लेख - कलिंदर खाव रोग भगाव

लेखक - महेन्द्र देवांगन माटी

कलिंदर के नाम सुनते साठ मुँहू मा पानी आ जाथे. काबर कलिंदर खाय मा बहुत मजा आथे, अउ विटामिन भी भरपूर रहिथे. नान - नान लइका मन जब कलिंदर खाथे त ओकर पानी ह हाथ के कोहनी तक चुचवात रहिथे. कपड़ा लत्ता सबो सना जाथे. देखइया मन तक भारी मजा लेथे. कलिंदर ल हिन्दी मा तरबूज कहे जाथे.

रुप रंग - कलिंदर के फर ह गोल आकार के होथे । येकर वजन ह एक किलो से दस किलो तक घलो होथे. एकर उपर ह हरियर रंग के होथे अउ भीतरी ह लाल रंग के होथे. लाल - लाल गुदा के बीच - बीच मा छोटे - छोटे करिया - करिया बीजा घलो रहिथे. कलिंदर के लाल भाग ल खाय जाथे अउ बीजा ल फेंक देथे या बीजहा राखे के काम आथे.

सुवाद - कलिंदर मा पानी के मात्रा जादा रहिथे , फेर खाय मा बहुत स्वादिष्ट अउ मीठा लागथे. येला लइका सियान सबोझन रुचि पूर्वक खाथे. भोभला मनखे मन तक येला चबा के खा सकथे.

खेती - कलिंदर के फसल ह गरमी के मौसम मा जादा होथे. जतके जादा गरमी रहिथे ओतके जादा एकर फसल होथे. कलिंदर के फसल ह रेती मा या रेती वाला माटी मा जादा होथे. एकर अधिकांश खेती ह नदियाँ के किनारे जादा होथे. नदियाँ के रेती मा भी येला बोंये जाथे. नदियाँ के तीर मा बोंथे तेमन ह येला अक्टूबर - नवंबर मा बोंथे अउ मैदानी क्षेत्र वाले मन फरवरी - मार्च मा बोंथे. येला क्यारी बना के बोंये जाथे. एकर नार ह बहुत लंबा - लंबा होथे.

कलिंदर के फायदा - कलिंदर खाये मा बहुत सुवाद तो रहिथे ही साथ मा बहुत फायदा भी होथे.

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