नौकरी के आस

लेखक - महेन्द्र देवांगन 'माटी'

राजेश अऊ मनोज दूनों पक्का दोस्त रिहिसे. दूनों कोई पहिली कक्षा से बारहवीं कक्षा तक एके साथ पढ़ीस लिखीस अऊ बड़े बाढ़हीस. दूनों झन के दोस्ती ह गांव भर में परसिध्दद रिहिसे. कहुंचो भी आना जाना राहे दूनों कोई एक दूसर के बिना नइ जावय. राजेश ह गरीब राहय त कई बार मनोज ह ओकर सहायता करे. पुस्तक कापी तक ले के दे देवत राहय. बारहवीं पढ़हे के बाद राजेश ह गरीबी के कारन आगे नइ पढ़ीस अऊ अपन घर के काम बूता में हाथ बंटाय लागीस. वोहा बैंक ले करजा लेके छोटे से किराना दुकान खोल लीस. बिहना ले मन लगाके दुकान में बइठे अऊ धीरे धीरे बैंक के करजा ल तक छूट डरीस. एती मनोज ह कालेज पढ़हे बर शहर चल दीस. कभू कभू गांव में आये त राजेश अऊ मनोज अइसे मिले जइसे राम-भरत के मिलाप होथे.

पांच साल में मनोज ह एमए ल पूरा कर डरीस. माने पढ़ लिख के तैयार होगे. अब ओहा बड़े नौकरी के तलाश में लग गे. जेन भी सरकारी नौकरी के विज्ञापन निकले सबमें ओहा फारम भरे. एको ठन ल नइ छोड़त रिहिसे. फारम भरई में कतको पइसा बरबाद होगे, फेर नौकरी नइ मिलत राहय.

एक दिन जब मनोज गांव में आइस त ओकर दोस्त राजेश ह सलाह दीस के भाई तोला नौकरी जब मिलही तब मिलही, अभी कम से कम एकात ठन धंधा पानी करले. धंधा में भी बहुत फायदा हे अऊ कोनों नौकरी से कम नइहे. मोला देख आज धंधा के बदौलत मोर घर के हालत सुधरगे. मनोज ह ओकर बात ल हाँस के टाल दीस, अऊ बोलथे – ‘मोला धंधा करे बर रहितिस त अतका काबर पढ़तेंव. अतेक खरचा करके पढ़हे हों त ओकर हिसाब से नौकरी भी करहूं. नहीं ते मोर का इज्जत रही.’ राजेश ह ओला जादा नइ समझा सकीस. बस अतके बोलीस के ते पढ़े लिखे जादा समझदार हस, में तो जादा नइ पढ़हे हों. जतका मोर कर बुध्दि हे ततके सलाह दे हँव.

मनोज ह जी परान देके नौकरी खोजत रहय. कभू नेता मनकर त कभू मंत्री मन करा चक्कर लगात राहय. अइसने अइसने लाखों रुपिया ल बरबाद कर डारीस. घर के मन ला तक चिंता छागे के ये लइका के जिनगी कब बनही. धीरे धीरे उमर ह तक बाढ़त जावत हे, अऊ अब तो नौकरी लगे के आखिरी उमर ह बीतत हे. फेर नौकरी के आस लगाये अभी तक बेरोजगार बइठे हे.

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