पहेलियाँ
लेखक - व्यग्र पाण्डे
चलती हूँ मैं जमाना कहता
पर मैं चली ना अबतक देखो
टेड़ी मेड़ी कभी मैं सीधी
मंजिल पहुँचो तब तक देखो
उत्तर - सड़क
झुके तो भारी उठे तो हल्का
एक वस्तु के दो हैं पांव
गली गली और शहर शहर
जो मिलती है गाँव गाँव
उत्तर - तराजू
बिना सहारे लटक रहे हैं
बिन बिजली के चमक रहे हैं
उत्तर - तारे
पंख नहीं पर उड़ती हूँ मैं
नई-2मंजिल गढ़ती हूँ मैं
मैं रानी हूँ आसमान की
बिना बात के लड़ती हूँ मैं
उत्तर - पतंग
ना मैं लकड़ी फिर भी डण्डी
बिन पैर पहुँचाती मण्डी
मैं सड़क की हूँ महतारी
पर बेटी से अब मैं हारी
उत्तर - पगडंडी
घर की डॉक्टर
घर की रानी
बीच चौक में
लगे सुहानी
उत्तर - तुलसी
पैर चार पर पशु ना माना
जिसे चाहता सभी जमाना
देती दूध आजकल इतना
भैंस नहीं देती है उतना
उत्तर - कुर्सी
तन का सख्त मन का नरम
जिसके बिना ना होते शुभकरम
नाम इसका बताओ तुम
फोड़ फोड़कर खाओ तुम
उत्तर - नारियल
जिसमें पूरा संसार समाया
हर घर घर हर हाथ में आया
दुश्मन संग मित्र भी होता
किसने कैसे गले लगाया
उत्तर - मोबाइल
पढ़े लिखों का जो हथियार
थामोगे तो चलता यार
कदम कदम काम आता है
लगा के सीना करते प्यार
उत्तर - पैन