छत्‍तीसगढ़ी बालगीत

छत्तीसगढ़ी बालगीत - हमर इसकूल

लेखक - बलराम नेताम

बढ़ सुघ्घर हे संगी हमर इसकूल
जिहाँ खिले हाबे रंग बिरंग के फूल
बढ़ सुघ्घर हे संगी हमर इसकूल।।

हमर स्कूल के यह कहानी हे,
बढ़ गुरतुर गुरुजी के बानी हे,
शिक्षक दिवस मा गुरुजी ल देथन फूल,
बढ़ सुघ्घर हे संगी हमर इसकूल।।

स्कूल में जाके करथन पढ़ाई
नई करन ककरो सन लड़ाई,
हमर कक्षा में ना हे कचरा अव धूल,
बढ़ सुघ्घर हे संगी हमर इसकूल।।

पर्याबरण पर लगाए हावन करंज अऊ आम
स्वच्छता की कथरन संगी जम्मो काम,
इसकूल मा लगे हाबे गोंदा के फूल,
बढ़ सुघ्घर हे संगी हमर इसकूल''

कापी पीने ला हथियार बनबो,
बड़े होके अब्बड़ नाम कमाबो,
पढ़ई लिखई मा नयई करन कोनो भूल,
बढ़ सुघ्घर हे संगी, हमर इसकूल।।

गुरुजी पढ़ाथे, अउ समझाथे,
जम्मो जिनिस ला, सही बताथे,
खेल खेल मा खेलाथे, झूलना के झूल,
बढ़ सुघ्घर हे संगी, हमर इसकूल।।

छत्तीसगढ़ी बालगीत - मोर छत्तीसगढ़ के धरती

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

मोर छत्तीसगढ़ के धरती हे धान के कटोरा
धान के कटोरा, शान के कटोरा रे वरदान के कटोरा

ईब नदी सोना उपलै, अउ अरपा गीत सुनावे
महानदी छत्तीसगढ़ के जीवन धारा कहिलावे
हसदो इंद्रावती मांड वरदान के कटोरा
मोर छत्तीसगढ़ के भुईयां हे धान के कटोरा

राजीव लोचन छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहिलाथे
ठिनठिन पखना छत्तीसगढ़ के महिमा गाथा गाथे
सिहावा,मतीरिंगा पाट वरदान के कटोरा

सरहुल करमा के तिहार लइका सियान ला भाथे
दादा मांदर के तान तिक धिन्ना धिन बजाथे
इहां भाखा बोली हे जयगान के कटोरा
मोर छत्तीसगढ़ के भुईया हे धान के कटोरा

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