बालगीत

मेरा देश

लेखक – ओमप्रकाश वर्मा कक्षा पांचवीं प्रेषक – अजय साहू

उस देश का बच्चा हूं मैं
जिसमें वीरों ने दिए प्राण
उस देश का बच्चा हूं मैं
जिसमें सूरज सबसे पहले आये

उस देश का बच्चा हूं मैं
जिसमें दुश्मन पीठ दिखाकर भागे
उस देश का बच्चा हूं मैं
वीरता जहां बंदूक चलाए

उस देश का बच्चा हूं मैं
जहां सुबह-सुबह चिडियां बोलें
उस देश का बच्चा हूं मैं
जहां खेतों में धान लहराए

उस देश का बच्चा हूं मैं
जो जन-गण-मन का राग सुनाए

अभिलाषा

(आल्हा छंद)

लेखिका - स्नेहलता 'स्नेह'

कोख मार मत मुझको देना, सुनलो मेरी करुण पुकार'
जीने की अभिलाषा मेरी, कोमल तन पे करो न वार''

बोझ समझते है जो बेटी, जीना उसका है धिक्कार'
बेटी ना हो दुनिया में तो, सूना होगा हर घर व्दार''

बाबा कहे कोख में मारो, माँ तो मेरी है लाचार'
जगत नियंता की रचना मैं, मुझको जीने का अधिकार''

माने ना मैं चीखी फिर भी, भेदे कोमल तन को आज'
शोणित की धारा में बहते, टुकड़े देख न आई लाज''

सारी सृष्टि नीर बहाती,रोते मेघ मूसलाधार'
कांप उठा देवों का मन भी, देख क्रूर ये अत्याचार''

ऐसे निरमोही मानव पर, आन गिरो ना बिजली आज'
पश्चाताप कर ले मूरख, समय अभी भी तेरे पास''

काज महान है जीवन रक्षा, बेटी बेटा दोनो ताज'
जीवन गाड़ी के दो पहिये, बस इतना समझो तुम राज''

बेटी बिन जीवन है सूना, करना इस पर सभी विचार'
करना रक्षा बेटी की तुम, बेटी जीवन का आधार''

अभिलाषा बेटी की इतनी, मांगे प्यारा सा संसार'
बेला, चंपा, और चमेली, इसे बना लो तुम गलहार''

गरम जलेबी

लेखक - द्रोण साहू

किसे बताऊँ,
कहाँ मैं जाऊँ?
गरम जलेबी,
कैसे पाऊँ?

कैसे करके,
उसको खाऊँ?
कैसे कोई,
जुगत लगाऊँ?

मम्मी को मैं,
कैसे मनाऊँ?

घंटी वाली गुड़िया

लेखिका - अंजूलता भास्कर

घंटी वाली प्यारी गुड़िया '
नन्ही मुन्नी प्यारी गुड़िया ''

रोज़ सुबह वह उठ जाती '
घंटी बजाकर मुझे जगाती ''

देखो देखो सुबह हो गई '
सूरज के साथ धूप खि‍ल गई ''

रानी दीदी अब उठ जाओ '
जल्दी तैयार हो स्कूल जाओ ''

बचपन

लेखिका - कनकलता गहलोत

बचपन की जब याद सताए,
आंखें नम हो जाती हैं ।
मेरे प्यारे बचपन तेरी,
याद हमेशा आती है ।

बाबूजी की वह मार,
फिर दादा-दादी का प्यार,
दीदी का चोटी खींचना,
रोने पर मां की पुचकार ।

बहुत ढ़ूंढ़ती हूं उसको पर,
नज़र नहीं वह आता है ।

रहती कीचड़ से सनी हुई,
पंछी सी उड़ती फिरती थी,
शत्रु नहीं थे मेरे कोई,
सबसे प्यार से मिलती थी ।

मां की ममता का वह आंचल,
कहीं नही मिल पाता है ।

बचपन की सब बातें मुझको,
याद हमेशा आती हैं,
उनकी याद करूं तो मेरी,
आंखें नम हो जाती हैं ।

बाबा हलपट

लेखक - दीपक कंवर

बूढ़ा बाबा हलपट चले वह लटपट
हमे सिखाये सटपट
काम करो झटपट
बात करो पटपट
दौड़ो कूदो सरपट
पढ़ो लिखो फटाफट
मत करो खटपट
अच्छों से न कटमट
झूठों से कहो चलहट
बाबा की खटपट
आदत से नटखट
खाना खाते चटपट
पानी पीते गटगट
करते रहते चटचट
जहां भी हो जमघट
खेत हो या पनघट
वहां बाबा हलपट

बिल्ली और बंदर

लेखक – सुबोध कुमार फ्रेंकलिन (आशिक रायपुरी)

एक थी बिल्ली, एक था बंदर,
दोनो ही थे मस्तु कलंदर ।
बोली बिल्ली फिर बंदर को,
सैर करेंगे चलो शहर को ।

लगा उसे जब पैर मे कांटा,
बिल्ली ने बंदर को डांटा ।
रस्ते में फिर मिल गया आटा,
उसका किया बंदर बांटा ।

बंदर ने फिर मौका छांटा,
बिल्ली को मारा फिर चांटा ।
बिल्ली उससे डरकर भागी,
फूटी किस्मत फिर ना जागी ।

रोते-रोते घर को आई,
घर में उसने रोटी खाई ।
कान पकड़ कर फिर वह बोली,
गांठ अकल की अपनी खोली ।

बदमाशों से काम लगाना,
देखो सब कुछ पड़ा गंवाना ।

मेरे गाँव में

लेखक - टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

मेरे स्वच्छ -- निर्मल गाँव में
वाह ! कितनी सुंदर बहार है

ग्राम -- पंचायत के सामने
एक चौपाल सजता है
नहीं दिखती कहीं गंदगी
बड़ा सुंदर दृश्य लगता है
पलस्तर की हुई है गलियाँ
चिकनी सड़कें कोलतार की है
वाह ! कितनी सुंदर बहार है
स्वच्छ पानी से लबालब
निर्मलघाट वाला एक ताल है
गाँव को छूती नदी बहती
अमराई बड़ी बेमिसाल है
पश्चिम में लगता हाट
पूरब में स्वागत -- व्दार है
वाह ! कितनी सुंदर बहार है
स्वास्थ्य केन्द्र के पास
एक और भवन निराला है
जहाँ मैंने क ख ग सीखी
वो मेरी अद्भुत पाठशाला है
तरह -- तरह के पेड़ - पौधे
जैसे यहाँ तोरण - व्दार है
वाह ! कितनी सुंदर बहार है
स्वच्छ और पक्के शौचालय
बने हुए हैं घर - घर
सूखे गीले कचरे के डिब्बे
रखे हुए हैं घर - घर
उजले पावन आँगन में
जहाँ एक तुलसीडार है
वाह ! कितनी सुंदर बहार है
फल फूल छायेदार पेड़ों से
मेरे गाँव के हर बाट है
हर शख्स यूँ कहता है
वाह ! क्या निराला ठाट है
हर चेहरे पर है मुस्कान
जैसे निस दिन त्योहार है
वाह ! कितनी सुंदर बहार है

मैं मुरली की धुन हुँ

लेखक -अरविन्द वैष्णव

मैं विद्यार्थी हुँ मुझे पढ़ा दीजिए ।
मुरली की धुन हुँ गुनगुना लीजिए ।।
मैं प्राण प्रण से हुँ वतन के लिए ।
शहीदो की शहादत समझा दीजिए ।।

विवेकानंद को पढ़ा और पढ़ा बुध्द को ।
तिरंगे की गाथा सुना दीजिए ।।
जिनकी नज़रें बुरी हैं वतन पर ।
उनका तो नामो निशां मिटा दीजिये।।

बेटियों पर रखते हैं जो नजरें बुरी ।
उन हैवानो को मिलकर सजा दीजिये ।।
ये अरविन्द विश्वास की डोर चाहता है ।
अमन का चमन यहां ला दीजिए ।।

वरदान

लेखिका - जागृति मिश्रा 'रानी'

जग को तुम वरदान हो बेटी,
तुम मेरा अभिमान हो बेटी ।

निर्मल कोमल सहज-सरल भी,
सुंदर चतुर सुजान हो बेटी ।

तुम ही सीता, तुम सावित्री,
दो-दो कुल का मान हो बेटी ।

पवित्रता की प्यारी मूरत,
गीता और कुरान हो बेटी ।

बिखरा देती हो तुम खुशबू,
बगिया की मुस्कान हो बेटी ।

जिसको सुनकर सब खुश होते,
एक सुरीली गान हो बेटी।

झांसी की रानी जैसी तुम,
पूरा हिंदुस्तान हो बेटी ।

फूलो-फलो नित खूब बढ़ो तुम,
‘रानी' कहे भारत की शान हो बेटी ।

वर्षा के पल

लेखिका - अंजूलता भास्कर

कितने सुंदर वह पल होते
जब बारिश में भीगे होते
सर - सर कर के हवा है चलती
गड़ -गड़ कर बिजली है चमकती
रि‍म झि‍म रि‍म झि‍म बरसा पानी
छम - छम नाचे गु‍ड़ि‍या सयानी
मैं-तुम, तुम-मैं साथ में होते
वर्षा में जब भीगे होते

विद्यालय

लेखिका - श्वेता तिवारी

छोटा सा विद्यालय हमारा
खेले इसमे बहुत से खेल
पढ़ें लिखें हम साथ-साथ मे
भोजन खायें बाँट-बाँट के ।।

रंग बिरंगी इसमें पुस्तक
किस्से और कहानी
गणित और विज्ञान का मेला
गतिविधियां नई-पुरानी ।।

नई नई शिक्षा मिलती है
आगे बढ़ते जाना है
बाल सदन की बैठक होती
मन की बात बताना है ।।

नवाचार करके दिखलाते
शून्य निवेश से मन बहलाते
कबाड़ से जुगाड़ करके
नित्य नये समान बनाते ।।

खेल खेल में मिलती शिक्षा
इसका करते हें सम्मान
यह है हम सबका परिवार
यह हम सबका है मान ।।

सदाचार

लेखक - नेमीचंद साहू

आओ बच्चों तुम्हे बताएं
सदाचार की बातें
कभी न भूलो ईश्वर
को दिन हो या हों रातें

कभी सताओ जीवों को मत
सीखो सदा दया का पाठ
मदद करो सेवा करो
रखना इसको हरदम याद

सफलता की राह

लेखक - अनकेश्वर प्रसाद महिपाल

किसी नये काम का, आगाज करके देखो,
कल जो करना है, उसे आज करके देखो…..

कर्म अच्छे करने पर, साथी कई मिल जाते हैं,
कम से कम एक बार, आवाज करके देखो…...

लक्ष्य स्थिर रख कर, बढ़ो मंजिल की ओर,
काम करने का नया, अंदाज करके देखो…….

महत्व नहीं होता कोई, लकीर पीटने वालों की,
सुधार की खातिर नया, काज करके देखो……...

पग चूमेगी सफलता, यदि खुद पर विश्वास है,
आत्मविश्वास पर अपने, नाज करके देखो ……..

बंधे रहोगे कब तलक, गुलामी की बेड़ियों में,
उन्मुक्त गगन में, परवाज करके देखो………

हां में हां सदा, न मिलाते ही रहना,
मार्ग यदि बुरा हो तो, एतराज करके देखो……

बिठाएगा सर आंखों पर, जहान सारा,
दिलों में सबके, राज करके देखो…………….

सब्ज़ियां

लेखक - अजय कुमार कोशले

ताजा आलू ताजा भाटा
खाओ हर दम ताजा-ताजा
लाल मिर्च और लाल टमाटर
ले लो ताजे हरे मटर
लम्बी ककड़ी, कद्दू मोटा
बड़ा कचालू, कुंदरू छोटा
भिण्डी की तो बात निराली
इसे पकाती प्यारी रानी

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