छत्तीसगढ़ी बालगीत

मोर गाँव

रचनाकार-बलराम नेताम

देख के शहर के चौका चौन्द,
सब शहर कोती ओरियावत हे,
बुढ़हत काल म संगवारी,
अब गाँव ला सोरियावत हे.

सरग कस मोर गाँव कहा गवागे,
आधुनिकता म ओहा समागे,
गरी खोल चौरा के बैठइय्या,
सब घर कोती ओरियागे.

गाँव लइका मन के सुघ्घर टोली,
डोकरी दाई के सुघ्घर मीठ बोली,
तरिया डबरी खेतकार डोली,
कहा नंदागे मीत मितान के बोली.

राम राम काहत हाय हैलो में आगे
मुंदरहा के उठईय्या बेरा म जागे,
पाव पतौरी छोड़ माड़ी के लागे पईय्या,
कहा नंदागे मोर गाँव के गोकुल कन्हैया.

शहर के चौका चौन्द म भइय्या,
जम्मो जुन्ना खेल ल तिरियावत हे,
फ्री फायर ,पपजी गेम के खेलइय्या,
भौरा गेड़ी बाटी फुगड़ी ल भुलावत हे.

चाउमीन पिज्जा बरगर के खवईय्या,
पनपुरवा रोटी तेंदू चार ल सोरियावत हे,
बुढ़हत काल म गा संगवारी,
अब गाँव कोती ओरियावत हे.

कोरोना के कहर

रचनाकार- तुलस राम चंद्राकर

कोरोना आगे कोरोना आगे,
देश दुनिया म एहर छागे.

सरदी- खासी बुखार संग,
लगथे टोटा भारी -भारी.
माथ म पीरा, सास के फूलन,
एही ह ऐखर चिनहारी.
मुंह, नाक, छुए म समागे
अइसन का बीमारी आगे.
कोरोना आगे . . . . . . . . . . . .

घर ले बाहिर नई जाना हे,
न कखरो संग हाथ मिलाना हे.
साबुन से हाथ धोना हे,
करोना ल दुर -दुर भगाना हे.
मनखे के चेहरा मुरझागे,
अइसन का बीमारी आगे.
कोरोना आगे . . . . . . . . . . . .

बीमारी ल पाए बर काबु,
लाकडाउन होइसे लागु.
तभो ले जनता नई होथे काबु,
तभे कोरोना होवत हे बेकाबु.
बड़े-बड़े के चेत हरागे
अइसन का बीमारी आगे.
कोरोना आगे . . . . . . . . . . .

छतीसगढ़ के मान बढ़ाबोन

रचनाकार- डिजेन्द्र कुर्रे

नई जावन तिरिथ गंगा,
नई जावन काशी ग.
छत्तीसगढ़ म रहिबो संगी,
खाबो हक्कन के बासी ग.

कामबुता नंगत करबो,
भुइयाँ म नागर चलाबोन ग.
धरती दाई के कोरा म संगी,
सोनहा धान ल उपजाबोन ग.

राजिम जाबोन गिरौदपुरी जाबोन,
नोनी बाबू ल दरसन कराबोन ग.
बड़का जईतखाम म चढ़के संगी,
सादा जीवन बिताबोन ग.

मेंला जाबोन मड़ई जाबोन,
आनी बानी के खई बिसाबोन ग.
सरकस सलिमा देखबो संगी,
खुशी से जिनगी बिताबोन ग.

खो खेलबोन कबड्डी खेलबोन,
अउ खेलबोन कुश्ती ग.
जीतके लानबोन मेंडल ल संगी,
छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाबोन ग.

गरमी बाढ़गे

रचनाकार- महेन्द्र देवांगन माटी

गरमी बाढ़त रोज के, पानी सबो अटात.
मरना होगे गाँव मा, तरिया बोर सुखात.

रेंगत जावय कोस भर, पानी ला तब पाय.
छाला परगे पाँव मा, रोवासी अब आय.

नवा बहुरिया फोन मा, दाई करा बताय.
पानी के दुख होत हे, कइसे दिन ह पहाय.

बिजली नइहे गाँव मा, अँधियारी हा छाय.
गरमत हावय रात दिन, नींद कहाँ ले आय.

आय पसीना माथ मा, टोंटा अबड़ सुखाय.
गरमी अतका बाढ़गे, चैन घलो नइ आय.

नवा सुरुज जागबो

रचनाकार- नेमीचंद साहू

गरमी बाढ़त रोज के,
पानी सबो अटात.
विपदा ल तारे बर,
आवव करव सुमिरन.
एकमत हो के सब
करबो सुघ्घर भजन
आस ल छोड़ो झन
रीत ल छोडव झन
सुफल हो वो एक दिन
मुंह ल मोड़ो झन..
जीवन में परीक्षा होथे
हांसे के पहिली सबो रोते
यह सब जग की रीत
हारे के बाद जीत होथे
सोना ल चमके बर
आगी म तपाथे
अईसन तप हमर बर
आज यही बताते थे
समय एक ही रहे नहीं
एहि बात ल समझना है
कभी दुख कभी सुख
मिल एला सहना है
सुमत के मसाल ल
दुनिया में बगराना हे
सुमरन करबो मिलके
नवा सुरुज जगाना हे..

Visitor No. : 6723540
Site Developed and Hosted by Alok Shukla