नहाय म
बेंदरा ल कुदाय म
अउ रथिया लुकाके
लइका मन ल डरवाय म
अब्बड़ मज़ा आवय
जिनगी हे अनमोल
लेखक - बलराम नेताम
जिनगी हे अनमोल संगी
जिनगी हे अनमोल
मन के बात बोल दे,
पिरा के गठरी खोल दे,
सोच सोच के ,काबर डरत हस,
अइसन तन मा का पिरा होगे,
जहर ला तै पियत हस।
किस्मत वाला मन ला मिलथे तन,
बात तै मोरो मान ले,
जिनगी एक बार मिलथे,
गाँठ तै बांध ले।
अब तो दुख के गठरी खोल,
मन के बात ला बोल,
जिनगी हे अनमोल संगी
जिनगी हे अनमोल संगी।
परीक्षा में होथे पास अव फेल,
जिनगी नो होय कोनो खेल,
दारू, माखुर के नशा न कर,
जिनगी हे अनमोल मजा कर।
तीज तिहार के भादों (लावणी छन्द)
लेखक - कमलेश कुमार वर्मा
सावन पाछू आथे संगी,भादो हा पावन-सुग्घर
चारों मूड़ा खेत-खार मन,दिखथें जी हरियर-हरियर
परब खमरषठ मा महतारी,रखथें व्रत लइका मन बर
छै जिनीस के भाजी सब्जी, अउ खाथें चाउँर पसहर
कृष्ण पाख के आठे मा जी,जनम धरिन जग मा गिरधर
येकर पावन गीता-बानी,मानवता बर हे हितकर
बेटी-माई मन तीजा मा, रहि उपास निर्जल दिनभर
शिव-गौरी ला पूज मांगथे,बड़ लम्बा पति बर उम्मर
शुक्ल पाख के चौथा तिथि मा, विराजथे जी गणपति हर
बड़ उछाह ले पूजा करथें,भक्तन मन दस दिन घर-घर
ननपन के सुरता
लेखक - श्रवण कुमार साहू ‘प्रखर’
माटी के घरघुन्धिया बनावन,
परसा पान के दोना।
माटी के चूल्हा बनावन,
अउ माटी के खेल-खिलोना।।
ओरिछा म नहावन,
अउ चिखला -पानी म खेलन।
बिना दवा पानी के हमन,
कतको बीमारी ल झेलन।।
सुरता आथे रे मोला,
ननपन के गांव गोहार के------------
बर पाना के तुतरू बनावन,
कागज के फ़िल्फिलि।
सन्डेवा के मोहरी बनाके,
बन जावन शेख चिल्ली।।
धुर्रा-माटी लागे संगी,
हमला मथुरा ,काशी,
छप्पन भोग जईसन लागे,
बटकी के चटनी- बासी।
सुरता आथे रे,
अम्मट म भाजी बोहार के-----------
थोर -थोर म हँसना गाना,
बाते- बात म रोना।
कतेक सुग्घर लागे,
घर कुरिया म लुक लुकौना।।
पथरा के गड़गड़ी बनावन,
थारी ल बनावन बाजा।
पिट्ठुल-पासा, अट्ठा -चंगा,
चोर, पुलिस अउ राजा।।
बड़ में छराना राम लीला म,
धर बेंदरा सिंगार के----
कभू खेलन हम खो कबड्डी,
कभू खेलन हम लंगड़ी।
कभू खेलन हम गुल्ली-डण्डा,
कभू खेलन ग फुगड़ी।।
तरिया,नरवा म डुबकना,
अउ खावन अमली के लाटा।
कभू नई भुलावन संगी,
हमन भैरा गुरुजी के चांटा।।
मुंगेसर खावन भर्री के,
अउ बुचरवा कांदा सरार के---
पाँच पैसा म काम चल जाय,
नई लागय एको रुपिया।
सब्बो बर एक्के भाव रहे,
का दीदी अउ का भैय्या।।
बबा कर कहानी सुनन,
अउ डोकरी दाई के दुलार।
अब कहाँ ले पाबोन सङ्गवारी,
वो सुग्घर घर संसार।।
तईहा के बात ल बईहा लेग गे,
अपन झोला म डार के-------
पानी हे जिनगानी
लेखक – दीपक कंवर
बादर गरजे, बिज़ली चमके,
बरसे भूईया मा पानी,
कूदत नरवा गाना गावे,
पानी हे जिनगानी, रे संगी पानी हे जिनगानी
खेत खार बारी हरियागे
फरे फूले आनी बानी
चिरई चहकत गाना गावे
पानी हे जिनगानी, रे संगी पानी हे जिनगानी
तरिया डबरा कुंआ अघागे,
चूहे खपरा के छानी,
बेंगची रानी गाना गावे,
पानी हे जिनगानी, रे संगी पानी हे जिनगानी
नागर के संग बईला फंदागे,
खेती गांव के कहानी,
लईका संग महतारी गावे,
पानी हे जिनगानी, रे संगी पानी हे जिनगानी
पितर के दिन आ गे
लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'
पितर के दिन आगे संगी, बरा सोहारी बनावत हे।
बिहनिया ले उठ के दाई, हुम जग ला मढ़हावत हे।।
बबा ह आही कहिके, सबो झन ल बतावत हे।
दुवारी ला लीप बहार के, लोटा ला मढ़हावत हे।।
छानही मा कौआ बइठे, काँव काँव नरियावत हे।
डोकरी दाई देख देख के, बबा ला सोरियावत हे।।
बड़ सुरता आवत हावय, नाती ल बतावत हे।
बरा सोहारी राँध राँध के, पितर ला मनावत हे।।
साल भर मे एक दिन, सबके सुरता आवत हे।
हुम जग ला दे के संगी, मन ला मढावत हे।।
फोटू ला मढ़हा के ओकर, बरा ला खवावत हे।
एक लोटा पानी देके, पुरखा ला मनावत हे ।।
बड़ महत्त्व हे
लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'
तिहार म तीजा के
करेला म बीजा के
नता म जीजा के
बड़ महत्व हे
सब्जी म तुमा के
देवी म उमा के
जिनगी म क्षमा के
बड़ महत्व हे
रोटी म सोंहारी के
घर म सुवारी के
पार्वती बर त्रिपुरारी के
बड़ महत्व हे
बेनी म फुंदरा के
तीजा म लुगरा के
बाड़ी म कुंदरा के
बड़ महत्व हे
फूल म चमेली के
प्रश्न म पहेली के
मैके म सहेली के
बड़ महत्व है
बाबू के पियार के
दाई के दुलार के
गुरूजी के मार के
बड़ महत्व हे
मया म इकरार के
उपास म फरहार के
दिन म इतवार के
बड़ महत्व हे
गणित म योग के
मिले म संयोग के
मयारू संग वियोग के
बड़ महत्व हे
तैहा के गोठ के
बोले म होंठ के
हिरदे म चोट के
बड़ महत्व हे
जिनगी म काम के
काम म आराम के
नाम म श्रीराम के
बड़ महत्व हे
बेटी के महिमा
लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी
बेटी होथे राज दुलारी, लक्ष्मी जइसे येला मान ।
यहू हरे घर के दीपक जी, बढ़हाथे गा घर के शान।।
सबले पहिली बिहना उठथे, घर के करथे बूता काम ।
कभू नहीं आराम करे जी, नइ माँगे वो काँही दाम ।।
काम धाम मा हाथ बँटाथे , दाई ला देवय वो साथ ।
सबके सेवा करधे बेटी, रहय नही गा रीता हाथ ।।
करे शिकायत कभू नहीं वो , खावय सबझन मिलके बाँट ।
भात साग ला बढ़िया राँधय , खुश होके सब खावय चाँट ।।
कम झन आँकव बेटी संगी, उड़ा लेत अब जेट विमान ।
सैनिक बन के रक्षा करथे, हमर देश के येहर शान ।।
सिधवा बर जी सिधवा हावय, बैरी बर बन जाथे काल ।
मुड़ी काट के हाथ म देवय , नइ चलन देय ओकर चाल ।।
थरथर काँपय बैरी मन हा , लेथे जब चंडी अवतार ।
जान बचा के बैरी भागे , छोड़ अपन सब्बो हथियार ।।
ममा के गाँव !!
लेखक - शशिभूषण स्नेही
आवय मज़ा ममा के गाँव म जी
आवय मज़ा ममा के गाँव म
सन्झा-बिहनिया खेलन-कूदन
अउ मंझनिया अमरईया के छाँव म
आवय मज़ा ममा के गाँव म
ममादाई चीला रोटी बनावय
अब्बड़ मया म मोला खवावय
कुन्हुन पानी म हाथ-गोड़ ल धोवाके
रथिया तेल चुपरावय मोर पाँव म
आवय मज़ा ममा के गाँव म
बज़ार ल ममाददा खाई खजाना लावय
खाँध म बईठा के गली-खोर बुलावय
ममा-मामी मन मेर मैं हर रिसावव
घोड़न जावव रहय धुर्रा-माटी जेन ठांव म
आवय मज़ा ममा के गाँव म
माटी
लेखिका - अनिता रावटे
जे करा देखबे ते करा माटी
करिया लाल पीला माटी
माटी म हम हल चलाथन
माटी म हम अन्न उगाथन
माटी म हम खेलथन-कूदथन
माटी के हम खिलौना बनाथन
माटी ह करय महर-महर
अन्न लहरावय लहर-लहर
माटी ले हम बरतन बनाथन
जेमा जी हम खाथन-पीथन
वो चल देहे तीजा
लेखिका – शीला गुरूगोस्वाकमी
वो चल देहे तीजा लइका मन ल धर के
मोर माथे होगे जिम्मेदारी पूरा घर के
काम बूता किसनो करके अलवा जलवा करत हंव
झाड़ू पोछा मांजना धोना पानी घलो भरत हंव
साग पान के का कहिबे कभू सिट्ठा त कभू खारो
मजा देखे बर फोन म वो लेवत रहिथे आरो
हाँसो चाहे गारी देवव अपन हाल बतात हंव
एक्के घांव रानंध के तीन बेर ले खात हंव
मइके जाके मजा करत हे, मिलके भाई भतीजा
ये तीजा चक्कर म रोज निकलत हे हमर नतीजा
एकक दिन बच्छर कस बीते लागय सुन्ना सुन्ना
घर दुवार ये कुरिया कोठा दिखय निचट जुन्ना
जेकर बेंदरा ओकरे ले नाचथे सच हावे ये हाना
नारी बिना घर संसार के नइ हे कुछू ठिकाना