लोककथा - नान्हे-नान्हे मनखे

लेखक - बलदाऊ राम साहू

तइहा के बात आय. एक समय मा पिरथी ले अगास हर थोरिक उप्पर रहिस. अतकी उप्पर की कोनों ओला हाथ ले छू सके. ओ समय मा मनखे मन नान्हे-नान्हे राहय. कोनो-कोनो मन थोरकिन ऊँच राहय, ओ मन निहर-निहर के रेंगय. ओ समय लोगन के जरूरत बहुत कम राहय. जतका रहय ओतके मा गुजारा करय. फेर जोर के राखे के का काम. ओ समय के मनखे मन अबबड़ सिधवा रहिन. धरती हर अन्न उगले. रूख-राई ह फल-फूल ले लदे रहय. इन्दर देवता मनखे मन के जरूरत के हिसाब से पानी बरसावै, सुरूज देव सुग्घर अंजोर बगरा के मनखे मन के ऊपर उपकार करय. न तो जादा पानी गिरय न कम. चारों कोति सुख के राज रहे.

नान्हे-नान्हे मनखे, नान्हे-नान्हे रुख-राई, हरियर-हरियर खेत, अन्न के भरे कोठार सबो झन हिल-मिल के रहय. एकरे सेती जम्मो धरती मा खुशहाली छाय रहय. उही समय एक डोकरी राहय, ओ हर चिड़चिड़ही सुभाव के रहय. नान-नान बात मा चिड़चिड़ा जावै. ओ ह बड़ घमंडीन घलो रहय. अगास ह गजब नीचे रहय. तेकर सेती मनखे मन ल निहर के काम करे बर पड़े, अइसने निहर के काम करई डोकरी ल बने नइ लागय. जब डोकरी ह अंगना ल बहारे त, ओकर मुड़ी हा घेरी-बेरी अगास मा टुकठाक लागय तेकर सेती ओला बड़ परशानी होवय.

एक दिन के बात आय, डोकरी अपन अँगना ल बाहरत रहिस. बाहरत-बाहरत वो हर सोचिस कतका अच्छा होतिस, बैरी अगास हर उप्पर चल देतिस. घेरी-बेरी मुड़ी के टकराय ले ओ हर बड गुसिया जाए. डोकरी हर गुसिया के अपने हाथ मा बहरी ल धरीस अऊ मुठिया मा अगास ल जोर से मारिस अगास हर गजब जोर से गरज के उप्पर उठ गे. सुरुज, चंदा, चंदैनी सब डर्रागे. अगास हर उप्पर उठिस, त देवता मन गुसियागे सुरुज देवता हर अपन ताप ले पिरथी ल झुलसे लगिस. इंद्र देव घलो नराज होगे. ओ हर कभू खूब पानी बरसाय, त कभू बरसाबे नइ करे. पिरथी मा चारों कोती हाहाकार मचगे. डोकरी हर सोचय लगीस कि कतेक अच्छा रहिस कि जब अगास हर तीर मा रहिस, पानी के जरूरत पड़य, त बादर ल थेरिक हटा देव त पानी मिल जाय, बादर ल थेरिक सरका देहे ले घाम मिल जाए. ए सब सोच के डोकरी हर गजब दुखी होगे. डोकरी ल अपन करनी के बड़ पछतावा होय लगिस. फेर अब का हो सकत रहिस? आजो मनखे ह ओही गलती ल घेरी-बेरी करथे. जे चीज ल ओकर तीर हावै वोही ल ओ हर अपन ले दूरिहा करत जात हे. भुँइया भीतर के पानी ल उत्ता धुर्रा निकालत जात हे. जरूरत ले जादा धरती भीतर के खनिज पदारथ ल खन के निकालत जात हे. जंगल मन ल काटत जात हे. अऊ एक तरह ले मनखे ह अपन विनाश ल नेवत हे.

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