कहानी पूरी करो
पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिए दी थी –
अधूरी कहानी – झील का राक्षस
एक जंगल था. उसमे बहुत से जानवर रहते थे. जंगल के बीच में एक झील थी जिसका पानी जंगल के सभी जीव जंतु पीते थे. एक दिन की बात है जंगल की झील से एक राक्षस निकला. उसने सभी जंगल में रहने वालों से कहा – “आज के बाद अगर किसी ने इस झील का पानी पिया तो में उसे खा जाऊंगा.” यह सुन सभी जानवर भयभीत हो गये. उस दिन के बाद से कोई भी उस झील का पानी पीने नही जाता था.
कुछ समय बाद जंगल में सूखा पड़ गया. जंगल के सभी छोटी–छोटी नदियाँ सूख गयी. फिर एक दिन सभी जानवर इकट्ठा हो कर उस झील के पास गए जहाँ राक्षस रहता था. सभी जानवरों ने बोला – “इस झील के महाराज कृपया बाहर आए और हमारी परेशानी सुने.” इतना बोलते ही राक्षस बाहर आ गया. वह बहुत विशाल और डरावना था. वह गुस्से से बोला- क्यों मुझे जगा दिया?”
सभी जानवर ने बोला – “महाराज कृपा कर जब तक इस जंगल में सूखा पड़ा है तब तक इस जंगल के सभी जानवरों को पानी पीने दीजिये महाराज..!!”
यह सुन राक्षस तिलमिला उठा उसने कहा - “इस झील के अंदर किसी ने पैर भी रखे तो में उसे खा जाऊंगा..!!” यह बोल राक्षस वापस पानी में चला गया. अब सभी जानवर दुखी होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए. तभी उस जंगल के एक सबसे बूढ़े बंदर ने कहा – “सुनो में एक उपाय बताता हूँ ..!!”
इन्द्रभान सिंह कंवर व्दारा पूरी की गई कहानी
तभी उस बूढ़े चालाक बंदर ने सभी को एकत्रित कर एक उपाय बतायी. उसने सभी जानवरो को जंगल की सूखी पत्तियाँ एकत्रित करने को कहा. सभी ने मिलकर खूब सारी सूखी पत्तियाँ एकत्रित कीं. उसके बाद उस सूखी पत्तियों के ढेर पर आग लगवायी और पुनः उस झील के राक्षस के पास चलने को कहा. सभी ने उसकी बात मानकर पुनः झील के राक्षस के पास जाने की हिम्मत जुटाई और फ़िर उस राक्षस के पास गये. वहां जाकर उन्होंने उस राक्षस को आवाज लगाई - महाराज जरा बाहर आइये. उनकी आवाज सुनकर वह राक्षस झील से बाहर निकला और बोला – ‘तुम लोग फ़िर यहाँ आ गये. लगता है तुम लोगों को अपनी जान की चिन्ता नही है.’
तभी उस बूढ़े चालाक बंदर ने आगे आते हुए कहा - ‘महाराज हमें अपने जान की चिन्ता तो है मगर...’ राक्षस ने पूछा – ‘मगर क्या...’ तब उस बंदर ने कहा – ‘महाराज हमसे आपकी बुराई सही नही गयी इसलिए हम सब लोग आपके पास आये हैं.’
तब उस राक्षस ने पूछा कि किसने मेरी बुराई की. तब बंदर ने बताया कि महाराज जंगल में एक और महाराज आया है जो अपने आप को आपसे भी ताकतवर बता रहा है और धीरे-धीरे पूरे जंगल में अपना राज फ़ैला रहा है. यह सुनकर राक्षस गुस्से से लाल हो गया. उसने पूछा – ‘कौन है वो. मुझे उसके पास ले चलो. उसे अभी मजा चखाता हूँ.’
सभी उसे उस आग वाली जगह पर ले गये. वहाँ आग की लपटें धधक रही थी. बंदर ने आग की लपटो की ओर इशारा करते हुए कहा – ‘महाराज यही है वो जो अपने आप को आप से भी जादा ताकतवर बता रहा है.’ यह बात सुनकर वह राक्षस गुस्से से उस आग में कूद गया और अपनी जान गंवा बैठा. इस तरह उस राक्षस का अंत हो गया. सभी ने उस बूढ़े बंदर की प्रशंसा की.
सीख - कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपना धैर्य नही खोना चाहिये और अपने विवेक का इस्तेमाल करना चहिये.
पद्यमनी साहू द्वारा पूरी की गई कहानी
बूढ़े बंदर ने कहा कि राक्षस की एक छोटी बेटी व उसकी पत्नी उसी झीलमें रहती हैं. सभी जानवर बूढ़े बंदर के पास आ गए वह उसकी बातें ध्यान से सुनने लगे. सब ने एक स्वर में कहां अच्छा विचार है. बूढ़े बंदर के घर में उसकी पत्नी उसका बेटा बहू एवं उसके पोते पोतियां भी रहते थे. शाम का समय था. बूढ़े बंदर ने कहा चलो आज मैं तुम्हें झील के किनारे घुमाने ले जाता हूं. बूढ़े बंदर के पोते पोतियां झट से तैयार हो गए. छोटे बंदर खुशी से उछलने कूदने लगे, कि आज हमें दादाजी घुमाने ले जायेंगे. छोटे बंदर झील के किनारे पहुंचकर खूब मजा करने लगे उछलने कूदने लगे. झील के किनारे कई फलदार वृक्ष थे. छोटे बंदर मीठे मीठे फल तोड़ कर लाते वह अपने दादाजी को देते वह स्वयं भी खाते. तभी झील से राक्षस की बेटी निकली छोटे बंदरों को मस्ती करते देख उसे उनके साथ खेलने की इच्छा हुई. छोटे बंदरों के पास आकर बोली मेरा कोई दोस्त नहीं है. भाई बहन भी नही हैं जिनके साथ में खेल सकूं. क्या तुम मुझे अपने साथ खेलने दोगे. छोटे बंदर ने कहा क्यों नहीं बहन. आओ तुम भी हमारे साथ खेलो. छोटे बंदर मीठे मीठे फल लाकर राक्षस की बेटी को देने लगे. वह बहुत खुश हुई. उसने कहा आज तक मैंने ऐसे स्वादिष्ट फल कभी नहीं खाए थे. कुछ समय बाद बड़े बंदर ने कहा अब चलो बच्चों अंधेरा होने वाला है. छोटे बंदर मुश्किल से चलने को राजी हुए. राक्षस की बेटी को उनका जाना अच्छा ना लगा. वह कुछ दिनों के लिए उनके साथ जाने की जिद करने लगी. छोटे बंदरों ने भी कहा – ‘दादा जी ले चलो ना’. राक्षस की बेटी बंदरों के साथ चली गई. बंदर एक से बढ़कर एक करतब दिखाते नकल उतारते व राक्षस की बेटी का मनोरंजन करते. विभिन्न प्रकार के मीठे ताजे जंगली फल लेकर आते. इस तरह 2 दिन बीत गए. उधर बेटी के गायब होने से राक्षस बहुत परेशान था. राक्षस की पत्नी झील के किनारे विलाप करने लगी. उसका विलाप सुनकर जंगल के जानवर झील के पास आ गए. राक्षस ने कहा – ‘जो कोई भी मेरी बेटी का पता लगाएगा मैं उसे मुंह मांगा इनाम दूंगा. तुम सब जंगल के कोने कोने में जाओ और मेरी बेटी का पता लगाओ.’ सभी राक्षस की बेटी की तलाश करने लगे. कुछ समय बाद बूढ़ा बंदर राक्षस की बेटी को साथ लेकर आया. साथ में छोटे बंदर भी थे. बहुत सारे फलों से भरा टोकरा भी साथ लाए थे. बेटी को देखकर राक्षस की पत्नी को बहुत खुशी हुई. वह अपनी बेटी को सीने से लगा कर उसे बहुत प्यार करने लगी. राक्षस ने कहा मांगो तुमहे क्या चाहिए. चतुर एवं बूढ़े बंदर ने कहा यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो जंगल के सभी जानवरों की प्यास मिटाने के लिए जंगल झील का पानी पीने की अनुमति प्रदान करें. राक्षस वचनबध्दक था. उसने हां कह दी. प्यास से व्याकुल जानवर झील का पानी पीकर तृप्त हो गए एवं राक्षस को धन्यवाद देने लगे. सभी जानवर वापस अपने आवास की ओर जाने लगे. तभी राक्षस की बेटी ने छोटे बंदरों से कहा – ‘तुम लोग रोज शाम को मेरे साथ खेलने जरूर आना’. छोटे बंदरों ने रोज आने का वादा किया. इसे कहते हैं बुध्दिमानी - सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
कन्हैया साहू (कान्हा) व्दारा पूरी की गई कहानी
बंदर ने सभी जानवरो से कहा कि ऐसे तो हम बिना पानी पिये मर जायेंगे. मेरे दिमाग मे उस राक्षस को इस झील से भागने का उपाय है. बंदर ने सभी जानवरो को अपने मन की बात बताई. सभी ने उसकी तरकीब पर सहमति जताई. फिर सभी जानवर उस राक्षस के पास गए. बंदर ने झील के पास जाकर आवाज लगाई. गुस्से से आँखे लाल करता हुआ राक्षस झील से बाहर आया. उसने पूछा – ‘क्या तुम सबकी शामत आई है जो मुझे नींद से जगा दिया.’ तब बहुत ही विनम्रता पूर्वक बंदर ने कहा – ‘हम सब आपको सावधान करने के लिए आये हैं. इस जंगल मे एक जादूगर आया है जो बहुत ही ताकतवर है. और वह अपनी जादुई ताकत से जंगल के सभी छोटे बड़े जीवों को अपने कब्जे में कर रहा है. एक दो दिनों में वह इसी झील की तरफ आने वाला है इसलिए हम सब जान बचा कर इस जंगल से दूर किसी दूसरे जंगल मे जा रहे हैं. वह जादूगर अपने जादू से झील के पानी को सुखा कर पानी मे रहने वाले जीवों को भी अपने कब्जे में कर लेगा.’ बंदर की बात को सुनकर पहले तो राक्षस को यकीन नही हुआ लेकिन उसके मन मे डर पैदा हो गया. डर के कारण राक्षस रात में सो भी नही पाया. सुबह सुबह सभी जानवर दूसरे जंगल जाने की बात कहते हुए झील के किनारे से निकलने लगे. उनकी बातों को सुनकर अब राक्षस को यकीन हो गया कि जादूगर वाली बात सही है. सभी जानवर थोड़ी दूर जाकर एक पहाड़ के पीछे छिप कर देखने लगे कि राक्षस उस झील से जाता है या नही. जब जंगल सुनसान हो गया तो राक्षस और डर गया. उसे लगा कि इस जंगल के सभी जानवर जादूगर से जान बचा कर चले गए हैं. मैं इस झील में रहा तो जादूगर मुझे अपना गुलाम बना लेगा. गुलाम बनने से तो अच्छा है कि इस झील से कही दूर चला जाऊं. राक्षस उस झील से चुपचाप निकल कर दूसरे जंगल की एक बड़ी झील में जाकर रहने लगा. सभी जानवर ने राक्षस के जाने के बाद वापस जंगल मे आकर झील का पानी पिया. फिर सभी जानवरो ने एक सभा बुला कर उस बूढ़े बंदर की बुध्दिमानी की तारीफ की. उसे धन्यवाद दिया और उसका सम्मान किया . अब सभी जानवर जंगल मे मिलजुल कर रहते हैं और जंगल के फल-फूल खाते हैं. इस तरह एक बूढ़े बंदर की चतुराई से सभी जानवरो को उस राक्षस के आतंक से मुक्ति मिल गई.
सीख :- बुध्दिमतता से बड़ी से बड़ी समस्या को दूर किया जा सकता है.
अगले अंक के लिये इस मज़ेदार कहानी को पूरा करके हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दीजिये. अच्छी कहानियां हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे.
अधूरी कहानी – फिर नहीं ललकारा
बैडी सियार को इन दिनों पहलवानी का शौक चढ़ा था. उसने अच्छी-खासी रकम देकर जंबों हाथी से पहलवान के गुण भी सीख लिए थे. जंबों हाथी ने एक दिन बैडी सियार से कहा- ‘‘अब तुम अच्छे पहलवान बन गए हो. मैंने तुम्हें खास और बड़े सभी दांवपेंच सीखा दिए हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई तुम्हे आसानी से पटकनी दे सकता है.’’ बैडी खुश होते हुए बोला- ‘‘तो उस्ताद इसका मतलब ये हुआ कि मैं चंपकवन का नामी पहलवान बन गया हूं न?’’ जंबों हाथी बोला-