चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें कई मज़ेदार कहानियां मिली हैं. कुछ को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं –

सच्चाई और ईमानदारी का फल

लेखक - इन्द्रभान सिंह कंवर

एक नगर में एक किसान रहता था. वह बहुत ही सच्चा और ईमानदार था. पूरे नगर में उसकी सच्चाई और ईमानदारी की कहानियाँ प्रसिध्दच थीं. लोग उसकी ईमानदारी की मिसाल दिया करते थे.

धीरे-धीरे यह बात वहाँ के राजा के कानो तक जा पहुंची. राजा ने उसकी सच्चाई और ईमानदारी की परीक्षा लेनी चाही. एक दिन राजा ने रात में उसके घर के सामने एक सिक्कों से भरा मटका रखवा दिया.

सुबह जब किसान अपने खेत के काम पर जाने के लिये निकला तो उसने घर के सामने पड़े मटके को देखा. उसने अपने आस-पास चारों ओर देखा पर वहाँ कोई दिखाई नही दिया. किसान ने अपने मन में विचार किया कि कहीं किसी का मटका यहाँ छूट तो नही गया. वह उसे लेकर राज दरबार की ओर चल पड़ा. उसे राजा के सामने पेश कर कहा – ‘महाराज न जाने यह किस व्यक्ति‍ का है जो मेरे घर के पास पड़ा था. आप नगर में मुनादी करा के इसको इसके सही मालिक के पास पहुँचवा दीजिये.’

राजा यह सब सुनकर खुश हुआ और उसने किसान से कहा – ‘हमने आज तक बस तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी की कहानी सुनी थी परन्तु आज हमने उसे देख भी लिया. तुम वास्तव में बहुत सच्चे और ईमानदार हो.’ राजा ने किसान की सच्चाई और ईमानदारी से खुश होकर, उसे वह सिक्के से भरा मटका उपहार में प्रदान कर दिया और साथ ही साथ उस ईमानदार किसान को अपना न्यायिक सलाहकार भी नियुक्त कर दिया.

सीख - सच्चाई और ईमानदारी का परिणाम अच्छा और सुखद होता है.

चमत्कारी सुराही

लेखिका - पद्यमनी साहू

घनघोर जंगल में एक तपस्वी साधना कर रहे थे. उन्होंने कई वर्षों तक वरुण देवता की घोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरुण देवता प्रकट हुए. उन्होंने एक सुराही प्रदान की और कहा कि यह कोई साधारण सुराही नहीं है. वरुण देवता के वरदान से प्राप्त सुराही को लेकर तपस्वी अपने घर की ओर चले गए. बहुत दूर पैदल चलते चलते जब थक गए तो एक पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए रुके. थकान के कारण उनकी आंख लग गई. आंख खुली तो उन्होंने देखा कि शाम होने वाली है. वे जल्दी-जल्दी घर की ओर कदम बढ़ाने लगे. जल्दबाजी में वे सुराही पेड़ के नीचे ही भूल गए. सुराही जिस स्थान पर थी उसी पेड़ के पास सोनपुर ग्राम के निवासी गोपाल किसान का घर था. मार्च अंक में हमने गोपाल और उसके मित्र विषधर की कहानी पढ़ी थी. क्यों बच्चों याद है कि नहीं. हां वही गोपाल जब सवेरे सो कर उठा और अपने घर से बाहर निकला तो उसने वह सुराही देखी. सुराही देखकर गोपाल आस पास सुराही के मालिक को खोजने लगा. गोपाल ने दूर तक नजर दौड़ाई लेकिन सुराही के मालिक का पता ना चल सका. किसी और की अमानत मानकर गोपाल ने सुराही अपने घर में रख ली. गोपाल सुराही के मालिक की प्रतीक्षा करता रहा. बहुत दिन बीत गए पर सुराही के मालिक का पता ना चल सका. गोपाल के गांव में काशी से पधारे हुए बहुत बड़े विव्दान का प्रवचन चल रहा था. दूर-दूर से लोग काशी से आए पंडित जी के दर्शन करने और प्रवचन सुनने आते थे. एक दिन बहुत दूर के गांव से 50-60 लोग गोपाल के गांव सोनपुर में पंडित जी के दर्शन करने पैदल यात्रा करते आ रहे थे. थकान लगने पर गोपाल के घर के पास वाले पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे. गोपाल प्रवचन सुनने घर से बाहर निकला तो वे लोग गोपाल को देख कर पानी पिलाने का आग्रह करने लगे. गोपाल घर के अंदर गया उचित पात्र ना मिलने पर उसी सुराही में कुएं से पानी भरकर लाया. उसने सभी को पानी पिलाया. ताजा ठंडा मीठा पानी पीकर सभी गोपाल का धन्यवाद करने लगे. गोपाल ने देखा कि 50-60 लोगों को पानी पिलाने के बाद भी सुराही खाली नहीं हुई थी. सभी लोग उस चमत्कारी सुराही की चर्चा करते-करते प्रवचन स्थल पहुंच गए. गोपाल ने सुराही को पलट कर रख दिया. गोपाल सोचने लगा यह कोई साधारण सुराही नहीं है. यह एक चमत्कारी सुराही है. यह सुराही ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आए तो अच्छा होगा. यह सोच कर गोपाल ने सुराही प्रवचन कर्ता पंडित जी को भेंट कर दी और उन्हेंर सुराही के चमत्कारी गुण के बारे में बताया. गोपाल ने कहा कि जहां-जहां आपका प्रवचन होगा वहां भंडारे में लोगों को पानी पिलाने के काम आएगी. सभी गोपाल के इस कार्य की सराहना करने लगे. गोपाल ने कहा कार्य वही अच्छा जिससे केवल एक व्यक्ति का नहीं हजारों व्यक्तियों का भला हो.

सेनापति का चयन

लेखिका – सेवती चक्रधारी

जयगढ़ राज्य के सेनापति की अकाल मृत्यु से सारा राज्य दुखी था क्योकि सेनापति बहुत साहसी, ईमानदारऔर न्याय प्रिय थे. राजदरबार मे इसी बात पर चर्चा चल रही थी अब सेनापति की जगह कौन लेगा. राजा जयसिंह ने कहा कि आप मंत्रीगण ही इस समस्या का समाधान निकाले. सभी मंत्रीगण निरुत्तर थे क्योकि सब को ऐसा लग रहा था कि सेनापति जैसा गुणी कोई नही हो सकता. तभी राजगुरू ने कहा कि महाराज आपकी आज्ञा हो तो मै कुछ कहूं. राजा ने हामी भर दी। राजगुरू ने कहा - ‘महाराज, राज्य की सीमा से लगे एक गांव से थोडी दूर मे कृष्णा नाम का एक लकड़हारा रहता है. एक बार मै यज्ञ पूर्ण कर जंगल से होते हुए आ रहा था. अचानक बाघ ने मेरा रास्ता रोका. तब कृष्णा ने बड़ी बहादुरी से निहत्थे बाघ से लड़कर मेरी जान बचाई. जब मैने इसके बदले उसे उपहार स्वरूप सोने के सिक्के देने चाहे तो उसने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया. तो महाराज क्या हम उसे सेनापति नही बना सकते’. यह सुनकर कुछ मंत्रियो ने कहा कि उसे युध्द कौशल नही आता होगा. राजगुरू ने कहा – ‘युध्द कौशल सि‍खाया भी तो जा सकता है. राज गुरू ने पुनः कहा कि आप चाहे तो उसकी बहादुरी व ईमानदारी की परीक्षा ले सकते हैं.’ सभी को यह बात सही लगी और सबने हामी भर दी. राजा और राजगुरू कुछ सैनिक को साथ लेकर कृष्णा की परीक्षा लेने निकल पड़े. राजा की आज्ञा पाकर सैनिको ने डाकुओ का वेश बनाकर जंगल मे कृष्णा पर हमला कर दिया. कृष्णा ने बड़ी बहादुरी से सभी को हरा दिया. इधर राजा व राजगुरू ने उसके घर के दरवाजे पर सोने के सिक्को से भरी थैली रख दी. जैसे ही कृष्णा दरवाजे पर पहुंचा उसने थैली देखी, उसे उठाया और अंदर चला गया. थोड़ी देर मे शाम हो गई और राजा व राजगुरू, कृष्णा के पास गए और एक रात ठहरने के लिए आश्रय मांगा. कृष्णा ने सहर्ष स्वीकार किया. गरीब होने के कारण कृष्णा के पास अतिरिक्त भोजन नही होता था. इस कारण उसने अपने व अपने पत्नी के हिस्से का भोजन उन्हे दे दिया. सोते वक्त राजा ने कृष्णा की बाते सुनी जो वह पत्नी से कह रहा था – ‘कल कोतवाल से कहकर उस धन की थैली को राजकोष मे जमा करवा दूंगा.’ राजा बहुत प्रसन्न था कि उसे योग्य सेनापति मिल गया.

अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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