किशन कन्हैया

(गीत -- सार छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

किशन कन्हैया रास रचैया, सबको नाच नचाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा, दौड़ी दौड़ी आये ।।

बैठ डाल पर मोहन भैया, मुरली मधुर सुनाये ।
इधर उधर सब ढूँढे उसको, डाली पर छुप जाये ।।

मधुर मधुर मुरली की तानें, सबके मन को भाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा, दौड़ी दौड़ी आये ।।

छोटा सा है किशन कन्हैया, नखरे बहुत लगाये ।
उछल कूद करता हैं दिनभर, सबको बहुत सताये ।।

हरकत देख यशोदा मैया, बहुते डाँट लगाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा, दौड़ी दौड़ी आये ।।

चुपके चुपके घर पर आते, माखन मिश्री खाये ।
गोप ग्वाल सब पीछे रहते, लीला बहुत रचाये ।।

लीला धारी कृष्ण मुरारी, कोई समझ न पाये ।
बंशी की धुन सुनकर राधा, दौड़ी दौड़ी आये ।।

कृष्ण जन्म

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

वचन लिया अवकार, देवकी के हैं लाला
पाले यशुमति नार, सब कहें मुरलीवाला

माखन मिश्री साथ, खेलते जमुना तीरे
मोहन नाथे नाथ, नाचते धीरे-धीरे

सपन सलौने श्याम, राधिका मन को मोहे
बृज है जिनका, अंग पीताम्बर सोहे

सुमन खिले हैं पीत, डोलते हैं पीताम्बर
राधा-मोहन मीत, झूमते अवनि अंबर

सोते सैनिक रात, ये नशा कैसा छाया
खुशियों की सौगात, मोहना माया

चपला चमकी देख, गगन में गरजे बादल
कैसा विधि का लेख, नींद में प्रहरी पागल

जन्में हैं जगदीश, देख कर उफनी जमुना
पग वंदन कर शीश, जगत में आया पहुना

ऐ किसान !

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

ऐ किसान ! ऐ हलधर !
तू वसुंधरा की शान है.

केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं,
तू एक पूरा हिन्दुस्तान है.

तन-मन में तेरी सादगी,
तू सत्य-शांति की पहचान है.

ईर्ष्या-द्वेष , छल-कपट से दूर,
कसम से ! तू एक ईमान है.

तेरी कमाई पर सब निर्भर,
तू सब जीव का प्राण है.

पूजा भी तेरी पूजा करै,
तू श्रम-स्वरूप भगवान है.

मानवता झलकती तुझ में,
तू महान से भी महान है.

हालत बुरी है तेरी आज,
तू कष्टों का निशान है.

अपना कष्ट सह लेना,
तू सहिष्णुता का प्रमाण है.

हम पर तेरा साया रहे,
तू तो सारा आसमान है.

गीत प्यार के

लेखिका - काव्यशिखा सिन्हा 'रानी'

गीत प्यार के गाओ जी ।
सब को तुम हँसाओ जी ।

खूब खेलो कूदो तुम
और सब को खेलाओ जी ।

रूठ जाय अगर कोई तुम से,
उसे प्रेम से मनाओ जी ।

करें कोई परेशान तुम्हें,
उसे सबक सिखाओ जी ।

माता-पिता का करो सम्मान,
गुरू को शीश झुकाओ जी ।

चिड़िया

लेखक - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

फुदक-फुदक कर नाचती चिड़िया,
दाना चुंगकर उड़ जाती चिड़िया.

हरी-भरी सुंदर बगिया में,
मीठे-मीठे गीत सुनाती चिड़िया,

अपने मिश्रीघुले बोलों से
बच्चों का मन चहकाती चिड़िया.

नित मिल-जुल कर आती,
आपस में नहीं झगड़ती चिड़िया.

प्रेमभाव से रहना सिखलाती,
बहुत बड़ी सीख देती नन्हीं चिड़िया.

तरह-तरह के रुप-रंग वाली,
लाल, हरी, काली, नीली, पीली चिड़िया.

फुदक-फुदक कर नाचती चिड़िया,
दाना चुंगकर उड़ जाती चिड़िया

चिड़िया की पुकार (ताटंक छंद)

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

देख रही है बैठी चिड़िया, कैसे अब रह पायेंगे ।
काट रहे सब पेड़ों को तो, कैसे भोजन खायेंगे ।।
नहीं रही हरियाली अब तो, केवल ठूँठ सहारा है ।
भूख प्यास में तड़प रहे हम, कोई नहीं हमारा है ।।
काट दिये सब पेड़ों को तो, कैसे नीड़ बनायेंगे ।
उजड़ गया है घर भी अपना, बच्चे कहाँ सुलायेंगे ।।
चीं चीं चीं चीं बच्चे रोते, कैसे उसे मनायेंगे ।
गरमी हो या ठंडी साथी, कैसे उसे बचायेंगे ।।
छेड़ रहे प्रकृति को मानव, बाद बहुत पछतायेंगे ।
तड़प तड़प कर भूखे प्यासे, माटी में मिल जायेंगे ।।

जय कन्हैयालाल की

लेखिका - पुष्पा नायक

देवकी यशोदा का नंदलाल
नंदनंदन कसारी
गोकुल, मथुरा,बृंदावन का
गोपीवल्लभ मुरारी
गोकुल में लगी चौपाल
संग खेले ग्वाल बाल
गोविन्द, माधव, कंसारी
मटकी तोड़े माखन खाये
कदम पर बैठे बांसुरी बजाये
पुण्डरीक पद बलिहारी
कालीदाह में कूद कन्हैया
नाथे नाग गिरधारी
कनिष्ठिका में गोवर्धन साधे
रक्षा करे हितकारी
रूचिर राधिका संग रास रचाये
राधावल्लभ कृष्ण बिहारी
दनुज, निशाचर, अत्याचारी
कंस के संहारी
पार्थसारथी, गीताउपदेशक
स्वामी, वृषभान दुलारी
जय जय हो, जयकार तेरी
दानवेन्द्रो, अनिरुध्दा , केशव, कुंजबिहारी

दोस्त

लेखिका - पुष्पा नायक

हर गम को जो काफ़ूर कर दे,
हर पल को खुशियों से भर दे,
वो दोस्त होता है.......

चुपके से आपकी भावनावों को परख ले
जीने की आस जगा दे,
वो दोस्त होता है.......

बिन कहे आपके मन की कहे,
पल भर में जिंदगी जिला दे,
वो दोस्त होता है........

कांटे चुभे आपके पैरों में तो दर्द हो जिसे,
अपने जब अलविदा कह दे,
तो साथ हो जिसका,
वो दोस्त होता है.......

बोझिल जिंदगी में,
ख़ुशी का फुहार हो जो,
वो दोस्त होता है....….

कई किस्से ,कहानी,कविता,
दोस्ती पर बनी,
हाँ ये मैं भी मानू,
क़ायनात का कोहिनूर है जो,
वो दोस्त होता है........

जमाने की भीड़ में तनहा खड़े हैं,
आकर हाथ जो थाम ले,
वो दोस्त होता है.........

जागीर बड़ी है,उसकी,
बड़ा धनवान है वो,
जिसे ऐसे दोस्तों का दोस्ताना,
नसीब होता है

प्रकृति को बचायेंगे

लेखिका - प्रिया देवांगन 'प्रियू'

एक एक पेड़ लगायेंगे, प्रकृति को बचायेंगे।
पेड़ पौधे लगाकर, शुध्द हवा सब पायेंगे ।।

पौधे सभी लगायेंगे, ताजा ताजा फल खायेंगे ।
सेहत अपना बनायेंगे, सादा जीवन अपनायेंगे।।

सोनू मोनू चिंटू पिन्टू, सब मिलकर पेड़ लगायेंगे ।
रोज डालेंगे पानी उसमें, प्रकृति को बचायेंगे।।

चारों तरफ घेरा लगाकर , गाय बकरी से बचायेंगे।
क्यारी बनाकर मिट्टी ड़ाले, नये नये पौधे लगायेंगे।।

बारिश ही बारिश

लेखक - श्रवण कुमार साहू 'प्रखर'

जिधर देखो उधर यारों,
केवल बारिश ही बारिश है।
ये बारिश की गुजारिश है,
या गुजारिश की ये बारिश है।।

कहीं आफत की बारिश है,
कहीं राहत की बारिश है।
कहीँ खुशी की बारिश है,
कहीं पे गम की बारिश है।।

बात चाहे भी जो कह लो,
बारिश तो आखिर बारिश है।।

कहीं सूखे का आलम है,
कहीं पर दुःख का मातम है ।
कहीं बारिश ही कम है,
कहीं बारिश से गम है।।

समझ आता नहीं यारों,
ये कैसी अब की बारिश है।।

कहीं पानी को है तरसे,
कहीं पानी से है तड़पे।
कहीं बादल से ये बरसे,
कहीं आंखों से ये बरसे।।

कैसे समझाऊँ मैं जग को,
ये बारिश किसकी बारिश है।।

कहीं पे बाढ़ का मन्जर,
कहीं सूखे है समन्दर।
कोई पानी के है अंदर।
कहीं पानी ही है अंदर।।

बात इतनी सी है यारों,
ये तो अजब सी बारिश है।।

मेरा प्यारा छत्तीसगढ़

लेखक - योगेश ध्रुव 'भीम'

चन्दन धरा छत्तीसगढ़ की,
धान कटोरा सोनहा बाली,
माता तुझको वन्दन है.

है चारो ओर नदी नाले जो,
और ऊंचे जंगल झाड़ी है,
पहाड़ झरना घाटी सुन्दर.

वीरनरायण गुण्डाधुर जो,
हनुमान सिंह सपूत महान है,
मातृभूमि की रक्षाहित ओ,
हँस कर अर्पित प्राण दिए.

छत्तीसगढ़ के गांधी है,
ओ सुन्दर लाल शर्मा जी,
मानव एकता की सन्देश,
ये है वाणी गुरुघासी के.

ओ रत्नगर्भा धरा प्रदेश के,
तांबा लोहा हीरा कोयला,
खूब ये भी तो भंडार पड़े.

है महानदी पैरी इंद्रावती,
शिवनाथ अरपा केलो की,
ओ लहर मारती धारा जो.

जननी बनकर पोषित करती,
जिनके नीर अमृत भी जो,
ओ छत्तीसगढ़ की धरती को.

मेरा प्यारा यह प्रदेश जो,
माँ भारती के न्यारे न्यारे,
है प्यारा मेरा छत्तीसगढ़

मैया कैसे आऊं तेरे घर

लेखक - इंद्रभान सिंह कंवर

मैया कैसे आऊं तेरे घर,कैसेआऊ तेरे आंगन,
ना तेरे घर दूध दही है, ना मिश्री ना माखन।

ना तेरे घर गायों का डेरा, ना यमुना में शीतल पानी,
जिनके साथ में बीता बचपन, साथ में जिनके आई जवानी।

ना वासुदेव सा त्याग है, ना नंद बाबा सा प्यार है,
ना यशोदा सा लाड है, ना देवकी सा इंतजार है।

दाऊ जैसा भाई नहीं है, ना सुदामा सा यार है,
ना गोपिन की दुलार है, ना राधा सा प्यार है।

वह कदंब का पेड़ नहीं है, ना मधुबन की छाया है,
ना गैयन की गोचर है, ना गोवर्धन सी काया है।

ना बंसी की मधुर तान है, ना मृदंग का ताल है,
द्वापर का वह निश्चल प्रेम, अब मोह माया का जाल है।

द्वापर में थी एक पूतना, था एक कालिया दंश,
कलयुग में है सौ पूतना,लाख बकासुर कंस।

कैसे डांटेगी तू मुझको ,कैसे बोलूंगा प्यारा झूठ,
इस कलयुग के काल में, चारों ओर मची है लूट।

मैया कैसे आऊं तेरे घर,कैसे आऊं तेरे आंगन,
ना तेरे घर दूध दही है, ना मिश्री ना माखन।

मोर

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

घोर घटा जब नभ में छाये, अंधकार छा जाता है ।
बादल गरजे बिजली कड़के, मोर नाचने आता है ।।

जंगल में यह दृश्य देखकर , मन मयूर खिल जाता है ।
खुश हो जाते जीव जंतु सब, भौंरा गाने गाता है ।।

पंखो को फैलाये ऐसे, जैसे चाँद सितारे हों ।
आसमान पर फैले जैसे, टिम टिम करते तारें हों ।।

विराम चिन्ह

लेखक – तरुण कुमार साहू

भाषा को जीवंत बनाता. विराम चिन्ह का ज्ञान
भाव अधिक स्पष्ट रूप में प्रकट करें विव्दान
जब होता है अंत वाक्य का लगता पूर्ण विराम
अगर वाक्य में रूकते थोडा आता अल्प विराम
अधिक देर तक रूकें बीच में लगता अर्घ्द-विराम
भ्रमित नहीं हो जाना सुनकर मिलते-जुलते नाम
प्रश्न वाचक चिन्ह लगे जब प्रश्न पूछता वाक्य
विस्मयादिबोधक हो जब अचरज आदि भाव
साथ-साथ के शब्द जोडता शब्द योजक चिन्ह
कथन-पूर्व वक्ता के आगे लगता निर्देश चिन्ह
शब्द-विशेष दिखाता चिन्ह इकहरा अवतरण
ज्यों की त्यों हो बात बतानी चिन्ह उघ्दरण
अगर करें अभ्यास ध्यान से असरदार हो भाषा
सदा शुघ्द हो लेखन-वाचन विव्दानों से आशा

शरीर के अंग एवं उनके कार्य

लेखिका - चानी ऐरी

आँखें देखें, कान सुनते, जीभ लेती स्वाद
नाक सूंघे गंध को, त्वचा करें स्पर्श का एहसास
हड्डी करती शरीर का ढांचा तैयार
अंगों की रक्षा करती
मांसपेशियों के व्दारा हर अंग अंग हिलता डुलता
फेफड़े करते श्वसन और सोखे ऑक्सीजन
दांत चबाते भोजन, पचता जो, अमाशय में
लार ग्रंथियां मुंह में होतीं जो छोड़ती पाचक लार
यकृत और अग्नाशय पाचक रस उत्पादक हैं
हृदय खून को पंप करता, गुर्दे छाने रक्त
छोटी आँत की दीवारें सोखे भोजन सार
बड़ी आँत अवशोषित करती, उसमें से जल भाग
पसीना निकाले शरीर से दूषित पदार्थ, रखे नियंत्रित ताप
तंत्रिकाएं संदेशवाहक, दिमाग करे विचार
यह हैं शरीर के अंग और उनके कार्य

साथ बहन का भाई

लेखक - द्रोणकुमार सार्वा

रेशम की धागों की डोरी
राखी बनकर सजी कलाई
बहना भी इतराकर कैसे
भैया पर अधिकार जताई
रोली कुमकुम तिलक माथ
पकवानों के साथ मिठाई
भारी मन भी आज प्रफुल्लित
पाकर साथ बहन का भाई

मांगे क्या उपहार बहन भी
भाई की खुशियां ही काफी
जीते जी मैं सदा बांध लू
तेरे इन हाथों में राखी
और भला वर रक्षा का दे
उमर रह गया अब जो बाकी
रुपये पैसे सोने चांदी से
किसने प्रेम की बोली लगाई
भारी मन.......

राखी की कीमत कितनी है
पूछो जिनकी सूनी कहानी
नन्ही गुड़िया मां से बोली
दिलवा दो मां मुझे भी भाई
तुतलाते नन्हे स्वर में
राखी की रट मुन्ने ने लगाई
सच कहते है दुनिया वाले
बहन भाई की है परछाई
भारी मन......

स्कूल मुझे पास बुलाता है

लेखिका - धारिणी सोरी

कितना प्यारा बचपन होता, निश्छल मुस्कान सदा रहती।
काम-काज का ध्यान नही, पर माँ की याद सदा आती।
कब माँ के हाथों से रोटी, मिलते खीर पुड़ी और सब्जी ।
बड़े चाव से हम मिलकर खाते, कहते माँ तू कितनी अच्छी।
हुआ समय अब जाता हूं शाला, बाबा, समीर बुलाते हैं।
दोस्त बने हैं प्यारे-प्यारे, मिलकर धूम मचाते हैं।
कितने अच्छे टीचर यहाँ हमे, खेल-खेल में पढ़ाते हैं।
खुद करते और सीखते जाते , उलझन पर पास बुलाते हैं।
ज्ञान और विज्ञान की बातें, बड़े ध्यान से सुनते हम।
अगर समझ न आए कुछ तो, फिर बतलाने कहते हम।
अब समझ आया पापा क्यों, पढ़ो-पढ़ो रटा करते हैं।
पढ़ने से शिक्षा मिलती हमको, यही बतलाते रहते हैं।
मुझे अपना लक्ष्य बना के पढ़ना, आगे ही बढ़ते जाना है।
मंजिल मेरी जरूर मिलेगी, संकल्प अटूट बनाना है।
स्कूल मेरा सबसे प्यारा, मुझे अपने पास बुलाता है।

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