धैर्य और शांति

लेखक - संतोष कुमार साहू (प्रकृति)

एक आदमी कुछ सामग्री खरीदने एक दुकान में गया. अपनी आवश्यकता का समान खरीद कर वहाँ से बाहर निकलने लगा तभी उसकी नजर अपने बायें हाथ पर गई. उसने देखा कि उसकी बहुत कीमती घडी दुकान से समान लेते समय कहीं गिर गयी थी. उसने घड़ी को बहुत खोजा पर वह उसे नहीं मिली. उसने वहां खेल रहे कुछ बच्चों को बुलाया और कहा कि जो मेरी घडी इस दुकान से खोज कर लायेगा उसे मैं ईनाम दूंगा. सभी बच्चे खुशी से सरपट दौडकर दुकान में घडी खोजने लगे पर घड़ी उन्हें नहीं मिली. वे सब वापस चले गए. तब सबसे छोटा बच्चा वापस आकर उस आदमी से बोला – ‘मैं खोज कर देखता हूँ.’ वह आदमी बहुत निराश मन से बोला – ‘तुम क्या खोजोगे? फिर भी प्रयास कर लो.’ वह छोटा सा बच्चा दुकान के अंदर गया और कुछ समय बाद खुश होकर दुकान से बाहर आया. उसने घडी उस आदमी के हाथो में दी. उस आदमी ने पूछा – ‘तुमने इतनी जल्दी कैसे खोज लिया?’ बच्चे ने कहा – बाकी बच्चे शोर गुल करते हुए खोज रहे थे. मैं चुपके से गया और धैर्य व शांत होकर चुपचाप आंख बंद करके एक स्थान पर बैठ गया. मैने शांतिपूर्ण तरीके से घडी की टि‍क-टि‍क की आवाज को सुना और जहाँ आवाज सुनाई दी वहाँ पर ही घडी मिल गई. उस आदमी ने बच्चे को इनाम दिया. वह बच्चा खुशी खुशी चला गया.

कहते हैं धैर्य और शांति से किया गया कार्य हमेशा अच्छा प्रतिफल देता है. इसलिए हमें हमेशा शांति और धैर्य के साथ हर कार्य करना चाहिये.

एक सोच

लेखक - नेमीचंद साहू

एक जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे. एक दूसरे से हिल मिलकर जीवन बिता रहे थे. एक बार जंगल में भयानक आग लग जाने के कारण सभी जानवर जान बचाकर भागने लगे, किंतु एक छोटी सी चिड़ि‍या पास के एक सरेावर से अपनी चोंच से पानी लाकर आग बुझाने का प्रयत्न करने लगी. इस नादानी को देखकर एक राहगीर हंसते हुए बोला – ‘अरी चिड़ि‍या इस तरह क्याा तू आग को बुझा पायेगी? चिड़ि‍या बड़े भोलेपन से बोली – ‘जब इस जंगल का इतिहास लिखा जायेगा तो मेरा नाम आग बुझाने वालों में होगा न कि आग लगाने वालों में.’ यह सुनकर राहगीर मुस्कराते हुए चला गया.

एक सुंदर सोच किसी को भी महान बना देती है.

परोपकार का फल

लेखिका - पद्यमनी साहू

बी.एस.सी. की पढ़ाई पूरी करने के बाद पदमा का विवाह रायपुर शहर के पास एक गांव में एक बड़े किसान के यहाँ हुआ. विवाह जे बाद पदमा घर की छोटी बहू के रूप में अपने कर्त्तव्य का पालन करने लगी.

ससुराल में आर्थिक सम्पन्ता के बावजूद मायके व ससुराल के पारिवारिक वातावरण में बहुत अंतर था. सहयोग सहकार व प्यार भरे वातावरण से आई पदमा ससुराल के तनावपूर्ण वातावरण से दुःखी रहती व रोती रहती. इसी तरह एक वर्ष बीत गया. तब पदमा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. पदमा बेटे के लालन पालन में व्यस्त हो गई व अपने सारे दुःख भूल गई. तभी पदमा को वर्षो पहले की एक दादी माँ की बात याद आ गई. पदमा जब कक्षा 12 में पढ़ाई कर रही थी तब की बात है. वह घर से कुछ दूर नगरपालिक के नल से पानी भरने जाती थी. नल के सामने वाले मकान में एक बूढ़ी दादी माँ रहती थीं. बुढ़ापे के कारण चल पाने में असमर्थ दादी माँ घि‍सटते हुये नल के पास आतीं व नहा कर घि‍सटते हुए ही घर जातीं. घर में बहू, दो पोतियां, पुत्र व दो पोते रहते थे. दादी माँ को किसी का सहयोग नहाने धोने में नही होता था.

एक दिन जब पदमा पानी भर थी तभी बढ़ी दादी माँ नल से नहाने आईं. दादी माँ को देख कर पदमा ने अपने बर्तन में भरे पानी से दादी माँ को नहलाया व उन्हें उनके घर तक पहुँचाया. पदमा के इस व्यवहार से दादी माँ भाव विभोर हो गईं. पदमा को आशीर्वाद दिया कि ससुराल जाते ही तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो, जो तुम्हारे कुल का नाम रोशन करे. ऐसा कार्य जो निःस्वार्थ भाव से किया जाता है वहर परोपकार कहलाता है. हमे अपने बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए एवं जिन कार्यो को करने में वे असमर्थ हो हमे उन कार्यो में उनका सहयोग करना चाहिए.

संगति

लेखक - नेमीचंद साहू

एक व्यक्ति बाज़ार में तोता बेच रहा था. उसके पास एक जैसे दो तोते थे. देखने में दोनो एक जैसे नजर आते थे, किंतु उसने एक तोते की कीमत 50 रुपये व दूसरे तोते की कीमत 500 रुपये रखी थी. लोग हैरान थे कि एक जैसे तोते की कीमत अलग-अलग क्यों है?

एक आदमी ने दोनो तोते खरीदकर लिए. घर पहुंचकर उस आदमी ने सुना कि कम कीमत वाला तोता कह रहा था – ‘मारो, पकड़ो, काटो, जाने मत दो.’ साथ ही वह गंदी-गंदी गालि‍यां भी दे रहा था. दूसरा तोता ‘राम-राम सीताराम’ कह रहा था.

उस आदमी ने तोते वाले के पास वापस जाकर कारण पूछा तो पता चला कि बचपन में कम कीमत वाला तोता चोरों के साथ रहता था और दूसरा साधु-संतों के साथ रहा करता था. इस तरह संगति के असर से एक तोता अच्छा और दूसरा बुरा बन गया.

इसलिए हमें अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए.

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