चित्र देखकर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –

इस चित्र पर हमें कई मज़ेदार कहानियां मिली हैं. कुछ को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं –

सेवती चक्रधारी की कहानी

घने जंगल मे बहुत सारे जानवर और जीव जन्तु रहते थे. उन्ही जीव जन्तु मे एक था टिड्डा और एक थी चीटी. दोनो एक दूसरे के पड़ोसी थे और बिल्कुल एक दूसरे के विपरित. टिड्डा आकार मे बड़ा होकर भी बहुत आलसी था. खाता-पीता और सो जाता था. न ही कोई शारीरिक काम करता और न ही कोई शारीरिक खेल खेलता. ठीक इसके उल्टे चीटी आकार मे छोटी थी और मेहनती थी. चीटी रोज अपने से बड़े आकार के खाने की चीजो को एकत्रित करती. उसे ऐसा करते देख टिड्डा उसका मजाक उड़ाता और कहता कि 'तुम कितनी मूर्ख हो जो रोज खाना जमा करती हो. मुझे देखो मै कभी खाना जमा नही करता हूँ. तुरन्त खोजता हूँ और खाता हूँ.’’ चीटी ने कभी टिड्डे की बात का बुरा नही माना. वह टिड्डे की बात सुनकर मुस्कुरा देती.

साल भर बीतने के बाद एक दिन टिड्डा बहुत बीमार पड़ गया. उसको बहुत कमजोरी लग रही थी. वह चल भी नही पा रहा था. चीटी ने जब उसकी हालत देखी तो उसे डाक्टर के पास ले गई. डाक्टर पहले से जानता था कि टिड्डा बहुत आलसी है. डाक्टर ने टिड्डे से कहा - 'देखो अगर तुमने शारीरिक काम नही किया तो बहुत जल्दी तुम किसी गंभीर समस्या मे पड़ सकते हो. शारीरिक काम या खेल शरीर के लिए बहुत जरूरी हैं.' डाक्टर ने बात आगे बढ़ाई – ‘‘कुछ दिन आराम करो और उसके बाद थोड़ा-थोड़ा काम शुरू करना वरना तुम फिर बीमार पड़ जाओगे.’’ टिड्डा और चीटी घर आ गए.

आलसी टिड्डा और मेहनती चींटी

लेखक -इन्द्रभान सिंह कंवर

एक जंगल में एक आलसी टिड्डा रहता था. उसी जंगल में एक चींटी भी रहती थी. वह टिड्डा रात दिन जंगल में मस्ती करते हुए इधर उधर घूमता रहता था. उसे न आगे की चिन्ता रहती न पीछे की. बस वह रात दिन अपनी मस्ती में जीता. चींटी रात दिन बरसात और सर्दियों के मौसम के लिये भोजन एकत्रित करने के लिये दिन-रात मेहनत करती रहती थी, ताकि बरसात और सर्दी का मौसम आराम से काटा जा सके. एक दिन वह चींटी भोजन की खोज करते हुए टिड्डे के इलाके में जा पहुँची. टिड्डे ने चींटी को देखकर पूछा ये तुम क्या कर रही हो? तब चींटी ने उसे बताया कि वह बरसात और सर्दियों के लिये भोजन एकत्रित कर रही है. इस बात को सुनकर टिड्डा जोर से हंसने लगा और बोला तुम अभी से आगे के बारे में सोच रही हो. इतनी मेहनत कर रही हो. मुझे देखो मैं कितना मजे से जी रहा हूँ. इस तरह से उसने चींटी का खूब मजाक उड़ाया. फ़िर गाना गाते हुए मस्ती से उड़ गया. चींटी उसकी बातों को अनसुना करते हुए अपने काम में लग गयी.

कुछ समय बात बरसात का मौसम आया. जंगल में चारों तरफ़ पानी भर गया. उस टिड्डे के पास न रहने के लिये घर है और न ही खाने के लिये खाना. टिड्डा भूख के मारे सूख कर पतला हो गया. तभी उसके बगल से गाना गाते हुए चींटियो की कतार गुजरी. उसमे से वही मेहनती चींटी बाहर आयी और टिड्डे से उसका हाल-चाल पूछा. तब टिड्डा ने उसे अपने बुरे हाल और भूख के बारे में बताया. चींटी को टिड्डे पर बहुत दया आयी. वह उसे टीले पर बने अपने घर पर ले गयी. टिड्डा ने वहाँ जाकर देखा कि चींटी के पास तो खाने का बहुत सारा सामान पहले से रखा है. यह देखकर टिड्डा ने पूछा कि तुम्हारे पास खाने का इतना सारा सामान कहाँ से आया. तब वह चींटी ने उसे बताया कि उस समय जब तुम खूब मस्ती भरी जिन्दगी जी रहे थे और मेरा मजाक उड़ा रहे थे, तब मैं इसी के लिये मेहनत कर रही थी और अब समय आने पर इसका उपयोग कर रही हूँ. टिड्डे को अपनी बातों पर बहुत पछतावा हुआ. उसने चींटी से माफ़ी मांगी. आगे चींटी की ही तरह मेहनत करने का वचन भी दिया.

कहानी से सीख -खुशी से जिन्दगी जीना अच्छी बात है, मगर हमें अपने आने वाले कल का भी ख्याल रखना चाहिये. साथ ही सदैव परिश्रम करते रहना चाहिए.

सच्चा मित्र

श्रीमती संध्या पैकरा

एक जंगल मे एक टिड्डा और एक चींटी रहते थे. दोनो में बहुत गहरी मित्रता थी. दोनो हर काम मिलजुल कर करते और जो भी मिलता उसे मिल बांट कर खाते थे. लेकिन टिड्डा कामचोरी करता था और थक जाने का बहाना करके अधिकांश समय आराम करता जबकि चींटी दिन भर कुछ न कुछ खाने की चीज ढूंढते रहती जो भी मिलता उसे बराबर टिड्डे को भी देती थी और आगे के लिए कुछ बचाकर भी रखती थी.

बारिश में कम पानी गिरने के कारण गर्मी में जंगल मे भीषण सूखा पड़ गया. पेड़ पौधे सुख गए. जंगल के दूसरे बड़े जानवर दूसरे जंगल मे चले गए लेकिन बेचारे चींटी और उसका दोस्त टिड्डा वही जंगल मे ही रहने मजबूर थे. अब चींटी रोज खाना ढूढने जाती पर बहुत ही कम खाने के लिए कुछ मिल पाता. इधर टिड्डा ज्यादा मेहनत नही करता और दिनभर आराम करता रहता. कुछ दिनों बाद जंगल मे कुछ भी खाने की चीज नही मिलने पर चींटी अपने बिल में इक्कठा करके रखे हुए खाने की वस्तुओं से अपना दिन निकालने लगी. इधर टिड्डा भूख से मरने की स्थिति में पहुच गया. वह अपनी दोस्त चींटी के पास आकर खाना मांगने लगा. पहले तो चींटी ने उसे समझाया कि तुम्हे जो भी मिला तुमने उसी समय खा लिया और भविष्य के लिए नही संचय किया जिसके कारण आज यह बुरा दिन देख रहे हो. टिड्डे को चींटी की बात समझ आ गयी. उसके बाद एक सच्चे मित्र की भांति चींटी ने अपने नासमझ दोस्त टिड्डा को अपने संचय किये हुए खाद्य सामग्री में से खाने को दिया. इस प्रकार से चींटी ने अपने दोस्त की जान बचाई. उसके बाद हमेशा दोनो मिलकर खाना ढूंढते और कुछ आगे भविष्य के लिए बचाकर रखते और कुछ को खाते. इस प्रकार दोनो ने मिलजुल कर विकट परिस्थितियों से लड़कर गर्मियों में भी हंसी खुसी जीवन बिताने लगे. दोनो की दोस्ती अब और बहुत गहरी हो गई.

शिक्षा: - सच्चा मित्र वही जो समय पर काम आए.

अब नीचे दिये चित्र को देखकर कहानी लिखें और हमें dr.alokshukla@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगले में प्रकाशित करेंगे.

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