गीत नाटिका - बाल श्रम का शिक्षा पर होने वाला दुष्प्रभाव

लेखिका - श्रीमती स्नेहलता 'स्नेह'

पात्र- शिक्षिका स्नेह मैम, छात्र-(समीर, शंकर) छात्रा-रौशनी

शिक्षिका स्नेह मैम
हाय,फिर उपस्थिति कम
इसी बात का मुझको गम
क्यो नहीं आया रामू आज ?
उसको क्या था ऐसा काज ?
आओगे गर रोज स्कूल
जीवन पथ पर मिलेंगे फूल

छात्रा रौशनी
रामू के पापा बीमार
मम्मी भी उसकी लाचार
करता लोगों के घर काम
और चुकाता दवा का दाम
गायों को भी वही चराता है
बेटे का है फ़र्ज निभाता है

छात्र समीर
शंकर भी रोज ना आता है
बस रोपा लगाने जाता है
मैने भी कहा चलो स्कूल
शिक्षा है जीवन का मूल

छात्र शंकर
मेरे कंधों पर है बोझ
बाबा पीते दारू रोज
मेरे घर का ये महौल
शिक्षा का नहीं है मोल

सुन लो मेरे प्यारे मित्र
दुनिया मेरी बड़ी विचित्र
मैं बेबस नन्हा मजदूर
इसीलिए हूँ स्कूल से दूर

शिक्षिका स्नेह मैम - छात्रों की दशा सुनकर आँखों में आँसू भर आते हैं फिर बच्चो को समझाते हुए कहती है
सुन लो बच्चो पते की बात
बाल श्रम तो है अपराध
शिक्षा को बनाओ तलवार
करो गरीबी पे तुम वार
फर्ज अपना निभाना तुम
प्रतिदिन शाला आना तुम
पढ़ना भी है जरूरी काम
इसी से होगा रौशन नाम
शिक्षा बच्चों का अधिकार
शिक्षा जीवन का आधार

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