वंदे मातरम

वंदे मातरम के रचनाकार बंकिमचन्द्र चटर्जी तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में डिप्टी कलेक्टर के पद पर थे, परन्तु वे देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण थे. उन्होने 1876 के आसपास इस गीत की रचना की. बाद में उन्होने अपने उपन्यास आनन्द मठ में इसे शामिल किया. गीत के पहले 2 पद संस्कृत मे हैं. बाद के पद मिली-जुली संस्कृत एवं बाँग्ला भाषा मे हैं. बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है. यह उपन्यास अंग्रेजी शासन और जमींदारों के विरुध्द हुए सन्यासी विद्रोह पर आधारित था. उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक सन्यासी गाता है. कहा जाता है कि यह गीत उन्होंने सियालदह से नैहाटी आते वक्त ट्रेन में लिखा था.

बंकिमचन्द्र चटर्जी

वंदे मातरत गीत का संस्कृत मूल गीत

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम्
मातरम्।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥

सप्त-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
द्विसप्त-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं
मातरम्॥ २॥

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे॥ ३॥

त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम्
मातरम्॥४॥

वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं
मातरम्॥ ५॥

वंदेमातरम का अंग्रेज़ी अनुवाद

आनंद मठ उपन्यास और उसके साथ ही वंदे मातरम् गीत का प्रथम अंग्रेज़ी अनुवाद नरेस चंद्र सेनगुप्ता ने ‘‘The Abbey of Bliss’’ के नाम से किया था. इस गीत का अंग्रेज़ी मे पद्य एवं गद्य दोनो में ही अनुवाद श्री अरविन्द घोष ने किया है. गीत का अंग्रेज़ी में पद्यानुवाद पहले देखिये –

English Translation of Vandematram by Shri Arvind Ghosh in Verse form

Mother, I bow to thee!
Rich with thy hurrying streams,
Bright with thy orchard gleams,
Cool with thy winds of delight,
Dark fields waving, Mother of might,
Mother free.

Glory of moonlight dreams
Over thy branches and lordly streams,
Clad in thy blossoming trees,
Mother, giver of ease,
Laughing low and sweet!
Mother, I kiss thy feet,
Speaker sweet and low!
Mother, to thee I bow.

Who hath said thou art weak in thy lands,
When the swords flash out in twice seventy million hands
And seventy million voices roar
Thy dreadful name from shore to shore?
With many strengths who art mighty and stored,
To thee I call, Mother and Lord!
Thou who savest, arise and save!
To her I cry who ever her foemen drave
Back from plain and sea
And shook herself free.

Thou art wisdom; thou art law,
Thou our heart, our soul, our breath,
Thou the love divine, the awe
In our hearts that conquers death.
Thine the strength that nerves the arm,
Thine the beauty, thine the charm.
Every image made divine
In our temples is but thine.

Thou art Durga, Lady and Queen,
With her hands that strike and her swords of sheen,
Thou art Lakshmi lotus-throned,
And the Muse a hundred-toned.
Pure and perfect without peer,
Mother, lend thine ear.
Rich with thy hurrying streams,
Bright with thy orchard gleams,
Dark of hue, O candid-fair
In thy soul, with jewelled hair
And thy glorious smile divine,
Loveliest of all earthly lands,
Showering wealth from well-stored hands!
Mother, mother mine!
Mother sweet, I bow to thee,
Mother great and free!

श्री अरविन्द ने अपने इस पद्यानुवाद के संबंध में स्वयं यह लिखा है कि बांग्ला भाषा की मूल मिठास का पद्य के रूप में किसी अन्य भाषा में अनुवाद कठिन है इसलिये वे इस गीत का गद्य के रूप में अनुवाद भी कर रहे हैं – “It is difficult to translate the National Anthem of Bengal into verse in another language owing to its unique union of sweetness, simple directness and high poetic force. All attempts in this direction have been failures. In order, therefore, to bring the reader unacquainted with Bengali nearer to the exact force of the original, I give the translation in prose line by line.” आइये उनके व्दारा किये गये गद्यानुवाद को भी देखें –

English Translation of Vandematram by Shri Arvind Ghosh in Prose form

I bow to thee, Mother,
richly-watered, richly-fruited,
cool with the winds of the south,
dark with the crops of the harvests,
the Mother!

Her nights rejoicing in the glory of the moonlight,
her lands clothed beautifully with her trees in flowering bloom,
sweet of laughter, sweet of speech,
the Mother, giver of boons, giver of bliss!

Terrible with the clamorous shout of seventy million throats,
and the sharpness of swords raised in twice seventy million hands,
who sayeth to thee, Mother, that thou art weak?
Holder of multitudinous strength,
I bow to her who saves,
to her who drives from her the armies of her foemen,
the Mother!

Thou art knowledge, thou art conduct,
thou our heart, thou our soul,
for thou art the life in our body.
In the arm thou art might, O Mother,
in the heart, O Mother, thou art love and faith,
it is thy image we raise in every temple.

For thou art Durga holding her ten weapons of war,
Kamala at play in the lotuses
and Speech, the goddess, giver of all lore,
to thee I bow!

I bow to thee, goddess of wealth,
pure and peerless,
richly-watered, richly-fruited,
the Mother!

I bow to thee, Mother,
dark-hued, candid,
sweetly smiling, jewelled and adorned,
the holder of wealth, the lady of plenty,
the Mother!

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में वंदे मातरम् गीत

स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान यह गीत बहुत लोकप्रिय हो गया था. सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत गाया था. सन् 1901 में कलकत्ता अधिवेशन में श्री चरणदास ने और सन् 1905 के बनारस अधिवेशन में यह गीत सरलादेवी चौधरानी ने पुन: गाया. लाला लाजपत राय ने लाहौर से वन्दे मातरम् नाम के 'जर्नल' का प्रकाशन किया. अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द 'वन्दे मातरम्' ही थे. 1905 में हीरालाल सेन ने पहली राजनीतिक फिल्म बनाई जि‍सका अंत वंदे मातरम् के नारे के साथ ही हुआ. सन् 1007 में मेडम भीखाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में जो तिरंगा झंडा फहराया था उसके मध्य में 'वन्दे मातरम्' ही लिखा हुआ था।

अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने आर्य प्रिन्टिंग प्रेस, लाहौर तथा भारतीय प्रेस, देहरादून से सन् 1929 में 'क्रान्ति गीतांजलि' नामक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसमें उन्होने मातृ वंदना के नाम से इस गीत के दो पद दिये थे. साथ ही उन्होने इस गीत के संबंध में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक गजल भी लिखी थी.

बंग-भंग का विरोध करने के लिये 7 अगस्त 1905 को जुटी भीड़ के बीच किसी ने वन्दे मातरम्‌ कहा और सहस्रों कंठों ने समवेत स्वर में इसे दोहराया तो पूरा आसमान वंदे मातरम के घोष से गूंज उठा. अरविन्द घोष ने इस अवसर का बडा रोमांचक चित्र खींचा है. अंग्रेज सरकार ने 1906 में वन्दे मातरम्‌ को किसी अधिवेशन, जुलूस या सार्वजनिक स्थल पर गाने से प्रतिबंधित कर दिया गया. अंग्रेज सरकार के प्रतिबंधात्मक आदेशों की अवज्ञा करके 14 अप्रैल 1906 को एक पूरा जुलूस वन्दे मातरम्‌ के बैज लगाए हुए निकाला गया और पुलिस ने भयंकर लाठी चार्ज किया. मोतीलाल घोष और सुरेंद्र नाथ बनर्जी जैसे नेताओं ने पुलिस की लाठियाँ खाईं और वंदे मातरम् का घोष करते रहे. अगले दिन अधिवेशन फिर वन्दे मातरम्‌ गीत से ही शुरू हुआ. श्री अरविन्द ने भी कलकत्ता से वन्दे मातरम्‌ के नाम से एक अंग्रेजी दैनिक निकाला. सिस्टर निवेदिता ने प्रतिबंध के बावजूद निवेदिता गर्ल्स स्कूलों में वन्दे मातरम्‌ को दैनिक प्रार्थनाओं में शामिल किया. गाँधीजी ने 1905 में लिखा- ‘‘आज लाखों लोग एक बात के लिए एकत्र होकर वन्दे मातरम्‌ गाते हैं. मेरे विचार से इसने हमारे राष्ट्रीय गीत का दर्जा हासिल कर लिया है. मुझे यह पवित्र, भक्तिपरक और भावनात्मक गीत लगता है.’’

मदनलाल ढींगरा, खुदीराम बोस, सूर्यसेन, रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य बहुत से क्रांतिकारी वंदे मातरम गाते हुए फांसी पर झूल गये. भगत सिंह अपने पिता को वंदे मातरम्‌ से अभिवादन कर पत्र लिखते थे. सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने इस गीत को अंगीकार किया था और सिंगापुर रेडियो स्टेशन से इसका प्रसारण होता था.

रविन्द्रनाथ टेगौर, पं॰ पलुस्कर, दक्षिणरंजन सेन, दिलीप कुमार राय, पं. ओंकारनाथ ठाकुर, केशवराव भोले, विष्णुपंथ पागनिस, मास्टर कृष्णावराव, वीडी अंभाईकर, तिमिर बरन भाचार्य, हेमंत कुमार, एम एस सुब्बा लक्ष्मी, लता मंगेशकर आदि ने इसे अलग अलग रागों – काफी, मिश्र खंभावती, बिलावल, बागेश्वरी, झिंझौटी, कर्नाटक शैली आदि में गाया है. मास्टर कृष्णाराव ने पुणे में पचास हजार लोगों से इस गीत को गवाया. फिर उन्होंने पुलिसवालों के साथ इसे मार्च सांग बनाकर भी दिखाया। विदेशी बैण्डों पर बजाने लायक सिध्द करने के लिए उन्होंने ब्रिटिश नेवल बैण्ड चीफ स्टेनले बिल्स की मदद से इसका संगीत तैयार करवाया. बी.बी.सी. व्दारा 2002 में कराये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है.

वंदे मातरम् की राष्ट्रगीत के रूप में स्वीक्रति

सन् 1937 में कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस, आचार्य देवा एवं रविंद्र नाथ टैगोर शामिल थे. इस समिति ने कहा कि गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र है इसलिये इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप मान्य किया जाये. गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने ‘‘सारे जहाँ से अच्छा’’ के साथ वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में स्वीक्रत किया गया. स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सभा में 24 जनवरी 1950 को 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।

डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य:

“शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा।” (भारतीय संविधान परिषद, व्दादश खण्ड, 24-1-1950)

महान गायकों के स्वर में वंदेमातरम

लता मंगेशकर ने फिल्म‍ आनंद मठ में इस गीत को हृदय से गाया है –

मशहूर कलाकार पंडित रविशंकर ने आकाशवाणी के लिये इस गीत को गाया है.

आधुनिक युग के महान संगीतकार ए. आर रहमान की आवाज़ में भी इस मधुर गीत को सुनिये -

इस गीत को शास्त्रीय संगीत के अनेक गायकों में भी अपने सुमधुर कंठ से गाया है. पहले ओंकार नाथ ठाकुर से इस गीत को सुनिये. उन्होने यह गीत भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर संसद में गाया था –

एम एस सुबुलक्षमी एवं दिलीप कुमार राय ने रागमालिका में यह गीत बहुत ही सुंदर रूप में गाया है. सुनिये -

वंदे मातरम् का विरोध

कांग्रेस के 1923 अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे. यहां तक कहा गया कि न केवल इस गीत का सन्दर्भ मुस्लिम विरोधी है बल्कि पूरा उपन्यास ही मुस्लिम विरोधी है. अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के 30 दिसम्बर 1908 के अधिवेशन में सैयद अली इमाम ने ‘वंदे मातरम्‌’ को एक सांप्रदायिक आव्हान बताया. 1923 में काकीनाडा कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेसाध्यक्ष मौलाना अहमद अली ने शास्त्रीय संगीत के महान गायक पं॰ विष्णु दिगम्बर पलुस्कर को वन्दे मातरम्‌ गाने के बीच मे टोका, लेकिन पं॰ पलुस्कर पूरा गाना गाकर ही रुके. सचाई यह है कि इस देश में असंख्य अल्पसंख्यक वन्दे मातरम्‌ के प्रति श्रध्दा रखते हैं. खिलाफत आंदोलन के अधिवेशनों की शुरुआत भी वन्दे मातरम्‌ से होती थी और अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में उठकर खड़े होते थे. बंगाल के विभाजन के समय हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इसे गाते थे.

राष्ट्रगान को गाने के लिये मजबूर करने का प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोय एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य के प्रकरण में उठाया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह इसका अपमान कर रहा है, अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता. चूँकि वन्दे मातरम् इस देश का राष्ट्रगीत है अत: इसको जबरदस्ती गाने के लिये मजबूर करने पर भी यही कानून व नियम लागू होगा. बड़े दुख की बात है कि हाल ही में वंदे मातरम् गाने को लेकर फिर से विवाद उत्पन्न हुआ है.

श्री ए.जी. नूरानी ने जनवरी 1999 में फ्रंटलाइन पत्रिका में वंदेमातरम् गीत को मुस्लिम विरोधी बताते हुए एवं यह गीत मुस्लिमों व्दारा गाया जाना अनिवार्य करने का विरोध करते हुए एक लेख लिखा था. इस लेख में उन्होने आनंदमठ उपन्यास को भी मुस्लिम विरोधी बताया था, तथा यह कहा था कि यह उपन्यास हिन्दुाओं व्दारा मुस्लिम सत्ता के विरुध्द विद्रोह की कहानी है न कि अंग्रेज़ी सत्ता के विरोध की. जुलाई 2017 में माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि तमिल नाडु की सभी शैक्षणिक संस्थाओं में सप्ताह में कम से कम 2 दिन वंदे मातरम् अनिवार्य रूप से गाया जाये. माननीय मद्रास उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद महाराष्ट्र विधान सभा में भाजपा विधायक श्री राजपुरोहित ने महाराष्ट्र की शि‍क्षण संस्थाओं में भी वंदेमातरम् गाना अनिवार्य करने की मांग की, जिसका अनेक मुस्लिम नताओं ने कड़ा विरोध किया. बहुत से हि‍न्दू नेताओं ने कहना प्रारंभ कर दिया कि जो भारत में रहना चाहते हैं उन्हें वंदेमातरम् कहना ही होगा. जो ऐसा नही करना चाहते वे पाकिस्तान चले जायें.

यहां हमें यह भी याद रखना चाहिये कि बहुत से मुस्लिम नेताओं ने वंदेमातरम् का समर्थन किया है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा है कि वंदे मातरम् गीत में इस्लाम के “वहादते दीन” (धर्म की एकता) और “सुलहे कुल” (वैश्विक शांति) की भावनाएं समाहित हैं. जब मौलाना आज़ाद कांग्रेसाध्यक्ष थे उस समय पार्टी के सभी सत्रों में वंदे मातरम् गाया जाता था. रफी अहमद किदवई जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिसमंडल के सदस्य थे. उन्होने भी वंदे मातरम् का समर्थन किया है. आरिफ मोहम्मद खान ने वंदेमातरम् का उर्दू में अनुवाद किया है. वे लंबे समय तक संसद सदस्य थे. उन्होने वंदे मातरम् के संबंध में आउटलुक पत्रिका में एक लेख में लिखा था कि वंदे मातरम् का विरोध धार्मिक कारणों से नहीं बल्कि ऐसी अलगाववादी ताकतों के व्दारा किया जाता है जिनके कारण देश का विभाजन हुआ. उन्होने लिखा कि -

“From the Islamic viewpoint, the basic yardstick of an action is Innamal Aamalu Binnyat (action depends on intention). Hailing or saluting Motherland or singing its beauty and beneficence is not sajda.” जाने माने शिक्षाविद फीरोज़ बख्त ने 2006 में पायनियर अखबार में लिखा था - “The melody, the thought content and the ambience of patriotism of Vande Mataram is unmatchable. It is high time that the so-called Muslim leaders stopped politicising the issue of Vande Mataram to promote their mucky politics. As a Muslim, I would like to convey a message to all my countrymen and especially my own community that some politically motivated people are trying to make an emotive issue out of Vande Mataram, a gem of a song and perhaps the song that in my view should have been the national anthem in place of Jana gana mana…”

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